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खास रपटः लोकप्रिय होता पारंपरिक इलाज

महामारी के बाद स्वास्थ्य और आरोग्य बाजार में आया बड़ा उछाल आयुर्वेदिक उपचार मुख्यधारा का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा बन रहा है.

नेहा आहूजा  संस्थापक, काशी वेलनेस
नेहा आहूजा  संस्थापक, काशी वेलनेस
अपडेटेड 13 नवंबर , 2021

सोनाली आचार्जी के साथ अदिति पै और शैली आनंद

प्रखर चोपड़ा के 61 वर्षीय पिता को जांच में जब गंभीर गठिया निकला, तो उन्होंने जिद पकड़ ली कि इलाज करवाएंगे तो ऐलोपैथिक इलाज ही करवाएंगे. मुश्किल यह थी कि गठिया की मुख्य वजह यूरिक एसिड का स्तर कम करने के लिए उन्हें जो दवा दी गई, उससे पाचन की परेशानियां पैदा हो गईं.

चोपड़ा कहते हैं, ''ठीक करने के बजाय दवा ने उनकी हालत और बदतर कर दी क्योंकि उन्हें बहुत एसिडिटी हो गई, वजन बहुत घट गया और ऊर्जा के स्तर में भारी गिरावट आई. एक पारिवारिक दोस्त की सलाह पर हमने आयुर्वेदिक उपचार आजमाए.’’ आयुर्वेदिक उपचार में उन्हें क्षार का ज्यादा निर्माण करने वाली चीजें खाने में दी गईं, जैसे खूब सारा फलों का ताजा रस, हरी सब्जियां और चावल तथा दही.

यूरिक एसिड बढ़ाने वाली चीजें पूरी तरह बंद कर दी गईं. मुंबई के 36 वर्षीय फैशन डिजाइनर चोपड़ा कहते हैं, ''इससे बहुत फर्क पड़ा. उनका यूरिक एसिड का स्तर कम हो गया और एसिडिटी में भी सुधार आया. आयुर्वेद को लेकर मेरे मन में संदेह रहा करते थे. मुझे लगता था कि इसमें न रिसर्च हुई है और न ही यह वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित है. हम जिन आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास गए, उन्होंने इलाज के बारे में मुझे समझाया, तब मुझे पता चला. अब मुझे लगता है कि दोनों (ऐलोपैथिक-आयुर्वेदिक) के पीछे बराबर विज्ञान है.’’

रिसर्च ऐंड मार्केट्स की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय आयुर्वेद का बाजार 2018 में करीब 33,000 करोड़ रुपए का था और 2024 तक इसके दोगुने से ज्यादा बढ़कर 71,000 करोड़ रुपए का हो जाने की उम्मीद है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह बढ़ोतरी बढ़ती जन जागरूकता, प्राकृतिक अवयवों को ज्यादा तरजीह देने और आयुर्वेदिक उत्पादों में आरऐंडडी (अनुसंधान और विकास) के सुधार पर सरकार के जोर देने का नतीजा है.

बिड़ला आयुर्वेद के चेयरमैन यश बिड़ला कहते हैं, ''ग्राहक आयुर्वेदिक (सिद्धांतों) को अपनी दिनचर्या में ज्यादा से ज्यादा शामिल कर रहे हैं. महामारी ने लोगों को आयुर्वेद की जबरदस्त अहमियत और लोगों को स्वस्थ रखने की इसकी क्षमता का अहसास करवाया है.’’

इसमें शक नहीं कि आयुर्वेद के इस्तेमाल को लोकप्रिय बनाने में कोविड ने गहरी भूमिका अदा की. मसलन, केरल में क्वारंटीन के दौरान बांटी गई राज्य सरकार की कोविड केयर किट में इंदुकांतम, सुदर्शनम, विल्वादि गुलिका, शादंगम और अपराजिता चूर्ण धूपम सरीखी आयुर्वेदिक दवाइयां थीं. किसी एक मरीज के लिए खास तौर पर भी दवाइयां बनाई गई हैं.

