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बिहारः दाखिल-खारिज होते ही बदल जाएगा नक्शा

लगातार बढ़ते भूमि विवादों के हल के लिए राज्य सरकार नई तकनीक पर आधारित विशेष भू-सर्वेक्षण करवा रही. वह ऐसे उपाय पर भी काम कर रही है जिससे जमीन के हर बंटवारे या सौदे के बाद नक्शा उसी वक्त अपडेट हो सके.

नया नक्शा लैंड सर्वे में जुटी टीम आधुनिक टेक्नोलॉजी का सहारा ले रही है
नया नक्शा लैंड सर्वे में जुटी टीम आधुनिक टेक्नोलॉजी का सहारा ले रही है
अपडेटेड 20 अप्रैल , 2022

—पुष्प मित्र

सर्वे का काम शुरू हो गया है. अमीनों की विशाल फौज उतरी है. बौंडोरी, बौंडोरी. 
बौंडोरी अर्थात् बाउंड्री—सर्वे की पहली मंजिल. अमीनों के आगमन के साथ ही गांव में नए शब्द आ गए हैं—सर्वे से संबंधित. बच्चा-बच्चा बोलता है. 

सर्वे की पहली मंजिल है बाउंड्री. फिर किश्तवार, तब मुरब्बा, खानापुरी, तनाजा, तसदीक और दफा तीन...

जरीब की कड़ी, तख्ती, राइटेंगल, गुनिया, कंपास आदि लेकर अमीन लोग अपने टंडैलों के साथ धरती के चप्पे-चप्पे पर घूम रहे हैं. जरीब की कड़ी खनखनाती हुई सरक रही है—खन-खन-खन!!

सर्वे के अमीन साहब का कहना है, ''अगर किसी प्लॉट पर एक कौआ भी आकर कह दे कि जमीन मैंने जोती-बोई है, तो उसका नाम लिखने को हम मजबूर हैं. यही कानून है. यह मत समझो कि बौंडोरी बांध रहा हूं...’’

यह शब्द हिंदी के मशहूर कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के रिपोर्ताज 'एकलव्य के नोट्स’ का हिस्सा हैं. बाद में उन्होंने इस अंश को अपने मशहूर नॉवेल परती परिकथा में भी रखा. यह 1952 में बिहार में शुरू हुए रीविजनल लैंड सर्वे के वक्त का विवरण है. वह बिहार का दूसरा भू-सर्वेक्षण था, जो आज तक ठीक से पूरा नहीं हो सका.

अपनी जटिल प्रक्रियाओं की वजह से मौजूदा बिहार के 38 में से सिर्फ 23 जिलों में ही वह सर्वेक्षण हो पाया था. शेष जिलों में न बाउंड्री बंधी, न किश्तवार, खानापूरी और तनाजा तस्दीक हो पाया. इस कारण राज्य के जमीन के नक्शे में कई तरह की गड़बड़ियां रह गईं, जो झगड़ों और विवादों को जन्म देती रही हैं.

इस बीच बिहार में तीसरा भू-सर्वेक्षण शुरू हो चुका है. मगर यह सर्वेक्षण 1956 में शुरू हुए रीविजनल लैंड सर्वे से बिल्कुल अलग है. इसमें कहीं अमीन की जरीब खनखनाती हुए गांव-गांव सरकती नजर नहीं आ रही है. राज्य की 90 फीसद से अधिक जमीन का पहले चरण का नक्शा तैयार हो चुका है और अब सरकार इस तैयारी में है कि वह एक ऐसा नक्शा तैयार करे जिसके बाद फिर से किसी सर्वेक्षण की जरूरत ही न रह जाए. एक ऐसा डायनेमिक नक्शा जो हर खरीद-बिक्री, बंटवारे, क्वयूटेशन के बाद खुद-बखुद बदलकर नया हो जाए. 

इस नए भू-सर्वेक्षण को स्पेशल लैंड सर्वे का नाम दिया गया है. इसमें जरीब और कड़ी के बदले एयरक्राफ्ट और जीपीएस की तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. हवाई जहाज से प्रारंभिक नक्शा तैयार हो रहा है, इसका भू-सत्यापन इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन (ईटीएस) मशीन जैसे इंजीनियरिंग उपकरणों की मदद से हो रहा है.

फिर दावों और उनके निराकरण के बाद आइआइटी रुड़की के एक्सपर्ट उसे डायनेमिक नक्शे का रूप देंगे, जो हर म्यूटेशन के बाद बदल जाए ताकि उसके बाद फिर कभी सर्वेक्षण की जरूरत न हो. फिर हर म्यूटेशन के साथ नक्शे को ऑनलाइन बदलने के लिए जीआइएस रोवर मशीन का इस्तेमाल होगा. 

