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खास रपटः आस्था का नया स्थान

केसीआर ने धार्मिक प्रतिद्वंद्विता में आकर तिरुपति मंदिर को पीछे छोड़ने के प्रयास में एक भव्य धर्मस्थल पर शुरू करवाया काम. इस पर खर्च होंगे पूरे 1,800 करोड़ रुपए

इस तरह उत्थान: मंदिर का आज के समय का विहंगम दृश्य
इस तरह उत्थान: मंदिर का आज के समय का विहंगम दृश्य
अपडेटेड 24 जून , 2021

हैदराबाद से यही कोई 70 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में यदागिरिगट्टा की तीखी पहाड़ी ढलान को खोद और काटकर चौरस बना दिया गया है और इस पर स्थित गुफा मंदिर अब एक विशाल मंदिर परिसर में तब्दील हो गया है. इसकी साज-सज्जा का काम अब आखिरी चरण में है. तपतपाती गर्मी में पसीना बहाते हुए कामगार सोने के रंग से सुशोभित 330 फुट लंबा एक गलियारा तैयार कर रहे हैं जो शद्धालुओं की कतार को नरसिंह स्वामी के गर्भगृह तक ले जाएगा. नरसिंह स्वामी हिंदू देवता विष्णु के अर्धनर और अर्धसिंह अवतार हैं, जो बुराई का नाश, धार्मिक उत्पीड़न का खात्मा और धर्म को बहाल करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए थे.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) की बातों पर यकीन करें तो वे ''21वीं सदी का विश्वस्तरीय हिंदू आध्यात्मिक ठिकाना'' स्थापित कर रहे हैं. यह सब सरकारी खर्च से किया जा रहा है. मार्च 2015 में उन्होंने 1,885 एकड़ में फैली 1,800 करोड़ रुपए की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्घाटन किया था. इस जगह का नाम भी उन्होंने यदागिरिगट्टा से छोटा करके यदाद्रि रख दिया था, इस उम्मीद में कि यह देश का प्रमुख मंदिर पर्यटन केंद्र बनेगा. मंदिर के अलावा आसपास के इलाके को अनूठे मंदिर शहर के तौर पर विकसित किया जा रहा है. बिल्कुल उसी तर्ज पर जैसा कि पड़ोसी आंध्र प्रदेश में हिंदू धर्म का लोकप्रिय मंदिर तिरुमला है. 2015 तक श्रद्धालुओं को नरसिंह स्वामी के चरणों में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए ऊबड़खाबड़ सीढ़ियों और पहाड़ी रास्ते से चढ़कर गुफा तक जाना पड़ता था. 13वीं सदी के इस मंदिर का निर्माण होयसला साम्राज्य के सेनापति बोमन्ना दंडनायक ने राजा वीर सोमेश्वर के शासनकाल के दौरान 1246 में करवाया था.

केसीआर ने अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए विशेष रूप से यदागिरिगट्टा मंदिर विकास प्राधिकरण (वाइटीडीए) बनाया और परियोजना पर अमल के लिए उसे तमाम अवसंरचना, विकास और राजस्व प्राधिकारियों की सेवाएं जुटाने के अधिकार सौंपे. मंदिर के निर्माण में आने वाली इंजीनियरिंग और दूसरी चुनौतियों का मुकाबला करने की खातिर वाइटीडीए को सलाह देने के लिए आला अफसरों से लैस तकनीकी समिति का गठन किया गया. मंदिर के निर्माण में सुविधा के लिए मूर्ति को जरूरी अनुष्ठानों का पालन करते हुए खास तौर पर बनाए गए बालालयम में ले जाया गया. जल्द ही मूर्ति को कुछ हफ्तों के पूजा-पाठ के बाद मंदिर के नए भव्य गर्भगृह में पुन: अधिष्ठापित किया जाएगा. यह सब वैष्णव पंथ के प्रवचनों के लिए विख्यात 64 वर्षीय संत त्रिदंडी चिन्ना श्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामी की देखरेख में किया जा रहा है. हैदराबाद के दक्षिणी छोर पर उनका आश्रम है. केसीआर उन्हें बहुत मानते हैं (और उनके नाम के आगे भी बड़े संतों की तरह श्री श्री लगाया जाता है).