अभी तक करीब 2,15,389 लोगों को कोविड के हल्के मामलों की आयुर्वेदिक दवा भेषजम दी गई है. इसके अलावा लांग-कोविड के लक्षणों की देखभाल के लिए 2,00,000 लोगों को पुनर्जनि दी गई है. महामारी के नतीजतन लोग निजी स्वास्थ्य देखभाल पर भी ज्यादा ध्यान देने लगे हैं. अनेक हर्बल/आयुर्वेदिक पर्सनल केयर उत्पाद बनाने वाली मुल्तानी फार्मा के वाइस-चेयरमैन अर्जुन मुल्तानी कहते हैं, ''तेज रफ्तार जिंदगी की वजह से टियर-1 और टियर-2 के शहरों में लोग आयुर्वेद पर ध्यान नहीं देते थे.

खास रपटः लोकप्रिय होता पारंपरिक इलाज
खास रपटः लोकप्रिय होता पारंपरिक इलाज

आयुर्वेद दवाओं का असर होने में कुछ वक्त लगता है और इसके लिए आहार में बदलाव की भी जरूरत होती है. कोविड के बाद से रोग प्रतिरोधक क्षमता के निर्माण में कुल मिलाकर दिलचस्पी बढ़ी है और लोग अब वक्त देने को तैयार हैं. मुझे लगता है बढ़ती मांग के पीछे यही चालक शक्ति है—सेहत पर ज्यादा ध्यान.’’

साल 2020 के बाद उस तरह की आयुर्वेदिक सेवाओं की मांग में, जो रिसॉर्ट और मसाज पार्लर में दी जाती हैं, कोविड लॉकडाउन की वजह से कमी आई है, जबकि आयुर्वेदिक उत्पादों और खासकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और तनाव से राहत देने वाले आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग में तेज बढ़ोतरी हुई है.

मार्केट रिसर्च कंपनी कैंटार के डेटा से पता चलता है कि एफएमसीजी इम्यूनिटी उत्पादों की बिक्री में बढ़ोतरी 2019 के 3.9 फीसद से बढ़कर 2020 में 13.5 फीसद पर पहुंच गई. इस अध्ययन से यह भी पता चला कि सर्वे में शामिल 91 फीसद परिवारों ने बीते साल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले उत्पाद खरीदे. डाबर इंडिया के सीईओ मोहित मल्होत्रा कहते हैं, ''प्राकृतिक और हर्बल दवाओं की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग पिछले कुछ सालों से बढ़ रही है.

सेहत की बढ़ती चिंता और पश्चिमी दवाइयों के साइड-इफेक्ट के बारे में जागरूकता के चलते भारत में उपभोक्ता आयुर्वेदिक उत्पादों को तरजीह दे रहे हैं.’’ भारत में ब्रांडेड च्यवनप्राश के बाजार में कंपनी का 60 फीसद हिस्सा है और इस साल जून में खत्म तिमाही में उसके आयुर्वेदिक उत्पादों में 50 फीसद से ज्यादा की वृद्धि बताई गई है. उस तिमाही में च्यवनप्राश की बिक्री में 694 फीसद से ज्यादा का उछाल आया, जबकि हनीटस की बिक्री 80 फीसद से ज्यादा बढ़ी.

2020-21 की पहली तिमाही में डाबर हनी की बिक्री में 60 फीसद से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई. मल्होत्रा आगे कहते हैं, ''मांग में इस उछाल की वजह से च्यवनप्राश सरीखे आयुर्वेदिक उत्पादों की पैठ (बाजार) में अच्छी-खासी बढ़ी है. अलबत्ता वृद्धि की अभी और भी बहुत गुंजाइश है. बीते साल च्यवनप्राश की पैठ हालांकि दोगुनी हुई है, पर अब भी यह 8 फीसद ही है.’’

च्यवनप्राश का ऐसा ही रुझान दूसरी फर्म में भी देखा गया. इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि यह गर्मियों में भी खूब बिका. पतंजलि आयुर्वेद ने अपने च्यवनप्राश पोर्टफोलियो में 6 मार्च से 6 अप्रैल के बीच पिछले महीने के मुकाबले 400 फीसद से ज्यादा की वृद्धि दिखाई. पतंजलि के सीईओ आचार्य बालकृष्ण कहते हैं, ''मैं आयुर्वेद को बाजार या उत्पाद के रूप में नहीं देखता. यह गोलियों या उत्पादों से कहीं ज्यादा है.

