अमिताभ श्रीवास्तव
हथियार छीनने की कोसिस तो करके तो देखो! टन्न से ठोक देंगे.’’ एक महिला पुलिसकर्मी ने सामने खड़े व्यक्ति पर अपनी इंसास राइफल तानकर ट्रिगर पर उंगलियों की पकड़ मजबूत करते हुए यह बात कही थी. हालांकि वह नहीं जानती थी कि जिस शख्स को गोली मारने की बात कर रही थी, वे राज्य के डीजीपी थे.
यह वाकया है जनवरी 2020 का. बिहार के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गुप्तेश्वर पांडे भागलपुर में पुलिस लाइंस के पास सामान्य कपड़ों में सुबह टहल रहे थे. इसी बीच उन्हें हाथ में इंसास राइफल थामे दो महिला कांस्टेबल दिखीं. पांडे ने उनसे पूछा कि क्या उनको गोली-वोली चलानी भी आती है. उन्होंने बताया, ‘‘हम अपनी शूटिंग रेंज में 45 राउंड फायरिंग करके आ रहे हैं.’’ पांडे ने तब उनसे पूछा कि अगर वे उनके हथियारों को छीनकर भागने लगें तो वे क्या करेंगी?
इस पर दोनों ने बिना हिचकिचाहट के अपनी बंदूकें उठाईं और उन्हें चुनौती दी कि दम हो तो जरा करके दिखाएं. पांडे ने उनके तेवर से भांप लिया कि वे जो कह रही हैं, उसे करने में वे जरा भी नहीं झिझकेंगी. उन्होंने फौरन अपनी पहचान जाहिर की और बंदूक नीचे करने का आदेश दिया. बाद में दोनों कांस्टेबलों को उनकी निर्भीकता, त्वरित निर्णय लेने की क्षमता और बहादुरी के लिए 5,000-5,000 रुपए का नकद पुरस्कार दिया गया.
बिहार पुलिस के मुताबिक, यह घटना इस बात की पुष्टि करती है कि उनका प्रशिक्षण कार्यक्रम उन मानसिक बाधाओं या आत्मसंदेहों को दूर करने में सफल रहा है जो महिला पुलिस अफसरों को अक्सर इस पुरुष प्रधान पेशे में होती हैं, खासकर बिहार जैसे पितृसत्तात्मक राज्य में. इसमें संदेह नहीं कि महिलाओं के लिए स्वीकार्यता और सफलता की राह अभी भी कठिन है लेकिन बिहार में महिला पुलिस अधिकारी इन चुनौतियों के लिए कमर कस रही हैं.
बढ़ती संख्या
पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (बीपीआरऐंडडी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1 जनवरी, 2020 तक बिहार पुलिस में 25.3 प्रतिशत महिलाएं हैं यानी राज्य के 91,862 पुलिसकर्मियों में से 23,245 महिलाएं हैं जो सभी राज्यों में सर्वाधिक अनुपात है. यह 10.3 प्रतिशत (2019 के 8.9 प्रतिशत से ऊपर) के राष्ट्रीय औसत से दोगुना और 2015 के बाद से एक महत्वपूर्ण सुधार है जब बिहार पुलिस में महिलाओं की संख्या 3.3 प्रतिशत थी. अब राज्य के हर चार पुलिसकर्मी में से एक महिला है. राज्य ने इस मामले में हिमाचल प्रदेश (19.15 प्रतिशत) और तमिलनाडु (18.5 प्रतिशत) को भी पीछे छोड़ दिया है.
संयोग से 35 प्रतिशत आरक्षण के साथ बिहार में पुलिस बल में महिलाओं के लिए सबसे अधिक आरक्षण है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले वादा किया था कि सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देंगे और 2016 में आरक्षण को बढ़ाकर 35 प्रतिशत कर दिया गया था. पिछड़ी जातियों की महिलाओं को दिए गए 3 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण को जोडऩे के बाद यह बढ़कर 38 प्रतिशत तक हो जाता है.
पटना विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व प्रमुख नवल किशोर चौधरी इस बदलाव का स्वागत करते हैं.
वे कहते हैं, ''हाल तक, बिहार का समाज मानता था कि पुलिस की नौकरी पुरुषों के लिए होती है और महिलाओं का शरीर और स्वभाव इसके लिए उपयुक्त नहीं होता. महिलाएं पुलिस में नौकरी के लिए ज्यादा आवेदन भी नहीं करती थीं. हालांकि, महिला आरक्षण बढ़ाने के सरकार के फैसले ने इस मानसिकता को बदल दिया है.’’