इस आधुनिक तरीके से भू-सर्वेक्षण को बिहार सरकार इसलिए अंजाम दे रही है, क्योंकि राज्य में अपराध के 60 फीसद से अधिक मामले जमीनी विवाद से जुड़े होते हैं. उनमें से ज्यादातर मामलों की वजह होती है, म्यूटेशन के वक्त नक्शे का न बदल पाना. राज्य सरकार इस तकनीक के जरिये राज्य से भूमि विवाद संबंधित ज्यादातर विवादों को खत्म करना चाहती है.

क्यों खास है यह भू-सर्वेक्षण
इस सर्वेक्षण की पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए बिहार के भू-राजस्व विभाग के उप सचिव मनोज कुमार झा कहते हैं कि यह वस्तुत: बिहार में होने वाला तीसरा भू-सर्वेक्षण है. पहला भू-सर्वेक्षण अंग्रेजों के राज में 1890 में शुरू हुआ था, जो लगभग 1920 तक चला. उसे कैडेस्ट्रियल सर्वे का नाम दिया गया था और उसका मकसद जमींदारी प्रथा और लगान तंत्र को मजबूत करना था.

तब तय हुआ था कि हर 50 साल पर भू-सर्वेक्षण होता रहेगा ताकि जमीन का नक्शा अपडेट होता रहे. अगला सर्वेक्षण 1952 में शुरू हुआ जिसे रीविजनल सर्वे का नाम दिया गया. मगर उसकी प्रक्रिया इतनी जटिल थी कि यह कई जगहों पर हाल तक होता रहा. बिहार के कुल 23 जिलों में ही इसे पूरा किया जा सका. 

इन्हीं विसंगतियों को देखते हुए 2011 में बिहार में विशेष सर्वे की योजना बनी और बिहार विशेष सर्वेक्षण एवं बंदोबस्त अधिनियम 2011 एवं इसकी नियमावली 2012 तैयार हुई और अधिसूचित की गई. 

मनोज कुमार झा बताते हैं कि इस विशेष सर्वेक्षण की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि इसमें अमीन की ओर से पारंपरिक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले जरीब और कड़ी के बदले आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल हो रहा है. शुरुआती नक्शा हाइब्रिड टेक्नोलॉजी से तैयार हो रहा है.

मतलब इसमें हवाई सर्वेक्षण भी हो रहा है और जमीन पर इसका आधुनिक ईटीएस मशीन से सत्यापन किया जा रहा है. इससे माप करने में गलती की संभावना न्यूनतम रह जाती है. इसकी दूसरी खूबी यह है कि यह आखिरी भू-सर्वेक्षण है. दरअसल, इस सर्वेक्षण के जरिये जो नक्शा तैयार होगा वह डायनेमिक यानी गतिशील होगा. वह हर बंटवारे, खरीद-बिक्री आदि के बाद अपने आप संशोधित हो जाएगा. ऐसे में इस नक्शे के लिए फिर से किसी भू-सर्वेक्षण की जरूरत नहीं होगी.
 
इस बात को विस्तार से बताते हुए इस परियोजना से जुड़े रेवेन्यू पदाधिकारी अनुपम प्रकाश कहते हैं कि अब तक की प्रक्रिया यही थी कि हर म्यूटेशन के बाद जमीन का खतियान बदलता था, नक्शा वही का वही रहता था. वही जो भू-सर्वेक्षण के वक्त तैयार होता था. मसलन, अगर आपने अपने एक एकड़ के प्लॉट से 20 डेसिमल जमीन किसी को बेच दी, या फिर आपके उस प्लॉट का पारिवारिक बंटवारा हो गया, तो जाहिर सी बात है कि उस प्लॉट का आकार बदल गया.

यह बात खतियान यानी टेक्स्चुअल रिकॉर्ड में तो दर्ज हो जाती है, मगर नक्शा वही पुराना रह जाता है. आपके खाते में एक एकड़ वाले नक्शे को ही दिखाया जाता है. 20 डेसिमल जमीन का टुकड़ा नहीं दिखाया जाता. मगर जब डायनेमिक नक्शा लागू हो जाएगा तो साथ ही साथ नक्शा भी बदल जाएगा. अब आपका जो जमीन का टुकड़ा है वही दिखेगा.

इस महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी परियोजना को अंजाम देने के लिए बिहार सरकार ने तीन एजेंसियों आइआइसी, हैदराबाद, आइएलऐंडएफएस, गुड़गांव और जीआइएस कंसोर्शियम, नई दिल्ली से 2013 में करार किया. इनका काम विशेष सर्वेक्षण के लिए एरियल सर्वे करना था. इन एजेंसियों को क्रमश: 15, 16 और सात जिलों में काम करने की जिम्मेदारी दी गई.

इसके लिए बड़े पैमाने पर मैनपावर की बहाली की गई. मार्च, 2020 तक कुल 6,875 संविदाकर्मी विभाग की ओर से बहाल किए गए. उन्हें लगातार प्रशिक्षण दिया गया. वहीं हर जिले में विशेष भू-सर्वेक्षण पदाधिकारी की तैनाती की गई.

