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प्रतिरक्षाः रूसी हथियारों की नई खेप

कई नए रक्षा सौदों ने प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आमने-सामने शिखर सम्मेलन के लिए नई फिजा तैयार की.

मिला हाथ से हाथ 25 अगस्त को मॉस्को के पास अंतरराष्ट्रीय सैन्य खेल 2021 के दौरान रूस के रक्षा मंत्री सेर्गेइ शोइगी (बाएं) और रूस में भारत के राजदूत डी.बी. वेंकटेश वर्मा
मिला हाथ से हाथ 25 अगस्त को मॉस्को के पास अंतरराष्ट्रीय सैन्य खेल 2021 के दौरान रूस के रक्षा मंत्री सेर्गेइ शोइगी (बाएं) और रूस में भारत के राजदूत डी.बी. वेंकटेश वर्मा
अपडेटेड 9 सितंबर , 2021

मॉस्को के बीचोबीच हल्की रोशनी से जगमग कॉन्फ्रेंस कक्ष में लॉर्ड ऑफ वार, जेम्स बॉन्ड से मिलता हैं. कांच के पारदर्शी पैनलों पर ड्रोन, टैंक और मिसाइलों की तस्वीरें दिपदिपा रही हैं. कंक्रीट की पतली दीवारों से एक होलोग्राम होस्ट या वर्चुअल मेजबान, हल्के-से काले कपड़े पहने एक रूसी भाषी कन्या, आहिस्ते-से नमूदार होती है और मॉस्को के सैन्य औद्योगिक परिसर में बने अत्याधुनिक हथियारों के बारे में बताती है.

सुथरी अंग्रेजी बोलने वाले एग्जीक्यूटिव और निर्यात-केंद्रित सैन्य उद्यम का जनसंपर्क से जुड़ा शीर्ष अमला टैबलेट हाथ में लिए प्रदर्शित हथियारों के इर्द-गिर्द घूमता है. आइए, फेडरल सर्विस ऑफ मिलिटरी टेक्निकल कोऑपरेशन (एफएसएमटीसी) का मुक्चयालय में आपका स्वागत है. यह रूस की वह संस्था है जिसकी देखरेख में हर साल 50 अरब डॉलर (3.65 लाख करोड़ रुपए) से ज्यादा के हथियारों का दुनिया भर में निर्यात होता है.

कॉन्फ्रेंस कक्ष में इसके डायरेक्टर दमित्री शुगाएव भारत के साथ रूसी हथियारों की खरीद-फरोख्त पर लटकी अमेरिकी प्रतिबंधों की तलवार को ज्यादा तवज्जो नहीं देते. वे कहते हैं, ''ऐसी पाबंदियों का शून्य असर होता है. भारत की दिलचस्पी अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने में है.’’ निश्चित तौर पर ऐसा होता भी लग रहा है. रूस-निर्मित लंबी दूरी की वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली एस-400 की पहली खेप इसी साल भारतीय वायु सेना (आइएएफ) को सौंप दी जाएगी.

यह 5.43 अरब डॉलर (39,645 करोड़ रुपए) के उस सौदे का हिस्सा है जिस पर ऐसी पांच प्रणालियों के लिए 2018 में अमेरिकी विरोध का खतरा उठाकर भी दस्तखत किए गए थे. अमेरिका ने भारत को अपने एक कानून सीएएटीएसए (प्रतिबंधों से अमेरिका के दुश्मनों का मुकाबला करने का कानून) से आगाह किया, जो रूस से तिजारत करने वाले देशों के खिलाफ लगाया जाता है. अमेरिका के 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में मॉस्को की कथित दखलअंदाजी और सीरिया तथा यूक्रेन में सैन्य कार्रवाइयों के बाद इसे और बढ़ावा दिया गया.

