बात 1973 की है. दिल्ली के मायापुरी इलाके में एक प्रिंटिंग प्रेस के दफ्तर को उसके हड़ताली कर्मियों ने आग लगा दी. प्रेस को भारी नुक्सान हुआ और उसकी बच्चों की किताबों के अंग्रेजी-हिंदी के सभी 450 टाइटल जल गए. अब संकट था कि क्या छापें? सो प्रेस के मालिक ए.पी. बजाज ने फैसला किया कि अपने लोटपोट कॉमिक्स मासिक को साप्ताहिक कर दिया जाए. इसके कार्टून कैरेक्टर मोटू-पतलू इसे घर-घर में लोकप्रिय बना चुके थे. इसके चीफ एडिटर-प्रिंटर-पब्लिशर पी.के. बजाज बताते हैं, “मेरे पिताजी (ए.पी. बजाज) को अंग्रेजी फिल्मों का शौक था. जब बात निकली कार्टून कैरेक्टर बनाने की तो उन्होंने 1969 में लॉरेल और हार्डी से प्रेरणा पाकर मोटू-पतलू नाम सुझाए और
उसी तर्ज पर कार्टून बनाने को कहा.”
इस कार्टून कैरेक्टर को 47 साल हो चुके हैं लेकिन लोकप्रियता आज भी बरकरार है. अब ये पात्र पत्रिका से निकलकर एनिमेशन की बदौलत टीवी स्क्रीन पर पदार्पण कर चुके हैं. मोटू का समोसा प्रेम आज भी उतना ही फेमस है और डॉक्टर झटका का आरी और हथौड़ी से इलाज करने का विरल तरीका बखूबी गुदगुदाने का काम करता है. फिर इंस्पेक्टर चुइंगम का मस्त स्टाइल भी दर्शकों को लुभाता है. शायद यही वजह है कि ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल ऑफ इंडिया (बार्क) की 13 से 19 फरवरी की रेटिंग में चैनलों की दौड़ में निक ने बाजी मारी और सबसे ज्यादा देखे जाने वाले शो में मोटू-पतलू नंबर वन पर रहा जबकि पोगो टीवी का छोटा भीम भी टॉप फाइव शो में जगह बनाने में कामयाब रहा.
यह भारतीय एनिमेशन इंडस्ट्री का नया अवतार है, जिसमें रंग-बिरंगे कार्टून कैरेक्टर गढ़े जा रहे हैं, जो गांव, कस्बे और छोटे शहरों के रहने वाले हैं. फिर वह चाहे प्यारा-सा ढोलकपुर हो या उलटबांसियों जैसा फुरफुरी नगर. ये लड्डू और समोसों जैसी विशुद्ध देसी चीजों के शौकीन हैं और खेल-खेल में करिश्मे कर जाते हैं, शायद यही इनकी लोकप्रियता का राज है. डिज्नी के वीपी और कंटेंट ऐंड कम्युनिकेशन प्रमुख विजय सुब्रह्मण्यम कहते हैं, “पांच साल पहले टीवी पर लोकल कंटेंट सिर्फ 5 फीसदी था जो अब बढ़कर 30 फीसदी से ज्यादा हो गया है.”
वैसे भारतीय कार्टून बाजार की तकदीर बदलने को पी.के. बजाज की कहानी से जोड़कर देखा जा सकता है. जब कॉमिक्स बाजार पर गाज गिरने लगी तो उन्होंने 1990 के दशक में एबीसी एनिमेशन बनाकर मोटू-पतलू की एनिमेटेड सीरीज बनाई. इक्कीसवीं सदी में प्रोग्राम बनाने वालों ने पाया कि बच्चों ने कॉमिक्स को छोड़ टीवी देखना शुरू कर दिया है, जिसकी वजह से विदेशी कार्टून चैनलों की बाढ़-सी आ गई. बजाज परिवार ने किसी तरह लोटपोट को चलाए रखा. इस बीच 2012 में उनके बेटे अमन बजाज की केतन मेहता से मुलाकात हुई. दोनों किसी फिल्म को लेकर बात कर रहे थे तो अमन ने मोटू-पतलू का जिक्र किया. केतन को आइडिया जमा तो वे वायकॉम-18 के कार्टून चैनल निकलोडियन (निक) के पास इन कार्टून कैरेक्टर्स के साथ पहुंचे.
