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पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत

देश में बने पहले विमानवाहक पोत विक्रांत की तैनाती होने जा रही है. नौसेना के इस सबसे बड़े जंगी पोत की ताकत और मारक क्षमता देश के समुद्री रणनीतिक हितों को हासिल करने में अहम होगी

समुद्र में तैरता शहर : कोचीन शिपयार्ड में खड़े विक्रांत का विहंगम दृश्य
समुद्र में तैरता शहर : कोचीन शिपयार्ड में खड़े विक्रांत का विहंगम दृश्य
अपडेटेड 2 सितंबर , 2022

प्रदीप आर. सागर

कोच्चि में जमकर बारिश हो रही है. तेज बरसाती हवाओं ने देश के सबसे बड़े युद्धपोत स्वदेशी विमानवाहक (आइएसी) विक्रांत के फ्लाइट डेक पर खड़े रह पाना मुश्किल कर दिया है. बैटलशिप ग्रे या जंगी जहाज के भूरे रंग की परतों से नहाया और दो फुटबॉल के मैदानों के बराबर यह डेक अत्यंत विशाल, अंतहीन रनवे है. बो से स्टर्न यानी अग्रभाग से पिछले हिस्से तक की लंबाई 262 मीटर है. यहां से नीचे समुद्र में झांकना 18 मंजिल ऊंची इमारत की छत से नीचे देखने की तरह है.

जिस तरह बच्चे का नाम प्रिय पुरखे के नाम पर रखा जाता है, उसी तरह भारतीय नौसेना की हाल के वर्षों की सबसे गौरवशाली उपलब्धि आइएसी विक्रांत का नाम भी मशहूर रिश्तेदार के नाम पर है. 1961 में ब्रिटेन से एचएमएस हर्क्यूलिस खरीदकर भारत विमानवाहक पोत हासिल करने वाला पहला एशियाई देश बना. इसका नया नाम आइएनएस विक्रांत रखा गया और 20,000 टन के इस युद्धपोत ने 1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई के दौरान पूर्वी पाकिस्तान की नौसैन्य नाकाबंदी करने में प्रमुख भूमिका निभाई और इसके हॉकर सी हॉक हमलावर विमानों ने चटगांव और कॉक्स बाजार बंदरगाहों को गंभीर क्षति पहुंचाई. करीब चार दशक की सेवा के बाद 1997 में इसे कार्यमुक्त किया गया.

अब विक्रांत ने भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत के रूप में नया अवतार लिया है. सरकारी मिल्कियत वाले कोचीन शिपयार्ड लि. (सीएसएल) ने 15 से ज्यादा वर्षों की योजना और निर्माण के बाद भारत में बना सबसे बड़ा युद्धपोत अंतत: भारतीय नौसेना को सौंप दिया. नौसेना के बेड़े में शामिल किए जाने से पहले कामगार केरल में कोचीन शिपयार्ड पर खड़े इसकी अंतिम साज-संवार में जुटे हैं. सितंबर के पहले हफ्ते में इसके औपचारिक कमिशन की योजना है, जो शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में किया जाएगा. फिलहाल इसका कूटनाम आइएसी-1 है और सेवा में दाखिल होते ही इसे आइएनएस विक्रांत कहा जाने लगेगा.

तमाम क्षेत्रों में अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए विमानवाहक अनिवार्य हैं और इसके साथी विमानवाहक आइएनएस विक्रमादित्य (2014 में कमिशन किया गया) के साथ भारत अंतत: ब्लू वाटर नैवी—यानी ऐसी नौसेना जो दुनिया भर में तमाम महासागरों और खासकर हिंद महासागर क्षेत्र (आइओआर) तथा हिंद-प्रशांत में काम कर सके—विकसित करने की अपनी महत्वाकांक्षा साकार कर सकता है. इसी नजरिए से नौसेना और कई रक्षा विशेषज्ञों ने देश के लिए तीसरे विमानवाहक की मांग की है. यही नहीं, जब चीन (जिसके पास तीन विमानवाहक हैं और ज्यादा के निर्माण का मंसूबा बना रहा है) इस क्षेत्र में अपने नौसैन्य पदचिन्ह तेजी से बढ़ा रहा है, कई लोगों को लगता है कि तीसरा विमानवाहक पोत जरूरी है.