खरीदारी की फेहरिस्त
खरीदारी की फेहरिस्त

अमेरिकी पाबंदियां अभी तक लगाई नहीं गई हैं, शायद इसलिए कि भारत न केवल रणनीतिक सहयोगी देश है बल्कि उसने 2008 के बाद 18 अरब डॉलर (1.31 लाख करोड़ रुपए) के अमेरिकी हथियार खरीदे हैं और अरबों डॉलर के अभी खरीदे जाने हैं. महामारी से पैदा आर्थिक तंगी से भारत की रक्षा जरूरतों में बदलाव नहीं आया.

लद्दाख में पिछले साल जनवरी से चीन की पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) की नौ-महीने लंबी आक्रामक तैनाती से साफ हो गया कि चीन से सटी सरहद पर भारत के तीन दशक से चले आ रहे अमन-चैन के परखच्चे उड़ चुके हैं. इस अनिश्चितता की आर्थिक कीमत हथियार सौदों और अमेरिका तथा रूस के बीच निपुण कूटनीतिक पैंतरेबाजी से चुकाई गई. दोनों ही भारत के रणनीतिक साझेदार हैं, जिन्होंने 2017 से छोटा-मोटा शीत युद्ध छेड़ रखा है.

दो साल से दबी जुबान चर्चा है कि भारत और रूस ने अमेरिकी पाबंदियों से बचने और 'स्विफ्ट’ के जरिए लेन-देन टालने के लिए रुपए-रूबल भुगतान का रास्ता खोज निकाला है. पाइपलाइन में कई अरब डॉलर के भारत-रूस हथियार सौदे हैं. भारत की बुरी तरह छिन्न-भिन्न हो चुकी पनडुब्बी क्षमता को मजबूत करने के लिए दोनों देशों ने हाल में दूसरी अकुला-वर्ग की परमाणु शक्ति संपन्न हमलावर पनडुब्बी (एसएसएन) की लीज को लेकर बातचीत की. यह रूसी नौसेना की उस ब्रात्स्क पनडुब्बी (जिसे अब चक्र-3 कहते हैं) के अलावा होगी, जो 2026 में भारतीय नौसेना में शामिल होगी.

भारत और रूस ने 2019 में चक्र-3 के लिए 3 अरब डॉलर (21,910 करोड़ रुपए) का सौदा किया था. इसकी कीमत में 72 महीनों तक कलपुर्जे बदलने के साथ मरम्मत और 10 साल की लीज शामिल है. दूसरी एसएसएन के आने पर नौसेना के आइएनएस विक्रमादित्य और आइएनएस विक्रांत पर केंद्रित दोनों युद्धपोत बेड़ों के पास एक-एक हमलावर पनडुब्बी हो जाएगी. दोनों एसएसएन चार अरिहंत वर्ग की युद्धक मिसाइल पनडुब्बियों के भारतीय बेड़े को पहरेदारी में लाने-ले जाने के काम भी आएंगी.

टेक्नोलॉजी के फलक के दूसरे छोर पर दोनों देशों ने हाल में एके-सीरीज की 70,000 राइफलों के लिए 300 करोड़ रुपए के सौदे पर दस्तखत किए. उधर, उत्तर प्रदेश के अमेठी में 7,00,000 से ज्यादा एसॉल्ट राइफलों के संयुक्त उत्पादन के लिए 1.6 अरब डॉलर (11,890 करोड़ रुपए) के सौदे पर मोलभाव चल ही रहा है. बीते अप्रैल में सेना ने 350 हल्के टैंकों की खरीद के लिए वैश्विक पूछताछ शुरू की.

उन्हें हवाई रास्ते से लाया-ले जाया सकेगा और ज्यादा अहम यह कि हिमालय की पर्वतमालाओं में चीन के खिलाफ तैनात किया जाएगा. इसमें रूस-निर्मित हल्का टैंक स्प्रुत सबसे आगे है, क्योंकि इसका वजन पैदल सेना के युद्ध वाहन से कुछ ही ज्यादा है, तब भी जब इसमें 125 मिमी की भारी तोप लगी है, जो सेना के टी-72 और टी-90 मध्यम टैंकों में लगी तोप जैसी ही है. सेना सीमित तादाद में तैयारशुदा स्फ्रुत टैंक खरीदना चाहती है.

