बंगाल के चुनावी फलक से भगवा का सफाया करने का उनका जज्बा ही है जिसके चलते ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के झंडे और लोगो के रंगों का खाका बदलने का फरमान सुना दिया. पार्टी के झंडे पर पिछला हिस्सा अब तिरंगा नहीं होगा बल्कि उसकी जगह पृष्ठभूमि में नीले और सफेद रंग होंगे और पार्टी का चुनाव चिन्ह घास फूल काले और सफेद रंगों से उकेरा जाएगा, जबकि पहले फूलों में तिरंगी पंखुडिय़ां हुआ करती थीं.
पार्टी का नाम 'तृणमूल' गहरे हरे रंग से बंगाली में लिखा होगा और उसके बस एक कोने में भगवा छींटा लगा होगा. झंडे पर बंगाली में तीन लफ्ज—आमार, आपनार, बांग्लार (मेरा, तुम्हारा, बंगाल का)—भी छापे गए हैं. रंगों की योजना में अचानक बदलाव को लेकर जहां हर कोई हैरत में था, तभी ममता ने सारे संदेह दूर कर दिए, यह कहकर कि ''मुझे भाजपा के रंग अच्छे नहीं लगते.''
भगवा रंग से ममता की नापंसदगी अचानक पैदा नहीं हुई है. चूंकि भगवा भाजपा और दूसरे हिंदुत्व संगठनों का पंसदीदा रंग है, इसलिए ममता नहीं चाहती थीं कि इस रंग से उनकी पार्टी का कुछ भी लेना-देना हो. उन्हें अक्सर यह कहते सुना गया है कि संत जो भगवा पहनते हैं, वह त्याग और बलिदान का प्रतीक है और संघ परिवार के भगवा रंग के साथ इसका घालमेल नहीं करना चाहिए.
हले वाम दलों ने कहा था कि टीएमसी और भाजपा के झंडों के रंग एक सरीखे हैं और यह बात उन्होंने मोदी-दीदी के बीच गुप्त समझौते की अपनी मुहिम को लोगों के गले उतारने के लिए कही थी. अब भाजपा कह रही है कि वे राष्ट्र का और हिंदुओं का अपमान तथा मुसलमानों का तुष्टीकरण कर रही हैं. भाजपा के राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, ''इससे यही साबित होता है कि वे राष्ट्र और राष्ट्रीय झंडे का निरादर कर रही हैं.''
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