इसका मतलब सर्वांगीण और निरोधक स्वास्थ्य देखभाल है. यह इस बात पर जोर देता है कि लोग पहले तो बीमार ही न पड़ें. बीमारियों का इलाज उनकी रोकथाम के बाद आता है.’’ वे यह भी कहते हैं कि दिनचर्या संभालना आयुर्वेद का अभिन्न हिस्सा है. ''किस समय खाना चाहिए, क्या खाएं, कितना खाएं, किस मौसम में क्या खाना चाहिए, आयुर्वेद में इस सबका महत्व है.

इलाज भी हर व्यक्ति के हिसाब से बहुत अलग और निश्चित होता है. इस विज्ञान की व्यापकता दिखाने के लिए मैं 10,000 से ज्यादा आयुर्वेदिक व्यंजन इकट्ठा कर रहा हूं.’’ पतंजलि में आयुर्वेद को प्रकृति का कानून और विज्ञान माना जाता है. बालकृष्ण कहते हैं, ''जब हम प्रकृति के नियम तोड़ते हैं, तभी बीमार पड़ते हैं.’’

रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण वाकई आयुर्वेद के मूल में है. इसका एक सिद्धांत व्याधिकशमत्वम बीमारियों को रोकने वाली देखभाल के बारे में है. विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सिद्धांत शरीर को न केवल कोविड बल्कि दूसरी बड़ी बीमारियां का भी पता लगाने की शक्ति से लैस करता है.

कोलकाता के सूरी सदर अस्पताल के आयुर्वेद विभाग के चिकित्सा अधिकारी अनिंद्य भट्टाचार्य कहते हैं, ''रोग प्रतिरोधक क्षमता के नुक्सान से चूंकि कोविड (के संक्रमण का जोखिम) बढ़ जाता है, इसलिए आयुर्वेदिक दवाएं तलाश करने वाले लोगों की तादाद बढ़ गई है. मेरे पास भी रोज आने वाले मरीज दोगुने हो गए हैं. यहां तक कि दोनों वैक्सीन लगवा चुके लोग भी इम्यूनिटी बूस्टर के लिए आ रहे हैं, क्योंकि टीका लगा लेना व्यक्ति की कोविड से (पूरी तरह) रक्षा नहीं करता.

कोविड के बाद के इलाज यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट और जुकाम पकड़ लेने की प्रवृत्ति के लिए भी लोग आते हैं. क्लासिकल दवा सुबर्णा-बसंता-मालती-रसा है जो बेहद असरदार है और इम्यूनिटी का स्तर ऊंचा रखने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है.’’

हालांकि भट्टाचार्य कहते हैं कि लोग सीधे दुकान से खरीदकर आयुर्वेद दवाएं ले लेते हैं, यह ठीक नहीं है. ''कुछ निश्चित काढ़े सभी के लिए उपयुक्त नहीं हैं. अत्यधिक एसिडिटी की संभावना वाले लोगों में काढ़े पीने के बाद पेचिश के लक्षण दिखाई देते हैं. बवासीर से ग्रस्त लोगों में रक्तस्राव बढ़ने की शिकायतें मिली हैं. इसी तरह सर्दी और खांसी के लिए अच्छी मानी जाने वाली तुलसी उन लोगों को रास नहीं आती जिनका पित्त बढ़ा हुआ होता है. आयुर्वेदिक दवाएं लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना सबसे अच्छा है.’’

जिस एक आयुर्वेदिक उत्पाद में इस साल लोगों की अच्छी-खासी दिलचस्पी देखी गई, वह तनाव से राहत देने वाला बाम या मल्हम है. नई दिल्ली में झंडु बाम की बिक्री अप्रैल और मई 2021 के बीच, जो सामान्यत: इस उत्पाद के लिए ऑफ-सीजन है, 20 गुना बढ़ गई. झंडु बाम बनाने वाली इमामी के डायरेक्टर मोहन गोयनका कहते हैं कि कोविड की दूसरी लहर में ऐंटी-स्ट्रेस उत्पादों की बिक्री में उछाल देखा गया, जब कंपनी को महज तीन महीनों में 26 लाख नए ग्राहक हासिल हुए.

आयुर्वेदिक उत्पादों की वृद्धि की एक और वजह रोजमर्रा के उत्पादों के उपचारों की मार्केटिंग में आया सुधार है. पेय पदार्थों और स्किन केयर सहित आयुर्वेद आधारित उत्पादों का संग्रह रखने वाले वाराणसी के आरोग्य केंद्र काशी वेलनेस की संस्थापक नेहा आहूजा कहती हैं, ''दवाओं के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर और फार्मेसी की जरूरत होती है, पर अगर आप त्वचा की देखभाल या मुख की आंतरिक सफाई वाले उत्पादों या डिटॉक्सिफाई करने वाली चाय सरीखे पेय पदार्थों के लिए आयुर्वेदिक सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हैं, तो आयुर्वेद बहुत सुलभ व आसान हो जाता है.’’

