scorecardresearch

इंडिया टुडे कॉनक्लेवः काम करने को तैयार सरकार

जब इंडिया टुडे कॉनक्लेव ने सार्वजनिक भाषण के जापानी तरीके पेचा कुचा से तआरुफ करवाया- जिसमें कुल 6 मिनट और 40 सेकंड तक 20-20 सेकंड की 20 स्लाइडें दिखाई जाती हैं-तो नरेंद्र मोदी सरकार के चार मंत्रियों ने साबित कर दिया कि वे नए विचारों और तरीकों के हिसाब से अपने को ढालने में काफी पारंगत हैं.

अपडेटेड 29 मार्च , 2016

अक्सर सियासतदां बात को संक्षेप में कहने के लिए नहीं जाने जाते. मगर हैरतअंगेज कारनामे करने में उन्हें महारत हासिल है. लिहाजा जब इंडिया टुडे कॉनक्लेव ने सार्वजनिक भाषण के जापानी तरीके पेचा कुचा से तआरुफ करवाया- जिसमें कुल 6 मिनट और 40 सेकंड तक 20-20 सेकंड की 20 स्लाइडें दिखाई जाती हैं-तो नरेंद्र मोदी सरकार के चार मंत्रियों ने साबित कर दिया कि वे नए विचारों और तरीकों के हिसाब से अपने को ढालने में काफी पारंगत हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव की दौड़ में प्रधानमंत्री मोदी ने अक्सर चार अहम क्षेत्रों में भारत को विकसित करने की अपनी परिकल्पना को सामने रखा था. ये चार क्षेत्र थे-रेलवे, सड़क-परिवहन, बिजली और राजकाज में आसानी. दो साल बाद इंडिया टुडे कॉनक्लेव-2016 इन चार अहम क्षेत्रों में उनके कामकाज को परखने का मौका थी. इसमें उनके चार साथी मंत्रियों- रेल मंत्री सुरेश प्रभु, सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, बिजली और कोयला राज्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री निर्मला सीतारमन-प्रेक्षकों पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे. कम से कम अपने पैने और धारदार पेचा कुचा प्रजेंटेशन से तो वे ऐसा कर ही सके.

आधे घंटे के तेज रफ्तार स्लाइड शो के दो खास थीम थे-योजनाओं को अंजाम देने पर लगातार ध्यान और मोदी की निगरानी तथा और ज्यादा हासिल करने पर जोर. अलबत्ता उन्हें बहुत अच्छी तरह से पता था कि काम को पूरा करने की रफ्तार को लेकर सवाल उठाए जाएंगे, इसलिए उन्होंने यूपीए की विरासत का बहाना मुस्तैदी से तैयार रखा था.

जहां गडकरी ने दावा किया कि उन्हें 403 देरी से चल रही और 730 ठप पड़ी हुई योजनाएं विरासत में मिली हैं, तो गोयल को इस बात का रंज था कि जब उन्होंने काम संभाला तब 18,452 गांवों के 33 करोड़ लोग बगैर बिजली के अंधेरे में रह रहे थे. लेकिन अगर इन मंत्रियों की मानें, तो न तो वे इतनी भारी-भरकम चुनौतियों से भयभीत होने वाले हैं और न ही इन आरोपों की वजह से अपना ध्यान भटकने देंगे कि एनडीए सरकार में पीएमओ की अधिनायकवादी हुकूमत चलती है. सरकार के काम करने के तरीके की एक विरली अंदरूनी झलक देते हुए सड़क-परिवहन मंत्री गडकरी और बिजली-कोयला राज्यमंत्री गोयल ने खुलासा किया कि विरोध और असहमतियां कैबिनेट की बैठकों की दो स्थायी खासियतें हैं, मगर फैसले हमेशा सबकी रजामंदी से देश के हित में लिए जाते हैं.

अपनी प्रस्तुतियों के दौरान मंत्रियों ने बताया कि सबसे ज्यादा झिड़कियां गोयल को सुननी पड़ती हैं और तथ्यों और आंकड़ों की जोरदार झड़ी लगाते हुए गडकरी सबसे ज्यादा बोलते हैं, वहीं प्रधानमंत्री नए-नए विचारों पर बहस और चर्चा को लेकर बेहद सहिष्णु हैं, मगर नाकारापन को लेकर वे रत्ती भर भी सहिष्णु नहीं हैं और समय सीमा के भीतर नतीजे चाहते हैं.

समयबद्ध नतीजों पर इतना जोर दिए जाने की वजह से वे नए-नए तरीकों और विचारों को परखने और परिपाटियों से हटकर काम करने के लिए मजबूर हुए हैं. रेल मंत्री प्रभु को साल में 7 अरब यात्रियों को ढोने वाली रेलों में विज्ञापन से राजस्व कमाने की जबरदस्त संभावना नजर आती है; गडकरी नागपुर में जैव ईंधन की कामयाबी को देश भर के 1 लाख शहरों में दोहराने के मंसूबे बना रहे हैं; गोयल धन जुटाने के लिए गैर-पारंपरिक स्रोतों को टटोलने में बतौर निवेश बैंकर अपनी विशेषज्ञता का इस्तेमाल करना चाहते हैं, वहीं निर्मला सीतारमन ने स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने के लिए देश भर में 70 इन्क्यूबेशन सेंटर खोलने का वादा किया. और अपने-अपने मिशन को पूरा करने के लिए वे लाल फीते के जाल में उलझना नहीं चाहते. इसलिए रेलवे बजट में बिजली मंत्रालय की भागीदारी का फैसला प्रभु और गोयल महज टेलीफोन पर हुई एक बातचीत में ही ले लेते हैं.

संदेश साफ और दो-टूक है-जो बीड़ा उठाया है वह तो अहम है ही, मगर उसे रफ्तार के साथ पूरा करना भी उतना ही अहम है. ठीक वैसे ही जैसे उनकी पेचा कुचा स्लाइडें थीं.

Advertisement
Advertisement