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अब सिक्स पैक पौराणिक कथा

नए अंदाज में टीवी पर धार्मिक धारावाहिकों की दस्तक. अंदाज से लेकर अंदाजे-बयां तक सब बदला. चैनल धार्मिक ग्रंथों के ऐसे पहलुओं को छांटकर पेश कर रहे हैं जो या तो अछूते रहे हैं या फिर जिन्हें पहले कभी तवज्जो नहीं मिली है.

अपडेटेड 22 जनवरी , 2016

आजकल टीवी पर आ रहे एक धार्मिक सीरियल का एक दृश्य कुछ इस तरह हैः सीता पहाड़ियों पर सैर करने के लिए जाती हैं और वहां उन्हें राम मिल जाते हैं. सीता वहां राम को परखती हैं. वे उनसे सवाल पूछती हैं कि वे भी अन्य राजाओं की तरह बहुविवाह में यकीन करते हैं या एक औरत में. राम कहते हैं कि वे बहुविवाह प्रथा को खत्म करना चाहते हैं. इस तरह वे सीता के दिल को पूरी तरह जीत लेते हैं.

संभवतः अभी तक टेलीविजन पर दिखाई गई पारंपरिक सीता से यह सीता जुदा है. यह सीता राम से जुड़े अपने संदेहों को दूर कर रही है, और उन्हें लेकर अपनी राय को और पुख्ता करने की कोशिश में जुटी है. बिल्कुल उसी तरह जैसे आज के दौर की लड़कियां अपने जीवनसाथी के बारे में सब कुछ जानना चाहती हैं और उसकी संगिनी बनने से पहले हर बात ठोक-बजा लेती हैं.

यह टेलीविजन पर धार्मिक धारावाहिकों के नए दौर की दस्तक है. इसमें पौराणिक ग्रंथों से पात्रों को उठाया जा रहा है, और पूरी कहानी को उन्हीं के नजरिए से पेश किया जा रहा है. इन कहानियों को समकालीन परिदृश्य में सेट करने की भरपूर कोशिश नजर आती है.

स्टार प्लस के सीरियल सिया के राम के स्टोरी कंसल्टेंट लेखक आनंद नीलकंठन (असुरः पराजितों की गाथा के लेखक) कहते हैं, ''रामायण की कहानी पहले भी कई बार कही गई है लेकिन सीता के नजरिए से इसे कभी पेश नहीं किया गया. सीता हिंदू माइथोलॉजी की सबसे मजबूत महिला हैं. द्रौपदी से भी मजबूत. वे हजारों साल से भारतीय महिलाओं की रोल मॉडल रही हैं.'' सीता का बहुविवाह प्रथा पर सवाल उठाना इस बात को काफी हद तक सिद्ध कर देता है कि धार्मिक धारावाहिकों का चेहरा बदल गया है.

ऐसा नहीं है कि यह कहानी महज आधुनिक रूप देने के लिए गढ़ी गई है. बल्कि इसे अलग-अलग भाषाओं में लिखी गई रामायण के प्रसंगों से लिया गया है. भवभूति के मार्मिक संस्कृत नाटक उत्तर रामचरित भी इसका स्रोत है. नीलकंठन बताते हैं, ''इसमें राम और सीता की महान प्रेम कहानी को दिखाया गया है. रामायण पर आधारित धारावाहिक अक्सर तुलसीदास के रामचरितमानस को केंद्र में रखकर रचे गए हैं.''

पुरानी कहानियां, नया रंग
बदलते दौर की धमक चैनलों पर साफ सुनाई दे रही है. तभी तो वे धार्मिक ग्रंथों के ऐसे पहलुओं को छांटकर पेश कर रहे हैं जो या तो अछूते रहे हैं या फिर जिन पर अच्छे-से तवज्जो नहीं दी जा सकी है. सोनी चैनल पर आ रहे संकटमोचन महाबली हनुमान और सूर्यपुत्र कर्ण इसकी मिसाल हैं, जिनमें बजरंगबली के बाल्यकाल से कहानी शुरू होती है और उसी एंगल से रामायण आती है.

