
दुनिया का सबसे धनवान हिंदू मंदिर जैविक जीवनशैली अपना रहा है. एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित श्री वेंकटेश्वर मंदिर सारे पवित्र अनुष्ठानों के लिए स्वदेशी गौ उत्पादों और रसायन-मुक्त प्राकृतिक खेती की उपज का इस्तेमाल कर रहा है. चाहे दीपक जलाने के लिए घी हो या प्रसादम में दिए जाने वाले प्रसिद्ध लड्डुओं की सामग्री, सब कुछ जैविक तरीकों से तैयार किया जाता है.
मंदिर का संरक्षण करने वाले तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) का कहना है कि वह रोज चढ़ाए जाने वाले 950 किलो फूलों को बर्बाद होने से बचाने के लिए टेक्नॉलोजी के जरिए उनकी प्रोसेसिंग करता है. इन फूलों को सुखाकर और रिसाइकल करके अगरबत्ती और दूसरे उत्पाद बनाए जाते हैं. इसके अलावा पंचगव्य यानी गाय के गोबर, मूत्र, दूध, दही और घी से कई आयुर्वेदिक उत्पाद भी बनाए जाते हैं. टीटीडी की इस पहल के केंद्र में सचमुच देसी गाय है. मंदिर प्रबंधन ने अपने डेयरी फार्म का विस्तार करके नवनीत सेवा शुरू की है. इसमें उनकी गौशाला की देसी गायों के दूध से बने दही को पारंपरिक तरीकों से बिलोकर मक्खन तैयार किया जाता है और भोग में भी इसका इस्तेमाल होता है.
नैवेद्यम यानी भगवान को लगाए जाने वाले भोग के लिए इस्तेमाल 60 किलो मक्खन और मंदिर के दीयों के लिए तेल भी टीटीडी की गौशाला से आता है. गिर, साहीवाल, कांकरेज और थारपारकार सरीखी नस्लों की करीब 108 देसी गायें गौशाला में और लाई गई हैं. इसके अलावा 500 और लाई जाने वाली थीं, पर देश भर के मवेशियों में लंपी त्वचा रोग के प्रकोप की वजह से उन्हें लाने की योजना को फिलहाल मुल्तवी कर दिया गया.
टीटीडी के गौसंरक्षक ट्रस्ट को तोहफों में मिली गायों के अलावा 100 करोड़ रुपए का दान मिला है. उसी से यह बदलाव मुमकिन हुआ. अब एक साल से ज्यादा वक्त से भगवान को चढ़ाई जाने वाली तमाम चीजें गौ उत्पादों से बनती हैं. यहां तक कि पूजा और अनुष्ठानों में इस्तेमाल धान भी उन खेतों से आता है जहां केवल गाय के गोबर और मूत्र से बनी खाद इस्तेमाल होती है.
नवनीत योजना शुरू हुए एक साल हो चुका है और टीटीडी ने चित्तूर जिले के पालामनेर में 450 एकड़ में फैली अपनी गौशाला को अनुसंधान केंद्र में बदल लिया है. गाय-बैलों की खातिर जनवरी 2023 तक फीड मिक्सिंग प्लांट शुरू करने के लिए तिरुपति के एस.वी. पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय और नुटेक बायोसाइंसेज प्रा. लिमि. के साथ समझौते पर दस्तखत किए गए हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष मुख्य सचिव और पशुचिकित्सा विज्ञान में स्नातक के.एस. जवाहर रेड्डी कहते हैं, ''हम किसानों को गाय-आधारित पंचगव्य उत्पादों के बारे में शिक्षित करने के लिए अभियान चलाएंगे, जो उनके लिए लाभदायक उद्यम बन सकते हैं.''
टीटीडी के एक्जीक्यूटिव ऑफिसर रेड्डी आगे जोड़ते हैं, ''देसी गायों का प्रचार और उन्हें लोकप्रिय बनाने का अभियान बड़ा बदलाव लाने वाली परियोजना है और टीटीडी डेयरी फार्म के देसी बैल और गायों को गौशाला में लाने जा रहा है.'' टीटीडी देसी गायों के उच्च क्षमता वाले भ्रूण उत्पन्न करने के मकसद से एंब्रियो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी लैबोरेटरी स्थापित करने के लिए एस.वी. पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय और निजी संस्था ट्रॉपिकल एनिमल जेनेटिक्स के साथ मिलकर काम कर रहा है. पहला प्रयोग एस.वी. गौसंरक्षक शाला के मवेशियों पर इस्तेमाल गिर के भ्रूण के साथ किया जाएगा. रेड्डी कहते हैं, ''अभी तक 21 भ्रूण ट्रांसफर किए गए हैं. यह टीटीडी के लिए अधिक दूध देने वाली देसी गायें तैयार करने और ऐसी गायों का जेनेटिक भंडार बनाने का लॉन्चपैड होगा. प्रयोगशाला देसी दुधारू गायों के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में उभरेगी.''
