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पढ़ने को किताब नहीं जीतेंगे सारा जहां!

किताबों की किल्लत के दौरान बहुत-से पुस्तक विक्रेता भी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं. कीमत वाले पन्ने फाड़कर वे पुरानी किताबें तक दोगुने दाम में बेचे ले रहे हैं. और छात्र उन्हें खरीदने को मजबूर हैं

अंतहीन इंतजार : बाराबंकी के प्राथमिक विद्यालय सिपहिया में कक्षा एक के विद्यार्थियों को नहीं मिलीं नई किताबें. दूसरी विद्यालयों में बांटने के लिए रखी जूनियर कक्षाओं की किताबें.
अंतहीन इंतजार : बाराबंकी के प्राथमिक विद्यालय सिपहिया में कक्षा एक के विद्यार्थियों को नहीं मिलीं नई किताबें. दूसरी विद्यालयों में बांटने के लिए रखी जूनियर कक्षाओं की किताबें.
अपडेटेड 5 सितंबर , 2022

उत्तर प्रदेश के प्राइमरी और जूनियर स्कूलों में शैक्षिक सत्र शुरू होने के पांच महीने बाद भी पूरा नहीं हो सका मुफ्त किताबों का वितरण. यूपी बोर्ड के छात्र-छात्राओं के लिए सस्ती किताबें बाजार से गायब. महंगी किताबें खरीदने की मजबूरी उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के सुनहरे भविष्य का सपना किस तरह बुना जा रहा है, उसकी बानगी राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में ही दिख जाती है. यहां 29 अगस्त की सुबह दस बजे देवा ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय सिपहिया में प्रवेश करते ही कक्षा एक के बच्चे जमीन पर बिछी गंदी-सी दरी पर बैठे पढ़ते मिले. दरवाजे से भीतर आ रही रोशनी में फटी-पुरानी किताबें लेकर पढ़ते बच्चे निजी स्कूलों से प्रतिस्पर्धा करने के सरकारी दावों का मजाक उड़ा रहे थे. इन मासूम बच्चों को तो यह भी नहीं पता था कि नई कक्षा में जाने पर नई किताब पर उनका हक है.

अप्रैल में नया शैक्षि‍क सत्र शुरू हो गया लेकिन इन बच्चों को पुरानी किताबों से ही ककहरा पढ़ना पड़ रहा है. इसी विद्यालय में कक्षा तीन में पढऩे वाले छात्र बताते हैं कि उन्हें अभी तक केवल हिंदी की ही नई किताबें मिली हैं, बाकी विषयों की किताबें चौथी कक्षा में पहुंच गए छात्रों से मांगकर पढ़नी पड़ रही हैं. दूसरे सरकारी विद्यालयों में तो इन कक्षाओं के लिए अपर प्राइमरी की कुछ किताबें बंटने पहुंची थीं लेकिन सिपहिया में पढ़ने वाले बच्चों के लिए किताबों का इंतजार बरकरार है. यहां के बच्चे तो अपने को फिर भी खुशनसीब समझें कि उन्हें एकाध विषयों की तो नई किताबें मिल गई हैं. बरेली में तो इंग्लिश मीडियम वाले दो दर्जन से ज्यादा स्कूल सितंबर आ पहुंचने के बावजूद नई किताबों की राह तक रहे हैं.

प्राइमरी और जूनियर कक्षाओं में निशुल्क पाठ्यपुस्तकें मुहैया कराने में बेसिक शिक्षा विभाग के पसीने छूट रहे हैं, तो माध्यमिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए सस्ती पुस्तकें सपना बनती जा रही हैं. लखनऊ के काकोरी में रहने वाले नौवीं के छात्र रोशन कुमार रोज 25 किलोमीटर साइकिल भांजकर लखनऊ में निशातगंज के राजकीय इंटर कॉलेज में पढ़ने आते हैं. सपना है इंजीनियर बनना. पिछले दिनों जब वे क्लास में पढ़ाई जाने वाली गणित की किताब लेने अमीनाबाद बाजार पहुंचे तो दाम सुनकर चकरा गए. रोशन बताते हैं, ''जिस प्रकाशक की गणित की किताब कॉलेज में पढ़ाई जाती है, उसके दाम तो 79 रुपए हैं और बाजार में दूसरे प्रकाशक की छापी वही किताब 400 रुपए में मिल रही है. अब क्या बताएं? बप्पा (पिता) किसान हैं. उनकी माली हालत ऐसी है नहीं कि महंगी किताब खरीदने का पैसा दे सकें.'' अक्तूबर में छमाही इम्तहान होना है और किताब के बिना रोशन की तैयारी शून्य समझिए.

