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सुर्खियों के सरताज 2015: आरती से नहीं दबा गंगा का आर्तनाद

गंगा के नाम पर भावुक बयानबाजी और कर्मकांड के बावजूद यह पता नहीं चल रहा कि 2015 में गंगा जल कहां-कहां निर्मल हो गया?

बनारस में गंगा की आरती का एक दृश्य
बनारस में गंगा की आरती का एक दृश्य
अपडेटेड 30 दिसंबर , 2015

प्रधानमंत्री बनने से कहीं पहले जब एक लोकसभा प्रत्याशी की हैसियत से नरेंद्र मोदी वाराणसी पहुंचे तो उनका चर्चित बयान था, “न तो मुझे किसी ने बुलाया है और न मैं यहां आया हूं, मुझे तो गंगा ने बुलाया है.” उसके बाद दिन बहुरे. मोदी चुनाव जीते, बड़े बहुमत से उनकी सरकार बनी. केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के नाम में गंगा शब्द जोड़ दिया गया. राजनीति से किनारा कर गंगा की सेवा में लगीं उमा भारती को राजनीति के घाट पर लाकर इस मंत्रालय का मुखिया बना दिया गया. “गंगा मंथन” के नाम से नई दिल्ली के विज्ञान भवन में बड़ा जलसा हुआ. लेकिन सबसे बड़ी घोषणा आई 14 जनवरी, 2015 को. इस दिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर वह बात कह दी, जिसका इस देश को दशकों से इंतजार था. केंद्र सरकार ने कहा कि 2018 के अंत तक गंगा को साफ कर दिया जाएगा. मंत्रालय में फटाफट “नमामि गंगे” मिशन भी बन गया और क्लीन गंगा फंड की स्थापना भी हो गई.

ये इतनी चौंकाने वाली घोषणाएं थीं कि गढ़मुक्तेश्वर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक आर्सेनिक के जहर से जूझते करोड़ों गंगावासियों को, उत्तराखंड में बने बांधों के कारण विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई महाशीर मछलियों को, माघ मेले में गंगा में डुबकी लगाने आने वाले विदेशी पक्षियों को, उन्नाव में चमड़ा कारखानों के तेजाबी पानी के भभके से उठती बास को, अविरल गंगा के लिए वाराणसी में आमरण अनशन कर चुके स्वामी साणंद (प्रो. जी.डी. अग्रवाल) को और खुद मंत्रालय के अदना से लेकर आला अफसर तक को इस पर यकीन नहीं हुआ.

गंगा को लेकर 2015 में क्या-क्या हुआइसका पहला असर यह हुआ कि इस साल गंगातट पर हाइप्रोफाइल आरतियां हुईं. सबसे भव्य आरती दिसंबर में वाराणसी में तब हुई, जब मोदी अपने जापानी समकक्ष शिंजो एबे के साथ घाट पर पहुंचे. बाकी शहरों से भी गंगा के घाटों को साफ करने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर दिखती रहीं. स्वच्छ गंगा का नारा तो तकरीबन पूरी गंगा के किनारे पुत-सा गया. साल के अंतिम दिनों में उमा भारती ने भी गंगा में प्रदूषण नियंत्रण के लिए नया कानून लाने की बात कह दी. यूपीए के जमाने में 7 आइआइटी के विशेषज्ञों ने मिलकर गंगा नदी घाटी को पुनर्जीवित करने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी, तो नई सरकार ने उस रिपोर्ट को यथावत रखते हुए, रुड़की के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हाइड्रोलॉजी की अगुआई में नए सिरे से गंगा संरक्षण के लिए प्लान बनाना शुरू कर दिया. नई रिपोर्ट बनाने की एक वजह यह भी बताई जाती है कि पुरानी रिपोर्ट के हिसाब से गंगा की सफाई के लिए कम से कम छह लाख करोड़ रु. की दरकार होती. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जनवरी में इंस्टीट्यूट कम लागत वाली अपनी सुझाव रिपोर्ट सरकार को दे देगा. लेकिन तीन दशक से चल रहे गंगा सफाई अभियान के बीच अगर फिर नए सिरे से सुझाव ही मांगे जाने हैं, तो कहीं हम पुनरू मूषको भव वाले युग में तो नहीं आ गए हैं.

