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कावेरी जल विवाद की पूरी हकीकत

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के लिए कावेरी का पानी छोडऩे का आदेश क्या दिया, कर्नाटक जलने लगा.

कर्नाटक समर्थक प्रदर्शनकारी बेंगलुरू में हिंसक हो उठे
कर्नाटक समर्थक प्रदर्शनकारी बेंगलुरू में हिंसक हो उठे
अपडेटेड 20 सितंबर , 2016

कर्नाटक रक्षणा वेदिके के कार्यकर्ता रवि गौड़ा कहते हैं, ''कावेरी हमारे लिए देवी है...यह दक्षिण कर्नाटक की जीवनरेखा है. देवी के नाम पर तमिलनाडु में कन्नड़ लोगों पर हमले हम बर्दाश्त नहीं करेंगे." वे तमिलनाडु की नंबर प्लेट लगी गाडिय़ों में आगजनी भी जायज ठहराते हैं. कावेरी के पानी के बंटवारे का सवाल कर्नाटक में ऐसी ही भावनाएं भड़काता है और सियासी दल अपने फायदे के लिए वर्षों से इसका दोहन कर रहे हैं.

कर्नाटक जल विवादयह मुद्दा कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच एक-दूसरे को पटखनी देने का खेल बन गया है. इस साल भी ऐसा ही हुआ. दोनों राज्यों के लिए 2016 पानी की ''तंगी" का साल रहा है, क्योंकि कावेरी के जलग्रहण इलाके (कर्नाटक के कोडागु जिले) में बारिश का पानी औसत से 33 फीसदी कम हुआ. अगस्त, 2016 के खत्म होने तक कावेरी बेसिन में जमा पानी का कुल भंडारण स्तर (केआरएस, काबिनी, हारंगी और हेमावती बांधों में) 115 टीएमसी फुट था, जबकि सामान्य तौर पर औसतन 216 टीएमसी फुट होता है. कावेरी जल विवाद निपटारा पंचाट के फैसले के मुताबिक, जिस वर्ष सामान्य बारिश हो, कर्नाटक को 193 टीएमसी फीट पानी छोड़ देना चाहिए—10 टीएमसी फुट जून में, 34 टीएमसी फुट जुलाई में, 50 टीएमसी फुट अगस्त में, 40 टीएमसी फुट सितंबर में और 22 टीएमसी फुट अक्तूबर में. जब कर्नाटक ने जुलाई और अगस्त में जरूरी पानी नहीं छोड़ा, तब तमिलनाडु ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

कावेरी विवाद का इतिहासकोर्ट ने तमिलनाडु के हक में फैसला सुनाया (दूसरी बार) और कर्नाटक को 12,000 क्यूसेक पानी 20 सितंबर तक छोडऩे का निर्देश दिया. फिर क्या था, 12 सितंबर को राज्य में विरोध-प्रदर्शनों और हिंसा की बाढ़ आ गई. बेंगलुरू में पुलिस के साथ टकराव में दो लोग मारे गए और खबरों के मुताबिक, पूरे कर्नाटक में 150 से ज्यादा तमिलनाडु की गाडिय़ों में तोडफ़ोड़ और आगजनी की गई. तमिलभाषियों के कारोबारों को निशाना बनाया गया. मुख्यमंत्री सिद्धरामैया असावधान थे, जबकि उनके गृह मंत्री जी. परमेश्वरन कहते रहे कि ''हालात काबू में" हैं. शाम होते-होते बेंगलुरू के ज्यादातर हिस्से जल रहे थे. तब कहीं जाकर मुख्यमंत्री ने सुरक्षा हालात का जायजा लिया और 16 पुलिस थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.

एक दिन बाद सिद्धरामैया ने सावधानी बरती और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक तमिलनाडु को पानी देने के लिए राजी हो गए. उधर तमिलनाडु में सत्तारूढ़ एआइएडीएमके ने इसे अपनी नेता ''अम्मा" की एक और जीत करार दिया. उक्वमीद नहीं है कि तमिलनाडु सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संतुष्ट होगा. उसने पहले ही कावेरी सुपरवाइजरी कमेटी का दरवाजा खटखटाया है.