फिर 15 अरब डॉलर (1.09 लाख करोड़ रुपए) के और भी सौदे हैं, जिन्हें या तो पूरा किया जा रहा है या बातचीत चल रही है. इस हथियार खरीद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आमने-सामने दोतरफा शिखर बैठक की पूर्वपीठिका तैयार होगी, जो दो साल के अंतराल से इसी साल होनी है. फलते-फूलते रक्षा सौदों के अलावा बारंबार होने वाले सैन्य अञ्जयास भी हैं. रूस 2022 में इनसान को अंतरिक्ष में भेजने वाले भारत के मिशन गगनयान के लिए चार अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण में भी मददगार है.

इस्लामाबाद में भारत के पूर्व उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा भारत की नीतिगत रणनीतिक स्वायत्तता की तस्दीक है, ''हम अमेरिका के साथ न्न्वाड का हिस्सा इसलिए हैं क्योंकि हमें हिंद-प्रशांत में चीन की ताकत को संतुलित करना है, लेकिन यह रूस के साथ हमारे रिश्तों की कीमत पर नहीं होगा. रणनीतिक स्वायत्तता का सच्चा सार यही है.’’

यह रिश्ता हाल के वर्षों में खास तौर पर पेचीदा हुआ है, क्योंकि चीन से साथ भी रूस का करीबी सुरक्षा सहयोग है और यह ऐसा रिश्ता भी है जो हथियारों की बिक्री और अमेरिका के प्रति साझा नफरत से चल रहा है. मॉस्को स्थित थिंक टैंक, सेंटर फॉर द एनालिसिस ऑफ स्ट्रैटजिक ऐंड टेक्नोलॉजीज (सीएएसटी) के डायरेक्टर रुस्लान पुखोव कहते हैं, ‘‘हमारा शानदार अतीत, अच्छा वर्तमान और उज्ज्वल भविष्य है.’’ मगर वे कुछ चेतावनियां भी जोड़ते हैं, ‘‘भारत में अमेरिकी गतिविधि से रूसी बहुत परेशान हैं. भारतीय भी रूसी-चीनी मेलजोल को लेकर शंकालु हैं. तो जोखिम बहुत ज्यादा है, खासकर पुतिन या मोदी के जाने के बाद, क्योंकि कई चीजें उनकी निजी केमिस्ट्री पर टिकी हैं.’’

उधर पाकिस्तान भी है. हाल के वर्षों में मॉस्को ने इस्लामाबाद को एमआइ-35 हेलिकॉप्टर गनशिप, जेएफ-17 लड़ाकू विमानों के लिए क्लिमोव आरडी-93 जेट इंजन और पंतसिर वायु रक्षा मिसाइल प्रणालियां बेचीं. ये हथियार बिक्रियां भारत को दिए मौखिक आश्वासनों का उल्लंघन थीं. फिर भी कई अहम वजहों से ये रूस-भारत रिश्तों में आड़े नहीं आईं. रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए पिछले साल नए जोश से शुरू अभियान के बावजूद भारत रक्षा उत्पादन के अहम क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने से अभी बरसों दूर है.

इसीलिए परमाणु शक्ति संपन्न हमलावर पनडुब्बियों के बेड़े सरीखी रक्षा क्षमताओं की कमियों की भरपाई के लिए रूस का सहयोग अहम है. भारत का छह परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण का स्वदेशी कार्यक्रम पहली इकाई सौंपने में कम से कम एक दशक का वक्त लेगा. नौसेना ने 10 साल की लीज खत्म होने पर अपनी अकेली परमाणु संपन्न हमलावर पनडुब्बी चक्र-2 इस साल रूस को लौटा दी. ऐसे में अकुला-वर्ग की पनडुब्बियां खासी राहत की तरह आई हैं. नौसेना को नई परिस्थितियों में जरूरत भी खासी है.

