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झोलाछाप अब करने लगे सर्जरी

छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज करने वाले झोलाछाप डॉक्टर अब बिहार में सर्जरी तक करने लगे हैं और राज्य के अंदरूनी इलाकों में इन्होंने अपने नर्सिंग होम भी खोल लिए हैं. इन नातजुर्बेकार झोलाछाप 'सर्जनों’ की वजह से ग्रामीण इलाकों में न जाने कितने लोगों की जान खतरे में आ चुकी है और कितनों की आ सकती है.

अवैध अस्पताल पूर्वी चंपारण के रामनगर में सील किए गए नर्सिंग होम में छापेमारी के दौरान भर्ती मरीज
अवैध अस्पताल पूर्वी चंपारण के रामनगर में सील किए गए नर्सिंग होम में छापेमारी के दौरान भर्ती मरीज
अपडेटेड 24 जनवरी , 2023

श्रीकृष्ण मेमोरियल अस्पताल, मुजफ्फरपुर के आइसीयू में अपने बेड पर बैठी सुनीता देवी यह पूछते ही चिहुंक उठती हैं कि उन्हें क्या हुआ है. अपने पेट दर्द का इलाज कराने वे पड़ोस के गांव बरियारपुर के निजी अस्पताल में गई थीं. उन्हें यह नहीं मालूम था कि वह अस्पताल गैरकानूनी है और डॉक्टर दसवीं फेल. डॉक्टर ने सर्जरी के जरिए उनके गर्भाशय को निकालने की कोशिश की. इस चक्कर में गलती से साथ में उनकी दोनों किडनियां भी निकल गईं. अब पिछले चार महीने से वे बिना किडनी के जिंदा हैं. हफ्ते में तीन रोज उनका डायलिसिस होता है.

वे रोते-रोते बताती हैं, ''मेरी हालत बहुत खराब है. भूख नहीं लगती, उल्टी होती है. चार महीने से पेशाब नहीं हुआ, किडनी नहीं है तो पेशाब कैसे होगा. डॉक्टर ने ज्यादा पानी पीने से मना किया है. गला सूखता है. डॉक्टर कहते हैं, हमको किसी और की किडनी लगेगी, तभी हम बच पाएंगे. इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए किडनी की व्यवस्था करवा दे. न हो तो उसी डॉक्टर या उसकी पत्नी की किडनी हमें दिला दे, जिसके कारण मेरी जिंदगी खराब हो गई. मेरे छोटे बच्चे हैं, हमको उनके जीने का आधार चाहिए. हमारे साथ जो अनहोनी हुई उसका मुआवजा चाहिए.’’

सुनीता देवी की कहानी इस बात का दुखद उदाहरण है कि झोलाछाप डॉक्टर जो अब तक छोटे-मोटे प्राथमिक उपचार तक सीमित थे, अब बेखौफ सर्जरी करने लगे हैं. जिस पवन कुमार का नाम सुनीता देवी की सर्जरी के सिलसिले में सामने आया उसके पिता रघुनाथ पासवान के मुताबिक, डॉक्टरी के लिहाज से उसका इतना ही तजुर्बा है कि उसने हरियाणा की एक दवा दुकान पर तीन-चार साल नौकरी की थी.

उसकी मां शोभा देवी बताती हैं कि हरियाणा से लौटकर वह भूटान में फल का कारोबार करने लगा. कोरोना के वक्त जब कारोबार में दिक्कत हुई तो उसने अपने गांव में एक अस्पताल खोल लिया और लोगों का इलाज करने लगा. इस किडनी कांड के दो महीने बाद पवन कुमार ने स्थानीय थाने में आत्मसमर्पण कर दिया. मगर एक दूसरा डॉक्टर आर.के. सिन्हा जिसे सर्जरी के लिए मुजफ्फरपुर से बुलाया गया था, खबर लिखे जाने तक फरार था.

बरियारपुर गांव की बाहरी सीमा पर पवन कुमार का छोटा-सा नया नवेला अस्पताल आज भी मौजूद है. साइन बोर्ड हटा लिए गए हैं. अस्पताल सील पड़ा है. मगर उसी गांव में एक और ऐसा ही अस्पताल आज भी चल रहा है. लाडली आरोग्य सेवा संस्थान के नाम के इस अस्पताल की दीवार पर चार एमबीबीएस डॉक्टरों के नाम और उनकी डिग्रियों का जिक्र जरूर है.