केंद्र पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या 33 प्रतिशत तक बढ़ाने की सलाह जारी करता है, लेकिन चूंकि पुलिस राज्य का विषय है, इसलिए मुख्य रूप से राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे बल में लैंगिक असंतुलन को सुधारें. जो प्रगति दिख रही है, उसे देखते हुए बिहार पुलिस में महिलाओं का प्रतिशत जल्द ही निर्धारित कोटे को पार कर जाना चाहिए क्योंकि राज्य में अभी 47,000 अन्य पुलिसकर्मियों की भर्ती की जानी है. बिहार में 2,487 महिलाओं के लिए एक महिला पुलिसकर्मी है. यह प्रति 3,026 महिलाओं पर एक महिला पुलिसकर्मी के राष्ट्रीय औसत से अधिक है.
इंडिया टुडे से बात करते हुए बिहार के डीजीपी एस.के. सिंघल गर्व के साथ कहते हैं कि राज्य पुलिस बल में महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति ने न केवल महिलाओं को सशक्त बनाया है बल्कि पुलिस बल को ज्यादा कुशल और प्रभावी बनाया है. ‘‘लिखा-पढ़ी और एफआइआर दर्ज करने जैसे थाने के अंदर होने वाले कामों के अलावा, महिला पुलिसकर्मी कानून-व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारियों में भी पूरा योगदान दे रही हैं.
हमारे पास राज्य के सभी 38 जिलों में एक पूर्णत: महिलाओं की ओर से संचालित थाना है, जो सामान्य रूप से महिलाओं के लिए शिकायत दर्ज करना या पुलिस के साथ समस्याओं को बेझिझक साझा करना आसान बनाता है. महिला पुलिस अधिकारी अक्सर जांच में एक नया परिप्रेक्ष्य जोड़ती हैं. अगर पुलिस में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अच्छा नहीं रहता तो महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों और महिला अपराधियों से निबटना मुश्किल हो जाता है. कानून और व्यवस्था बनाए रखने से लेकर शस्त्रागार की सुरक्षा तक सभी स्तरों पर महिला पुलिसकर्मी दिखाई देती हैं और हमें इसका लाभ मिल रहा है.’’
आगे बढऩे की अभिलाषा
पटना में बिहार सैन्य पुलिस (बीएमपी) कैंपस में पुलिस आयुधागार की सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से महिला टीम के हवाले है, जिसकी कमान 34 वर्षीय कांस्टेबल मीना कुमारी के हाथों में है. दरअसल, बीएमपी राज्य में कानून प्रवर्तक एजेंसी है, जिसका उपयोग कठिन और विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने में किया जाता है. मीना कुमारी पटना एयरपोर्ट के नजदीक स्थित बीएमपी-5 में तैनात हैं. इसके अलावा दो सैन्य पुलिस बटालियन बीएमपी-5 और बीएमपी-14 की कमान भी महिला आइपीएस अफसरों क्रमश: हरप्रीत कौर और किम के हाथों में है. महिला कांस्टेबलों के बीच इन दोनों अधिकारियों को रोल मॉडल के रूप में देखा जाता है.
लगभग आधी महिला कांस्टेबल इंटरमीडिएट करने के तुरंत बाद ही महिला पुलिस बल में शामिल हो गईं लेकिन उन्होंने राज्य पुलिस में सीनियर-ग्रेड की नौकरियों की पात्रता हासिल करने के लिए ग्रेजुएशन की पढ़ाई जारी रखी है. अभी ऑफिसर-ग्रेड के पदों पर महिलाओं की संख्या काफी कम है जैसे कि 1,220 पुलिस इंस्पेक्टरों में केवल 32 महिलाएं ही इस पद पर हैं जबकि 10,039 सब इंस्पेक्टरों पर केवल 920 महिलाएं हैं, वहीं 6,675 असिस्टेंट सब इंस्पेक्टरों में महिलाओं की संख्या मात्र 185 है.
