
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने करीब दो वर्ष पहले 24 मार्च, 2019 को सहारनपुर में शिवालिक पहाडिय़ों की तलहटी में स्थित सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी के मंदिर में मत्था टेक कर लोकसभा चुनाव में अपने अभियान की शुरुआत की थी. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पश्चिमी यूपी की करीब दो-तिहाई सीटें जीतने के साथ प्रदेश में 62 सीट जीतकर सिरमौर बनी थी. कुछ ऐसे ही राजनैतिक प्रतिफल की आस लिए कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी 10 फरवरी को सहारनपुर में किसान पंचायत में शिरकत करने पहुंची थीं.
प्रियंका गांधी देहरादून के जॉलीग्रांट एयरपोर्ट से सीधे मां शाकंभरी देवी के मंदिर पहुंचीं. करीब एक घंटे तक पूजा-अर्चना करने के बाद यहां से प्रियंका सीधे खानकाह रहीमी रायेपुर पहुंचीं, जहां खानकाह के प्रबंधक शाह अतीक अहमद ने उनका इस्तकबाल किया. इसके बाद प्रियंका ने चिलकाना में किसान पंचायत के मंच पर पहुंचकर किसानों को अपना समर्थन दिया. यहीं से प्रियंका ने कांग्रेस के 'जय जवान, जय किसान’ अभियान की शुरुआत भी की. इस तरह प्रियंका गांधी ने सहारनपुर से उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अभियान की अघोषित शुरुआत भी की.
सहारनपुर में एक सरकारी डिग्री कॉलेज में राजनीतिशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर मोहम्मद फैजान बताते हैं, ''प्रियंका गांधी ने सहारनपुर जिले से अपने अभियान की शुरुआत एक रणनीति के तहत की है. सहारनपुर ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एकमात्र जिला है जहां से कांग्रेस के पास दो विधायक हैं. प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों की शरुआत सहारनपुर से होती है. किसानों के बीच प्रियंका ने केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाकर पश्चिमी यूपी में कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है.

दूसरी ओर, हिंदू और मुस्लिम धर्मस्थलों पर जाकर प्रियंका सर्वधर्म समभाव की छवि पेश करने की कोशिश कर रही हैं.’’ पश्चिमी यूपी में एक महीने तक चलने वाले कांग्रेस के 'जय जवान, जय किसान’ अभियान में प्रियंका मुख्य वक्ता के तौर पर शिरकत कर रही हैं. 15 फरवरी को कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बिजनौर में किसानों को केंद्र सरकार के कृषि कानूनों की गड़बडि़यां समझा रही थीं. इससे पहले पिछले वर्ष अक्तूबर के महीने में प्रियंका हाथरस में रेप पीडि़त युवती के परिवार से मिलने गई थीं और 4 फरवरी को 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड में जान गंवाने वाले रामपुर के किसान नवरीत सिंह के परिवार से भी मिलने पहुंची थीं.
पश्चिमी उत्त र प्रदेश में किसान आंदोलन की तपिश और विपक्षी दलों की सक्रियता से निबटने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लगातार दो दिनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख जिलों मथुरा और मुरादाबाद का दौरा कर बड़े पैमाने पर विकास योजनाओं की शुरुआत की. वृंदावन, मथुरा में संत कुंभ की शुरुआत करने पहुंचे योगी ने संतों को अपने हाथ से प्रसाद खिलाया. ब्रज तीर्थ विकास परिषद की बैठक में 371 करोड़ रुपए के विकास कार्य अनुमोदित करने के साथ योगी ने कुल 411 करोड़ रुपए की योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया.
अगले दिन 16 फरवरी को योगी मुरादाबाद पहुंचे. मार्च 2017 में यूपी की सत्ता संभालने के बाद मुरादाबाद मंडल से ही योगी को कठिन चुनौती मिली है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा मुरादाबाद मंडल की सभी छह लोकसभा सीटें हार गई थी जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा था. पश्चिमी यूपी में इस इलाके की राजनैतिक अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से योगी अब तक आठ बार मुरादाबाद का दौरा कर चुके हैं. पिछले वर्ष 12 दिसंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुरादाबाद दौरे के समय सर्किट हाउस में मुरादाबाद मंडल के सभी विधायकों, जनप्रतिनिधियों और प्रभारियों की बैठक ली थी.