आयुर्वेद आज वाकई तमाम तरह के उत्पादों में खोजा जा सकता है. मोरिंगा मसाला चाय से लेकर अश्वगंधा हॉट चॉकलेट और हलदी वाली कॉफी तक महामारी के बाद तमाम उत्पाद खासे विविधतापूर्ण और अनूठे हो गए हैं. भारत का सबसे बड़े वाटर प्यूरीफायर ब्रांड यूरेका फोर्ब्स जनवरी 2021 में एक नया उत्पाद लेकर आया—'डॉ एक्वागार्ड’ जो 'आयुर्फ्रेश टेक्नोलॉजी’ से लैस था और यह टेक्नोलॉजी पानी में आयुर्वेदिक अवयव घोल देती है.

दिल्ली का रेस्तरां रूह अब 'आयुर्वेद के जायकों’ से युक्त कॉकटेल पेश करता है, जबकि हेम्पस्ट्रीट इंडिया ने हाल में मासिक धर्म की ऐंठन कम करने के लिए आयुर्वेदिक भांग उत्पाद लॉन्च किए जो अब 21 राज्यों के 650 क्लिनिकों पर उपलब्ध है.

आयुर्वेदिक बाजार के कई बड़े ब्रांड ने भी उत्पादों में नवाचार के इस रुझान का अनुसरण किया. डाबर इंडिया ने मार्च के बाद 40 नए उत्पाद लॉन्च किए, जिनमें तुलसी और हल्दी की 'ड्राप्स’ और आंवले, एलोविरा और गेहूं के ज्वारे का जूस शामिल है. भारत भर में 6,000 एकड़ जमीन पर चिकित्सकीय पौधे उगाने वाली यह कंपनी हल्दी, गिलोय और अश्वगंधा सरीखी टैबलेट या गोलियां लाने का प्रयोग भी कर रही है.

मल्होत्रा कहते हैं, ''उपभोक्ताओं की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए हम आयुर्वेदिक इम्यूनिटी-बूस्टिंग (सेग्मेंट) में कई नई चीजें लेकर आए हैं. हमने आरऐंडडी पर न केवल खर्च बढ़ाया है बल्कि यह भी पन्न्का कर रहे हैं कि नई चीजों के लक्ष्य तय हों और तुरत-फुरत बाजार में पहुंचे. हमारी नवाचार रणनीति में इस बदलाव की बदौलत ही हम बीते साल 60 से ज्यादा नए उत्पाद ला सके, जिसमें बहुतायत हेल्थकेयर कैटेगरी (के उत्पादों) की है.’’

आयुर्वेद में निवेश करना स्टार्ट-अप को भी फायदेमंद नजर आया. एक मिसाल 'ऑसम’ है, जो आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से युक्त डार्क चॉकलेट बेचती है. कंपनी ने इसके चार रूप तैयार किए हैं, जो नींद, रोजमर्रा की ऊर्जा, सक्रिय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और तनाव से निपटने वाले हैं.

इसके संस्थापक प्रणव शर्मा कहते हैं, ‘‘हमने मिलेनियल्स (इसी सदी में जन्मे युवाओं) और जेन ज़ी (बिल्कुल नई पीढ़ी) में आयुर्वेद के प्रति रुझान और इसे अपनाते देखा. हमारा टारगेट ग्रुप अनिवार्य तौर पर यही हैं और ये भारत तथा दुनिया भर में उपभोक्ता वर्ग के बड़े हिस्से का निर्माण करते हैं. हम एक निरोधक स्वास्थ्य उत्पाद बनाना चाहते थे जो पूरी तरह प्राकृतिक हो. आयुर्वेद ही ऐसा था जिसे हमें खंगालना पड़ा.’’

