scorecardresearch

ओडिशाः जुएल के दांव से मची खलबली

घोटालों को लेकर पटनायक सरकार कठघरे में है, एेसे में राज्‍य सरकार के साथ बीजेपी के नेताओं की गलबहियों से पार्टी को राज्यसभा में तो फौरी लाभ मिल सकता है पर सांगठनिक तौर पर यह महंगा पड़ सकता है.

अपडेटेड 25 जनवरी , 2016

अरबों रुपए के चिटफंड और खनन घोटाला मामले में सीबीआइ की जांच के धीमी होने की बात कहकर बीजेपी नेता तथा केंद्रीय जनजाति कल्याण मंत्री जुएल उरांव ने खलबली मचा दी है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने थोड़ी ढील दे दी है इसलिए ओडिशा में नवीन पटनायक की सरकार सत्ता में बरकरार है. दरअसल, दोनों घोटालों को लेकर पटनायक सरकार कठघरे में है. ऐसे में बीजेपी के कुछ नेताओं और बीजू जनता दल (बीजद) की गलबहियों पर सवाल उठा उरांव ने सियासी पारा चढ़ा दिया है. दबाव पडऩे पर वे थोड़े नरम भी पड़े, पर उन्होंने कहा, ''मैं बयान से पलट नहीं रहा हूं, पर लोग ऐसा कह रहे हैं.''

बीजद सरकार की ओर से बीजेपी के केंद्रीय नेताओं की बढ़-चढ़कर आवभगत से बीजेपी कार्यकर्ता भी थोड़ा चिढ़े हुए हैं. यही नहीं, केंद्रीय मंत्री आए दिन पटनायक सरकार को बेस्ट सरकार बताकर चले जाते हैं. केंद्र सरकार में पेट्रोलियम मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेंद्र प्रधान तो बाकायदा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ मंच साझा करते हैं और उद्घाटनों में जाते हैं.

बीजेपी के कुछ स्थानीय नेता दबी जबान से यह कहने से नहीं चूकते कि चिटफंड और खान घोटालों की सीबीआइ जांच के लिए बीजेपी की ओडिशा शाखा ने जिन संदिग्ध नेताओं की सूची प्रधानमंत्री को सौंपनी चाही थी, उसे प्रधान ने यह कहकर ले लिया था कि वे दे देंगे. इस सूची में बीजद सरकार के दो मंत्रियों और विधायकों के भी नाम थे. ऐसे में लग रहा है ओडिशा बीजेपी बीजद की बी टीम की तरह काम कर रही है.

वहीं उरांव के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए बीजद के प्रवक्ता प्रताप देब ने उन्हें सिरफिरा तक कह डाला. कांग्रेस ने भी इस पर भुवनेश्वर से लेकर दिल्ली तक सियासत की. विपक्ष के नेता नृसिंह मिश्र ने कहा, ''बीजेपी और बीजद के बीच जिस गठबंधन की बात कही जा रही थी, उसका पर्दाफाश हो गया.''

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रसाद हरिचंदन तो सीधे दिल्ली पहुंचे और जयराम रमेश के साथ पत्रकार वार्ता करके केंद्र सरकार और ओडिशा सरकार पर 50,000 करोड़ रु. का चिटफंड घोटाला और 3,00,000 करोड़ रु. का खनन घोटाला करने का आरोप मढ़ दिया. उन्होंने कहा कि पटनायक और नरेंद्र मोदी के बीच मार्च में दिल्ली में गोपनीय बैठक हुई थी, सीबीआइ जांच में ढील उसका ही नतीजा है.

असल में उरांव का यह बयान गलत वक्त पर आया है. केंद्र सरकार को राज्यसभा में जीएसटी समेत अन्य विधेयकों को पास कराने के लिए क्षेत्रीय दलों की मदद की दरकार है. खुद प्रधानमंत्री भी राउरकेला की सभा में पटनायक की पीठ थपथपा गए थे.

बीजेपी के इस रुख का फौरी लाभ तो राज्यसभा में मिल सकता है पर यह उसकी सांगठनिक मजबूती के लिए महंगा पड़ सकता है. स्थानीय बीजेपी चुनावी दौर से गुजर रही है और कई खेमों में बंटी है. सो संगठन में संतुलन बैठाने का जिम्मा ओडिशा के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह को दिया गया है. पर वे भी एक खेमे में बैठे नजर आ रहे हैं.

जिलों और मंडलों में चुनावी प्रक्रिया लगभग खत्म हो चुकी है. प्रदेश स्तर पर संगठन का काम देख रहे सौदान सिंह तक हक्का-बक्का हैं. बूथ से लेकर मंडल स्तर तक प्रतिनिधि आएं या न आएं, चुनावी प्रक्रिया पूरी करने के साथ कई वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी की जा रही है. प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल लोग अपने आकाओं का दामन थामे मौके के इंतजार में हैं. प्रधान, उरांव, केवी सिंहदेव, विजय महापात्र, सुरेश पुजारी अपने चहेतों के लिए दौड़-भाग में लगे हैं. उरांव कहते हैं, ''कार्यकर्ताओं में जोश भरने का यही वक्त है. पर या तो दोस्ती पक्की कर लो या संगठन मजबूत कर लो.''

Advertisement
Advertisement