भाजपा नेताओं से योगी ने स्पष्ट कहा था, ''हमें 2022 के विधानसभा चुनाव का लक्ष्य मुरादाबाद से ही भेदना होगा क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में मुरादाबाद मंडल की सभी सीटें भाजपा हार गई थी.’’ मुख्यमंत्री योगी लगातार 18 बिंदुओं, जिनमें कानून-व्यवस्था, स्वच्छता कार्यक्रम, निराश्रित गोवंश, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान योजना, मुख्यमंत्री आवास योजना, गन्ना मूल्य भुगतान शामिल हैं, के आधार पर नियमित मुरादाबाद मंडल समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों की समीक्षा कर रहे हैं.
मेरठ विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफेसर आर. के. सिंह बताते हैं, ''उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की शुरुआत पश्चिमी इलाके से होती है. इस इलाके में जो पार्टी शुरुआती बढ़त ले लेती है उसकी आगे की राह आसान हो जाती है. इसीलिए विपक्षी पार्टियों ने 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों का आगाज पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही किया है.’’ ढाई महीने से ज्यादा समय से चल रहे किसान आंदोलन ने भी पश्चिमी यूपी का राजनैतिक माहौल गरम कर दिया है.

किसान आंदोलन के बहाने राजनैतिक दल जाट-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में जाट प्रभावी मंडलों की 136 विधानसभा सीटों में 55 सीटें ऐसी हैं जिनमें जाट-मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत या इससे अधिक बैठती है. इसी कारण ये सीटें सभी पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण हो गई हैं. 2013 में मुफ्फरनगर दंगों के बाद जाट और मुस्लिम मतदाताओं के बीच हुए विभाजन से भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना परचम लहरा दिया था (देखें ग्राफिक्स).
दूसरी ओर, जाट मतदाताओं पर प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित सिंह हाशिये पर पहुंच गए थे. यह पहली बार है कि रालोद के पास लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा में एक भी सीट नहीं है. 2017 के विधानसभा चुनाव में जीते छपरौली से रालोद विधायक सहेंद्र सिंह रामाला भाजपा में शामिल हो चुके हैं. अब भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) से अपनी कटुता मिटाकर रालोद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें दोबारा जमाने की कोशिश कर रहा है. रालोद के राष्ट्रीय महासचिव जयंत चौधरी हर जिले में किसान पंचायत के जरिए जाट-मुस्लिम एकता की कोशिश कर रहे हैं.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर जाट मतदाताओं ने मुस्लिम मतदाता के साथ वोट करके भाजपा को हराया था. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम सांसद लोकसभा नहीं पहुंचा था. पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से कुल छह मुस्लिम सांसद चुनाव जीते थे जिनमें से पांच पश्चिमी यूपी से थे. अमरोहा लोकसभा सीट पर बसपा उम्मीदवार दानिश अली को मुस्लिम मतदाताओं के साथ जाट मतदाताओं का भी वोट मिला था. इसी वजह से वे 51 प्रतिशत वोट पाकर सांसद बने थे.
इसी प्रकार सहारनपुर लोकसभा सीट पर भी बसपा उम्मीदवार हाजी फजलुर्रहमान मुसलमानों के साथ जाट का वोट पाकर चुनाव जीते. देवबंद, सहारनपुर में मुसलमानों के लिए एक स्कूल चलाने वाले फहीम उस्मानी बताते हैं, ‘‘2019 के लोकसभा चुनाव से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम एकता की नींव पड़ चुकी है. यही वजह थी कि जाट मतदाताओं के समर्थन से मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीते. चूंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट नेतृत्व में शून्यता आ गई थी इस वजह से जाट मतदाता दुविधा में था. अब राकेश टिकैत का नेतृत्व मिलने के बाद जाट और मुस्लिम मतदाता फिर से एक मंच पर आ गए हैं. जाट-मुस्लिम एकता का असर 2022 के विधानसभा चुनाव में दिखेगा.’’
वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही पश्चिमी यूपी में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेताओं में भगदड़ का माहौल है. बसपा से नाराज नेताओं की पहली पसंद समाजवादी पार्टी (सपा) की साइकिल बनी है. 16 जनवरी को बसपा से निष्कासित पूर्व विधायक योगेश वर्मा अपनी पत्नी सुनीता वर्मा जो कि मेरठ की महापौर हैं, के साथ सपा में शामिल हो गए.
अलीगढ़ में बसपा के पूर्व विधायक हाजी जमीरउल्लाह, मोहम्मद सगीर के अलावा बरेली से बसपा के पूर्व विधायक विजयपाल सिंह, मुजफ्फरनगर से पूर्व विधायक अनिल जाटव हाथी का साथ छोड़ साइकिल की सवारी शुरू कर चुके हैं. अलीगढ़ के वरिष्ठ वकील शाहिद खान बताते हैं, ''पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बहुतायत मुस्लिम मतदाता अभी भी सपा के साथ ही खड़ा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पांच मुस्लिम सांसदों में से तीन सपा और 15 मुस्लिम विधायकों में 13 सपा के पास हैं.’’
किसान आंदोलन की बढ़ती तपिश के बीच ऐसी संभावना जताई जा रही थी कि प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार गन्ने का परामर्शी मूल्य बढ़ा सकती है. 14 फरवरी को योगी सरकार ने पेराई सत्र 2020-21 के लिए गन्ना मूल्य की घोषणा कर दी. पिछले पेराई सत्र की तरह सामान्य प्रजाति के गन्ने का मूल्य 315 रुपए और अगेती प्रजाति का 325 रुपए कुंतल निर्धारित किया गया. मार्च 2017 में सत्ता में आने के बाद योगी सरकार ने पहले साल सत्र 2017-18 में गन्ने के राज्य परामर्शी मूल्य (एसएपी) में 10 रुपए की वृद्धि की थी. उसके बाद गन्ना पेराई सत्र 2018-19 और 2019-20 में भी राज्य परामर्शी मूल्य यथावत रहा.
किसान आंदोलन की गरमाहट झेल रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने का राज्य परामर्शी मूल्य न बढ़ाए जाने पर राजनैतिक लामबंदी शुरू हो गई है. गन्ने का मूल्य न बढ़ाए जाने से भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत योगी सरकार से खफा हैं. नरेश टिकैत कहते हैं, ''जो सरकार किसानों की आय दोगुना करने का दावा करती है वही चार साल से गन्ने का मूल्य भी नहीं बढ़ाती है. ऐसे में सरकार की कथनी और करनी में अंतर स्पष्ट हो जाता है.’’
गन्ने का मूल्य न बढऩे को भी टिकैत मुद्दा बनाकर किसानों का समर्थन बटोर रहे हैं. भाजपा के प्रवक्ता और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शुगर बाउल के रूप में मशहूर जिले मुजफ्फरनगर के प्रभारी डॉ. चंद्रमोहन कहते हैं, ''विपक्षी पार्टियों की पूर्ववर्ती सरकारों ने जहां गन्ना किसानों को भुगतान दिलाने में कोई रुचि नहीं दिखाई थी, वहीं भाजपा सरकार न किसानों को समय पर भुगतान कराया है. कोरोना काल की विषम परिस्थितियों के बावजूद पेराई सत्र 2019-20 में संचालित 97 चीनी मिलों की ओर से शतप्रतिशत भुगतान किसानों को किया जा चुका है.’’