यूपी बोर्ड के विद्यालयों के रोशन जैसे कक्षा 9 से 12 में पढ़ने वाले लाखों गरीब विद्यार्थी सस्ती सरकारी किताबों के बाजार से गायब होने का खमियाजा भुगत रहे हैं. 1 अप्रैल से नया शैक्षिक सत्र शुरू होने के पांच महीने के बाद भी विद्यार्थियों को सभी पाठ्य पुस्तकें नहीं मिल पाई हैं तो तैयारी क्या खाक होगी? प्रदेश के बेसिक शि‍क्षा महकमे के महानिदेशक विजय किरण आनंद बताते हैं, ''विधानसभा चुनाव की आचार संहिता और एक तकनीकी कारण से पाठ्यपुस्तकें बंटने में देरी हुई है. सितंबर के पहले हफ्ते तक सभी स्कूलों में ये बांट दी जाएंगी.'' माध्यमिक शिक्षा विभाग की पूर्व अपर मुख्य सचिव अराधना शुक्ला ने भी विभाग के अधिकृत प्रकाशकों को सस्ती पाठ्यपुस्तकें विद्यार्थियों को मुहैया कराने के निर्देश दिए हैं.

सरकारी अधिकारियों के कई निर्देशों और निगरानी के बावजूद उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई जाने वाली पाठ्य-पुस्तकें मकड़जाल में फंस गई हैं. समग्र शिक्षा अभियान के तहत सरकारी प्राइमरी (बेसिक) और जूनियर विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को निशुल्क पाठ्य पुस्तकें मुहैया कराई जा रही हैं. इस साल यही कोई दो करोड़ छात्रों को 10.75 करोड़ पाठ्य पुस्तकें निशुल्क बांटी जानी हैं. बेसिक शिक्षा विभाग दावा ठोंक रहा है कि अगस्त के अंत तक 60 फीसदी से ज्यादा किताबें बंट चुकी हैं पर यह दावा सरासर किताबी है. आठवीं तक के ज्यादातर छात्र पास होकर निकले दूसरे छात्रों की फटी-उधड़ी किताबों से पढऩे को विवश हैं. माध्यमिक शिक्षा विभाग कक्षा 9 से 12 में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए एनसीईआरटी पाठ्यक्रम पर आधारित सस्ती किताबें मुहैया कराता है. लेकिन यह पूरी व्यवस्था प्रदेश सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति की भेंट चढ़ गई है.
 