विक्रांत के साथ भारत उन देशों के कुलीन समूह में शामिल हो गया है जिनके पास स्वदेशी विमानवाहक पोत डिजाइन और मैन्युफैक्चर करने की क्षमता है. अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस अन्य देश हैं जिन्होंने 40,000 टन और उससे ज्यादा वजन के विमानवाहक पोत बनाए हैं.

आइएसी विक्रांत के कमांडिंग अफसर कमोडोर विद्याधर हर्के ने इस जहाज पर इंडिया टुडे को बताया, ''इसमें (आइएसी में) पुराने विक्रांत की आत्मा समाई है. युद्ध में अपनी दिलेरी दिखा चुके जहाज की आत्मा होने से बेहतर भला और क्या हो सकता है.'' विशालकाय जहाज विक्रांत तैरता हुआ एयरबेस है और इसका फ्लाइट डेक विमानों को ले जाने, हथियारों से सुसज्जित, तैनात और वापस उतारने में सक्षम है. इस युद्धपोत में कम से कम 20 लड़ाकू विमान और करीब 10 हेलिकॉप्टर समा सकते हैं, जिनमें फिलहाल एमएच-60आर बहुउद्देशीय हेलिकॉप्टर, रूसी मिग-29के लड़ाकू विमान और कामोव-31 हेलिकॉप्टर हैं. नौसेना की योजना विक्रांत पर स्वदेश में ही निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर (एएलएच) और लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (नौसैन्य संस्करण) तैनात करने की है.

विशाल विमानवाहकों के अनुरूप विक्रांत की लंबाई-चौड़ाई हैरत में डाल देने वाली है—262 मीटर लंबा, अपने सबसे चौड़े हिस्से में 62 मीटर चौड़ा और 'टावर' या 'आइलैंड' सहित 59 मीटर ऊंचा. कुल 14 डेक हैं जिनमें पांच ऊपरी ढांचे में हैं. यह युद्धपोत 18 मंजिला इमारत के बराबर है और इसमें करीब 1,700 लोगों के क्रू के लिए तैयार 2,300 से ज्यादा कंपार्टमेंट हैं, जिनमें महिला अधिकारियों के लिए विशेष केबिन भी हैं. इसकी शीर्ष रफ्तार करीब 28 समुद्री मील (50 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा) और क्रूजिंग रफ्तार 18 समुद्री मील है, जबकि इसकी टिकाऊ क्षमता (अधिकतम अवधि जिसमें जहाज पुन: आपूर्ति के बिना काम कर सकता है) करीब 75,000 समुद्री मील है. जहाज पर लगे मुख्य इंजन 120 फॉर्मूला-1 कारों के बराबर शक्ति उत्पन्न करते हैं और इस्तेमाल की गई शक्ति आधे कोच्चि शहर को रोशन कर सकती है. तमाम प्रणालियों के लिए लगाए गए बिजली के तारों की कुल लंबाई करीब 2,400 किमी है. विक्रांत का डीप डिस्प्लेसमेंट या जल विस्थापन करीब 45,000 टन है और आकार तथा जटिलता के लिहाज से यह भारत में अब तक बने जहाजों में अभूतपूर्व है. यह युद्धपोत देश में ही विकसित और पहली बार भारतीय नौसेना के जहाज में प्रयुक्त विशेष कोटि के 21,500 टन स्टील का विशालकाय ढांचा है.

आइएनएस विक्रांत का निर्माण 2009 में शुरू हुआ और 23,000 करोड़ रुपए की लागत आई. नौसेना ने इसकी ज्यादा बड़ी ड्राइ डॉक सुविधा और भारत के अन्य विमानवाहकों के बहुत-से रीफिट पूरे करने के अनुभव की वजह से सीएसएल को चुना. विक्रांत के निर्माण के दौरान सीएसएल ने उपकरण और मशीनरी बीएचईएल, बीईएल, केल्ट्रॉन, किर्लोस्कर, लार्सन ऐंड टुब्रो, वार्टसिला इंडिया सरीखी कंपनियों और 100 से ज्यादा दूसरे भारतीय निर्माताओं से जुटाईं. जहाज पर किसी भी दिन करीब 2,000 आदमी काम करते थे और 40,000 से ज्यादा अप्रत्यक्ष तौर पर कार्यरत थे.
आइएसी के विकास का सफर चुनौतियों से भरा रहा. कोचीन शिपयार्ड को यूरोपीय फर्मों के लिए 45 व्यावसायिक जहाजों के निर्माण का अनुभव था, जिनमें तेल और गैस बाजार के लिए महंगे इलेक्ट्रिक जहाज भी थे. आइएसी इसका पहला युद्धपोत है और नौसैन्य जहाज के मानक व्यावसायिक जहाजों के मुकाबले कहीं ज्यादा सख्त होते हैं.