केसीआर इस तथ्य से बखूबी वाकिफ हैं कि राज्य में खासकर भाजपा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अगर उन्होंने जन समर्थन पाने की नई युक्तियां नहीं तलाशीं तो तीसरी बार उनका सत्ता में आ पाना मुश्किल होगा. शायद इसीलिए वे भव्य मंदिर बनवाकर पड़ोसी राज्य में स्थित सबसे समृद्ध हिंदू मंदिर तिरुमला को पीछे छोड़ने के इरादे से धार्मिक प्रतिद्वंद्विता में उतर रहे हैं. राजनैतिक टीकाकार सी. नरसिंह राव कहते हैं, ''केसीआर  धार्मिक व्यक्ति हैं पर ऐसा भी नहीं कि वे आस्था के स्टंट के जरिए लोगों का दिल जीतने का प्रयास भी न करें. पहले भी राजनैतिक अस्तित्व के लिए उन्होंने जाति का समूहों के बीच की प्रतिद्वंद्विता का इस्तेमाल किया ही है.'' वे यह भी कहते हैं कि केसीआर की मध्ययुगीन सोच उन्हें लाभ पहुंचा रही है.

वाइटीडीए निवेशकों के लिए परियोजना को भावी पर्यटन स्थल के तौर पर भी पेश कर रही है. अनोखी दानदाता योजना के तहत एक नजदीकी पहाड़ी पर चार बेडरूम के 252 घर डेढ़-डेढ़ करोड़ में बेचे गए हैं. इसमें संरक्षकों को हर साल 30 दिन ठहरने के साथ मंदिर तक विशेष पहुंच भी मिलेगी. इनकी देखभाल करने वाला वाइटीडीए बाकी साल भर इन्हें आने वाले श्रद्धालुओं को किराए पर देकर आमदनी जुटाएगा. एक प्रेसिडेंशियल सुइट और 13 वीवीआइपी विला का काम भी तेजी से चल रहा है ताकि इन्हें मंदिर के उद्घाटन तक तैयार किया जा सके. मंदिर की प्रसादम और जनाहार योजनाओं के बिक्री के विवाद में पडऩे के अंदेशे से वाइटीडीए ने यह काम इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) को आउटसोर्स कर दिया है जिसे मास कैटरिंग में महारत हासिल है.

केसीआर ने यहां के अपने पिछले प्रवास में अफसरों को यह पक्का करने के लिए कहा था कि यदाद्रि को साफ-सफाई और निरोगता के मामले में रोल मॉडल बनाएं. उनका कहना था कि ''बिजली व्यवस्था और जगमगाहट सभी इस तरह की जाए जिससे भक्ति और आनंद की भावनाएं जागृत हों.'' यदाद्रि परियोजना लॉन्च करते वक्त केसीआर ने मंदिर में आने वालों की तादाद वक्त के साथ आहिस्ते-आहिस्ते बढ़ने की बात कही थी. पर फिलहाल श्रद्धालुओं की आवक कम ही है. हां, अस्थायी बालालयम में आने वालों की तादाद में जरूर पहले के मुकाबले बढ़ोतरी बताई गई है.

मंदिर और नगर की योजना परंपराओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई है. मंदिर का इलाका 2,500 वर्ग गज तक सीमित था जिसे पहाड़ी के 4.5 एकड़ में फैलाया गया है. मंदिर के भवन को थामने के लिए तीन तरफ 100 फुट ऊंची पुश्ते की दीवार खड़ी की गई है. सीमेंट की यह 4.5 फुट किलेबंदी दक्षिण में 1,300 फुट, पश्चिम में 320 फुट और उत्तर में 1,000 फुट तक जाती है ताकि टूटकर गिरने वाले पत्थरों को थाम सके और मंदिर के स्थापत्य को ऐसी ऊंचाई दे सके जिससे वह दूर से दिखाई दे.

वाइटीडीए के सीईओ और वाइस-चेयरमैन जी. किशन राव कहते हैं, ''मंदिर के निर्माण में इंजीनियरिंग और वास्तुकला दोनों की चुनौतियां पेश आईं क्योंकि इसमें लहरदार ढलान को समतल में बदलना था और ऐसे डिजाइन करना था जिनमें 1,000 साल से ज्यादा टिकने वाली निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया जा सके. निर्माण इस लिहाज से अनूठा है कि हमने सीमेंट और कंक्रीट सरीखी आधुनिक सामग्री के बजाए केवल कृष्णशिला (काले ग्रेनाइट) का इस्तेमाल किया है, जो तेलंगाना के काकतिया साम्राज्य के समय मंदिरों के स्थापत्य में इस्तेमाल की जाती थी.'' ग्रेनाइट आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले की गुरिजेपल्ली खदानों से मंगवाया गया है और आइआइटी मद्रास तथा हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय सीमेंट और निर्माण सामग्री केंद्र ने इसकी मजबूती और टिकाऊपन की तस्दीक की है.