मगर गांव के लोग बताते हैं कि वे कभी-कभार ही आते हैं. इलाज बिना डिग्री वाले यहां के लोकल डॉक्टर ही करते हैं और यहां भी धड़ल्ले से कई तरह के छोटे-बड़े ऑपरेशन होते हैं. अस्पताल जाने पर पता चलता है कि वहां मरीज हैं, तीन-चार स्टाफ है, मगर डॉक्टर नहीं हैं. स्टाफ न अपना नाम बताता है, न कोई जानकारी देता है.

एक स्थानीय दवा दुकानदार अविनाश कुमार बताते हैं, ''आसपास के कई गांवों के बीच यही एक बड़ा बाजार है और यहां से सबसे नजदीकी सरकारी अस्पताल सकरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नौ-दस किमी दूर है, इसलिए सहज ही यह इलाका आसपास के कई गांवों के लिए छोटा-मोटा मेडिकल हब बन गया है. यहां जो लोग पहले झोलाछाप डॉक्टरी का काम करते थे, उन लोगों ने अस्पताल खोल लिए हैं. ये बाहर से डॉक्टरों को भी बुलाते हैं, खुद भी इलाज और सर्जरी करते हैं.’’

फर्जी और झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे बरियारपुर गांव के छोटे-मोटे मेडिकल हब में बदल जाने की जो कहानी अविनाश बताते हैं वह एक नमूना भर है. पिछले कुछेक साल में पूरे बिहार में ऐसे सौ से अधिक मेडिकल हब तैयार हो गए हैं, जो कंपाउंडर से डॉक्टर बने लोगों के भरोसे चल रहे हैं. इस तरह बिहार में झोलाछाप सर्जनों की एक नई ब्रीड तैयार हो गई है, जो अब छोटी-बड़ी किसी भी तरह की सर्जरी करने में नहीं हिचकती, भले ही उसके पास इसका कानूनी अधिकार और काम करने की सलाहियत न हो. शहर के बड़े अस्पतालों के मुकाबले इनका इलाज सस्ता है, गरीब मरीज इसी चक्कर में इनके जाल में फंस जाते हैं.

ऐसा ही एक कस्बाई मेडिकल हब है पश्चिमी चंपारण जिले का रामनगर. यह इलाका प्रखंड मुख्यालय तक नहीं है, मगर यहां गली-गली में अस्पताल, जांचघर और दवा की दुकानें खूब नजर आती हैं. आज की तारीख में इस छोटे से कस्बे में आधा दर्जन से अधिक निजी अस्पताल सील पड़े हैं. इनमें से ज्यादातर को इस वजह से सील किया गया क्योंकि यहां झोलाछाप डॉक्टर सर्जरी कर रहे थे.

पिछले साल नवंबर में रामनगर के ओम साईं नर्सिंग होम में झोलाछाप डॉक्टर के सर्जरी करने की शिकायत मिलने के बाद प्रशासन ने वहां छापामारी की. डॉक्टर तो छापामारी से पहले फरार हो गए, मगर उस निजी नर्सिंग होम में छापामारी दल को 11 महिलाएं मिलीं, जिनकी सर्जरी हुई थी. इनमें से सात की गर्भाशय की सर्जरी हुई थी. मगर इस छापामारी के बावजूद यहां के झोलाछाप सर्जनों के हौसले कम नहीं हुए.

दिसंबर के आखिर में कस्बे के सिटी इमरजेंसी हॉस्पिटल ऐंड ट्रॉमा सेंटर में एक झोलाछाप डॉक्टर ने एक महिला की सर्जरी कर उसका गर्भाशय निकाल लिया. हैरत की बात यह है कि इस सिटी इमरजेंसी हॉस्पिटल को अगस्त, 2022 को प्रशासन ने सील कर दिया था. यहां एक झोलाछाप डॉक्टर ने गलत तरीके से एक महिला की सर्जरी की जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई थी. मगर अस्पताल संचालकों ने 21 दिसंबर को सील तोड़ दी और अवैध तरीके से इलाज शुरू कर दिया. फिलहाल इस अस्पताल पर सील के दो-दो ताले लटके हैं.  