निर्माण की चुनौतियां

2005 में जब रूस इस विमानवाहक के लिए स्टील की आपूर्ति के वादे से पीछे हट गया, तो परियोजना में करीब दो साल की देरी हुई. सीएसएल के चेयरमैन-सह-मैनेजिंग डायरेक्टर मधु नायर कहते हैं कि यह भारत के लिए युद्धपोत के स्तर का स्टील विकसित करने का मौका था. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, ''डिफेंस मेटलर्जिकल रिसर्च लैबोरेटरी (डीएमआरएल) ने, जो डीआरडीओ का हिस्सा है, युद्धपोत के स्टील का उत्पादन करने के लिए सेल के साथ काम शुरू किया. वे एक विशेष और सस्ता स्टील डीएमआर 249 लेकर आए और इसके दसियों-हजारों टन का उत्पादन किया. इसने सैन्य दर्जे के स्टील के लिए आयात पर भारत की दशकों पुरानी निर्भरता को खत्म कर दिया.'' आइएसी विक्रांत के निर्माण के अनुभव के आधार पर सीएसएल में फिलहाल आठ पनडुब्बी-रोधी शैलो वॉटरक्राफ्ट कोवेट और छह अगली पीढ़ी के मिसाइल जहाजों का निर्माण हो रहा है.

इस आइएसी के डिजाइन डिविजन की प्रमुख अंजना के.आर. कहती हैं कि विक्रांत के निर्माण के दौरान उन्हें कई वैश्विक हितधारकों के साथ काम करने का मौका मिला. युद्धपोत का डिजाइन भारतीय नौसेना के डिजाइन ब्यूरो ने संयुक्त रूप से किया, जिसमें 3डी वर्चुअल रियलिटी मॉडलों और उन्नत इंजीनियरिंग सॉफ्टवेयर सहित कई डिजाइन इटरेशन (परीक्षण, विश्लेषण और परिष्करण से जुड़ी चक्रीय प्रक्रिया) का इस्तेमाल किया गया. अंजना कहती हैं, ''विक्रांत का प्रोपल्शन सिस्टम इंटीग्रेशन इटली में बना है, अरेस्टिंग गियर सहित एसटीओबीएआर या स्टोबार (शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) और फ्लाइट हैंडलिंग उपकरण रूस से, एयरक्राफ्ट लिफ्ट ब्रिटेन से, एम्यूनिशन लिफ्ट अमेरिका से और इसके हैंगर डोर स्वीडिश हैं.'' हालांकि 76 फीसद उपकरण स्वदेश से ही जुटाए गए हैं.

डिजाइन की चुनौतियों की बात करते हुए अंजना फ्लाइट डेक को याद करती हैं. आइएसी विक्रांत शुरू में पुराने विक्रांत की तरह डिजाइन किया गया, जिसमें फ्लैट-डेक के साथ पृथक, असमेकित स्काइ जम्प (ऊपर की ओर घुमावदार रैम्प जो टेक ऑफ में विमान की मदद करता है) था. अंजना कहती हैं, ''सीएसएल ने फ्लाइट डेक का लेआउट तब बदला जब वह तीन-चौथाई युद्धपोत बना चुका था. जब नौसेना आकार में बदलाव का सुझाव लेकर आई, हम दरअसल जहाज के अग्रभाग तक पहुंच चुके थे.'' वे यह भी बताती हैं कि विक्रांत अपनी मूल योजना के मुकाबले 5,000 से ज्यादा बदलावों से गुजरा.

आइएसी विक्रांत ने अगस्त 2021 के बाद 25 दिनों के समुद्री परीक्षण और फिर अक्तूबर 2021 और जनवरी 2022 में क्रमश: दूसरे और तीसरे दौर के परीक्षण पूरे कर लिए हैं. मधु नायर कहते हैं कि अपनी पहली संक्षिप्त यात्रा के दौरान, जब यह छह दिन समुद्र में था, जहाज पूर्ण रफ्तार हासिल करने में कामयाब रहा, जो विरली उपलब्धि है. यही नहीं, तमाम समुद्री परीक्षणों के दौरान 1,600 आदमी बोर्ड पर थे.

