बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह घुमा-फिराकर बात कहने में यकीन नहीं करते. उनके लिए तो राष्ट्रवाद की अवधारणा साफ है और किसी के लिए भी अपनी राष्ट्रवादी साख को साबित करने के लिए “भारत माता की जय” का नारा लगाना जरूरी है. और इस नारे को जय हिंद या हिंदुस्तान जिंदाबाद की बराबरी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि वे कहते हैं, “बहुत अंतर है.” अगर भारत की आबादी का एक छोटा हिस्सा “भारत माता की जय” का नारा लगाना नहीं चाहती, तो “उन्हें सही बात का एहसास कराने” की जिम्मेदारी वे खुद अपने कंधों पर लेते हैं. इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2016 में शाह ने कहा, “मैं मानता हूं कि उस नारे को लेकर बहस का कोई मतलब नहीं है, लेकिन मुझे जरूर बताना चाहिए कि यह नारा बीजेपी या यहां तक कि आरएसएस से भी पुराना है. यह दुर्भाग्य की बात है कि स्वतंत्रता के इतने साल बाद भी हम राष्ट्रवादी नारे पर बहस कर रहे हैं.”
उनके पास इसकी भी साफ परिभाषा है कि राष्ट्र-विरोध क्या है. वे उन नारों की तह में नहीं जाना चाहते जो 9 फरवरी को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में 13 दिसंबर 2001 के संसद पर हुए हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी पर लटकाए जाने की तीसरी सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान लगाए गए थे. अमित शाह ने कहा, “9 फरवरी को क्या हुआ था? क्या यह स्वतंत्रता दिवस था? क्या यह गणतंत्र दिवस था? वह आयोजन एक सजा पाए आदमी का गुणगान करने के लिए आयोजित किया गया था, जो संसद पर हमले का सूत्रधार था, जो कि एक राष्ट्र-विरोधी काम था.”
उन्होंने छात्रों को समर्थन देने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के जेएनयू जाने की भी आलोचना की. उन्होंने कहा, “मैं यह नहीं कह रहा हूं कि राहुल ने जेएनयू जाकर कोई गलती की. लेकिन उन्होंने कहा कि उनकी आवाज को दबाया जा रहा है और वे उनके साथ हैं. ऐसा कहकर वे राष्ट्र-विरोधी तत्वों का समर्थन कर रहे थे.” उन्होंने अपनी पार्टी को इस आरोप से अलगाने की कोशिश की कि वह जेएनयू की नकारात्मक छवि बनाने के लिए जिम्मेदार है. उन्होंने कहा, “अगर जेएनयू की छवि को धक्का लगा है, तो उन्हें खुद अपने भीतर झांकना चाहिए. सरकार या बीजेपी का इसमें कोई हाथ नहीं है. वह आयोजन हमने नहीं किया था.”
बीजेपी अध्यक्ष का मानना है कि राजनैतिक दलों को छात्रों के बीच होने वाले टकरावों को बहुत ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए, जो यूनिवर्सिटी कैंपस में घटते हैं. उन्होंने कहा, “रोहित वेमुला की आत्महत्या बहुत दुर्भाग्यपूर्ण थी. लेकिन उन दूसरे नौ छात्रों की आत्महत्याएं भी उतनी ही दुर्भाग्यपूर्ण थीं जो उसी यूनिवर्सिटी में यूपीए के शासनकाल के दौरान हुई थीं. तब तो किसी ने जरा भी हो-हल्ला नहीं मचाया.”
आरक्षण के विवादास्पद मुद्दे पर बीजेपी अध्यक्ष का नजरिया दो-टूक और एकदम स्पष्ट था. उन्होंने कहा कि बीजेपी एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण के हक में है. साथ ही वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए अल्पसंख्यक दर्जे के हक में नहीं हैं, “क्योंकि देश का कानून अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करने की इजाजत नहीं देता.” उन्होंने कहा, “इस यूनिवर्सिटी को दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण देना ही चाहिए.”
बीजेपी अध्यक्ष राष्ट्रहित के खिलाफ किसी भी काम के प्रति कतई सहिष्णु नहीं हैं, लेकिन वे इस आरोप से इनकार करते हैं कि केंद्र की बीजेपी सरकार आलोचना के प्रति असहिष्णु है. वे कहते हैं, “हममें प्रधानमंत्री के खिलाफ, हमारे नेताओं के खिलाफ या सरकार के खिलाफ आलोचना को स्वीकार करने की सहनशीलता है. लेकिन हम देश की आलोचना सहन नहीं करेंगे.”और उनके पास अपनी सहिष्णुता का सबूत भी है. वे कहते हैं, “मेरे कितने सारे कार्टून बनाए गए हैं. मैं उन सभी को अपनी बेवसाइट पर अपलोड करता हूं.”
जब उन्हें बीजेपी के इस चुनावी वादे की याद दिलाई जाती है कि वह भ्रष्टाचार-मुक्त सरकार देगी, तो शाह पलटकर 2019 तक साफ-सुथरी सरकार देने की गारंटी देते हैं. अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर भी वे आशान्वित हैं, जिसका बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में वादा किया था.
लेकिन देश में काला धन वापस लाने के दूसरे बड़े वादे को लेकर उन्होंने धीरज रखने और अधिक वक्त देने की गुजारिश की. उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार की एकदम पहली ही कैबिनेट बैठक में काले धन के मुद्दे की जांच के लिए एक एसआइटी बना दी गई, विदेशों से हासिल हुई सारी जानकारी उस एसआइटी को सौंप दी गई और वित्तीय अनियमितताओं के लिए जेल भेज देने का कानून भी बीजेपी ने बनाया.
अमित शाहः हम अहंकारी नहीं, आत्मविश्वास से भरे हैं
बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह घुमा-फिराकर बात कहने में यकीन नहीं करते. उनके लिए तो राष्ट्रवाद की अवधारणा साफ है और किसी के लिए भी अपनी राष्ट्रवादी साख को साबित करने के लिए “भारत माता की जय” का नारा लगाना जरूरी है.

अपडेटेड 29 मार्च , 2016
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