भोपाल के बरखेड़ी इलाके में सरकार के हाथों संचालित एक स्कूल की चौथी कक्षा में पढ़ने वाला 12 वर्षीय विकास (बदला हुआ नाम) अंग्रेजी में अपना नाम लिखने को कहने पर शर्म से सिर झुका लेता है. इसमें हैरानी की कोई बात नहीं, क्योंकि अपने खानदान में पहली बार स्कूल का मुंह देखने वाला यह पहली पीढ़ी का बच्चा उन लाखों छात्रों में से है, जिन्होंने कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन के चलते बीते दो साल घरों में बंद रहकर गुजारे. यही नहीं, सरकारी स्कूल लंबे वक्त से खराब पढ़ाई और बुनियादी ढांचे के अभाव से लाचार रहे हैं जिससे छात्रों की पढ़ाई में गंभीर कमियां रह गईं. अपने साथी छात्रों की तरह विकास को भी हर साल अगली कक्षा में उत्तीर्ण किया जाता रहा, बिना यह आंके कि उसने क्या सीखा. स्कूली शिक्षा में मध्य प्रदेश सरकार की ताजातरीन कोशिश, जो निश्चित रूप से पहली नहीं है, ठीक इसी समस्या के समाधान की कोशिश करती है.
दो साल के अंतराल के बाद लौटने पर बरखेड़ी के उस स्कूल के छात्रों ने पाया कि पढ़ाई के सहायक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, नए फर्नीचर, एयर-कंडीशन पुस्तकालय, परामर्श कक्ष, चिकित्सा कक्ष, वाद्य यंत्रों से सुसज्जित संगीत कक्ष और यहां तक कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लैब के साथ स्मार्ट कक्षाएं उनका इंतजार कर रही थीं. अपनी नई कक्षा में बैठा विकास कहता है कि वह वापस घर नहीं जाना चाहता. उसके कई सहपाठियों का भी यही रुख है, जो सभी साधारण पृष्ठभूमि से आए हैं.
यह पूरे राज्य के शहरी और ग्रामीण इलाकों में फैले 380 सरकारी स्कूलों में से एक है, जो सीएम राइज स्कूलों के रूप में जीर्णोद्धार के बाद इसी अकादेमिक सत्र से काम करने लगे हैं. अंग्रेजी का राइज या आरआइएसई रेस्पेक्ट (सम्मान), इंटेग्रिटी (शुचिता), स्ट्रेंथ (शक्ति) और एक्सेलेंस (उत्कृष्टता) के पहले अक्षरों को मिलाकर बना है. सरकार ने ये स्कूल पढ़ाई की कमियों को पाटने और आम तौर पर निजी स्कूलों में मिलने वाली कुछ सुविधाएं यहां के छात्रों को देने के लिए बनाए हैं. मंसूबा अगले 10 साल में ऐसे 9,200 स्कूल बनाने का है, जिस पर कुल 1.53 लाख करोड़ रुपए की लागत आएगी. अभी प्रदेश में कुल 1,25,000 स्कूल हैं जिनमें से 92,000 स्कूल सरकार चलाती है.
राज्य में सरकारी स्कूलों का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत एनजीओ प्रथम की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) से भी इसकी तस्दीक होती है. रिपोर्ट कहती है कि अपने स्तर के लिए तय पाठ पढ़ सकने वाले, कक्षा दो के छात्रों का प्रतिशत 2012 में 2.7 फीसद से बढ़कर 2018 में 4 फीसद हो गया, वहीं पढ़ने की क्षमता में कुल मिलाकर गिरावट आई. 2012 में कक्षा 8 के 64.6 फीसद छात्र कक्षा दो के लिए तय पाठ पढ़ सकते थे, जबकि 2018 में केवल 57.9 फीसद छात्र ऐसा कर पाए.
मध्य प्रदेश में सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र भर्ती घोटाला, शिक्षकों की निम्न गुणवत्ता और सुधार के उपाय करने की सरकार की अनिच्छा से बदहाल रहा है. मगर शायद दिल्ली के उदाहरण से प्रोत्साहित होकर, जहां सरकारी स्कूलों के जीर्णोद्धार से आप सरकार को अच्छे राजनैतिक फायदे हासिल हुए, शिवराज सिंह की सरकार ने चौथी बार मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के फौरन बाद मार्च 2020 में सीएम राइज स्कूल परियोजना को हरी झंडी दिखाई.
सरकारी स्कूलों को दूसरों से अलग और बेहतर बनाने की कोशिश पहले कभी नहीं की गई. स्कूल शिक्षा विभाग सबसे पहले प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्कूलों को एक ही कैंपस में लाया, क्योंकि इससे अधबीच स्कूल छोड़ने की दर में कमी आने की उम्मीद थी. स्कूलों का डिजाइन तैयार करने की गरज से 31 वास्तुकार चुनने के लिए राष्ट्रीय स्तर की डिजाइन प्रतियोगिता आयोजित की गई. स्कूल कहां स्थापित किए जाएं, यह तय करने की खातिर डेटा एनालिटिक्स की मदद से नामांकन के आंकड़ों के अलावा जमीन और बुनियादी ढांचे की उपलब्धता की जांच-पड़ताल की गई. पहले 15,000 जगहों की सूची बनाई गई, जिनमें से अंतत: 9,200 जगहें चुनी गईं.