इस योजना के तहत बिहार के 38 जिलों के 534 अंचलों के कुल 45,899 गांवों में सर्वेक्षण करके नक्शा तैयार किया जाना है. ज्यादातर इलाकों में एरियल सर्वे का काम पूरा हो चुका है. हालांकि अभी नक्शा तैयार करने का काफी काम बाकी है. मसलन, इसका जमीन पर मिलान करना, लोगों से आपत्तियां मांगना, उन आपत्तियों का निराकरण और फिर नक्शे को अंतिम रूप देना और उसे ऑनलाइन करना.

हालांकि इन जटिल प्रक्रियाओं के बावजूद अब तक राज्य के 52 गांवों का नक्शा फाइनल हो चुका है और विभाग ने इसे ऑनलाइन कर दिया है. उसे पोर्टल पर देखा जा सकता है और इस परियोजना के महत्व को समझा जा सकता है.

विभाग की अगली और सबसे अहम योजना डायनेमिक नक्शा तैयार करने की है. इसके लिए आइआइटी रुड़की से बातचीत हुई है. बस इस समझौते को कैबिनेट से मंजूरी मिलनी बाकी है. आइआइटी रुड़की के लोग बिहार सरकार को ऐसा डायनेमिक नक्शा तैयार करके देंगे जो हर म्यूटेशन के बाद बदल जाए.

इस सर्वेक्षण प्रक्रिया का नेतृव कर रहे भू-अभिलेख एवं परिमाप निदेशालय के डायरेक्टर जय सिंह कहते हैं, ''हमने जो मॉडल तैयार किया है, यह इस मामले में अनूठा है कि पूरी तरह हमारी जरूरतों पर आधारित है. हमने पूर्व के अनुभवों में देखा कि सिर्फ नक्शे की गड़बड़ियों से राज्य में बड़ी संख्या में भूमि विवाद होते रहे हैं.

फिर वे हिंसक अपराध में बदल जाते हैं. इन्हें रोकने के लिए जरूरी था कि हर बार तत्काल नक्शा भी अपडेट हो. इसके लिए हमने आधुनिक तकनीक का सहारा लिया और सबसे अच्छी बात यह कि इस बड़ी और जटिल परियोजना को हमने शुरू से लेकर अंत तक बिना किसी परेशानी के संपन्न किया. शुरुआती 52 गांवों के नक्शे इसकी तस्दीक करते हैं.’’

नक्शे में रियल टाइम अपडेशन अब शुरू होना है. मगर इस प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी अहम रही. जय सिंह कहते हैं, ''हमने कदम-कदम पर उन्हें शामिल किया और उनसे आपत्तियां मांगी. यही हमारी सफलता का राज है. इसी से हम देश का पहला डायनेमिक भू-नक्शा तैयार कर पाए.’’

इस सर्वेक्षण के बाद आगे चकबंदी की भी योजना है, ताकि हर खातेदार की जमीन एक ही जगह हो. साथ ही हर जिले के गजेटियर तैयार करने का भी काम चल रहा है.

भू-सर्वेक्षण की इस बड़ी परियोजना को आगे बढ़ते देख सहज ही रेणु के उपन्यास परती परिकथा की याद आ जाती है, जिसमें वे बताते हैं कि किस तरह 1952 के सर्वे के दौरान हर घर में दुश्मनी, झगड़े और फसाद ने डेरा जमा लिया था. हर कोई एक-दूसरे पर अविश्वास करने लगा था. बाप और बेटे एक-दूसरे से झगड़ रहे थे. इस बार सर्वे अपने अंतिम चरण में है, मगर हर तरफ शांति है. वह भी बिहार जैसे राज्य में जहां इतनी नदियां, तालाब, पोखर और चौर हैं.

यहां एक किस्सा बड़ा मशहूर है. अकबर के जमाने में जब भू-सर्वेक्षण हो रहा था तो टोडरमल उत्तर बिहार के मौजूदा खगड़िया जिले में पहुंचे थे. वहां वे लंबे समय तक डेरा डाले रहे. मगर उस इलाके में एक साथ आधा दर्जन से अधिक नदियां बहती थीं और वे हर वक्त रास्ता बदलती रहती थीं. वे वहां का भू-सर्वेक्षण नहीं करा पाए. नक्शे पर उन्होंने उस पूरे इलाके को घेर दिया और लिखा-फरक किया यानी अलग किया. आज भी उस इलाके फरकिया ही कहा जाता है. खबर है कि तकनीक की वजह से इस बार वह इलाका भी सर्वे की जद में अच्छी तरह आ गया है. ऐसे में, उम्मीद है कि इस पहल से राज्य में जमीनी झगड़े कम होंगे.

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