
दिल्ली के मालवीय नगर स्थित एक कार कंपनी के शोरूम में मिले थे दिलीप भाई. दशहरे का दिन था. सेल्स एग्जीक्यूटिव दिलीप डिलिवरी का शेड्यूल हाथ में लिए फटाफट गेट पास की व्यवस्था करवाने में जुटे थे. ''फेस्टिवल सीजन में बढिय़ा बिक्री हो रही?’’ मौका पाते ही मैंने उन्हें टटोला. जवाब मिला ''यह भी कोई बिक्री है?
40-40 कारें निकाली हैं इसी शोरूम से एक दिन में, आज 25 होना मुश्किल हैं.’’ नवरात्र से शुरू होने वाला त्योहारी मौसम ही वह मौका होता है जब वाहन कंपनियां अपनी सालाना बिक्री का 25 फीसद माल बेचती हैं. लेकिन इस साल दिवाली से कंपनियों की उम्मीद ज्यादा है क्योंकि पिछली दो खराब तिमाहियों का घाटा पाटने और लॉकडाउन की मंदी से उबरने का यही आखिरी मौका है. यह मौका कितना आगे ले जाता है इसी पर अर्थव्यवस्था की बहाली निर्भर करती है.

उम्मीद की किरण
त्योहारी मांग के चलते अक्तूबर में वाहन कंपनियों की बिक्री में उछाल देखने को मिला है. प्रमुख 14 कार कंपनियों ने पिछले साल की तुलना में कुल 17.3 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की. प्रमुख सात दोपहिया वाहन कंपनियों की बिक्री में भी कुल 16.9 प्रतिशत का उछाल आया. थ्री व्हीलर और कामर्शियल वेहिकल की बिक्री ने अभी जोर नहीं पकड़ा है (देखें ग्राफिक).
कंपनियों के नजरिए से देखें तो देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया की घरेलू बिक्री अक्तूबर 2020 में 19.8 प्रतिशत बढ़कर 1,72,862 इकाई पर पहुंच गई, जो अक्तूबर, 2019 में 1,44,277 इकाई थी. देश की दूसरी बड़ी कार कंपनी हुंडई मोटर ने पिछले महीने 56,605 कारों की बिक्री की. यह अक्तूबर 2019 की 50,010 वाहन की बिक्री से 13.2 फीसद ज्यादा है. दोपहिया वाहन श्रेणी में देश की सबसे बड़ी कंपनी हीरो मोटोकॉर्प के लिए बिक्री के लिहाज से अक्तूबर सबसे अच्छा महीना रहा. कंपनी की बिक्री पिछले महीने 34.64 प्रतिशत बढ़कर 8,06,848 इकाई रही, जबकि बीते साल अक्तूबर में कंपनी ने 5,99,248 वाहनों की बिक्री की थी.
गौरतलब है कि कंपनियों की ओर से जारी किए जाने वाले बिक्री के आंकड़े दरअसल वाहन के फैक्ट्री से डीलरशिप तक पहुंचने के होते हैं. असल में किसी कार या दोपहिया वाहन की बिक्री आरटीओ में होने वाले रजिस्ट्रेशन से पता चलती है. ये आंकड़े फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (फाडा) जारी करता है. केयर रेटिंग्स की इसी हक्रते जारी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि अक्तूबर में कुछ बड़ी वाहन कंपनियों की बिक्री अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है हालांकि खुदरा बिक्री भी इस गति से बढ़ेगी, इसकी उम्मीद नहीं है. कमोबेश सितंबर में भी यही चलन देखने को मिला था (देखें ग्राफिक).
दबी मांग बाजार में आई
एस्कॉर्ट सिक्योरिटीज के प्रमुख (रिसर्च) आसिफ इकबाल कहते हैं, ''कार और बाइक की बिक्री के आंकड़ों से अर्थव्यवस्था बहाली की उक्वमीद बांध लेना जल्दबाजी होगी.’’ उनकी दलील है कि वाहन कंपनियों की पहली तिमाही तो लॉकडाउन में खत्म हो गई. दूसरी तिमाही में जब छूट मिली तो धीरे-धीरे कंपनियों का उत्पादन पटरी पर लौटा. अब त्योहार ही मौका हैं जब पिछली दो तिमाहियों से दबी हुई मांग बाजार में आई है.
वे यह भी कहते हैं, ''सस्ता कर्ज, आकर्षक पेशकश, त्योहार का मौका और दबी हुई मांग वे कारण हैं जिनके सहारे अक्तूबर में यह बिक्री देखने को मिल रही है. लेकिन यह इसी रक्रतार से जारी रहेगी, इसकी उम्मीद कम है.’’ कार, मोटरसाइकिल और स्कूटर की बिक्री से अर्थव्यवस्था में बहाली के संकेत पकडऩे के लिए बिक्री का इसी रफ्तार से अगले तीन से चार महीने बढऩा जरूरी है. इसके अलावा, हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि हम वाहन की बिक्री की तुलना पिछले साल से करते हैं. पिछला साल भी सुस्त मांग वाला था. ऐसे में एक बेस इफेक्ट भी है, जिसके कारण बिक्री बढ़ी हुई लग रही है.