अब सवाल पैदा हुआ कि बड़ी उम्र के ये कैरेक्टर्स बच्चों का दिल कैसे जीतेंगे? अमन ने बताया कि बेशक कैरेक्टर बड़ी उम्र के हैं लेकिन उनकी हरकतें बच्चों को गुदगुदाने वाली हैं. इस तरह केतन के माया डिजिटल स्टूडियो ने इसको बनाया. बजाज बताते हैं, “हमारे पास शेखचिल्ली, और चेलाराम जैसे कई कैरेक्टर हैं, हमारी योजना इन्हें भी एनिमेशिन में लाने की है.” डिज्नी चैनल भी गज्जू भाई नाम से अप्रैल में एक और देसी कैरेक्टर लेकर आ रहा है.
दुनियाभर में कार्टून प्रेम काफी पुराना है. अमेरिका में 1928 में कार्टून कैरेक्टर्स के पितामह वॉल्ट डिज्नी ने मिकी माउस को जन्म दिया. फिर 1940 में विलियम हना और जोसफ बरबरा ने टॉम ऐंड जेरी को रचा. जापान में 1969 में डोरेमॉन बना और 1973 में यह टीवी सीरीज बना. हालांकि भारत में इस तरह की किसी पहल में काफी समय लगा. 1974 में एक अनेक और एकता नाम से सात मिनट की पहली भारतीय एनिमेशन फिल्म बनी जबकि पहली भारतीय एनिमेटेड टीवी सीरीज गायब आया 1986 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था.
1990 के दशक तक दूरदर्शन ही मनोरंजन का प्रमुख जरिया हुआ करता था और इसी पर विदेशी भाषाओं के कार्टूनों को हिंदी में अनूदित करके दिखाया जाता था और उस समय के यादगार शो में डक टेल्स और जंगल बुक प्रमुख थे. इसके बाद भी लंबे अरसे तक भारतीय कार्टून प्रेमियों को विदेशी कार्टून देसी तड़के के साथ परोसे जाते रहे. यह सिलसिला आज भी जारी है, लेकिन भारतीय प्रतिनिधित्व तेजी से बढ़ रहा है.
देसी पात्रों की लोकप्रियता के मद्देनजर कार्टून इंडस्ट्री से जुड़े भारतीयों के हौसले बुलंद हैं. बजाज को जहां अपने कार्टून कैरेक्टर्स के लिए ठीक-ठाक रॉयल्टी मिल रही है, वहीं ग्रीन गोल्ड एनिमेशन के कार्टून कैरेक्टर छोटा भीम के स्क्रीन से लेकर बाजार तक जलवे हैं. इसकी शुरुआत 2008 में 13 एपिसोड के लिए हुई थी लेकिन यह अभी तक चल रहा है, और टीआरपी में जगह बनाए हुए है. इस कैरेक्टर को लेकर ग्रीन गोल्ड एनिमेशन कई फिल्में बना चुका है.
फिक्की-केपीएमजी इंडियन मीडिया ऐंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट-2015 के मुताबिक, पिछले कुछ साल में बच्चों के चैनल की व्यूअरशिप का आंकड़ा हौसले बढ़ाने वाला है. 2012 में इनकी व्यूअरशिप 6.7 फीसदी थी जो 2014 में 7.3 फीसदी पर पहुंच गई. ग्रीन गोल्ड एनिमेशन छोटा भीम के अलावा भी माइटी राजू, कृष्णा और लव-कुश जैसे कार्टून बना चुकी है. डिज्नी चैनल पर अर्जुन द वॉरियर प्रिंस का दूसरा सीजन शुरू हो रहा है. ग्रीन गोल्ड के सीईओ राजीव चिलाका ने हाल ही में कहा था, “पिछले कुछ साल में हमने टेलीविजन शो की संख्या में जबरदस्त उछाल देखा है. इससे सिद्ध होता है कि भारत में एनिमेटेड प्रोग्राक्वस को लेकर काफी संभावनाएं हैं.”