आयुर्वेद को बड़ा ढांचागत बढ़ावा 2014 में मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पारंपरिक उपचारों और योग को बढ़ावा देने और दुरुस्त करने के लिए आयुष मंत्रालय की स्थापना की. विशेषज्ञों का कहना है कि अध्ययन के इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहनों के साथ नियम बनाने से इस छवि बदलने में मदद मिली और यह छद्म वैज्ञानिक ज्ञान की बजाय प्रमाण-आधारित विज्ञान के तौर पर जाना जाने लगा. मल्होत्रा कहते हैं, ''सरकार और हमारे जैसी कंपनियों की तरफ से क्लिनिकल ट्रायल और अध्ययनों में निवेश के साथ हम आयुर्वेदिक दवाओं और उपचारों के समय के साथ आजमाए गए फायदों की वैज्ञानिक तरीकों से तस्दीक कर रहे हैं.’’

आयुर्वेद के डॉक्टर बरसों से ग्रंथों के भरोसे रहे और आधुनिक प्रयोगशालाओं में कम ही कोई अनुसंधान किए गए. बालकृष्ण कहते हैं, ''आज हमारा ध्यान इस पर होना चाहिए कि इस पारंपरिक लिखित ज्ञान को स्वीकार करें और पहले इसे ज्यादा सुलभ बनाएं और दूसरे, प्रयोगशाला में इसका असर सिद्ध करें.’’

साल 2000 में प्रकाशित डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के 'पारंपरिक औषधि के अनुसंधान और मूल्यांकन की पद्धतियों के लिए सामान्य दिशा-निर्देश’ के मुताबिक, ''पारंपरिक औषधि के उपयोग में अवधारणाओं के साथ-साथ उसके सांस्कृति पहलू का भी ध्यान रखा जाना चाहिए... जब किसी औषधीय जड़ी-बूटी के लंबे ऐतिहासिक उपयोग का लिखित दस्तावेज न हो, या जब उसकी सुरक्षा के बारे में संदेह मौजूद हों, तो अतिरिक्त विषाक्तता अध्ययन किए जाने चाहिए.’’

आज ऐसे अध्ययन देश में किए जा रहे हैं. डब्ल्यूएचओ ने नवंबर 2020 में आयुर्वेद के क्षेत्र में अनुसंधान, प्रशिक्षण और जागरूकता को मजबूत करने की खातिर पारंपरिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना के लिए भारत का चयन किया. घोषणा के बाद प्रधानमंत्री ने दो आयुर्वेद संस्थाओं का उद्घाटन किया. एक, गुजरात के जामनगर में आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान संस्थान और दूसरी, राजस्थान के जयपुर में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान.

डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेडरोज अधनोम घेब्रेयेसस ने कहा कि नए केंद्र डब्ल्यूएचओ की 2014 से 2023 की पांरपरिक चिकित्सा रणनीति को सहारा देंगे, जिसका उद्देश्य आयुर्वेद की भूमिका को मजबूत करने के लिए देशों को नीतियां और कार्य योजनाएं विकसित करने में सहायता देना है. लॉन्च के वक्त मोदी ने कहा, ''आज आयुर्वेद विकल्प भर नहीं है.

यह हमारे देश की स्वास्थ्य नीति के प्रमुख आधारों में से एक है.’’ उन्होंने यह भी कहा कि आयुष मंत्रालय के अधीन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान सहित कई संगठनों की ओर से अध्ययन किए जा रहे हैं, जबकि मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस के करीब 80,000 कर्मियों पर रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़े अनुसंधान किए हैं.

पतंजलि के ध्वजवाहक अनुसंधान संस्थान के मुआयने से पता चलता है कि इस विषय में अनुसंधान कितनी उन्नत अवस्था में पहुंच गए हैं. यह प्रयोगशाला अवशिष्ट रासायनिक यौगिकों का पता लगाने, छोटे-छोटे कार्बनिक अणुओं की पहचान की तस्दीक करने और दवाओं तथा खाने-पीने की चीजों में दूषित करने वाले और मिलावटी पदार्थों की तस्दीक करने और उनकी मात्रा का पता लगाने के लिए लिक्विड क्रोमैटोग्राफी-मॉस स्पेक्टोमीटरी मशीनों सरीखे औजारों का इस्तेमाल करती है.

इस मशीन का इस्तेमाल हर महीने हजारों जड़ी-बूटियों पर उनमें सक्रिय यौगिकों की तस्दीक के लिए किया जाता है. फिर मधुमेह, मोटापे, ऐंठन, खिंचाव, वगैरह सरीखी स्थितियों के खिलाफ इन यौगिकों के प्रभाव की तस्दीक के लिए इनका परीक्षण इन-विट्रो सेटिंग में किया जाता है. संस्थान में मैदानी अध्ययनों की भी एक शाखा है. हाल के अभियानों में इसकी टीम ने हरियाणा की मोरनी हिल्स पर 53 नए पौधों की पहचान की है.

