अशोक गहलोत की छवि आज ऐसे तपे-तपाए नेता की बन गई है, जो उच्च दुरभिसंधियों को कामयाबी से भेद सकते हैं. 69 वर्षीय राजस्थान के मुख्यमंत्री ने राजनैतिक सूझबूझ से कथित तौर पर भाजपा प्रायोजित सचिन पायलट की तख्तापलट की कोशिशों को नाकाम कर दिया है. इसमें मध्य प्रदेश में कमलनाथ नाकाम रहे थे, जबकि महाराष्ट्र में शरद पवार ने राजभवन, भाजपा नेताओं और वकीलों के मजबूत गठजोड़ की काट निकाल ले गए थे. अब गहलोत भी पवार की पांत में खड़े दिखाई दे रहे हैं. इस पूरे प्रकरण में ज्यादा अहम यह था कि गहलोत ने प्रतिद्वंद्वी खेमे की चालों का पहले से अंदाज लगाया और बहुत कम संसाधनों तथा गिने-चुने सलाहकारों की मदद से उनका कामयाबी से मुकाबला किया.
आखिर पायलट 10 अगस्त को प्रियंका और राहुल गांधी के साथ बैठकों के बाद लौटने को राजी हो गए. यूं तो पायलट की शिकायतों पर विचार करने और उनकी टोली की बेहतर नुमाइंदगी का फॉर्मूला निकालने के लिए तीन सदस्यों की एक समिति बनाई जाएगी, लेकिन यह समझौता पायलट की नहीं, बल्कि गहलोत की जीत है. आखिर पहले खनन, परिवहन, पर्यटन और खाद्य तथा नागरिक आपूर्ति सहित अहम मंत्रालय पायलट के नामजद नेताओं के पास थे. खुद उनके पास उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद था, ग्रामीण विकास और पंचायत राज तथा पीडब्ल्यूडी जैसे अहम मंत्रालय थे. क्या जल्दी वे इतना कुछ पा सकेंगे?
संभावना कम है, क्योंकि अब गहलोत उन लोगों को ज्यादा तवज्जो देंगे जिन्होंने मजबूती से कांग्रेस का साथ देकर सरकार को गिरने नहीं दिया. गहलोत ने 11 अगस्त को जैसलमेर में विधायक दल की बैठक में कहा, ''वे 19 भी हमारे परिवार का हिस्सा हैं. उनके साथ अच्छा बर्ताव होना चाहिए, लेकिन आप सब उनसे पहले आते हैं.'' इस बैठक में कई विधायकों ने मांग की कि उन्हें इतने ज्यादा दिन होटल में रहने को मजबूर करने वाले विद्रोहियों को कोई इनाम कतई नहीं दिया जाना चाहिए और यह भी कि वे खुलेआम गहलोत में अपना विश्वास व्यक्त करें. कांग्रेस के साथ डटकर खड़े रहे विधायकों ने अब मांग की है कि उन्हें भी सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी से मिलकर अपनी बात कहने का मौका दिया जाए.
दरअसल संकट 10 जून को तब पैदा हुआ, जब गहलोत ने पहली बार आरोप लगाया कि राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के जरिए सरकार को गिराने के लिए भाजपा कांग्रेस विधायकों को उकसा रही है. उस वक्त तो यह कोशिश दबा दी गई, लेकिन 10 जुलाई को विस्फोट के साथ उभर आई. करीब एक महीने तक तमाम कांग्रेसी और उसका समर्थन कर रहे निर्दलीय विधायकों को जयपुर, जैसलमेर और गुडग़ांव के मानेसर और दिल्ली के होटलों में रहना पड़ा. गहलोत इस दौरान किसी तरह सरकार चलाते रहे. वे अक्सर कहते भी रहे, ''बुरा यह है कि हमें अपनी सरकार की फिक्र करने को मजबूर कर दिया गया है जबकि हम सबको कोरोना और उसके नतीजों से लडऩे के लिए काम करना चाहिए था.''