बेशक उनको अभी कई बाधाएं पार करनी हैं लेकिन मंजिल बहुत दूर नहीं है. एक महिला सब-इंस्पेक्टर का कहना है, ''पुरुष अधिपत्य की जड़ें समाज के भीतर बहुत गहराई तक धंसी हुई हैं और बिहार इससे अलग नहीं है.’’ वे बताती हैं, ''एक महिला कांस्टेबल को अक्सर ऐसे अपराधियों जैसे ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन करने वालों की ओर से गंभीरता से नहीं लिया जाता. लेकिन हम जानते हैं कि हमें उनको कैसे जवाब देना है, इसके लिए हम अपने ट्रेनिंग और एटीट्यूड को धन्यवाद देते हैं.
हमारी महिला पुलिस लाठी बजाने में भी एक्सपर्ट होती हैं और यहां तक कि अगर जरूरत पड़ती है तो गालियों के विकल्प को भी खुला रखती हैं.’’ फिर भी वे मानती हैं कि अभी भी कुछ क्षेत्रों में सुधार की गुंजाइश है, ''जैसे कि जब महिला पुलिसकर्मियों को दूसरे स्थानों पर तैनात किया जाता है, तो उनको जो चीज सबसे ज्यादा अखरती है वह होती है कि पुलिस थानों में उनके लिए स्नान करने का उचित स्थान न होना. हमारे पास शौचालय तो हैं लेकिन नहाने का इंतजाम नहीं होता. इस पर सरकार को सबसे पहले गौर करना चाहिए.’’
कई ऐसे मामले देखने में आए हैं जो बताते हैं कि पुलिस में महिलाओं के लिए अवसरों के सृजन ने ग्रामीण बिहार में महिलाओं को सशक्त बनाया है. नवादा के भदौर गांव की रहने वाली 27 वर्षीया खुशबू कुमारी का पुलिस फोर्स में शामिल होना उनके भविष्य लिए सबसे अच्छी बात थी जो उनके साथ हो सकती थी. दरअसल, हैंडबॉल खिलाड़ी खुशबू महत्वाकांक्षी लड़की थीं जो खेल में करियर बनाना चाहती थीं, लेकिन परिवार के रूढि़वादी पुरुषों ने उनके सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया और उसे हरदम एहसास करवाया कि वे शादीशुदा हैं.
हालांकि, खुशबू 2016 में बिहार पुलिस में शामिल हुईं, जिसने उन्हें अपने परिवार के दबाव का विरोध करने का कॉन्फिडेंस दिलाया. अब वे न केवल पुलिस बल को ज्वाइन करने का समर्थन करती हैं बल्कि दूसरी लड़कियों को भी उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं. साथ ही उन्होंने हैंडबॉल खिलाड़ी होने के अपने सपने को साकार करने के लिए हरसंभव कोशिश की और मौजूदा समय में वे बिहार महिला हैंडबॉल टीम की कप्तान हैं.
चौबीस वर्षीया नेहा भारती वर्तमान में बीएमपी-14 में तैनात हैं जो अपनी शादी के तीन साल बाद 2018 में पुलिस कांस्टेबल बनीं. उनके पति एक छोटी-सी स्टेशनरी की दुकान चलाते हैं. नेहा को हर महीने 33,000 रुपए तनख्वाह मिलती है जिससे वे अपने चार जनों के परिवार का भरण-पोषण करती हैं.
आर्थिक सशक्तीकरण
2011 की जनगणना के अनुसार, 43,000 रुपए (2019-20) की प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य में जहां महिला साक्षरता दर 51 प्रतिशत से ऊपर है और एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, जहां 2019 में दहेज की वजह से 1,127 हत्याएं हुई थीं, वास्तव में ये आर्थिक रूप से सशक्त युवतियां समाज में परिवर्तन की प्रतीक हैं.
पटना यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रघुनंदन शर्मा कहते हैं, ''मैं कॉलेज में हर रोज बड़ी संख्या में लड़कियों को दौड़ता हुआ और प्रैक्टिस करते हुए देखता हूं जो कि पुलिस परीक्षा का हिस्सा होता है.’’ वे बताते हैं, ''पुलिस बल में इन अवसरों ने युवतियों को उन अनकहे नियमों के पारंपरिक ढर्रे से बाहर देखने में मदद की है, जो सामाजिक मानकों, मानदंडों और अपेक्षाओं के बारे में एक धारणा स्थापित करते हैं कि एक अच्छी महिला या मां या पत्नी को क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए.