बालकृष्ण कहते हैं, ''हमारे यहां करीब 300 वैज्ञानिक हैं जिनमें बॉटनिस्ट, माइक्रोबायोलॉजिस्ट और बायोटेक्नोलॉजिस्ट हैं. हमारा मकसद देश में पौधों का संरक्षण, पहचान और अनुसंधान है.’’ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का ज्ञान ज्यादा सुलभ करवाने के लिए संस्था पौधों के लैटिन नामों का हिंदी में तर्जुमा करवा रही है, स्थानीय भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों का हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद करवा रही है. साथ ही वर्ल्ड हर्बल एन्साइक्लोपीडिया प्रकाशित कर रही  है. बालकृष्ण कहते हैं, ''इसमें 60,000 पौधों के विवरण, 12 लाख संदर्भ, और 180 खंड होंगे, ताकि विभिन्न पौधों के गुणों का ज्ञान सबको सुलभ हो.’’

पिछले साल के आखिर में नीति आयोग के डॉ वी.के. पॉल की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने 'समावेशी, सस्ती, प्रमाण-आधारित, व्यक्ति-केंद्रित स्वास्थ्य सेवा’ हासिल करने के लिए एक सर्वसमावेशी स्वास्थ्य व्यवस्था की रूपरेखा प्रस्तावित की. समिति शिक्षा, अनुसंधान, क्लिनिकल प्रैक्टिस और जन स्वास्थ्य तथा प्रशासन के बुनियादी क्षेत्रों में कार्य समूहों का गठन करेगी. ये समूह अध्ययन करेंगे कि दूसरे देशों और खासकर अमेरिका, चीन और यूरोपीय देशों ने पारंपरिक दवाओं को अपनी स्वास्थ्य सेवा व्यवस्थाओं में कैसे समाहित किया है.

बालकृष्ण सवाल करते हैं, ''भारत को पौधों पर आधारित चिकित्सा का अपना समृद्ध इतिहास क्यों भूलना चाहिए? एक दशक पहले लगता था कि मानो हम भूल ही चुके थे, पर अब हम आयुर्वेद में दिलचस्पी बढ़ती देख रहे हैं. आज कई ऐलोपैथिक डॉक्टर हमारे पास प्रशिक्षण के लिए आते हैं. वे दोनों विधाओं को उपचारों में मिलाना चाहते हैं.’’ पतंजलि में फिलहाल आयुर्वेद में अंडरग्रेजुएट डिग्री के लिए 600 छात्र हैं और इनके अलावा 120 छात्र पोस्टग्रेजुएट रिसर्च कर रहे हैं. 

एनसीआर के सबसे बड़े निजी अस्पतालों में से एक मेदांता में कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी, डेंगू सरीखे बड़े विभाग आयुर्वेदिक उपचारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. मसलन, ओपन हार्ट सर्जरी के बाद जब नसें हड्डी और जख्म के निशान के बीच दब जाती है, मरीजों को अक्सर नसों में तेज दर्द महसूस होता है. इस दर्द को दूर करने के लिए अस्पताल आयुर्वेदिक उपचारों का इस्तेमाल करता है.

दिल के कई मरीजों के उपचार के तौर पर योग की सलाह दी जाती है. इसी तरह, सिर या गर्दन के कैंसर के लिए रेडिएशन से जिनका इलाज किया जाता है, उन्हें साइड इफेक्ट के तौर पर अक्सर म्यूकोसाइटिस यानी मुंह और पेट की भीतरी परत पर कष्टदायी सूजन और छाले हो जाते हैं. ऐसे मरीजों को त्रिफला और किराततिक्त सरीखे चिकित्सकीय पौधों से बने काढ़े के गरारे करवाए जाते हैं.

कई इसके अच्छे नतीजे बताते हैं. जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट और मेदांता के चेयरमैन डॉ. नरेश त्रेहन कहते हैं, ''हमारा लक्ष्य आधुनिक चिकित्सा की सभी शाखाओं को एक छत के नीचे लाना है. आयुर्वेद कुछ उपचारों के साइड इफेक्ट कम करने में मददगार है. मेदांता में हम कई आयुर्वेदिक उपचारों के असर की तस्दीक के लिए परीक्षण कर रहे हैं और साथ ही उनके उचित इस्तेमाल में भी मदद कर रहे हैं.’’