पायलट खेमे में खुशी और जश्न की बजाए अपनी नियति के आगे हथियार डालने का एहसास है. संभावना यही है कि उनके खेमे के 19 विधायकों में से कुछ जल्दी ही गहलोत के साथ आ जाएं. जब पायलट 10 अगस्त को राहुल और प्रियंका गांधी से बात कर रहे थे, उनके एक प्रमुख नेता 81 वर्षीय भंवरलाल शर्मा गहलोत के सरकारी आवास 8, सिविल लाइंस पहुंचे, उन्होंने 'गहलोत हमारे नेता हैं' का नारा लगाया, उनके साथ लंबी बैठक की और इस दौरान किस-किस ने पायलट खेमे की मेजबानी और किसने उनकी तरफ से बातचीत की, इसके एक-एक ब्योरे उनके सामने रख दिए. शर्मा कारोबारी संजय जैन, जो भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (एसीबी) की हिरासत में हैं, और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से जुड़े फोन टैपिंग मामले में प्रमुख संदिग्ध हैं. शर्मा ने वकील हरीश साल्वे के जरिए राजस्थान हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और फोन टैपिंग मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को सौंपने की मांग की थी.
अगले दिन पायलट खेमे के साथ जुड़े तीन निर्दलीय विधायक गहलोत में अपना भरोसा जताने पहुंचे. घर लौट रहे कुछ विद्रोही विधायकों ने एक-एक जानकारी दी है कि किसने मेजबानी की और किसने भाजपा की तरफ से भूमिका निभाई. गहलोत का कहना है कि पायलट खेमे की मेजबानी करने वाले वही पुलिसवाले, बॉक्सर, कार्यकर्ता और कर्मचारी थे जिन्होंने मध्य प्रदेश के बागी विधायकों के लिए इंतजाम और आवभगत की थी. अंदरूनी जानकारों का कहना है कि पायलट खेमे के साथ रह रहे कुछ और विधायकों ने उन तक अपनी हताशा पहुंचा दी है कि इस सबसे उनके हाथ कुछ लगा नहीं और उन्हें भाजपा के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया. यही वजह है कि पायलट को बगावत छोडऩी पड़ी.
हैरानी क्या कि केंद्र में गद्दीनशीन भाजपा ने एक बार फिर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को आगे कर दिया है. इस बार उसने परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सरहद पर एक रियल एस्टेट डेवलपर और निवेश कंपनी पीएसीएल को जमीन बिक्री से जुड़ा मामला खोला है. खाचरियावास राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के पूर्व उपराष्ट्रपति दिवंगत भैंरों सिंह शेखावत के भतीजे हैं. उनके उम्रदराज पिता को भी इस सौदे के लिए नोटिस मिला है. खाचरियावास पिछले छह साल से पायलट के नजदीकी थे, लेकिन वे कहते हैं कि पायलट के भाजपा के साथ हाथ मिलाने या कांग्रेस छोडऩे से वे इत्तफाक नहीं रखते थे.
उनके एक सहयोगी का कहना है कि ईडी उन्हें इसी की सजा दे रहा है. ईडी की कार्रवाई से राजपूतों का भाजपा से और दूर होना तय है. ईडी और आयकर विभाग ने तकरीबन बंद हो चुके पुराने मामले खोद निकाले हैं. इनमें गहलोत के नाराज भाई के खिलाफ खाद की बिक्री से जुड़ा घोटाला और उनके सहयोगी तथा पारिवारिक मित्र रमाकांत शर्मा के खिलाफ, जो होटल और सिंचाई के कारोबार में हैं, मॉरिशस में हुए कुछ लेन-देन का मामला शामिल है. इसके अलावा राज्य कांग्रेस के उपाध्यक्ष और आम्रपाली ज्वेलर्स के राजीव अरोड़ा तथा रियल एस्टेट, ऑटो रिटेल से जुड़े कोठारी परिवार तथा कुछ अन्य कारोबारियों को छापों की सजा भुगतनी पड़ी.