ऐंड टीवी पर शुरू हुए संतोषी मां की टैगलाइन ही यह है कि संतोष के पाठ पढ़ाने आ रही हैं संतोषी मां. इसमें संतोषी नाम की लड़की की कहानी है जो संतोषी मां की भक्त है और हर मुश्किल घड़ी में उन्हीं की वजह से संकट से बाहर आती है. एपिक चैनल पर आ रहा देवलोक विद देवदत्त पटनायक धर्म और उससे जुड़े रहस्यों के बारे में जानने का एकदम अनोखा शो है, जिसमें मिथक=मिथ्या तथा शिखंडी जैसी किताबें लिखने वाले लेखक देवदत्त कई तरह के सवालों के जवाब देते हैं. उधर, सहारा वन पर बेहुला शिव पुराण और मानसमंगल से ली गई एक निर्भीक औरत की कहानी है जो अपने भाग्य को ही चुनौती देती है. इसमें बेहुला और लखिंदर की प्रेम कहानी दिखाई गई है.

इन कहानियों में कहीं नई पीढ़ी को पुराने संस्कारों से जोडऩे की कवायद है तो कहीं पौराणिक चरित्रों को नए खाके में फिट करके दिखाने की कोशिश. ट्राइलॉजिक डिजिटल मीडिया लिमिटेड (सहारा वन) की सीओओ शिवानी जयसिंह कहती हैं, ''आस्था और भक्ति को ऐसे खाके में रखकर पेश किया जा रहा है जिससे ये आसानी से समझ आ सकें. पौराणिक किस्सागोई की यही नई शैली है.''

आज की भाषा, अनोखा अंदाज
रावण को विश्व साहित्य में करिश्माई खलनायक माना जाता है. अगर राम दिखाते हैं कि हमें कैसे जीना चाहिए, वहीं रावण से यह पता चलता है कि हम कैसे जीते हैं. एक के बगैर दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है. यही अच्छाई और बुराई को ही साधारण और सीधे शब्दों में पेश किया जा रहा है. सिया के राम के डायलॉग राइटर सुब्रत सिन्हा के मुताबिक, भाषा को सहज रखना ही उनकी प्राथमिकता रहती है. लाइफ ओके का महादेव सीरियल लिख चुके सुब्रत कहते हैं, ''हिंदू पौराणिक कथाओं की वजह से हमें हिंदी का इस्तेमाल करना होता है, ऐसी हिंदी जो आसानी से हर किसी की समझ में आ सके. हिंदुस्तानी से बचना होता है.'' कई बार तो विदेशज शब्द आ जाने पर दर्शकों की गुस्से भरी प्रतिक्रिया भी आ जाती है.

संतोषी मां के लेखक भूषण बताते हैं, ''हमने कहानी को आज की समस्या, रहन-सहन और आज के दबाव के साथ जोड़कर रखा है. देवलोक में देवी-देवता आपस में कैसे बातें करते हैं और इन्सानों के बारे में क्या सोचते हैं, इस पक्ष को भी इसमें डाला गया है.'' यही नहीं, सिया के राम में राम के दौड़ते घोड़े पर खड़े होकर तीर चलाने के अलावा भी कई हैरतअंगेज ऐक्शन देखने को मिलते हैं. कैरेक्टर्स के मामले में भी प्रयोग हो रहे हैं. जैसे सिया केराम में रावण के लिए कन्नड़ स्टार कार्तिक जयराम को चुना गया जबकि ताड़का का रोल कश्मीरा शाह ने किया. उधर, कर्ण का किरदार निभा रहे गौतम रोड की सिक्स पैक बॉडी भी कम आकर्षित नहीं करती.

दिग्गज लेखकों का नया ठिकाना
पटनायक और नीलकंठन जैसे नामी लेखकों ने टीवी का रुख किया है. देवदत्त जहां सवालों के जवाब देते हैं तो नीलकंठन सिया के राम में सलाहकार हैं. किताब और सीरियल के बारे में पूछने पर नीलकंठन कहते हैं, ''टीवी टी20 मैच की तरह है जहां हर मिनट अहम होता है. उपन्यास टेस्ट मैच की तरह, जहां हर शब्द महत्वपूर्ण होता है. एक चौके-छक्के लगाने से जुड़ा है तो उपन्यास शैली और फुटवर्क से जुड़ा है.'' तभी तो हिट सीरियल प्रतिज्ञा और अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो के लेखक श्याम कृष्ण अब संतोषी मां से पौराणिक कथाओं में हाथ आजमा रहे हैं.

यह पौराणिक कथाओं में नए प्रयोगों का दौर है, जो दर्शकों को पसंद आ रहा है और उन्हें अनोखे किस्सों से भाव-विभोर कर रहा है.

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