सवाल इसलिए बड़ा है क्योंकि गंगा के नाम पर भावुक बयानबाजी और कर्मकांड के बावजूद यह पता नहीं चल रहा कि 2015 में गंगा जल कहां-कहां निर्मल हो गया? जिन घाटों पर आरती के दीये जगमगा रहे हैं, क्या वहां का पानी आचमन के लायक हो सका है?  मंत्रालय की वेबसाइट पर इसका संतोषजनक जवाब अब तक नहीं दिखा. लोकसभा और राज्यसभा में इस साल गंगा को लेकर जो सवाल पूछे गए, उनमें भी इस बात का फैसलाकुन हल नहीं है. सरकार ने भले ही गंगा के लिए 20,000 करोड़ रु. का फंड मंजूर किया हो, लेकिन मंत्रालय के अपने आंकड़े बताते हैं कि गंगा के लिए मंजूर की गई 90 फीसदी से अधिक योजनाएं पिछली सरकार के समय की हैं. तो क्या गंगा जुमलेबाजी की शिकार है और 2018 में सरकार सांख्यिकी आधारित बहानेबाजी के साथ सुप्रीम कोर्ट का सामना करने को मजबूर होगी?

हालात कुछ इसी दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं. गंगा सफाई के मुद्दे पर 1970 के दशक से शोध कर रहे काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पर्यावरण विज्ञानी बी.के. त्रिपाठी आगाह करते हैं, “गंगा की सफाई का मुद्दा तो '70, '80 और '90 के दशक में था. अब मामला सफाई का नहीं गंगा बचाओ का है.” एक साल में बनारस में गंगा का पानी कितना साफ हुआ है, इस सवाल का जवाब वे कुछ इस तरह देते हैं, “इस सवाल के जवाब के लिए अब वैज्ञानिक शोधों की दरकार कहां बची है? किसी भी शहर का रिक्शेवाला-चायवाला भी बता देगा कि गंगा प्रदूषित है.” बात चुभती है, लेकिन है सही. क्योंकि 2018 तक गंगा को जहां ले जाने का वादा किया गया है, उसके लिए भगीरथ-सा तप और गंगा पुत्र भीष्म-सा संकल्प चाहिए. यह संकल्प असल में कैसा होगा, इसे समझने के लिए 7 आइआइटी की समिति के मुखिया प्रो. विनोद तारे से हुई लंबी बातचीत की याद आती है. जब वे निर्मल गंगा का मतलब समझाने बैठे तो तस्वीर कुछ ऐसी थी. “गंगा का मतलब सिर्फ गंगोत्री से निकलकर गंगासागर तक जाने वाली जल धारा नहीं है. हिमालय और शिवालिक के पर्वतीय वनों से वर्ष भर रिसने वाला जल है. गंगा में आकर मिलने वाली सैकड़ों जल धाराएं और नदियां हैं. इसकी पूरी नदी घाटी में व्याप्त भू-जल है. इन सबके मेल को ही गंगा कहते हैं. ये जल धाराएं प्रदूषित होंगी तो गंगा गंदी हो जाएगी. ये जलधाराएं बंधेंगी तो गंगा बंध जाएगी. नदी गंदी होगी तो पूरे बेसिन का भू-जल गंदा हो जाएगा. इस सबको साधकर गंगा को प्रवाहित करना है.”

7 आइआइटी की रिपोर्ट गंगा को पुनर्नवा बनाने का लक्ष्य लेकर आई थी. जो नई रिपोर्ट आएगी, वह भी इससे बहुत अलग तो नहीं होगी. सरकार के सामने नया सवाल आएगा कि अविरल गंगा के लिए पानी कहां से लाया जाए. हमने नदियों को बांध-बांधकर 45 फीसदी जमीन को सिंचित किया है. बाकी 55 फीसदी खेतों को सिंचित करने का मतलब नए बांध. ऐसे में गंगा की पीड़ा और किसान के दर्द के बीच संतुलन बनाना होगा. वैसे भी, घाट पर ऊंचे स्वर में आरती उतारने से गंगा मैया के आर्तनाद को दबाया नहीं जा सकता.

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