पुष्यमित्र
बीती 5 फरवरी को पटना में गंगा के किनारे 200 मीट्रिक टन खाद्यान्न लेकर अंतर्देशीय मालवाहक जहाज एमवी लालबहादुर शास्त्री को गंगा नदी, सुंदरवन, बांग्लादेश और ब्रह्मपुत्र नदी से गुजरते हुए असम के पांडू तक की यात्रा के लिए निकलना था. 'गेटवे ऑफ नॉर्थ ईस्ट' के लिए एक नया द्वार खोलने का सपना लिए केंद्र सरकार के मंत्रियों और अफसरों ने ऑनलाइन हरी झंडी दिखाकर इस जहाज को रवाना किया. इस कार्गो जहाज ने अभी बमुश्किल 8-9 किमी की यात्रा तय की थी कि कच्ची दरगाह के पीपा पुल के पास रुकना पड़ा. पीपा पुल को खोल कर कार्गो जहाज को पार कराने में 36 घंटे से अधिक का वक्त लग गया. बताया गया कि पीपा पुल का एक लॉक फंस गया था.
इस मामूली-सी दिखने वाली घटना ने केंद्र की अति महात्वाकांक्षी परियोजना की तैयारियों पर जरूर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. बात इतने पर खत्म हो जाती तो फिर भी गनीमत थी. जैसे ही यह कार्गो जहाज पीपा पुल से आगे बढ़ा बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने केंद्र सरकार को पत्र लिख कर आगाह कर दिया कि कार्गो शिप के चलने से भागलपुर के पास गंगा नदी के तटबंध को खतरा पैदा हो जाता है, इसलिए परिचालन का रास्ता बदला जाए और उसकी गति नियंत्रित की जाए. बिहार सरकार ने चेताया कि केंद्र सरकार पहले गंगा में गाद की समस्या को लेकर एक नीति तैयार करे और फिर जहाज चलाए.
दरअसल, 2016 में बड़े धूमधाम के साथ शुरू हुई केंद्र की अंतर्देशीय नौवहन योजना के लिए इस तरह की घटनाएं बेशक निराशाजनक हैं. उस वक्त तय हुआ था कि देश के 111 जलमार्गों को इस तरह विकसित किया जाएगा ताकि अगले तीन साल के भीतर माल ढुलाई का एक सस्ता विकल्प मुहैया हो जाए, सड़कों पर से बोझ हटे और यह परियोजना खुद आत्मनिर्भर हो सके. सोच सराहनीय थी, मगर उसकी व्यावहारिकता पर ध्यान दिया जाना था.
बड़े धोखें हैं इस राह में
इस योजना के शुरू होने के छह साल बाद भी कुछ समुद्र तटीय इलाकों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर जलमार्ग विकसित ही नहीं हो पाए हैं. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण जलमार्ग नेशनल वाटरवेज-1, गंगा और नेशनल वाटरवेज-2 ब्रह्मपुत्र में कार्गो शिप परिचालन का ट्रायल ही चल रहा है. इसके व्यावसायिक इस्तेमाल की बात तो अभी काफी दूर की कौड़ी है. राष्ट्रीय जलमार्ग-1, जो गंगा नदी में वाराणसी से बंगाल के हल्दिया तक है, में अक्सर भारी गाद की वजह से जहाज अटक जाते हैं और बिहार में गंगा नदी पर बने एक दर्जन के करीब अस्थायी पीपा पुल इनकी राह रोकते रहते हैं.
वाराणसी से पटना का रास्ता तो गाद से इस कदर प्रभावित है कि इस बार जो महत्वपूर्ण पायलट परिचालन शुरू हुआ, उसे वाराणसी के बदले पटना से शुरू किया गया. इस रास्ते में 2018 में तो एक जहाज बिहार के बक्सर के पास एक महीने से ज्यादा वक्त तक अटक गया था. इसी तरह दो साल पहले हल्दिया से 52 कंटेनर लेकर चला कार्गो एमवी भव्या भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण के गायघाट टर्मिनल पर नहीं पहुंच सका और भागलपुर के पास ही फंस गया. बाद में कंटेनर को सड़क मार्ग से गायघाट तक लाना पड़ा. अभी भी केंद्र सरकार जैस-तैसे इस रूट पर कार्गो शिप परिचालन की कोशिश करती है. इसके लिए गंगा नदी में गाद को हटाकर रास्ता साफ करने वाली ड्रेजिंग मशीन का नियमित इस्तेमाल करना पड़ता है. इसके बावजूद मार्च के बाद अगले तीन महीने के लिए इस रूट में पानी कम होने की वजह से परिचालन बंद करना पड़ता है.