गहलोत ने भी चतुराई से राज्य एजेंसियों का इस्तेमाल किया और यह भी ध्यान रखा कि कब और कैसे कदम पीछे खींचना है. उन्होंने अपनी सरकार को गिराने की शिकायतें विशेष अभियान दल (एसओजी) और एसीबी को सौंप दीं. एसओजी ने राजद्रोह के लिए एफआइआर दर्ज की थी, जिसे बाद में एनआइए को सौंपे जाने से बचाने और विधायकों को शांत करने की गरज से वापस ले लिया गया. एसीबी की जांच अलबत्ता जारी है. एजेंसियों ने तो किए ही, पर गहलोत ने भी अपने चैनलों से बातचीत के टेप हासिल किए, जिससे उनका यकीन पुख्ता हो गया कि बागियों ने कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए भाजपा के साथ हाथ मिलाए थे. यही वजह है कि गांधी परिवार गहलोत के साथ खड़ा रहा और मुलाकात से पहले पायलट से लंबा इंतजार करवाया.
केंद्र की भाजपा सरकार ने पहले गहलोत के सहयोगियों और नाराज भाई के खिलाफ ईडी और आयकर विभाग को लगा दिया. फिर अचानक बहुजन समाज पार्टी और भाजपा अदालत में चले गए और पिछले साल सितंबर में बसपा के सभी छह विधायकों के कांग्रेस में विलय पर सवाल खड़े कर दिए. पायलट खेमे ने उन नोटिसों को भी अदालत में चुनौती दी, जो विधायक दल की बैठक में शामिल न होने पर कांग्रेस सचेतक की शिकायत पर विधानसभा अध्यक्ष सी.पी. जोशी ने दिए थे.
इन सबके बावजूद सरकार कायम रखने के लिए जरूरी विधायकों को अपने साथ रोके रखने की गहलोत की क्षमता की वजह से ही पायलट कदम पीछे खींचने पर मजबूर हुए. भाजपा भी केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को बचाने को लेकर ज्यादा फिक्रमंद है, जो एक चिटफंड कंपनी संजीवनी कोऑपरेटिव्स घोटाले के आरोपों से घिरे हैं. टैप की गई कुछ बातचीत इस ओर भी इशारा करती है कि कांग्रेस बागियों के साथ बातचीत में उन्हीं की आवाज है. गहलोत ने भी सरकार को गिराने की साजिश में उन्हीं के मुख्य व्यक्ति होने के आरोप लगाए हैं. शेखावत ने सभी आरोपों से इनकार किया, लेकिन आवाज परीक्षण के लिए प्रस्तुत नहीं हुए.
भाजपा भी 19 से ज्यादा कांग्रेस विधायक जुटाने की पायलट की नाकामी की वजह से आजिज आ गई और उसने अपने हाथ पीछे खींचने का फैसला कर लिया. इससे पायलट इज्जत बचाने की खातिर राहुल और प्रियंका के साथ बैठक की पेशकश को स्वीकार करने के लिए मजबूर हो गए. इसके अलावा वे और उनके विधायक इतनी बुरी तरह घिर चुके थे कि या तो वे व्हिप स्वीकार करके गहलोत सरकार के विधेयकों के पक्ष में वोट देते या फिर विधानसभा की सदस्यता गंवानी पड़ती.
इस पूरे दौरान गहलोत ने 101 विधायकों को अपने साथ रोके रखा और वकील सलमान खुर्शीद और कपिल सिब्बल की मदद से कानूनी लड़ाई लड़ते रहे. राज्यपाल कलराज मिश्र ने कई अड़चनें पैदा कीं. वे जल्दी विधानसभा का सत्र बुलाने से इनकार करके बागियों को वक्त देते दिखाई दिए, ताकि गहलोत विधेयक पारित करवाकर अपना बहुमत सिद्ध न कर सकें. कहा गया कि सदन का सत्र बुलाने के लिए 21 दिनों के नोटिस देना जरूरी है. आखिरकार गहलोत 21 दिनों का नोटिस देने के लिए राजी हो गए. गहलोत ने इंडिया टुडे से कहा, ''31 जुलाई को कम अवधि के सत्र के लिए मेरे पास विधायक थे और मैं अनिश्चितता खत्म करना और कोरोना संकट के दौरान विधायकों को उनके निर्वाचन क्षेत्रों में लौट जाने देना चाहता था.'' उन्होंने यह भी कहा कि अब 14 अगस्त का मतलब यह होगा कि वे और बेहतर बहुमत हासिल करेंगे क्योंकि भाजपा के मंसूबे नाकाम हो चुके हैं.