टीटीडी ने अक्तूबर, 2021 में राज्य के महिला स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) के साथ काम करने वाले संगठन आंध्र प्रदेश रायतू साधिकार समिति (आरवाइएसएस) के साथ भी हाथ मिलाया है. इनका साझा मकसद उन खेतों में जैविक खेती को बढ़ावा देना है जहां से तिरुमला मंदिर और टीटीडी की कई सारी संस्थाओं के लिए जरूरी प्राकृतिक खेती की उपज खरीदी जाती है.
आरवाइएसएस ने राज्य के एनएफ क्लस्टरों में अरहन उगाने वाले किसानों की पहचान की, उन्हें प्रशिक्षित किया और अब उनके फसल प्रबंधन की निगरानी करता है ताकि अंग्रेजी खाद और कीटनाशकों का जरा भी इस्तेमाल न हो. वह रायतू भरोसा केंद्रों (आरबीके) के जरिए किसानों को प्रशिक्षण भी दे रहा है. आरवाइएसएस के कार्यकारी उपाध्यक्ष टी. विजय कहते हैं, ''किसानों का हाथ थामने के अलावा हम टीटीडी को सप्लाइ से पहले उपज की जांच करते हैं कि कहीं उनमें कीटनाशक के अवशेष तो नहीं.'' किसानों को जैविक उपज के लिए प्रोत्साहन लाभ दिए जाते हैं और मुनाफे का भरोसा दिलाया जाता है. टीटीडी के साथ समझौते की बदौलत यहां के किसानों को बाजार मूल्य पर 15 फीसद का प्रीमियम मिलता है. पहले साल किसानों को आम तौर पर प्रति टन औसतन 10,000 रुपए का अतिरिक्त फायदा हुआ.
साल 2022-23 के लिए आरवाइएसएस ने प्राकृतिक खेती की 12 फसलों की निश्चित मात्रा खरीदने के मकसद से 4,952 एसएचजी (स्व सहायता समूहों) के 24,765 किसानों की पहचान की है. इन उपजों में चना, अरहर, उड़द, गुड़, हल्दी, चावल, काली मिर्च, मूंगफली, मूंग, धनिया और सरसों भी हैं. यह पहल 2015 में शुरू किए गए आंध्र प्रदेश समुदाय आधारित प्राकृतिक खेती (एपीसीएनएफ) कार्यक्रम को भी बढ़ावा देती है. आरवाइएसएस-टीटीडी भागीदारी का एक और पहलू प्राकृतिक उपज की सप्लाइ करने वाले किसानों को टीटीडी की गौशाला की गायें देना हैं. ये गौवंश मुफ्त दिए जाते हैं. चित्तूर, तिरुपति, वाइएसआर कडप्पा, अनंतपुरम, कुरनूल, प्रकाशम और नेल्लोर जिलों में 945 गायें और 737 बैल भेजे गए हैं. इसके अलावा 92 बैल और 238 गायें तेलंगाना के नगरकुरनूल जिले में बांटी गई हैं. टीटीडी के गौसंरक्षक अभियान के तहत आंध्र प्रदेश के सभी जिले अगले दो साल में इस योजना से जुड़ जाएंगे. टीटीडी ने गुडिको गोमठ कार्यक्रम भी शुरू किया है, जिसके तहत इसमें रुचि रखने वाले मंदिरों को एक गाय और एक बछड़ा दान दिया जाता है. पांच राज्यों में 193 मंदिर अभी तक इस पेशकश से फायदा उठा चुके हैं.

प्राकृतिक मार्ग
प्राकृतिक कृषि या नेचुरल फार्मिंग को लागू करने वालों में आंध्र प्रदेश अग्रणी राज्य रहा है. प्रदेश सरकार ने 2016 में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (जेबीएनएफ) की पहल शुरू की थी. रायतू साधिकार संस्था के कार्यकारी उपाध्यक्ष टी. विजय कुमार कहते हैं, ''आंध्र प्रदेश कम्युनिटी मैनैज्ड नेचुरल फार्मिंग या एपीसीएनएफ (जेबीएनएफ का नाम बदलकर अब यही हो गया है) के तहत 6,30,000 किसान प्राकृतिक कृषि से जुड़े हैं और यह इस प्रकार का दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है.''