इन दोनों अस्पतालों के अलावा रामनगर के संजीवनी, अमन और अमायरा नाम के निजी अस्पतालों को भी प्रशासन ने ऐसे ही आरोपों में सील किया है. ये तमाम कार्रवाइयां पिछले छह महीने में हुई हैं. संजीवनी अस्पताल के संचालक के तौर पर डॉ. कमरुज्जमां का नाम आता है.

वे चंपारण के ही गौनाहा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थापित हैं. वे कहते हैं, ''ऐसा थोड़े ही है कि जिन अस्पतालों को सील किया गया है, सिर्फ वहीं अवैध काम होता है. बेतिया के गांव-गांव में ऐसे अस्पताल भरे पड़े हैं.’’ उनका यह आरोप भी है कि ज्यादातर फर्जी अस्पताल पश्चिम चंपारण के सिविल सर्जन को प्रति माह 20,000 रुपए पहुंचाते हैं और जो पैसे नहीं पहुंचाते उनके अस्पतालों को सील कर दिया जाता है. 

डॉ. कमरुज्जमां का एक वीडियो पिछले महीने काफी वायरल हुआ था. उस वीडियो में वे यह कहते नजर आ रहे हैं, ''पश्चिमी चंपारण के सिविल सर्जन का कहना है कि मैंने अपने नाम का बोर्ड चार जगह बेचा है. क्या सिविल सर्जन ने अपने नाम का बोर्ड नहीं बेचा है. उन्होंने एक जगह बेचा है, पौने तीन लाख रुपए महीने में.’’

इस आरोप के जवाब में सिविल सर्जन डॉ. वीरेंद्र कुमार चौधरी कहते हैं, ''एक चिकित्सक को अधिकतम दो क्लिनिक पर ही अपना नाम देने की इजाजत है, इससे अधिक वे करते हैं तो गलत बात है. और हमने आज तक किसी से पैसे की मांग नहीं की. अगर कोई प्रूफ मिल जाए तो हमें बताइए.’’

रामनगर से महज 10 किमी की दूरी पर भैरोगंज गांव में भी नवंबर, 2022 में ऐसे ही एक नर्सिंग होम को सील किया गया. छापामारी के दौरान वहां ऐसी पांच महिलाएं मिलीं जिनकी सर्जरी अस्पताल के झोलाछाप डॉक्टर ने की थी. इस अस्पताल के संचालक अनिल कुमार राम को 7 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक भैरोगंज गांव में शीतला हेल्थ सेंटर के नाम से ऐसा ही एक और फर्जी अस्पताल संचालित हो रहा था, जिसका संचालक नरकटियागंज का डॉ. नटवरलाल था. इस कांड के बाद से वह भी अस्पताल बंद करके फरार है.  

पश्चिमी चंपारण के बगहा अनुमंडल में झोलाछाप सर्जनों के खिलाफ चल रही ताबड़तोड़ छापेमारी के पीछे यहां की एसडीएम डॉ. अनुपमा खासी सक्रिय हैं. वे खुद पेशे से चिकित्सक रही हैं. डॉ. अनुपमा बताती हैं, ''ऐसा नहीं है कि सिर्फ बगहा और रामनगर में ऐसे फर्जी डॉक्टर हैं जो सर्जरी कर रहे हैं. यहां हम लोग कार्रवाई कर रहे हैं, इसलिए ऐसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं.’’ 

डॉ. अनुपमा के मुताबिक ज्यादातर मामलों में ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों का नाम आ रहा है जो किसी सर्जन के यहां काम करते हैं और काम सीखकर अपना अस्पताल खोल लेते हैं. यहां ज्यादातर गर्भाशय निकालने के मामले सामने आ रहे हैं.  वे बताती हैं, ''ये लोग गर्भाशय में छोटी सी परेशानी होने पर भी महिलाओं को डरा देते हैं. कहते हैं, सर्जरी करा लो नहीं तो कैंसर हो जाएगा. जबकि एक डॉक्टर होने के कारण मैं यह अच्छी तरह जानती हूं कि गर्भाशय की ज्यादातर बीमारियां दवा और हद से हद छोटी-सी सर्जरी से ठीक हो जाती हैं.’’