पायलट के लिए इस बात से इनकार कर पाना मुश्किल हो रहा है कि उन्होंने पिछले महीने मीडिया के लोगों से ऑफ द रिकॉर्ड या अपने सलाहकारों के हवाले से यह छापने को कैसे कहा कि उनके साथ 30 विधायक हैं और गहलोत सरकार अल्पमत में आ गई है. संकट की शुरुआत यहीं से हुई थी. उनसे मुलाकात का गांधी परिवार का कदम गतिरोध खत्म करने और भाजपा को बहुमत न होने का हवाला देकर गहलोत सरकार को बर्खास्त करने का मौका न देने की गरज से ज्यादा था. लिहाजा, गहलोत और कांग्रेस आलाकमान दोनों के लिए समझदारी इसी में थी कि पायलट की घर वापसी होने दें.
खुद पायलट को अपनी छवि और साख फिर से बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, क्योंकि जनता उभरते सितारों के यू-टर्न को मुश्किल से ही सराहती है. मगर जयपुर लौटने के बाद उनके खेमे के पूर्व मंत्री रमेश मीणा सरीखे कुछ सहयोगियों की तरफ से जैसी चीजें सुनने को मिली हैं, उनसे इशारा मिलता है कि सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. जाहिर है, पायलट ने अपने कई कट्टर समर्थकों को मायूस किया है.
पायलट ने मीडिया के सामने खुद को आहत व्यक्ति की तरह पेश किया. उन्होंने गहलोत की ओर से अपशब्द का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और यह खुलासा नहीं किया कि घर वापसी के लिए उन्हें क्या आश्वासन मिले हैं. उन्होंने भाजपा की आवभगत से भी दोटूक इनकार किया. जाहिर है, वे सहानुभूति की तलाश में हैं.
मगर पायलट जो बात समझने से चूक गए, वह यह कि गहलोत ने 20 जुलाई को उन्हें निकम्मा और नाकारा आखिर क्यों कहा था. मुख्यमंत्री, पायलट और उनकी टीम के इस अफसाने पर पानी फेरना चाहते थे कि वे कांग्रेस को सत्ता में लाए. साथ ही, विद्रोही विधायकों में से किसी के भी खिलाफ कठोर शब्दों का इस्तेमाल न करके उन्हें वे रणनीतिक तौर पर यह संदेश देना चाहते थे कि सभी की वापसी का स्वागत है. गहलोत ने चतुराई से अपने हर बयान में संकट के लिए भाजपा को दोषी ठहराया और विधायकों के साथ इस तरह बर्ताव किया मानो वे लौटने का इंतजार कर रहे हैं. पायलट के बारे में गहलोत ने उदाहरण देकर बताया कि किस तरह वे दरार पैदा कर रहे थे.
यही नहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया के विधायकों ने कामयाब तख्तापलट के बाद जिस तरह दोबारा चुनाव में जाने का जोखिम उठाया, उनके विपरीत पायलट खेमे ने नाकाम तख्तापलट के बाद यह मंसूबा भी छोड़ दिया, क्योंकि इसका मतलब गहलोत के मुख्यमंत्री रहते चुनाव में उतरना होता. वापसी के बाद पायलट के बयान बताते हैं कि वे गहलोत को निशाना बनाना और इस तरह कांग्रेस को कमजोर और शर्मिंदा करना जारी रखेंगे, बशर्ते गहलोत उनके खेमे को पूरी तरह तोडऩे में कामयाब न हो जाएं.