टेंडर का टंटा

बेसिक शिक्षा विभाग के कक्षा एक से आठ तक के विद्यार्थियों को मुफ्त में किताबें बांटने के लिए प्रकाशक चुनने का काम पिछले साल सितंबर में ही शुरू हो गया था. इसके लिए टेंडर की शर्तें और दूसरे नियम तय करने में करीब तीन महीने का वक्त लगा. दिसंबर के अंतिम हफ्ते में जब टेंडर जारी हुआ तो इसमें एक शर्त को लेकर लफड़ा हो गया. टेंडर के प्रावधानों के अनुसार, प्रकाशक को किताबें छापने के लिए उसी कंपनी से कागज (कवर पेपर) लेना था जिसकी उत्पादक क्षमता 50 मीट्रिक टन से ज्यादा हो. इसके लिए कंपनी के पास सेंट्रल एक्साइज के सक्षम अधिकारी का प्रमाण पत्र होना जरूरी था. प्रकाशकों ने यह कहकर इस प्रावधान पर उंगली उठा दी कि एक्साइज विभाग ने ऐसा कोई प्रमाणपत्र बनाना बंद कर दिया है. बेसिक शिक्षा विभाग को भेजी गई एक चिट्ठी में प्रकाशकों ने 2019 में जारी केंद्रीय प्रत्यक्ष कर (विजिलेंस) के महानिदेशक की एक चिट्ठी नत्थी की. इसमें कहा गया था कि 1 जुलाई, 2017 से लागू माल और सेवा कर (जीएसटी) कानून में किसी भी प्रकार का प्रमाणपत्र जारी करने का प्रावधान नहीं है. इस तकनीकी पेच के चलते किताब खरीद की पूरी प्रक्रिया शुरुआती दौर में ही ठहर गई. बेसिक शिक्षा विभाग सेंट्रल एक्साइज के प्रमाणपत्र का विकल्प तलाशने में जुट गया. यूपी के जीएसटी विभाग की मदद से तय किया गया कि कंपनी जिस पोर्टल पर अपने कर का स्वमूल्यांकन अपलोड करती है उसी पोर्टल को राज्य जीएसटी विभाग प्रमाणित कर देगा.
 
आड़े आ गई आचार संहिता

जब टेंडर की शर्तों में बदलाव की बात आई तो यूपी में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता आड़े आ गई. चूंकि इन शर्तों को प्रदेश सरकार की कैबिनेट से सहमति मिली थी, ऐसे में इसमें किसी भी प्रकार का संशोधन कैबिनेट की बैठक में ही हो सकता था. जनवरी से मार्च के बीच यूपी में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी. ऐसे में कैबिनेट बैठक संभव नहीं थी. नतीजा यह हुआ कि प्रकाशकों के चयन की टेंडर प्रक्रिया आगे न बढ़ पाई. मार्च के अंतिम हफ्ते में नई सरकार के गठन के बाद 12 अप्रैल को कैबिनेट की दूसरी बैठक में बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में किताबें मुहैया कराने को प्रकाशकों के चयन के लिए टेंडर की शर्तों में संशोधन की सहमति मिली.

पूर्वांचल के शिक्षक नेता सुनील वार्ष्णेय के शब्दों में, ''11 करोड़ किताबों के लिए टेंडर की शर्तों में इतनी बड़ी गड़बड़ी विभाग की घोर लापरवाही की ओर इशारा है.'' बेसिक शिक्षा निदेशालय ने करीब दो महीने के भीतर 7 जून को 13 प्रकाशक चुनकर उन्हें पाठ्य पुस्तक मुहैया कराने के लिए वर्कआर्डर जारी कर दिए. इन प्रकाशकों में मथुरा के आठ, लखनऊ के दो और 1-1 प्रकाशक राची, आगरा और हल्द्वानी के हैं. नियमानुसार इन सभी को तीन महीने के भीतर यानी 5 सितंबर तक सभी 10 करोड़ पुस्तकें सप्लाई करने का आदेश दिया गया. पाठ्य पुस्तक अधिकारी श्याम किशोर तिवारी बताते हैं, ''समय से किताबें मुहैया न कराने पर प्रकाशकों पर पेनाल्टी का भी प्रावधान है. अगर निर्धारित समय-सीमा के तीन हफ्ते के बाद भी प्रकाशक पाठ्य पुस्तकें मुहैया नहीं कराता है तो उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा.''