हालांकि इन झोलाछाप सर्जनों की कारगुजारियां गर्भाशय निकालने तक सीमित नहीं है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए), बिहार के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार सिंह बताते हैं, ''ये ऐसे लोग हैं, जिन्होंने लंबे समय तक किसी सर्जन के यहां काम किया और अब उनमें इतना आत्मविश्वास आ गया है कि वे खुद सर्जरी करने लगे हैं.

ये लोग गर्भाशय ही नहीं, हाइड्रोसिल, हर्निया, अपेंडिक्स, गॉल ब्लैडर और किडनी तक पर ब्लेड चलाने से नहीं हिचक रहे.’’ डॉ. अजय के मुताबिक, इनकी गतिविधियां सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक सीमित नहीं है. शहरों, जिला मुख्यालयों और राजधानी पटना तक में इन झोलाछाप सर्जनों के अस्पताल संचालित हो रहे हैं. कई अस्पताल तो इतने बड़े हैं कि ये एमबीबीएस डॉक्टरों को अपने यहां नौकरी देने की बात कर रहे हैं.

डॉ. अजय बताते हैं कि पटना के मनेर में प्रभारी चिकित्सक रहते हुए उन्होंने कई ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत कर उन्हें जेल तक भिजवाया है. वे कहते है, ''राज्य में ऐसे झोलाछाप सर्जनों पर कार्रवाई की कोई मुकम्ममल नीति नहीं है. कई जगह तो इन्हें स्थानीय बाहुबलियों और नेताओं तक की शह मिली है, ऐसे में हम जैसे लोग भी इनके खिलाफ खुलकर बोलने में हिचकते हैं.’’ 

झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों के बारे में जानने के लिए इंडिया टुडे ने जब बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग का पक्ष जानना चाहा तो विभाग के अधिकारियों ने किसी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. स्वास्थ्य सचिव के. सैंथिल कुमार ने कहा कि वे आधिकारिक रूप से इस विषय पर टिप्पणी नहीं कर सकते. इस विषय पर सिर्फ एडिशनल चीफ सेक्रेटरी प्रत्यय अमृत ही टिप्पणी करने के लिए अधिकृत हैं. प्रत्यय अमृत को इंडिया टुडे की तरफ से कई फोन किए गए, मैसेज भी भेजे गए, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. 

बिहार का पूर्णिया जिला निजी कथित चिकित्सकों की अवैध प्रैक्टिस के लिए बदनाम रहा है. वहां के आइएमए के सेक्रेटरी डॉ. नसीम अहमद के मुताबिक, ऐसे दो तरह के डॉक्टर इस पेशे में सक्रिय हैं. एक वे जो गांव और दूरदराज के इलाके में नर्सिंग होम खोलकर सर्जरी करते हैं.

ये आजकल एमबीबीएस डिग्री वाले चिकित्सकों का नाम अपने अस्पताल में लगाने लगे हैं, ताकि कार्रवाई न हो. मगर इलाज अमूमन खुद करते हैं. दूसरे ऐसे झोलाछाप सर्जन हैं जिन्होंने शहरों में सर्जनों के साथ रहते-रहते काम सीख लिया है. वे बताते हैं, ''शहरों के कई नए एमबीबीएस डॉक्टर जिन्हें सर्जरी ठीक से नहीं आती, वे भी मदद के लिए इन लोगों को अपने यहां बुलाते हैं.’’ 

झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज का एक दूसर पक्ष भी है. बिहार के जन स्वास्थ्य व्यवसायिक पाठ्यक्रम के लिए बनी राज्य की परामर्शदाता समिति के अध्यक्ष डॉ. एल.बी. सिंह झोलाछाप डॉक्टरों को ग्रामीण चिकित्सक कहते हैं. उनके समर्थन में लगातार मुखर रहने वाले डॉ. एल.बी. सिंह कहते हैं, ''बिहार जैसे गरीब और ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्र में ग्रामीण चिकित्सकों की सकारात्मक भूमिका रही है.

