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अदालतों पर हमला

खतरनाक गैंगस्टर गुड्डू सिंह की बिहार में 8 सितंबर को विरोधी गैंग के सदस्यों ने गोली मार कर हत्या कर दी. गुड्डू सिंह पर हत्या, ट्रेन डकैती, अपहरण और फिरौती के 25 से ज्यादा मुकदमे चल रहे थे.

दहलीज पर अन्यायः बाढ़ के कोर्ट परिसर में गोलीबारी के बाद जमा भीड़ और गुड्डू का शव (इनसेट में)
दहलीज पर अन्यायः बाढ़ के कोर्ट परिसर में गोलीबारी के बाद जमा भीड़ और गुड्डू का शव (इनसेट में)
अपडेटेड 27 सितंबर , 2017

खतरनाक गैंगस्टर गुड्डू सिंह की बिहार में 8 सितंबर को विरोधी गैंग के सदस्यों ने गोली मार कर हत्या कर दी. गुड्डू सिंह पर हत्या, ट्रेन डकैती, अपहरण और फिरौती के 25 से ज्यादा मुकदमे चल रहे थे. उसे उस वक्त गोली मारी गई, जब वह पटना से 50 किलोमीटर दूर स्थित बाढ़ की एक अदालत में पेशी के बाद बंदी वाहन की ओर लौट रहा था.

अंधाधुंध गोलीबारी की घटना में दो अन्य कैदी भी घायल हो गए. इसके एक दिन बाद कोर्ट परिसर में तैनात 25 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए और उन्होंने जवाब में एक भी गोली नहीं चलाई. हमलावरों के भाग जाने के बाद ही पुलिसकर्मी वापस आए.

इस घटना के बाद फिर से बिहार में निचली अदालतों में सुरक्षा इंतजाम की कलई खुल गई है. हालांकि 2015 में आरा जिला अदालत में बम से हुए हमले के बाद सरकार ने सभी अदालत परिसरों को इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस से लैस करने का आदेश दिया था, इसके बावजूद बाढ़ की अदालत में अभी तक एक भी सीसीटीवी नहीं लगाया गया है.

अदालत परिसरों में बम हमलों या गोलीबारी की यह पहली घटना नहीं है. जुलाई 2013 में हाजीपुर की अदालत में प्रवेश कर रही कैदियों की एक वैन पर दो बम फेंके गए थे, जिसमें एक पुलिस कांस्टेबल घायल हो गया था. सितंबर 2014 में छपरा अदालत परिसर को दहला देने वाले एक बम विस्फोट में दो लोग घायल हो गए थे. वहीं पर अप्रैल 2016 में हुए एक और बम विस्फोट में तीन लोग घायल हो गए थे.

इस घटना में तो एक अपराधी की महिला सहयोगी तिहरे हत्याकांड के एक गवाह को निशाना बनाने के लिए खुद बम लेकर आई थी. पिछले साल 11 मार्च को सासाराम कोर्ट परिसर के बाहर हुए तीन विस्फोटों में पांच लोग घायल हो गए थे और मुजफ्फरपुर के अदालत परिसर में एक हत्या आरोपी को गोली मार दी गई थी. हद तो तब हो गई जब पिछले महीने समस्तीपुर में दीवानी अदालत के एक कर्मचारी जावेद अहमद को गोली मार दी गई.

अदालतों की सुरक्षा के मामले में एक जनहित याचिका (पीआइएल) पर संज्ञान लेते हुए पटना हाइकोर्ट ने बिहार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह को यह निर्देश दिया था कि वह इस मामले की समीक्षा करें और इसकी रिपोर्ट अदालत को दें.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की जेलों में बंद कैदियों को उस साल 2,56,376 बार अदालतों में पेशी के लिए ले जाना पड़ा. औसतन देखें तो इसका मतलब यह निकला कि हर कार्य दिवस पर कम से कम 821 बार कैदियों को अदालत परिसरों में ले जाना पड़ता है. साफ है कि सुरक्षा की स्थिति में सुधार की सख्त आवश्यकता है. इसके लिए पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मियों की तैनाती के अलावा न्यायालय परिसरों की दीवारों को दुरुस्त कराने तक के काम करने होंगे. साथ ही अनधिकृत व्यक्तियों का प्रवेश सख्ती से रोकना होगा.

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