कागज के बढ़ गए दाम

लेकिन प्रकाशकों का अपना रोना है. कागज के बढ़े दामों ने इस दफा उनके सामने दिक्कत पैदा कर दी. इस बार किताब के अंदरूनी चार पन्नों की छपाई का खर्च 1 रुपए 74 पैसे आया था जोकि पिछले साल 1 रुपए 44 पैसे था. लखनऊ के एक प्रकाशन के प्रबंधक सनातन शर्मा बताते हैं, ''टेंडर में कागज का जो दाम तय हुआ था वह भी काफी कम था. यूक्रेन युद्ध के कारण कागज के दाम बेतहाशा बढ़ गए. पिछले साल 60 रुपए किलो के भाव मिला कागज अब 110 रुपए किलो मिल रहा है. इसके अलावा कोयले की कमी और बिजली संकट से प्रिटिंग में लगने वाला खर्च तेजी से बढ़ा है. इससे भी छपाई पर असर पड़ा.'' टेंडर में छपाई समेत कागज का रेट बाजार के मुकाबले काफी कम होने से प्रकाशकों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई. यही वजह थी कि 25 प्रकाशक पाठ्य पुस्तकों की सप्लाइ करने के लिए जारी टेंडर में क्वालिफाइ हुए. बाद में इसमें से भी 12 ने किनारा कर लिया. कागज के संकट से निबटने के लिए विजय किरण आनंद ने आधा दर्जन टीमों को कागज मिलों से संपर्क करने का निर्देश दिया. तब जाकर जुलाई में कागज की सप्लाइ सुनिश्चित हो पाई.

ढुलाई तंत्र कमजोर

बेसिक शिक्षा के स्कूलों में किताब बांटने का व्यवस्थित तंत्र भी विकसित नहीं हो पाया है. बेसिक शि‍क्षा निदेशालय के एक अधिकारी बताते हैं, ''प्रकाशक सीधे जिले में किताबें सप्लाइ करता है. जिले के गोदाम से ये सभी ब्लॉक संसाधन केंद्रों (बीआरसी) को भेजी जाती हैं. यहां से किताबें संबंधित स्कूलों में बंटती हैं.'' एटा जिले के जैथरा ब्लॉक में 155 प्राथमिक, 52 उच्च प्राथमिक और 26 कंपोजिट विद्यालय हैं. यहां के 18,575 छात्र-छात्राओं में बंटने के लिए कुछ किताबें 18 अगस्त को ब्लॉक संसाधन केंद्र पर पहुंच गई थीं. एक निजी फर्म को किताबें विद्यालय में पहुंचाने का ठेका दिया गया लेकिन एक ही वाहन होने के कारण विद्यालयों में किताबें पहुंचाने में खासा वक्त लग गया. इसी तरह गोंडा जिले के मुजेहना ब्लॉक के धानेपुर कस्बे के बीआरसी में किताबें 18 अगस्त को ही पहुंच गई थीं लेकिन ढुलाई की व्यवस्था न होने पर वे 10 दिन तक गोदाम में ही पड़ी रहीं. हरदोई जिले के संडीला ब्लॉक में प्राइमरी शिक्षक सत्येद्र सिंह बताते हैं ''बीआरसी से किताबें विद्यालयों में कैसे पहुंचेंगी? इसका प्रबंध न होने से शिक्षकों को अपनी निजी गाड़ियों से ही किताबों की ढुलाई करनी पड़ रही है जिससे पढ़ाई भी बाधि‍त हो रही है.''

प्राइमरी और जूनियर स्कूलों में मुफ्त पुस्तक वितरण के सरकारी तौर-तरीकों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं जिनकी वजह से हर वर्ष बच्चों को समय पर किताबें मिलने में दिक्कतें आती हैं. प्राथमिक शि‍क्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय कहते हंं ''शिक्षा विभाग को मालूम है कि टेंडर जारी होने से लेकर किताबें बंटने के बीच कितना समय लगता है तो वह समय रहते पूरी प्रक्रिया क्यों नहीं निबटाता जिससे विद्यार्थियों को नए सत्र के साथ अप्रैल के पहले हफ्ते में किताबें मिल जाएं. पूरी किताबें छपती भी हैं कि नहीं, इसकी भी कोई जांच नहीं होती.'' हालां‍कि बेसिक शि‍क्षा विभाग प्रकाशकों से मिली किताबों का आडिट कराकर पुस्तक वितरण में किसी भी गड़बड़ी के अंदेशे को समाप्त कराने की रणनीति बना रहा है.
 