चैनल इस बुनियादी बात से वाकिफ हैं कि हर इनसान अपनी भाषा में मनोरंजन चाहता है. सुब्रह्मण्यम कहते हैं, “किस प्रोग्राम को किस भाषा में देखना है, इसका अधिकार दर्शकों के हाथ में होना चाहिए.” इसी को कार्टून चैनलों ने भुनाया है. अधिकतर शो हिंदी, तमिल, तेलुगु और इंग्लिश में हैं. यही वजह है कि डबिंग का कारोबार फल-फूल रहा है.
निंजा हतोड़ी, नॉडी और इसी तरह के ढेरों लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर्स को अपनी आवाज देने वाली मेघना एरंडे बताती हैं कि उन्होंने आठ साल की उम्र से ही बिंग शुरू कर दी थी. वे बताती हैं, “मेरी टीचर ने देखा कि एक विज्ञापन के सभी चार कैरेक्टर्स की आवाज मैं खुद निकाल लेती हूं तो इस तरह मेरा सफर शुरू हुआ.” मेघना मानती हैं कि उनकी कोशिश हमेशा कुछ नया करने की रहती है तभी तो निंजा हतोड़ी के आखिर में आने वाला वाला मैसेज उन्हीं के दिमाग की उपज है. इसीलिए वे 5,000 से ज्यादा डबिंग आर्टिस्ट वाली मुंबई में अपनी पहचान कायम किए हुए हैं.
भारतीय कार्टूनों की लोकप्रियता की वजह से ही अब इनकी मर्चेंडाइजिंग को लेकर भी क्रेज दिख रहा है. किड्स मर्चेंडाइजिंग के लिहाज से ऑरमैक्स-स्मॉल वंडर रिपोर्ट, नवंबर 2014 के मुताबिक, छोटा भीम, बेन-10, मोटू, डोरेमॉन और निंजा हतोड़ी हिट हैं. इनमें सबसे ज्यादा बिकने वाला उत्पाद स्कूल बैग ही है. एक समय इस बाजार पर सिर्फ विदेशी कार्टून का ही कब्जा था. विशेषज्ञ बताते हैं कि देश में टीवी चैनलों ने अपने कैरेक्टर्स को लेकर बड़ा फैन बेस भी तैयार कर लिया है, जिसका असर बढ़ते बाजार के रूप में नजर आ रहा है. आने वाले दिनों में भारतीय बाजार और दर्शक, दोनों के लिए एनिमेशन के पिटारे में काफी कुछ मिलेगा.
लोकप्रिय भारतीय और विदेशी कार्टून
ये ऐसे कार्टून हैं जिनका जादू बच्चों के सिर चढ़कर बोल रहा है
अर्जुनः द प्रिंस ऑफ बाली घुड़सवारी से लेकर शिकार और कोई भी हथियार चलाने में माहिर राजकुमार. ऐक्शन और कॉमेडी का मिश्रण.
छोटा भीम 2008 में इसने सबसे पहले पोगो टीवी पर दस्तक दी थी. इसकी दोस्तों की टोली ने ऐसा रंग जमाया कि यह टॉप शो की लिस्ट से हटा ही नहीं है.
मोटू-पतलू इन दो हुड़दंगियों को सबसे पहले 1969 में ए.पी. बजाज ने लोटपोट मैग्जीन में छापा. अब एनिमेशन सीरीज के तौर पर हिट हैं.
डोरेमॉन जापानी कार्टून 1973 में टीवी सीरीज बना और भारतीय टीवी पर हरदिल अजीज है.
बेन10 दस साल के बच्चे की एलियन बुलाने वाली घड़ी कौतूहल का विषय बनी हुई है.
निंजा हतोड़ी उसका डिंग डिंग बोलना और नोबिता की मदद करना, हर बच्चे का सपना है हतोड़ी जैसा दोस्त.
टॉम ऐंड जेरी बिल्ले और चूहे की दुश्मनी के किस्से खत्म होने का नाम ही नहीं लेते और बच्चों को अपने मोह में फंसाए रहते हैं.
टेलीविजनः देसी कार्टूनों का दबदबा
विदेशी कार्टून कैरेक्टरों पर भारी पड़ने लगे हैं भारतीय कैरेक्टर. मोटू-पतलू की वजह से निक बना नंबर वन तो छोटा भीम बन गया है कार्टून बाजार का सबसे बड़ा भारतीय ब्रांड.

अपडेटेड 8 मार्च , 2016
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