पायलट यहां से अब कहां जा सकते हैं और अब वे मंत्री नहीं रह गए हैं तो क्या वे अपना सरकारी आवास खाली करेंगे, खासकर इसलिए कि उन्होंने गहलोत पर भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से बंगला खाली न कराने के लिए उनके साथ सांठगांठ का आरोप लगाया था? अंदरूनी लोगों का कहना है कि राजे ने पार्टी के आला नेताओं को इस संकट से निपटने के तौर-तरीकों के लिए झिड़का और उनसे कहा कि इस मोड़ पर इसका नाकाम होना तय ही था. पायलट के यू-टर्न से राज्य भाजपा भौचक रह गई और उसने विधायक दल की तयशुदा बैठक टाल दी, जो 14 अगस्त के विधानसभा सत्र से पहले एक होटल में होनी थी और विधायकों को दो दिन वहीं रहना था.
यकीनन पायलट को अपना रवैया और राज्य नेताओं के प्रति तिरस्कार का भाव छोडऩा होगा, अपनी ताकत और कमजोरियों को स्वीकार करना होगा और अपने स्वभाव में धैर्य लाना होगा. अगर वे और उनके लोग गहलोत के खिलाफ बगावत कर सकते हैं, तो कई दूसरे विधायक और वरिष्ठ मंत्री भी उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार नहीं करेंगे. उनसे पहले अनगिनत नेता अपनी-अपनी पार्टियों में दशकों काम करने के बाद मंत्री या किसी बोर्ड की अध्यक्षता का मौका हासिल कर पाए थे. पायलट को अपनी ईमानदारी भी साबित करनी होगी और समझना होगा कि उनके आगे अभी लंबा भविष्य है. गहलोत स्थायी दुश्मन कभी नहीं रखते.
अगर केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगाया होता तो उस स्थिति में अंतरिम अवधि के लिए मुख्यमंत्री बनने का पायलट का सपना भी चकनाचूर हो गया है. मगर गहलोत भाजपा के अडिय़ल रवैये को लेकर ज्यादा अलर्ट हैं, जैसा कि उनके परिवहन मंत्री के खिलाफ ईडी के मामले खोलने से पता चलता है. अगर आज राज्य में चुनाव हों, तो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जैसा ज्यादातर विधानसभा चुनावों में हुआ है, भाजपा उम्मीद से कमतर प्रदर्शन करेगी. मोदी फैक्टर विधानसभा चुनावों में मुश्किल से ही कारगर हुआ है, मगर गहलोत को सहानुभूति वोट जरूर मिल सकते हैं. पायलट और तब तक उनके साथ टिके रहे किसी भी व्यक्ति के लिए अपनी सीट बचाना मुश्किल हो जाएगा.
यही कारण है कि पायलट ने तीसरा मोर्चा बनाने के अपने मंसूबे को तिलांजलि दे दी. भाजपा और उनके बीच सहमति यह थी कि गहलोत की सरकार को गिराया जाए, भले ही इसका मतलब 35 बागियों का विधानसभा की अपनी सदस्यता से हाथ धो बैठना हो, उन्हें अंतरिम मुख्यमंत्री बनने दिया जाए और उनके विधायकों के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा न करके चुनाव में उन्हें जीतने दिया जाए. मगर गहलोत ने इस साजिश को नाकाम कर दिया. केंद्र उनकी मुश्कें मरोडऩे और राष्ट्रपति शासन लगाने के तरीके खोजता रहेगा, लेकिन राज्य भाजपा मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार नहीं है और अभी इंतजार करना चाहती है.
गहलोत बहुत पहले से जानते थे कि पायलट विद्रोह करेंगे और इसमें भाजपा उनकी मदद करेगी, लेकिन उन्होंने कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि वे उस वक्त यह प्रहार करेंगे जब वे कोरोना से जूझ रहे थे और अपने स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा के साथ कई दूसरे राज्यों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे. गहलोत ने कई बार कहा कि यह राजनीति करने का वक्त नहीं है और यहां तक कि मोदी से भी यह गंदा खेल बंद करने की अपील की. घायल भाजपा गहलोत और उनके सहयोगियों को परेशान करना जारी रखेगी, जब तक कि उन्हें तोडऩे में कामयाब न हो जाए. मगर सवाल यह है कि कांग्रेस क्या कभी पायलट का भरोसा कर पाएगी और क्या वह खुद दोबारा हमला बोलने के लिए मौके का इंतजार करेंगे?