मंदिर के वास्तुकार और कला निर्देशक बी. आनंदसाई ने देश भर के 60 से ज्यादा मंदिरों का दौरा करके मंदिर स्थापत्य के समूचे काम को अंतिम रूप दिया. इनमें भीतरी और बाहरी प्रकारम (अहाते की दीवारें), नक्काशीदार पत्थरों के स्तंभ, संबद्ध मंदिर, देवी-देवताओं और आलवारों (वैष्णव पंथ के संतों) की मूर्तियां शामिल हैं. नरसिंह स्वामी के मूल गुफा मंदिर और हनुमान की नक्काशी वाली चट्टान के साथ जरा छेड़छाड़ नहीं की गई. बाकी सब नया है. सबसे ऊंचा गुंबद सप्ततला महाराजागोपुरम सात मंजिला और 100 फुट ऊंचा है और इसकी भव्यता देखते ही बनती है. इसके अलावा छह और गुंबद मंदिर की भव्यता बढ़ा रहे हैं. गोपुरम आम तौर पर छत तक पत्थरों से ढाले जाते हैं और उसके ऊपर ईंट का इस्तेमाल किया जाता है.

यदाद्रि में बिल्कुल शीर्ष तक गोपुरम के निर्माण में काले स्फटिक पत्थर या ग्रेनाइट का इस्तेमाल साफ दिखाई देता है. मंदिर की अहम खासियतें हैं सप्ततला महाराजागोपुरम, गुफा का 202 फुट लंबा और 103 फुट चौड़ा मुखमंडपम जिसकी 35 फुट ऊंची छत झाड़-फानूस से सुसज्जित है, कांच के कक्ष अष्टभुजी प्रकारम और इसके अलावा काले स्फटिक पत्थरों की मूर्तियां जिनमें पूर्वी और पश्चिमी गोपुरम पर पत्थर में उत्कीर्ण सात फुट दो इंच के सिंह और उत्तर तथा दक्षिण गोपुरम पर पांच फुट आठ इंच के सिंह शामिल हैं.

आनंदसाई कहते हैं, ''मूर्तिशिल्पों का यह संयोजन पत्थरों में तराशी गई कविता है. इस मंदिर को आध्यात्मिक और वास्तुशिल्प के लिहाज से भव्य बनाने के लिए हमने कई विशिष्ट शैलियों और परंपराओं को मिलाया है. इनमें मुख्य मंदिर में चालुक्य शैली, मुखमंडपम और 12 आलवारों में काकतिया शैली, बाहरी प्रकारम में पल्लव रूपरेखा की झलक, द्रविड़ शैली में गोपुरम और साथ ही कुछ में जैन शैली से प्रेरित प्रतिमाएं और पंक्तिरेखाएं गुंथी हैं.''

शिल्पकारों ने काले स्फटिक पत्थरों के अलावा पारंपरिक जोड़ सामग्री का इस्तेमाल किया है ताकि मंदिर का ढांचा सदियों तक टिका रहे. ग्रेनाइट के पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट के बजाए चूने के गारे, कारक्कया (भारतीय आलूबुखारा), गुड़, ऐलोवेरा (ग्वारपाठा) और जूट के मिश्रण का इस्तेमाल किया गया है. यह मिश्रण ''सभी मौसमों में टिकाऊ'' माना जाता है. आनंदसाई कहते हैं, ''मूर्तिशिल्पों में सदियों तक न दरार आएगी और न ही पिघलेंगी, क्योंकि यह मिश्रण गोंद है.'' तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के करीब 500 मूर्तिकारों और इतने ही सहायकों ने दो साल की कड़ी मेहनत से ग्रेनाइट पत्थरों को उपयुक्त आकृतियों में काटा-तराशा है. यह काम जोखिमों से बेपरवाह लगातार चलता रहा (कम से कम दो दर्जन कामगार गंभीर रूप से चोटिल हुए). प्रधान संगतराश आनंदचारी वेलु कहते हैं, ''हमने पक्का किया कि हम सभी चरणों में अगम शास्त्र के दिशानिर्देशों का पालन करें.''