अब लड़कियां आगे बढ़ गई हैं. उनके परिवारों ने भी उनका सपोर्ट करना शुरू कर दिया है क्योंकि यह न केवल लड़कियों के सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण को सुनिश्चित करता है बल्कि परिवार में वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है.’’
वाकई में, इंडिया टुडे को दिए गए अपने इंटरव्यू में लगभग सभी महिला कांस्टेबलों ने कहा कि वे अपने माता-पिता की आर्थिक मदद कर रही हैं. बीएमपी-5 में एक महिला अधिकारी का कहना है, ''इनमें से ज्यादातर महिलाएं गरीब पृष्ठभूमि की हैं, जिनके पिता महीने में 10,000 रुपए से कम कमाते हैं. इनमें से बहुत-सी महिला कांस्टेबल भाई-बहनों की शिक्षा और विवाह की व्यवस्था करने में अपना आधा वेतन खर्च करती हैं.’’
शर्मा कहते हैं, ‘‘जैसा कि लड़कियों को आरक्षण का लाभ है, उनके पास पुलिस फोर्स में आने का बेहतर मौका है.’’ वे बताते हैं कि उन्हें अब परिवार का बेटा माना जाने लगा है और अब उन्हें सम्मान और प्रशंसा मिलने लगी है जो पहले केवल लड़कों को मिला करती थी. उस पुरानी धारणा कि बेटा ही ख्याल रखेगा यानी केवल बेटा ही माता-पिता की देखभाल करेगा, को अब इस नई धारणा ‘बेटी सबसे अच्छी’ से बदल दिया गया है.ठ्ठ
मिसाल
शक्तिशाली महिलाएं
मिलिए बिहार की उन महिला पुलिस कर्मचारियों से जो राज्य की लड़कियों के लिए मिसाल बनकर उभरी हैं
मीना कुमारी 34 वर्ष, कांस्टेबल, बिहार मिलिट्री
घर की पांच बेटियों में सबसे बड़ी मीना कुमारी को उनकी बिहार पुलिस की नौकरी ने अपने समुदाय में वह ओहदा दिला दिया जो आमतौर पर केवल बेटों को ही मिलता था. इसने उन्हें सक्षम बनाया. वे कहती हैं, ''मैं माता-पिता के लिए बेटा बन सकी जिसकी उन्हें जरूरत थी.’’ इतिहास में स्नातक मीना ने 2008 में बिहार पुलिस की नौकरी ज्वाइन की और परिवार की आर्थिक मदद की.
यहां तक कि तीन बहनों की शादी तक करवाई. उनमें से एक मधु कुमारी ने भी बिहार पुलिस बल की नौकरी हासिल की. बिहार के मोतिहारी की रहने वाली मीना को पुलिस शस्त्रागार की हिफाजत का महत्वपूर्ण जिम्मा सौंपा गया है. पटना में बिहार मिलिट्री पुलिस के शस्त्रागार के आंतरिक घेरे में तैनात टीम का नेतृत्व इनके ही हाथों में है. टीम की सभी सदस्य महिलाएं हैं.
ज्योति कुमारी सिंह 23 वर्ष, पुलिस कांस्टेबल
इतिहास स्नातक ज्योति बिहार के छपरा जिले के सम्हौता गांव के एक परंपरागत परिवार की हैं. उन्होंने 2018 में राज्य पुलिस सेवा बतौर कांस्टेबल ज्वाइन की और अपनी ट्रेनिंग सितंबर 2019 में पूरी की. विद्यार्थी जीवन से ही ज्योति की प्रतिबद्धता दिखने लगी थी जब उन्होंने 10वीं और 12वीं परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास की थीं. इसके बाद पुलिस ट्रेनिंग के दौरान ही स्नातक की कक्षाओं में शिरकत की.
किसान अमरेंद्र सिंह की बिटिया ज्योति की दो बहनें और दो भाई हैं. वे छोटी बहन मोती के लिए रोल मॉडल हैं जो खुद भी फोर्स में जाने की तैयारी कर रही है. उनके भाई अभी स्कूल में पढ़ रहे हैं. ज्योति कहती हैं कि पुलिस में होने से वे खुद को ताकतवर समझती हैं और इससे उन्हें वह सम्मान मिलता है जो उनके मुताबिक ग्रामीण समजा में महिलाओं के लिए दुर्लभ है. अब उनकी आकांक्षा बिहार पुलिस में परीक्षा पास कर सब इंस्पेक्टर बनने की है.