कावेरी से जुड़ी हिंसा का केंद्र मांड्या जिला रहा है. इसी जिले केमेलुकोटे के कर्नाटक राज्य रैयत संघ (किसानों की एक संस्था) की नुमाइंदगी करने वाले निर्दलीय विधायक के.एस. पुट्टनैया कहते हैं, ''पानी का यह विवाद अदालत में नहीं सुलझाया जा सकता. यह सार्थक बातचीत से ही हो सकता है. दोनों राज्यों के नेता अपने अहं को तिलांजलि दें और तंगी के वर्षों में पानी के बंटवारे का कोई फॉर्मूला निकालें." उनके जैसे किसान मौजूदा हालात के लिए कर्नाटक और तमिलनाडु के राजनेताओं को दोषी ठहराते हैं. इसलिए और भी कि पिछले नौ वर्षों से तंगी का कोई फॉर्मूला नहीं निकाला जा सका है. कावेरी पंचाट ने अपना आखिरी फैसला 5 फरवरी, 2007 को सुनाया था, तब से अब तक कोई सर्वानुमति नहीं हुई है कि मॉनसून खराब रहने पर पानी का बंटवारा कैसे किया जाएगा.

तंगी के इन वर्षों में वटल नागराज और कर्नाटक रक्षणा वेदिके के संस्थापक नारायण गौड़ा सरीखे कन्नड़ नेताओं को कन्नड़ भाषा और किसानों के अपने प्रिय मुद्दों पर खम ठोंकते हुए सामने आने का मौका मिल जाता है. नागराज दो टूक कहते हैं, ''जब कर्नाटक को पीने के पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं है तो हमें तमिलनाडु के साथ कावेरी के पानी का बंटवारा क्यों करना चाहिए. हम कावेरी के लिए लड़ेंगे...कावेरी कर्नाटक की है."

तंगी के वर्षों में दिक्कत इसलिए भी होती है क्योंकि पंचाट का आदेश इस बारे में पूरी तरह साफ नहीं है—''तंगी के साल में जब कावेरी बेसिन में पानी कम हो, तो केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पुदुच्चेरि के बीच आवंटित हिस्से उसी अनुपात में कम हो जाएंगे." यह कावेरी सुपरवाइजरी कमेटी के विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वह दोनों राज्यों की जमीनी हकीकत का आकलन करके तमिलनाडु के लिए छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा तय करे. अलबत्ता कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड कम बारिश वाले वर्षों में उपलब्ध पानी के बंटवारे को लेकर उसी किस्म के फॉर्मूले के आधार पर फैसला कर सकता था, जैसे देश के दूसरे नदी मैनेजमेंट बोर्डों ने अपनाए हैं. पर न तो कर्नाटक और न ही तमिलनाडु ने इस बोर्ड के गठन के लिए दबाव डालने की कोशिश की.

बेंगलुरू में कावेरी विवाद पर प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करती पुलिसकर्नाटक जरूर कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड के गठन की गुंजाइश महसूस करता है, पर दिक्कत यह है कि सभी राज्यों ने पंचाट के आखिरी फैसले को मान लिया है. सिद्धरामैया कहते हैं, ''हम सब चाहते हैं कि यह मुद्दा खत्म हो...पर राष्ट्रीय जल नीति कहां है? देश में ऐसी एक नीति होती तो हमें इतनी भीषण समस्या का सामना नहीं करना पड़ता." जानकार मानते हैं कि आगे बढऩे का अकेला रास्ता यह है कि तंगी के वर्षों में जमीनी हकीकतों का आकलन किया जाए. दोनों राज्यों ने पंचाट का आखिरी फैसला मंजूर नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट गए. कर्नाटक की अपील पर 18 अक्तूबर को सुनवाई होने वाली है. सिद्धरामैया कहते हैं, ''इसमें ढेरों मुद्दे शामिल हैं. हम दीर्घकालीन समाधान की उम्मीद कर रहे हैं. 18 अक्तूबर को हम कोर्ट में जमीनी हकीकत रखेंगे. जब तंगी के फॉर्मूले की परिभाषा ही तय नहीं है, तो इस मुद्दे को भला कैसे सुलझाया जा सकता है?"

पंचाट के फैसले से कोई भी राज्य संतुष्ट नहीं. पंचाट ने कावेरी बेसिन के कुल 740 टीएमसी फुट पानी में से 419 टीएमसी फुट तमिलनाडु को, 270 टीएमसी फुट कर्नाटक को, 30 टीएमसी फुट केरल को और 7 टीएमसी फुट पुदुच्चेरि को आवंटित किया है. बाकी 14 टीएमसी फुट पानी पर्यावरण सुरक्षा और समुद्र में जाने देने के लिए रखा गया है. अलबत्ता कर्नाटक ने 312 टीएमसी फुट पानी पर दावा किया है और वह देखना चाहेगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले को कैसे सुलझाता है.

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