कहावत है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, उसी प्रकार उत्तर प्रदेश की गद्दी का रास्ता पश्चिमी यूपी से होकर गुजरता है. अगले साल के विधानसभा चुनाव का समय जैसे नजदीक आ रहा है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनैतिक दलों का घमासान भी तेज होता जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की शुरुआत पश्चिमी इलाके से होती है. इस इलाके में जो पार्टी शुरुआती बढ़त बना लेती है उसके लिए आगे की राह आसान हो जाती है
भाजपा
ताकत—केंद्र और प्रदेश में सरकार, बूथ स्तर तक मजबूत संगठन. सवर्ण और ओबीसी मतदाताओं में पकड़
कमजोरी—प्रभावी जाट और किसान नेता का अभाव. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अति निर्भरता
प्रमुख नेता—भूपेंद्र चौधरी (पंचायती राज मंत्री), सुरेश राणा ( गन्ना एवं चीनी उद्योग मंत्री), संजीव बलियान (सांसद मुजफ्फरनगर)
समाजवादी पार्टी
ताकत—मुख्य विपक्षी दल, यादव और मुस्लिम का एकतरफा समर्थन
कमजोरी—सर्वमान्य और प्रभावी मुस्लिम नेताओं का अभाव. मुस्लिम विरोधी मतदाताओं में ढीली पकड़
प्रमुख नेता—रामगोपाल यादव (सांसद और सपा के राष्ट्रीय महासचिव), राजेंद्र चौधरी (एमएलसी और मुख्य प्रवन्न्ता), संजय गर्ग (समाजवादी व्यापार सभा के प्रदेश अध्यक्ष, सहारनपुर से विधायक)
जाट और मुस्लिम परिदृश्य
जाट जनसंक्चया— 1931 की जनणना के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छह मंडलों में जाट समाज की
जनसंख्या का 99 फीसद केंद्रित है. सामाजिक न्याय समिति-2001 की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की पिछड़ी जातियों में जाट का प्रतिशत 3.60 है, हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन छह मंडलों में इनका प्रतिशत 18 से 20 प्रतिशत है
जाट सांसद—कुल तीन. सभी भाजपा के. संजीव बलियान (मुजफ्फरनगर), सतपाल सिंह (बागपत) और राजकुमार चाहर (फतेहपुर सीकरी)
जाट विधायक—पश्चिमी यूपी में कमल मलिक (गढ़), मंजू सिवाच (मोदीनगर), सहेंद्र सिंह रमाला (छपरौली), योगेश धामा (बागपत), उमेश मलिक (कुड़ाना), तेजिंदर निर्वाल (शामली), जितेंद्र सिंह (सिवाल खास) भाजपा के जाट विधायक हैं
जाट समाज के मंत्री—योगी आदित्यनाथ की सरकार में लक्ष्मी नारायण चौधरी (पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री) भूपेंद्र चौधरी (पंचायती राज कैबिनेट मंत्री), उदय भान सिंह (एमएसएमई विभाग के राज्य मंत्री) जाट समाज से आने वाले मंत्री है. भूपेंद्र सिंह औलख ( जल शक्ति विभाग के राज्यमंत्री) सिख-जाट समाज से आते हैं
मुस्लिम जनसंक्चया—पश्चिमी यूपी की 136 विधानसभा सीटों में 49 ऐसी हैं जिन पर मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत या इससे अधिक है. करीब दो दर्जन सीटें ऐसी हैं जिन पर जाट और मुस्लिम मिलकर 50 फीसद से अधिक हैं
मुस्लिम सांसद—पश्चिमी यूपी में कुल पांच. रामपुर से आजम खां (सपा), मुरादाबाद से एस.टी. हसन (सपा), संभल से शफीकुर्रहमान बर्क (सपा), सहारनपुर से हाजी फजलुर्रहमान (बसपा) और अमरोहा से दानिश अली (बसपा)
मुस्लिम विधायक—सपा से मुस्लिम विधायक नाहीद हसन (कैराना), तसलीम (नजीबाबाद), नइमुलहसन (नूरपुर), नवाबजान (ठाकुरद्वारा), हाजी इकराम कुरैशी (मुरादाबाद रुरल), मोहक्वमद रिजवान (कुंदरकी), मोहक्वमद फहीम (बिलारी), इकबाल महमूद (संभल), अबदुल्ला आजम (सुआर), नसीर अहमद खान (चमरउआ), तंजीम फातिमा (रामपुर, वे 2019 यहां से विधायक बनीं), महबूब अली (अमरोहा), रफीक अंसारी (मेरठ), बसपा से असलम चौधरी (दुलाना) और कांग्रेस के मसूद अक्चतर (सहारनपुर)