पारंपरिक पनडुब्बियों की कमी से निपटने के लिए रूस ने चार सेकंड-हैंड किलो-वर्ग की पनडुब्बियां बेचने की भी पेशकश की है. रूसी अहाते में चारों पनडुब्बियों की जोड़-तोड़ के लिए भारत को करीब 1 अरब डॉलर (7,300 करोड़ रुपए) चुकाने होंगे. यह कामचलाऊ व्यवस्था होगी. बस तब तक के लिए जब नौसेना को घरेल शिपयार्ड से छह पारंपरिक प्रोजेक्ट 75आइ पनडुब्बियां मिलना शुरू नहीं हो जातीं.

बहुत ऊंचाइयों पर तैनात भारतीय सैनिकों को कामोव 226टी हेलिकॉप्टर फिर मुहैया किए जा सकते हैं. यह एक टन वजन ढोने में सक्षम बक्सानुमा मशीन है. भारतीय पैदल सेना को जल्द एके-203 राइफलों से लैस किया जा सकता है, जो सात दशक से ज्यादा पहले वजूद में आई इस लोकप्रिय राइफल का आधुनिक संस्करण है.

लंबे वक्त से लटके कलपुर्जों के सौदों ने एक मदद यह की कि रूस-निर्मित आइएनएस विक्रमादित्य की मरम्मत और जोड़-तोड़ के कारवाड़ में चल रहे काम में तेजी आ गई. क्रिवाक-वर्ग के चार फ्रिगेट के लिए 2.5 अरब डॉलर (18,250 करोड़ रुपए) के अनुबंध के तहत दो युद्धपोत रूस में बनेंगे और दो गोवा शिपयार्ड लिमि में.

ये सब चाहे जितने अहम लगते हों, लेकिन हकीकत यही है कि भारतीय रक्षा बाजार में हाल के वर्षों में अमेरिका के आने से रूस की धमक कम हुई है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की मार्च 2021 की रिपोर्ट बताती है कि 2015-2020 में रूस के कुल हथियार निर्यात में भारत का हिस्सा 23 फीसद था. 2011-2015 के मुकाबले भारत को रूसी हथियारों की बिक्री में 22 फीसद की गिरावट थी. इसलिए चिंताएं बढ़ी हैं.

दोनों देश अपने सैन्य औद्योगिक प्रतिष्ठानों को जोड़ने और रक्षा संबंधों को गहरा करने के लिए संयुक्त उद्यमों पर निर्भर कर रहे हैं. भारत का किसी भी दूसरे के साथ ऐसा रिश्ता नहीं है. 23 साल पुराना इंडो-रशियन ब्रह्मोस कॉर्पोरेशन, जो इसी नाम की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाता है, दो अन्य परियोजनाओं के लिए मॉडल बन गया है. एक है इंडो-रशियन हेलिकॉप्टर्स जो केए-226 बनाता है, और दूसरा, इंडो-रशियन राइफल्स जो एके-203 एसॉल्ट राइफलों का निर्माण करेगा.

एके-203 न केवल सेना की इनसास और पूर्व यूरोपीय एके टाइप राइफलों की जगह लेगी बल्कि एक दशक से ज्यादा वक्त के लिए भारतीय पैदल सेना के जवान की मुख्य राइफल भी होगी. तो भी यह मिलनसारी रूसी सौदों को भारतीय रक्षा मंत्रालय की गहरी छानबीन से नहीं बचा पाई, बल्कि उसमें इजाफा ही हुआ.

रक्षा मंत्रालय चाहता है कि रूस अहम टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण करे, ताकि भारत का अपना उद्योग आत्मनिर्भर बन सके. 2018 में भारत ने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान सुखोई एसयू-57 के निर्माण के संयुक्त उद्यम से हाथ खींच लिए, क्योंकि वह हल्के स्तर की टेक्नोलॉजी साझा किए जाने को लेकर नाखुश था. 200 कामोव केए-226 हेलिकॉप्टर बनाने के संयुक्त उद्यम का भी यही हश्र हो सकता है. यह तीन साल से इसलिए रुका हुआ है क्योंकि रक्षा मंत्रालय चाहता है कि रूस इस मशीन में स्वदेशी सामग्री मौजूदा 40 फीसद से बढ़ाकर सभी हेलिकॉप्टरों में 70 फीसद करे.

