प्र. नए सुधारों पर जो जोर दिया गया है, उसकी कमियां और खूबियां क्या हैं?
डी.के. जोशी
ढांचागत सुधारों को गहरा करने को लेकर सही बातें कही गई हैं, चाहे वह कृषि हो, खनन, कारोबार करने में आसानी या सामाजिक बुनियादी ढांचा हो. मौजूदा पल इस बात का भी मौका है कि कुछ ध्यान प्रवासी मजदूरों के मुद्दे को हल करने की दिशा में मोड़ा जाए ताकि भविष्य के संकटों के लिए हम बेहतर ढंग से तैयार हो सकें. जहां तक कमियों और खूबियों की बात है तो ये अमल में पता चलेंगी.
विनायक चटर्जी
विचारों का साहस खूबी है लेकिन पैकेज नकदी के मामले में कम है. आदर्श तो यह होता कि यह 70 फीसद लोक निर्माण कार्यक्रम, 20 फीसद तरलता लाना और 10 फीसद सुधार होना चाहिए था. इसी पिरामिड की हमें जरूरत थी, लेकिन हमें उल्टा पिरामिड मिला.
मैत्रीश घटक
बहुत सारे ऐलानों की भीड़भाड़ से उबरकर पैकेज की पूरी तस्वीर सामने आने में कुछ वक्त लगेगा, इसलिए मैं फिलहाल कुछ कहना नहीं चाहूंगा. अलबत्ता बाजार सुधारों के संबंध में मैंने कुछ भी बड़ा नहीं देखा.
एन.आर. भानुमूर्ति
दूसरे प्रोत्साहन पैकेज का जोर कई ढांचागत सुधारों पर था और इनमें से कुछ तो लंबे वक्त से टलते आ रहे थे. ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’, अनिवार्य वस्तु कानून में ढील, खनन क्षेत्र को अड़चन मुक्त करने सरीखे सुधारों और एफडीआइ सुधारों से उम्मीद की जाती है कि वे आर्थिक गतिविधियों में ढांचागत सुधार लाएंगे और देश में कारोबार करने में आसानी को बढ़ावा देंगे.
जमीन और श्रम मुद्दों (दोनों संसद में लंबित हैं) के अलावा जो एक क्षेत्र गायब था, वह है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) को मजबूत करने के लिए नीतिगत उपाय. सरकार अपने एजेंडे पर अमल के लिए पीएसबी पर इतना ज्यादा निर्भर रहती है, लेकिन जब उन्हें मजबूत करने की बारी आती है तो उनकी घोर अनदेखी करती दिखाई देती है. दूसरा क्षेत्र राजकोषीय नीति है, जहां केंद्र और राज्यों दोनों के स्तरों पर हालत बहुत दयनीय है. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार जल्द ही मध्यम अवधि की विश्वसनीय राजकोषीय रूपरेखा लेकर हमारे सामने आएगी.
शमिका रवि
उत्तर दे चुकी हूं.
आर. नागराज
प्रोत्साहनों की बदौलत जो अतिरिक्त मांग पैदा हुई, वह लॉकडाउन के बाद उत्पादन और रोजगार के ध्वस्त होने के मुकाबले मामूली ही दिखाई देती है. एमएसएमई को तरलता के सहारे से कर्ज की अतिरिक्त मांग पैदा होने की संभावना नहीं है क्योंकि ज्यादातर उद्योगों और कृषि उपजों में अतिरिक्त आपूर्ति की स्थिति (लॉकडाउन की वजह से आपूर्ति में फौरी व्यवधानों को छोड़कर) है.
पैकेज का बहुत बड़ा हिस्सा ढांचागत सुधारों की छोटी अवधि में कोई अहमियत नहीं है क्योंकि अर्थव्यवस्था (सरकार के बहुत ज्यादा नियम-कायदों की वजह से) आपूर्ति की रुकावटों से प्रभावित नहीं है. वित्तीय प्रोत्साहन की तत्काल जरूरत के साथ एक ही पैकेज में रखा गया सुधार का एजेंडा अच्छे से अच्छे तौर पर भटकाने वाला और बुरे से बुरे तौर पर आत्मनिर्भरता की आड़ में छोटी सरकार—'न्यूनतम सरकार, अधिकतम राजकाज’—की विचारधारा को आगे बढ़ाता दिखता है.
एस.सी. गर्ग
प्रधानमंत्री ने जमीन, श्रम, तरलता और कानूनों में सुधार के बारे में बात की. सुधारों का जो पैकेज अब तक सामने आया है, उसमें केवल कृषि सुधार ही हैं. बाकी सुधारों का उत्सुकता से इंतजार किया जा रहा है.
***