हालांकि कई बार शाखाओं के बीच टकराव भी होता है. पतंजलि ने हाल ही में जब 'कोविड के इलाज’ के लिए अपना उत्पाद कोरोनिल लॉन्च किया, तो भारतीय चिकित्सा परिषद ने उसके ऊंचे दावे पर आपत्ति की और कोविड का 'निदान’ होने के कोरोनिल के दावे का विरोध करते हुए बाकायदे सार्वजनिक बयान प्रकाशित किया. विशेषज्ञों का कहना है कि दशकों से एलोपैथिक उपचारों को मिल रही तरजीह की वजह से पूरी तरह एकीकृत करने का रास्ता लंबा और जटिल होगा.

कई आयुर्वेदिक कंपनियों ने लोगों की नजरों में ज्यादा आने के लिए सोशल मीडिया का भी फायदा उठाया है. इस साल जून में नेल्लोर में वायरसों से लड़ने के लिए सिद्धा चिकित्सा पद्धति के साधकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक पारंपरिक दवा कबसुर कुडीनीर को तैयार करने की विधि का वीडियो वायरल हो गया. फिर क्या था, यह हर्बल औषधि पूरे आंध्र प्रदेश में देखते ही देखते पूरी तरह बिक गई.

बिरला कहते हैं, ''आयुर्वेद में स्वास्थ्य सेवा को क्रांतिकारी ढंग से बदल देने और चिकित्सा व्यवस्था को ज्यादा टिकाऊ बनाने की क्षमता है. चूंकि (आयुर्वेदिक उत्पादों की) मांग में भारी बढ़ोतरी हुई है, इसलिए ई-कॉमर्स (की संभावनाएं टटोलना) अच्छा विचार हो सकता है. कंपनियों को सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी बढ़ाने पर विचार करना चाहिए. डॉक्टरों से सलाह-मशविरे के लिए वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर जाने से भी मदद मिल सकती है. इनफ्लुएंसर मार्केटिंग सरीखे तरीके भी कुछ हद तक मदद कर सकते हैं.’’

एआइआइए ने भी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली अपनी 'बाल रक्षा किट’ को लोकप्रिय बनाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया. इस किट का मकसद 16 की उम्र तक के बच्चों की वायरल संक्रमणों से रक्षा करना है. राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस, 2 नवंबर, को इसकी 10,000 किट मुफ्त बांटी जाएंगी. किट में शामिल चीजों की सूची भी ऑनलाइन प्रकाशित कर दी गई है.

इसमें अणु तेल, सीतोपलादि और च्यवनप्राश के अलावा तुलसी, गिलोय, दालचीनी, मुलैठी और सूखे अंगूरों से बना सीरप है, जिसका नियमित सेवन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता का स्तर बढ़ाता है. बालकृष्ण कहते हैं, ''अनुसंधान के बिना रुचि अल्पकालिक होगी. पूर्ण स्वीकृति के लिए आयुर्वेद पारदर्शी ढंग से जुटाए गए वैज्ञानिक प्रमाण से समर्थित होना चाहिए. इसके डॉक्टर होने के नाते हमें लेबल और शानदार पैकेजिंग की परवाह नहीं करनी चाहिए. हमें प्रामाणिकता और गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए.’’ अगर आयुर्वेद वाकई सर्वांगीण सेहत की नियमावली है, तो इसके उपचारों को मुक्चयधारा की चिकित्सा में शामिल करने से कइयों को फायदा होगा. 