वे ही उन इलाकों में प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराते हैं, जहां प्रशिक्षित डॉक्टरों की पहुंच न के बराबर है. इसलिए उन्हें बदनाम करना ठीक नहीं. हालांकि मैं इस बात का समर्थन नहीं करता कि ग्रामीण चिकित्सक अपनी तय भूमिका से अलग कोई गैरकानूनी काम करें. सर्जरी का तो उन्हें बिल्कुल अधिकार नहीं. मगर जब प्रशिक्षित डॉक्टर कोई गलती या गैरकानूनी काम करते हैं तो हम पूरी चिकित्सक बिरादरी पर सवाल नहीं करते. इसलिए सभी ग्रामीण चिकित्सकों को गलत नहीं कहा जाना चाहिए.’’ 

कई लोग ऐसा भी मानते हैं कि इस झोलाछाप सर्जरी को बढ़ावा देने में डिग्रीधारी डॉक्टरों की भी बड़ी भूमिका है. मुजक्रफरपुर में स्वास्थ्य के मसलों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. निशींद्र किंजिल्क बताते हैं, ''अमूमन एक सर्जरी में तीन से चार डॉक्टरों की जरूरत होती है. ऐसे में डॉक्टरों को फीस आपस में बांटनी पड़ती है. इससे बचने के लिए डॉक्टर कंपाउंडरों और दूसरे स्टाफ को काम सिखाने लगते हैं. एक बार जब स्टाफ काम सीख जाता है तो दूसरे नए डॉक्टरों को सेवा देने लगता है और फिर एक दिन किसी गांव में अपना अस्पताल खोल लेता है.’’

मगर इस खतरनाक ट्रेंड की जिम्मेदारी सिर्फ डॉक्टरों पर नहीं है. यह उस इलाके के प्रशासकों और जनप्रतिनिधियों की असली जिम्मेदारी है, जो सब देख-समझकर भी आंखें मूंदे रहते हैं और ग्रामीणों की जान के साथ खिलवाड़ होता रहता है. डॉ. निशींद्र किंजिल्क इन बातों का हवाला देते हुए कहते हैं, ''उन सरकारी अस्पतालों की भूमिका को कैसे कम कह सकते हैं जो मरीजों को समय पर समुचित इलाज नहीं देते. उन शहरी निजी अस्पतालों की भूमिका क्या कम है जो गरीब लोगों से मोटी फीस मांगते हैं, लिहाजा मजबूरन उन्हें झोलाछाप डॉक्टरों की शरण में जाना पड़ता है.’’

डॉ. निशींद्र किंजिल्क के आरोप फिर उस सुनीता के मामले को उठाते हैं जो इन दिनों एसकेएमसीएच, मुजफ्फरपुर में हफ्ते में तीन दिन डायलिसिस करवा रही हैं. उनके पति अकलू राम बताते हैं, ''हम लोग सुनीता की बीमारी का इलाज करवाने जुलाई, 2022 में सबसे पहले एसकेएमसीएच में ही आए थे. यहां के डॉक्टर ने हमें सर्जरी की सलाह दी थी.

मेरी पत्नी यहां 15 दिन भर्ती रही. मगर ऐन सर्जरी वाले दिन उसे यह कहकर घर भेज दिया गया कि उसे कोरोना हो गया है. कोरोना ठीक होने के बाद जब हमलोग दुबारा यहां आए तो डॉक्टरों ने हमें फिर से भगा दिया. सुनीता का ऑपरेशन करने से इनकार कर दिया. तब सुनीता की मां को किसी ने पवन के अस्पताल के बारे में बताया जहां सस्ता और सुलभ इलाज होता है.’’ इस तरह यह परिवार मुसीबत में फंस गया.

बिहार में प्रशिक्षित डॉक्टरों की कमी, निजी अस्पतालों में महंगे इलाज और सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था ने झोलाछाप फिजिशियन-सर्जनों को खूब बढ़ावा दिया है. इनके खिलाफ सक्चत कार्रवाई इस 'बीमारी’ का सबसे सही इलाज है. हां, अगर इस बीच सरकार इन लोगों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षित कर पाए तो ये झोलाछाप डॉक्टर ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे के लिए अभिशाप से वरदान भी बन सकते हैं.

—पुष्यमित्र.

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