2021-22 में लगभग 2,88,000 हेक्टेयर भूमि पर खेती एपीसीएनएफ कार्यक्रम के तहत हुई थी. इसके अलावा, 1,90,000 गरीब परिवारों ने अपने घरों में प्राकृतिक कृषि (एनएफ) आधारित किचन गार्डन तैयार किए हैं. 2022-23 में प्राकृतिक कृषि के तहत 10.60 लाख किसानों को लाने की उम्मीद है जो राज्य में 4,58,000 हेक्टेयर भूमि पर खेती करेंगे. 2020 में राज्य ने परियोजना के लिए एक विशेष प्राकृतिक कृषि विभाग स्थापित करने के लिए जर्मनी के केएफडब्ल्यू बैंक से 783 करोड़ रुपए (9 करोड़ यूरो) का सॉफ्ट लोन लिया. तकनीकी सहायता के लिए 100 करोड़ रुपए के अनुदान के साथ अजीम प्रेमजी फिलॉन्थ्रॉपिक इनिशिएटिव भी इस प्राकृतिक कृषि कार्यक्रम का समर्थन करता है.
आंध्र प्रदेश के इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के एक अध्ययन में कहा गया है कि प्राकृतिक कृषि ने किसानों की लागत (जबकि पैदावार एक जैसी ही है) को कम कर दिया है. इसी अध्ययन से यह भी पता चला कि प्राकृतिक कृषि को अपनाने वाले किसानों को पारंपरिक कृषि पर निर्भर किसानों की तुलना में प्रति हेक्टेयर 25,000 रुपए की अधिक शुद्ध आय हुई. इस मामले में आंध्र प्रदेश एक संसाधन केंद्र के रूप में उभरा है और प्राकृतिक कृषि प्रथाओं को अपनाने के लिए राजस्थान, बिहार, ओडिशा, मेघालय और केरल जैसे राज्यों का समर्थन कर रहा है.
हे वेंकटेश्वर फूल तुम्हारे
टीटीडी ने कई उपयोगी वस्तुएं बनाकर चढ़ावे के फूलों के निस्तारण का रास्ता खोजा
टीटीडी में कचरा प्रबंधन एक सर्कुलर इकोनॉमी या चक्राकार अर्थव्यवस्था का अनुसरण करता है. तिरुमला और दूसरे मंदिरों में देवताओं को चढ़ाए जाने वाले फूलों को कूड़े में नहीं फेंका जाता. सितंबर, 2021 के बाद से फूलों के कचरे को तिरूपति की एस.वी. गोसंरक्षणशाला में बनी एक विशेष इकाई में भेजा जाता है जहां 80 कार्यकर्ता इसे उच्च गुणवत्ता वाली सुगंधित अगरबत्ती में बदलते हैं.
सामग्री के मिश्रण से लेकर पैकेजिंग तक हर प्रक्रिया यहीं अंजाम दी जाती है. अगरबत्ती उद्योग के एक प्रमुख नाम दर्शन इंटरनेशनल के निदेशक टी.एस. हर्ष कहते हैं, ''टीटीडी चाहता था कि फूलों के कचरे का अंतिम उपयोग किसी धर्मकार्य में हो और हमने अंतत: इससे अगरबत्ती बनाने का फैसला किया.'' उनकी कंपनी ने एक डीह्यूमिडिफायर उपहार में दिया जो विशाल मात्रा में फूलों को उनके रंग और आंतरिक सुगंध को नष्ट किए बिना सुखा देता है. फूलों के कचरे को बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री से लेकर साबुन और सुगंधित तेलों के निर्माण तक उपयोग में लाया जा सकता है. यह हस्तनिर्मित कागज के लिए कच्चे माल का भी काम कर सकता है. टीटीडी ने तिरुपति की डॉ. वाइएसआर हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी के सहयोग से इन फूलों से उत्पाद बनाने के लिए 180 महिलाओं को रोजगार दिया है.
गाय से प्राप्त पंचगव्य यानी गोबर, मूत्र, दूध, दही और घी जैसे पांच उपयोगी पदार्थों का आयुर्वेद में व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया जाता है. टीटीडी ने नमामि गोविंदा ब्रांड से इन औषधीय उत्पादों का निर्माण शुरू कर दिया है. आशीर्वाद आयुर्वेद फार्मेसी लिमिटेड के निदेशक डॉ. राम कुमार कहते हैं, ''इस समय हमारे पास 15 उत्पाद हैं और एक साल में यह संख्या 50 हो जाएगी.'' वे टीटीडी की श्री श्रीनिवास आयुर्वेद फार्मेसी और एसवी गोसंरक्षण शाला के साथ साझेदारी में उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं.