मंदी से उबरने में लगेगा वक्त
नवरात्र के दस दिन (दशहरे के साथ) मांग कमोबेश उम्मीद के अनुरूप रही, इसके आगे भी जारी रहने की उम्मीद है. फाडा के चेयरमैन विंकेश गुलाटी कहते हैं, ''त्योहारी मौसम में कारों की मांग कमोबेश उम्मीद के मुताबिक ही रही है. हालांकि दोपहिया वाहन उतने नहीं बिके जिनती उम्मीद थी. दोपहिया वाहनों में भी स्कूटर का हाल ज्यादा खराब है.’’ कारों की बिक्री भी चौतरफा नहीं है. बिक्री बीते एक साल में लॉन्च हुए मॉडल और कंपनियों के चुनिंदा मॉडल तक ही सीमित है. नवरात्र से पहले डीलर के पास जो कारों की इन्वेंट्री 35 से 40 दिनों की और दोपहिया वाहनों की इन्वेंट्री 25 से 35 दिनों की थी, उसमें औसत 10 दिन की कमी आई है. शुरुआत अच्छी हुई है. ऐसे में उम्मीद है कि धनतेरस और दिवाली पर भी अच्छी बिक्री देखने को मिलेगी. हालांकि वाहन कंपनियों के 'अच्छे दिन’ लौटने की उम्मीद 2023 तक है.
वजूद का संकट
ऑटोमोबाइल कंपनियां डीलरों को कैश ऐंड कैरी पॉलिसी पर गाडिय़ां देती हैं. यानी जितनी गाड़ी चाहिए, उतना पैसा दे जाइए. इसके अलावा डीलर की लिमिट बंधी होती है. उसके आधार पर कंपनियां उन्हें एक निश्चित सीमा तक क्रेडिट देती हैं. बीएस-6 नियम लागू होने के बाद सभी डीलरों ने गाडिय़ों की इन्वेंट्री उठाई. इसके अलावा त्योहारी मौसम से पहले सभी डीलर गाडिय़ों का स्टॉक करते हैं. इसके लिए उन्हें बैंक से क्रेडिट लेना होता है. वाहनों की बिक्री होती रहे तो पैसा तेजी से हाथ बदलता है और धंधा चलता रहता है. विकेश कहते हैं, ''इस त्योहारी सीजन में अगर मांग में तेजी से सुधार नहीं आया तो कारोबारियों पर वित्तीय दबाव बढ़ता जाएगा और उनके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा.’’
वे यह भी कहते हैं, ''त्योहार के बाद भी कार और दोपहिया वाहनों की मांग लगातार नहीं बढ़ी तो कंपनियों को अपने डीलर नेटवर्क को जीवित रखने के लिए भुगतान में कुछ रियायतें देनी होंगी.’’ यह इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में ऑटो कंपनियों और डीलरों के बीच कारोबार की नई शर्तें लिखी जा सकती हैं. गौरतलब है कि बीते एक से ढेड़ साल में देशभर में करीब 300 एजेंसियां बंद हो चुकी हैं. हालात नहीं सुधरे तो 150 से 175 एजेंसियों पर ताला लटकने की आशंका व्यापारियों के बीच तैर रही हैं. इसलिए हर कोई वजूद खत्म होने की आशंका से भरा है. अगर जल्दी गाड़ी पटरी पर नहीं लौटी तो मुश्किल बढ़ेगी.
कर्ज की मांग नहीं
कोविड लॉकडाउन से पहले तक देश में वाहनों की दो-तिहाई खरीदारी कर्ज के सहारे होती थी. बाजार से कर्ज उठने की मांग कैसी है? वाहन बाजार का हाल जानने का यह भी एक सही पैमाना है. हालांकि कार और मोटरसाइकिल के लिए बैंकों से कितने कर्ज बांटे गए, इसके आरबीआइ की ओर से कोई अलग आंकड़े जारी नहीं किए जाते लेकिन वाहन के लिए दिए गए कुल कर्ज की राशि से इसका अंदाज लगाया जा सकता है. 27 मार्च 2020 से 25 सितंबर 2020 के दौरान बैंक के कुल कर्ज में महज 0.4 फीसद की बढ़त है.
बैंकों के अलावा एनबीएफसी भी वाहनों को दिए वाले कर्ज का मुख्य स्रोत हैं. एनबीएफसी की पूंजी का मुख्य जरिया भी बैंक होते हैं. 27 मार्च 2020 से 25 सितंबर 2020 के दौरान बैंक की ओर से एनबीएफसी को दिए गए कुल कर्ज में 0.6 फीसद की कमी आई है. इसका अर्थ यह हुआ कि इस अवधि में बैंक ने एनबीएफसी को कोई नया कर्ज नहीं दिया बल्कि पुराने कर्जों में भी वापसी हुई. फैक्ट्री से डीलरशिप तक जिस रफ्तार से कार और मोटरसाइकिल पहुंची हैं, उसी रफ्तार से जमीन पर उतरेंगी इसकी उम्मीद फिलहाल कम है. वाहन बाजार के हालात सुधरने में अभी लंबा वक्त लगेगा. और उतना ही लंबा वक्त अर्थव्यवस्था बहाली में भी शायद लगे.