फिलहाल विश्व के ज्यादातर महाशक्ति देश अपने समुद्री अधिकारों और हितों की हिफाजत के लिए टेक्नोलॉजी के लिहाज से उन्नत विमानवाहकों का परिचालन और निर्माण कर रहे हैं. दरअसल, विमानवाहक पोत ज्यादातर शक्तिशाली नौसेनाओं के ध्वजवाहक हैं, जिनमें सबसे आगे अमेरिका है. दुनिया भर में कुल 41 सक्रिय विमानवाहक हैं जिनका संचालन 13 नौसेनाएं करती हैं. विमानवाहक पोतों का संचालन करने वाले देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, इटली और फ्रांस सबसे प्रमुख हैं. हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सबसे बड़ी दुश्मन चीन की पीएलए नेवी का लक्ष्य 2050 तक 10 से ज्यादा विमानवाहकों का बेड़ा तैयार करने का है. इसका तीसरा विमानवाहक फुजिआन कई समुद्र यात्राओं के लिए निकल रहा है और 2024 की शुरुआत में पीएलए नेवी में शामिल होने वाला है. चीन ने अपना पहला पोत लिआओनिंग 2012 में और दूसरा पोत शांडोंग 2019 में कमिशन किया.

कमोडोर हर्के बताते हैं कि तमाम ताकतवर नौसेनाएं विमानवाहक पोत हासिल करने में जुटी हैं. वे यह भी कहते हैं कि नौसैन्य युद्ध जटिल होता है और यह धारणा बहुत गलत है कि विमानवाहक पोत आसान और बचावहीन निशाने हैं. वे कहते हैं कि विमानवाहक पोत अपने एस्कॉर्ट जहाजों के साथ जो गतिशीलता, दूरी और लोच प्रदान करते हैं, उसका ''कोई मुकाबला नहीं'' है.  

तीसरे विमानवाहक की मांग

नौसेना ने तीसरे विमानवाहक पोत की अपनी मांग पुरजोर तरीके से रखते हुए कहा है कि दोनों समुद्र तटों पर दो सक्रिय विमानवाहक पोत, जबकि एक अन्य की मरम्मत और रीफिटिंग चल रही हो, भारत की समुद्री सुरक्षा और उसके नए सामरिक लक्ष्यों के लिए पूरी तरह जरूरी हैं. हालांकि पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने तीसरा विमानवाहक रखने के भारी-भरकम खर्च पर खुलेआम सवाल उठाया था. भारतीय वायु सेना ने भी तीसरे विमानवाहक का विरोध किया और कहा कि वह वायु सेना के अड्डों से ज्यादा प्रभावी हवाई सहायता दे सकती है. संसद की स्थायी समिति ने दिसंबर 2021 में सरकार से कहा कि तीन विमानवाहक पोतों से नौसेना की लड़ाकू क्षमता में अच्छा-खासा इजाफा होगा. हालांकि उसी साल उसने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह सरीखे भारत के द्वीपीय भूभागों को ''अस्थायी विमानवाहकों'' की तरह उन्नत बनाने का सुझाव दिया. वहीं तीसरे विमानवाहक के बारे में अंतिम फैसले का इंतजार है. हालांकि इस पर विचार चल रहा है.

कमोडोर हर्के कहते हैं, ''विमानवाहक बल परिचालनों को मारक क्षमता देता है, यह कहीं भी जा सकता है.'' अमेरिकी नौसेना ने विमानवाहक पोत के जरिए भूमध्यसागर, हिंद महासागर और उत्तरी अटलांटिक में विमानवाहक युद्ध समूह तैनात करके इच्छानुसार ताकत की संभावना प्रदर्शित की है. फॉकलैंड के युद्ध में अपने घरेलू अड्डों से हजारों मील दूर ब्रिटिश विमानवाहक पोत एचएमएस हर्मीज की भूमिका अहम थी.

कोचीन शिपयार्ड को तीसरा विमानवाहक पोत तेजी से बना लेने का पूरा भरोसा है. नायर कहते हैं, ''हमें भरोसा है कि इसी वर्ग का जहाज हम अगले सात से आठ साल में दे देंगे और 85 फीसद स्वदेशी सामग्री होगी.'' 

विक्रांत को पूर्वी तट के मजबूत पहरेदार विशाखापत्तनम में तैनात किया जाएगा. दूसरा पोत आइएनएस विक्रमादित्य पश्चिमी समुद्री मोर्चे पर कर्नाटक के धारवाड़ में स्थित है.

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