लेकिन 5 फरवरी को पटना से चला जहाज बेशक नौवहन की दिशा में एक बड़ा कदम है. यह चार जलमार्गों नेशनल वाटरवेज 1, 2 और 97 और भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट को पार कर 2,350 किमी की लंबी यात्रा करने वाला है. मगर दिक्तत यह है कि 200 टन चावल लेकर चले इस जहाज को असम के पांडु तक पहुंचने में 25 से 30 दिन का वक्त लगेगा. जबकि यही दूरी ट्रेन या ट्रक से बमुश्किल दो से तीन दिन में तय की जा सकती है. यह भी कहा गया है कि जलमार्ग से परिवहन काफी सस्ता पड़ता है, इसलिए समय अधिक लगने के बावजूद व्यापारी इसे पसंद करेंगे. हालांकि इस संबंध में स्वयंसेवी संस्था मंथन के ताजा अध्ययन बताते हैं कि पांच-छह साल बीतने के बावजूद जलमार्ग का किराया रेल किराए से बहुत कम नहीं हो पाया है. वाराणसी से हल्दिया के बीच के मूवमेंट में 1.1 रुपए प्रति टन प्रति किमी का खर्च आता है. ऐसे में एफसीआइ जैसी संस्था के चावल को ट्रायल के लिए सरकार इस्तेमाल कर ही सकती है, मगर जिस मकसद से इस परियोजना का विकास किया जा रहा है, वह कब तक पूरा होगा और निजी व्यापारी अपना माल ढुलाई के लिए इसका इस्तेमाल करने में रुचि लेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है.
यह उस नेशनल वाटरवेज 1 का हाल है, जिसे 2,000 टन तक के जहाजों की सुरक्षित आवाजाही के लिए सरकार ने 4,600 करोड़ रुपए की लागत से जलमार्ग विकास परियोजना शुरू की थी. इसके तहत वाराणसी, साहिबगंज और हल्दिया में मल्टी-मॉडल टर्मिनलों का निर्माण किया जा चुका है. मंथन की रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें न के बराबर ढुलाई हुई है. वाराणसी में उद्घाटन के 14 महीने बाद सिर्फ 280 टन की ढुलाई हो पाई थी, जबकि लक्ष्य 35 लाख टन का था.
कम नहीं मुश्किलें
बिहार में अंतर्देशीय नौवहन परियोजना के तहत पहले चार नदियों गंगा, कोसी, गंडक और घाघरा पर जलमार्ग विकसित करने की घोषणा की गई थी. मगर बाद में घाघरा को आर्थिक रूप से अनुपयुक्त पाया गया. कोसी और गंडक पर इस लिहाज से परियोजना शुरू करने की बात हुई कि इन दोनों नदियों से नेपाल तक माल की आवाजाही हो सकेगी. चारों तरफ स्थल से घिरा पड़ोसी देश नेपाल बंगाल की खाड़ी से सीधे अपने देश तक कार्गो शिप के जरिए माल मंगा सकेगा.