एके-203 असॉल्ट राइफल का सौदा इसलिए रुका पड़ा है क्योंकि रूस प्रति राइफल 1,200 डॉलर की कीमत पर जोर दे रहा है, जो अमेरिकी एसआइजी 716 बैटल राइफल के आयात की लागत से कम से कम 300 डॉलर ज्यादा है. भारतीय सेना इस अमेरिकी राइफल का भी इस्तेमाल करती है. भारतीय अफसरान चाहते हैं कि रूस की कलाश्निकोव कंपनी इस मशहूर हथियार का 'नो-हाऊ’ और 'नो-व्हाइ’ दोनों भारत को दे. रूस के साथ रिश्ता कायम रहेगा, लेकिन साफ है कि यह गैरबराबरी का नहीं होगा. 

खरीदारी की फेहरिस्त
भारत और रूस के बीच कई अरब डॉलर के सौदे पर बातचीत जारी

किलो-क्लास पनडुब्बी
संख्या: 4
1 अरब डॉलर+ (7,300 करोड़ रु. से ज्यादा)
रूस की पुरानी पनडुब्बी की बिक्री 1+ 25 करोड़ डॉलर में होगी, जो रूसी शिपयार्ड में मरम्मत का खर्च है
स्थिति: बातचीत जारी

कामोव 226टी हेलिकॉप्टर
संख्या: 200
1 अरब डॉलर (7,300 करोड रु.)
इसके उत्पादन के लिए एचएएल और रसियन हेलिकॉप्टर्स ने साझा उद्यम इंडो-रसियन हेलिकॉप्टर्स की शुरुआत की है. एमओयू पर दस्तखत जून 2018 में हुए
स्थिति: बातचीत जारी

एसयू-30एमकेआइ जेट
संख्या: 18
70 करोड़ डॉलर 
(५,११० करोड़ रु.)
जेट के आखिरी बैच का लाइसेंसशुदा निर्माण नासिक में एचएएल में होगा
स्थिति: बातचीत जारी

स्प्रुत एसडी1 हल्के टैंक 
संख्या: 350
सबसे अधिक मांग क्योंकि भारतीय सेना को 25 टन के वायुमार्ग से ले जाने के काबिल टैंक की विभिन्न मोर्चों पर तैनाती की तलाश. सेना इसे सीमित संक्चया में तैयार हालत में भी लेने पर विचार कर रही है

द्वितीय अकुला-वर्ग एसएसएन
संख्या: 1
3 अरब डॉलर (21,910 करोड़ रु.)
दस साल की लीज पर, साथ में एक अकुला-वर्ग पनडुब्बी, जिसके लिए 3 अरब डॉलर देना है और लीज सौदे पर 2019 में दस्तखत हुए 
स्थिति: बातचीत जारी


एके-203 
एसाल्ट राइफल
संक्चया: 7,50,000
1.6 अरब डॉलर
(11,690 करोड़ रु.) 
दोनों पक्ष अमेठी के ओएफबी फैक्टरी में एसॉल्ट राइफलों के उत्पादन के लिए प्रति नग कीमत पर बात आखिरी चरण में
स्थिति: बातचीत जारी

मिग-29
एयरफ्रेम
संख्या: 21
80 करोड़ डॉलर 
(5,840 करोड़ रु.)
सोवियत दौर के एयरफ्रेम की खरीद, नई इंजन और मरम्मत के साथ वायु सेना के बेड़े में शूमार होगा
स्थिति: बातचीत जारी

रूस के साथ हथियारों के सौदों में अब कहीं अधिक समीक्षा और मोलतोल होती है क्योंकि भारत का जोर बेहद अहम टेक्नोलॉजी के पूरी तरह हस्तांतरण पर है.

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