यूपी बोर्ड की महंगी किताबें

बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में किताबों के निशुल्क वितरण में दिक्कतें हैं तो उत्तर प्रदेश माध्यमिक शि‍क्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड की कक्षा 9 से 12 की किताबें बाजार में ही उपलब्ध नहीं हैं. यूपी बोर्ड से संचालित माध्यमिक तथा इंटर कॉलेजों में राष्ट्रीय शैक्षि‍क अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबों से पढ़ाई होती है. इन किताबों की छपाई की जिम्मेदारी आगरा के कैला जी बुक्स और झांसी के पीताम्बरा बुक्स तथा डायनमिक्स टेक्ट बुक्स को सौंपी गई है. इन्हीं तीन प्रकाशकों को बाजार में यूपी बोर्ड के कॉलेजों के लिए 34 विषयों की एनसीईआरटी की 67 किताबें बाजार में मुहैया करानी थीं. शिक्षक नेता रामेंद्र प्रताप बताते हैं, ''एक अप्रैल को नया शैक्षिक सत्र शुरू होने के करीब दो महीने बाद सस्ती किताबें मुहैया कराने के लिए प्रकाशकों का चयन हुआ.

इससे शुबहा होता है कि माध्यमिक शिक्षा विभाग निजी पुस्तक माफियाओं की गिरफ्त में है. निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें नए सत्र के साथ बाजार में आ गई थीं.'' कक्षा 9 की गणित की अधिकृत पुस्तक 79 रुपए की है जबकि निजी प्रकाशकों की किताब 265 से 400 रुपए कीमत तक की है. अधिकृत प्रकाशक की अंग्रेजी की किताब 28 रुपए की है तो निजी प्रकाशक इसे 170 रुपए में बेच रहे हैं. सामाजिक विज्ञान और विज्ञान का भी यही हाल है. 73 रुपए की विज्ञान की किताब निजी प्रकाशक 185 से 325 रुपए तक में बेच रहे हैं.
 
कमिशन का खेल

अमीनाबाद के एक प्रकाशक बताते हैं ''छात्र संख्या के अनुपात में सस्ती किताबें मुहैया न होने का एक बड़ा कारण पुस्तक विक्रेताओं का कम कमिशन भी है. सस्ती किताबों में प्रिंट रेट का एक प्रतिशत ही कमिशन मिलता है जबकि निजी प्रकाशक इससे दस गुना ज्यादा कमिशन देते हैं.'' सस्ती किताबें मुहैया कराने के लिए लखनऊ के जिला विद्यालय निरीक्षक राकेश कुमार पांडेय ने जुलाई के अंतिम हफ्ते में राजकीय जुबली इंटर कॉलेज में पांच दिन के लिए स्टाल की व्यवस्था कराई थी. इसके बावजूद किताबों की बड़ी मांग बनी हुई है और बच्चे दुकानों पर भटकने को विवश हैं. पुरानी सस्ती किताबों की ब्लैक मार्केटिंग भी जोर पकड़ रही है. प्रयागराज के एक माध्यमिक कॉलेज में 10वीं के छात्र प्रांजल ने जीरो रोड स्थित एक दुकान से 24 रुपए प्रिंट रेट वाली भारत और समकालीन विश्व नाम वाली पुरानी किताब 40 रुपए में खरीदी. प्रांजल बताते हैं, ''पुराने वर्षों की सेकेंड हैंड सस्ती किताबें दुकानदार असल कीमत से अधि‍क पर बेच रहे हैं. दुकानदार उस पन्ने को फाड़ दे रहे हैं जिस पर किताब का दाम लिखा होता है.''

''खूब पढ़ो, खूब बढ़ो'' का सरकारी नारा सस्ती और मुफ्त किताबों के अभाव में खोखला साबित हो रहा है. समय पर विद्यार्थियों को किताबें न मुहैया कराकर सरकारी शिक्षा व्यवस्था अपना ही मखौल बना रही है.

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