मगर जल्द ही कोसी नदी में भी जलमार्ग विकसित करने की योजना छोड़ दी गई. अब गंगा के अलावा सिर्फ गंडक में जलमार्ग विकसित करने की बात हो रही है. इसके लिए 5 फरवरी, 2022 में गंगा नदी पर हाजीपुर के पास कालूघाट पर टर्मिनल की आधारशिला रखी गई. इस टर्मिनल का निर्माण 78.28 करोड़ रुपए की लागत से होगा. इस टर्मिनल की आधारशिला रखने के अलावा गंडक में जलमार्ग विकसित करने के लिए अब तक कोई और काम नहीं हुआ है. देश भर की अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजनाओं का यही हाल है. 2016 में 111 जलमार्ग परियोजनाओं को विकसित करने की बात हुई थी. 2019 तक इनमें से 37 रूट पर काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, मगर इनमें से 21 पर तो काम भी शुरू नहीं हुआ. 2020 की एक विस्तृत सरकारी स्टडी में सिर्फ 23 जलमार्ग ही कार्गो शिप मूवमेंट के लायक पाए गए. अब तक सिर्फ 18 जलमार्गों पर ही थोड़ा बहुत कार्गो शिप परिचालन शुरू हो पाया है. मंथन की रिपोर्ट कहती है कि इनमें से ज्यादातर जलमार्ग समुद्र तटीय इलाकों की नदियों पर बने हैं, जहां गाद की समस्या कम रहती है.
गाद: एक बड़ी समस्या
दरसअल, देश की अंदरूनी नदियों में गाद की समस्या के कारण बड़े कार्गो शिप का परिचालन काफी मुश्किल है. मगर परियोजना को लागू कराते वक्त इस मसले पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया और यह मान लिया गया कि ड्रेजर से नदियों में चैनल बनाकर जहाज चला लिए जाएंगे. गंगा नदी में नेशनल वाटरवेज 1 पर कार्गो परिचालन के लिए नदी के पूरे रास्ते में कम से कम 2.5 मीटर गहराई की जरूरत है. मगर ऐसी स्थिति साल में कभी-कभार ही होती है. इसलिए टर्मिनल बनने के बावजूद इस रूट पर अब तक नियमित परिचालन की योजना नहीं बन सकी है. जब भी पायलट योजना के तहत कार्गो शिप चलाए जाते हैं, उसके लिए गंगा नदी में बड़े पैमाने पर ड्रेजिंग करानी पड़ती है. इससे गंगा के तटों का नुक्सान तो होता ही है, नदी में रहने वाले जलजीवों के लिए भी भीषण खतरा उत्पन्न हो जाता है.
पर्यावरणविद् और नदियों के विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर 2017 में केंद्र सरकार की गंगा नदी में गाद की समस्या का आकलन करने के लिए गठित समिति के सदस्य रह चुके हैं. ठक्कर कहते हैं, ''ऐसा नहीं है कि गंगा में जहाजों को नहीं चलाया जा सकता. मगर उसके लिए सबसे पहले हमें गंगा की धारा को अविरल रखने की जरूरत है.'' इस नदी में तो ऐतिहासिक काल से जहाज चलते रहे हैं. मगर जब से फरक्का में गंगा पर बराज बना, इसकी धारा अवरुद्ध होने लगी और इसकी पेटी सिल्ट से भरने लगी. अगर गंगा में कार्गो परिचालन करना है तो इसके लिए पहले इसकी गाद की समस्या का समाधान करना होगा. और उसका समाधान फरक्का बराज को लेकर गंभीर पहल करने में छिपा है. ठक्कर कहते हैं, ''मूल बात यह है कि अभी गंगा की धारा भी ठीक से बह नहीं पा रही, ऐसे में जहाज कैसे चलेंगे. हमने अपनी रिपोर्ट में भी यही सिफारिश की है.''
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी 2017 में इस मसले को जोर-शोर से उठाया था. उन्होंने बहुत सख्त लहजे में कहा था कि उनकी सरकार इस योजना का विरोध करेगी, क्योंकि गंगा नदी का निचला हिस्सा पूरी तरह तबाह हो जाएगा. 2018 में भी उन्होंने कहा कि जब तक गंगा नदी की गाद की समस्या का समाधान नहीं होगा, केंद्र सरकार की यह योजना सफल नहीं होगी.
इसके अलावा, बिहार की नदियों में नौवहन की योजना से पर्यावरण पर भी कई तरह के खतरे हैं. गंगा नदी में भागलपुर के इलाके में डॉल्फिन रिजर्व है तो गंडक में घड़ियालों की ब्रीडिंग होती है. अगर नियमित कार्गो चलेंगे तो उन्हें नुक्सान पहुंच सकता है. लगातार ड्रेजिंग से भी इन नदियों की इकोलॉजी का बड़ा नुक्सान होता है. इन मसलों पर विचार जरूरी है.