अगम शास्त्र में मंदिर निर्माण, मूर्ति स्थापना और पूजा-उपासना के रीति-रिवाजों के नियम और बारीकियां बताई गई हैं. वेलु और वाइटीडीए परियोजना में उनके पूर्ववर्ती एस. सुंदर राजन ने किसी विवाद में पड़ने से बचने के लिए इसका पूरी निष्ठा से पालन किया. तो भी एक मौका ऐसा आया जब केसीआर के विरोधियों ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि स्तंभों में कुछ आकृतियां उनसे मिलती-जुलती हैं और कथित तौर पर उनके समर्थकों के कहने पर उत्कीर्ण की गई हैं. आलोचना के और भी मुद्दे हैं. प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता दसोजू श्रवण कहते हैं, ''मंदिर तो अयोध्या में और दूसरी जगहों पर भी बन रहे हैं लेकिन चंदे से, सरकार के पैसे से नहीं. जनता के पैसे का इस्तेमाल स्कूल, अस्पताल वगैरह बनवाने में होना चाहिए.

फिल्म के सेट जैसी इस रचना से लोग भले चमत्कृत हों लेकिन यह है केसीआर की आकांक्षाओं की संतुष्टि के लिए. उन्हें ऐतिहासिक सार्वजनिक स्थलों को विकृत करने का शौक है...'वास्तु' के अनुरूप नई इमारत की तामीर के लिए उन्होंने निजाम के दौर का राज्य सचिवालय ध्वस्त करवा डाला. केसीआर चाहते हैं कि उनके कल्वकुंतल परिवार को यदाद्रि के लिए उसी तरह याद रखा जाए जैसा कि तिरुमला के लिए चोल याद किए जाते हैं.''

गर्भगृह को जस का तस रखा गया है. इसमें अकेली सजावट 48 फुट का पांच-मंजिला विमान गोपुरम है जिस पर आने वाले सालों में सोने की परत चढ़ाई जाएगी. मंदिर के संरक्षित स्मारकों की सूची में न होने के तर्क के साथ अधिकारी इस बदलाव को तर्कसंगत बताते हैं. पर कई आलोचक इससे सहमत नहीं. तेलंगाना की इनटैक की सह-संयोजक अनुराधा रेड्डी के शब्दों में, ''यदाद्रि भले ही संरक्षित स्मारकों में न हो लेकिन पहाड़ी पर विस्फोट कर करके एक खूबसूरत गुफा मंदिर को विकृत कर दिया गया. और वहां जिसकी तामीर की गई वह काकतिया प्रदेश में होने के बावजूद उसका आंचलिक धरोहर से कोई तादात्म्य ही नहीं.''

अब तक खर्च 852 करोड़ रुपए में से 248 करोड़ रुपए मंदिर पर और बाकी जमीन के अधिग्रहण तथा बुनियादी ढांचे पर खर्च हुए हैं. इसमें मंदिर को घेरने वाली पहाड़ियों के बीच सुचारु आवाजाही के लिए चार लेन की सड़क, छह लेन की यदाद्रि की बाहरी रिंग रोड और आसपास का सुंदरीकरण शामिल है.

केसीआर चाहते हैं कि यदाद्रि पहले दिन से ही लोगों को अपने सौंदर्य से आकर्षित कर ले. मंदिर की पहाड़ी ढलान पर शहर आकार ग्रहण कर रहा है. हालांकि यह मंदिर के निर्माण सरीखी तेज रफ्तार से नहीं बन रहा है. एक कृत्रिम झील के साथ-साथ मैरिज हॉल, फूड कोर्ट, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और बस टर्मिनल बन रहे हैं. इसके अलावा 25 एकड़ के बगीचे में यहां मंदिर की पूजा में लगने वाले फूल उगाए जाएंगे. उत्सवों की शुरुआत के लिए वे मंदिर के उद्घाटन के मौके पर महा सुदर्शन यज्ञम (यज्ञों की जननी) की योजना बना रहे हैं. इस मौके पर वैष्णव पंथ से जुड़े देश भर के आध्यात्मिक नेताओं को बुलाया जाएगा.

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