मध्य प्रदेश सहित ज्यादातर राज्यों में हालांकि प्राथमिक-पूर्व कक्षाएं नहीं हैं, लेकिन सीएम राइज में इनकी शुरुआत की गई. पहली बार प्रिंसिपल और शिक्षकों के लिए हैंडबुक या नियमावली तैयार की गई. स्कूली शिक्षा की प्रिंसिपल सेक्रेटरी रश्मि अरुण शमी कहती हैं, ''पढ़ाई-लिखाई को परिमाणात्मक यानी ऐसा बनाया गया जिसे मापा जा सके, जिसमें शिक्षकों को पाठ योजना बनानी होती है और नजर रखनी होती है कि छात्रों को जो पढ़ाया गया, वह उन्होंने सीखा या नहीं. अनुशासन के नियम तय किए गए और उनके साथ यह भी स्पष्ट किया गया कि उल्लंघन होने पर क्या करना है.'' शिक्षक टेस्ट के आधार पर चुनी गई. शमी अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहती हैं, ''विचार बेहतर हुनर और प्रतिबद्धता वाले शिक्षक चुनने का है.'' प्रिंसिपल और शिक्षकों को आइआइएम इंदौर में प्रशिक्षण दिया जा रहा है. स्कूलों में स्मार्ट कक्षाएं, प्रयोगशालाएं, ललित कला, संगीत और नृत्य सरीखी पाठ्येतर गतिविधियों के लिए विशाल कक्ष और शारीरिक प्रशिक्षण तथा खेलों के लिए जगह है. छात्रों को आने-जाने की सुविधा दी जा रही है और माता-पिता के साथ मेलजोल को बढ़ावा दिया जा रहा है.
एक दशक पहले राज्य सरकार ने एक निश्चित न्यूनतम स्तर और योग्यता वाले छात्रों के लिए उत्कृष्टता स्कूल बनाए थे. वहीं सीएम राइज स्कूलों का उद्देश्य सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा देना है, फिर उनकी योग्यता का स्तर चाहे जो हो. इससे यह ज्यादा समावेशी योजना बन गई है. बरखेड़ी के सीएम राइज स्कूल के प्रिंसिपल कमलेश्वर दयाल श्रीवास्तव कहते हैं, ''सीएम राइज स्कूल में बच्चा पढ़ाई का केंद्र है. हम महज पढ़ाई पर जोर नहीं देते, बल्कि उद्देश्य राइज—रेस्पेक्ट, इंटेग्रिटी, स्ट्रेंग्थ और एक्सलेंस—को बढ़ावा देते हुए सर्वांगीण विकास करना है.'' प्रिंसिपल बताते हैं कि स्कूल दोबारा खुलने के दिन उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के 400 में से 52 छात्र मौजूद थे, पर बाद में उपस्थिति बढ़कर 200 पर पहुंच गई. वे कहते हैं, ''असल में रोज आठ में से दो पीरियड गतिविधि कक्षाओं को देने के हमारे निर्णय से ज्यादा छात्रों को स्कूल लाने में मदद मिली. '' राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उससे जुड़ी संस्थाओं पर अक्सर शिक्षा क्षेत्र के ''भगवाकरण'' का आरोप लगता है, पर दिलचस्प यह है कि सीएम राइज स्कूल अभी तक किसी राजनैतिक विवाद में नहीं पड़े. सच तो यह है कि विपक्षी दल कांग्रेस के विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसे और स्कूलों की मांग कर रहे हैं. एक अफसर कहते हैं, ''ये स्कूल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का पालन करेंगे, जिसे केंद्र सरकार ने मंजूरी दी है.''
यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इन स्कूलों से घोषित उद्देश्य पूरे होंगे या नहीं, पर कुछ चुनौतियां इनके सामने मुंह बाए खड़ी हैं. बुनियादी ढांचा खड़ा करने में वक्त लगता है और प्रतिबद्ध शिक्षक खोजना आसान नहीं है. बहुत कुछ कामयाबी शिक्षकों पर निर्भर करती है क्योंकि छात्रों के साथ वही काम करेंगे.
सीएम राइज परियोजना पर प्रदेश सरकार के साथ काम कर रही स्वैच्छिक एजेंसी पीपल इंडिया के शिलादित्य घोष कहते हैं, ''उम्मीदों का निर्वाह सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि ये स्कूल वह हासिल करने निकले हैं जो पहले कभी कहीं नहीं किया गया.'' काम हालांकि भारी-भरकम है, पर इसमें सफलता का मतलब कुछ ऐसा हासिल करना होगा जिसे अक्सर असंभव माना जाता है—यानी उन्हें अच्छी शिक्षा देना जो अपने दम पर यह हासिल नहीं कर सकते.