सोनाली आचार्जी के साथ शैली आनंद और अदिति पै
इलस्ट्रेशन : नीलांजन दास

सेहत की बढ़ती चिंता और पश्चिमी दवाइयों के साइड इफेक्ट के बारे में जागरूकता के चलते उपभोक्ता भारत में आयुर्वेदिक उत्पादों को तरजीह दे रहे हैं
मोहित मल्होत्रा 
सीईओ, डाबर इंडिया

आयुर्वेद गोलियों या उत्पादों से कहीं बढ़कर है. इसका मतलब सर्वांगीण और निरोधक स्वास्थ्य देखभाल है. यह इस बात पर जोर देता है कि लोग पहले तो बीमार ही न पड़ें
आचार्य बालकृष्ण 
सीईओ, पतंजलि आयुर्वेद

आयुर्वेद का असर होने में कुछ समय लगता है और इसके लिए आहार में बदलाव की भी जरूरत होती है. कोविड के बाद अब लोग इसमें समय देने लगे हैं 
अर्जुन मुल्तानी 
वाइस-चेयरमैन, मुल्तानी फार्मास्यूटिकल्स

आयुर्वेदिक दवाओं के लिए डॉक्टर और फार्मेसी की जरूरत होती है लेकिन डिटॉक्सीफाइ करने वाली चाय जैसे आयुर्वेदिक उत्पाद बहुत सुलभ हैं
नेहा आहूजा 
संस्थापक, काशी वेलनेस

महामारी ने लोगों को आयर्वेद की जबरदस्त अहमियत और लोगों को स्वस्थ रखने की इसकी क्षमता का एहसास करवाया है.
यश बिरला
चेयरमैन, बिरला आयर्वेद

आयुर्वेद कुछ उपचारों के साइड इफेक्ट कम करने और कुछ बीमारियों की पुनरावृत्ति रोकने में मददगार है. मेदांता में हम विभिन्न आयुर्वेदिक उपचारों के असर की तस्दीक के लिए परीक्षण कर रहे हैं
नरेश त्रेहन, चेयरमैन, मेदांता

अग्रणी 
हरिद्वार स्थित पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट में आयुर्वेदिक रिसर्च लैब

बड़े खिलाड़ी
वित्तीय साल 2021 में पतंजलि समूह का राजस्व 30,000 करोड़ रु. से ऊपर रहा जबकि कंपनी ने वित्त वर्ष 2020 में 13,118 करोड़ रु. का राजस्व अर्जित किया था. पतंजलि आयुर्वेद ने 2021 में 9,784 करोड़ रु. का राजस्व अर्जित किया

डाबर के हेल्थकेयर विभाग ने वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में 30 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की जिसमें परिचालन से प्राप्त राजस्व 2,600 करोड़ रु. और मुनाफा 437 करोड़ रु. रहा. इसके आयुर्वेदिक ओटीसी (ओवर द काउंटर) और आयुर्वेदिक इथिकल कारोबार ने 50 प्रतिशत बढ़ा है

हमदर्द ने अपने मेडिकल डिवीजन का सालाना टर्नओवर अगले पांच साल में 1,000 करोड़ रु. करने का लक्ष्य तय किया है, ऐसी जानकारी मिली है.

सबसे लोकप्रिय उत्पाद
च्यवनप्राश की बिक्री साल 2018 के मुकाबले 2019 में पांच प्रतिशत गिरी लेकिन 2020 में 132 प्रतिशत बढ़ी. पतंजलि और डाबर दोनों को फायदा हुआ

दिल्ली में अप्रैल और मई 2021 के दौरान  झंडु बाम की बिक्री में 20 गुना इजाफा हुआ
हिमालया ने अपने जड़ी-बूटी आधारित सेनिटाइजर प्योर हैंड्स की बिक्री में काफी वृद्धि देखी, इसकी प्योर हर्ब रेंज: गुडूची, तुलसी, अमालकी, अश्वगंधा व अन्य की बिक्री भी बढ़ी

2020-21 की पहली तिमाही में डाबर हनीटस की बिक्री में 80 फीसद वृद्धि दिखी; डाबर हनी में 60 प्रतिशत की वृद्धि दिखी

हमदर्द का जड़ी बूटी आधारित रिफ्रेशमेंट पेय  रूह अफजा की इस साल 1,000 करोड़ रु. की बिक्री का लक्ष्य है, यह अब रेडी टु ड्रिंक स्वरूप में भी लॉन्च हो गया है

बैद्यनाथ ने आयुष क्वाथ चूर्ण, आयुष क्वाथ टैबलेट, इम्यून गार्ड, गिलोय चूर्ण और गिलोय घन बटी जैसे अपने आयुर्वेदिक इम्यूनिटी बूस्टर उत्पादों की नई रेंज में व्यापक मांग देखी

वित्त वर्ष 2021 के दौरान पतंजलि के दंत कांति टूथपेस्ट की बिक्री 14 प्रतिशत बढ़कर 485 करोड़ हो गई.

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