समस्तीपुर, बिहार में एक कस्बा है ताजपुर. यहां के एक शख्स ने फेसबुक पर प्रोफाइल बनाई है और वह अक्सर इस पर ताजा रिलीज फिल्म के प्रिंट्स के अपने पास होने की जानकारी देता है. चाहे वह सिंह इज क्लिंग हो या द मार्शन. अब जरा दिल्ली के सुधीर कुमार को देखें. जब 2008-09 में फिल्मों की पाइरेटेड डीवीडी पर नकेल कसी गई तो नई देसी-विदेशी फिल्मों का उन्हें टोटा पड़ गया. ओरिजनल डीवीडी लेट आती हैं और महंगी भी. फिर उन्हें एक दोस्त मिला जिसने उन्हें अनलिमिटेड डाउनलोड कैपेसिटी वाला इंटरनेट कनेक्शन लेने की सलाह दी और कहा कि अब फिल्मों के लिए कहीं धक्के खाने की जरूरत नहीं है. सुधीर बताते हैं, ''उसने मुझे टोरेंट के बारे में बताया. पहले थोड़ा समझ नहीं आया, लेकिन समझ में आते ही पूरी दुनिया ही बदल गई.'' अब वे शुक्रवार को रिलीज होने वाली हिंदी फिल्म को शनिवार दोपहर तक घर पर ही देख डालते हैं, और उनके पास विदेशी फिल्मों का भंडार है.
रिलीज के बाद फिल्मों का टोरेंट पर मिलना कुछ समय तक आम बात थी, लेकिन पिछले साल भर से टोरेंट साइट्स फिल्में लीक होने के प्रमुख ठिकाने के तौर पर भी उभरकर आई हैं. कुछ माह पहले सनी देओल की मोहल्ला अस्सी टोरेंट पर लीक हो चुकी है. फिल्म के प्रोड्यूसर विनय तिवारी कहते हैं, ''हमारी फिल्म की रॉ कॉपी लीक हुई थी. हमने फिल्म को दोबारा से एडिट किया है.'' चाहे वे जो कहें, लेकिन इतना मानते हैं कि इस लीक से उनकी फिल्म को 25-30 फीसदी का नुक्सान होना तय है. अब वे फिल्म को नवंबर में रिलीज करने की तैयारी कर रहे हैं.
कुछ ऐसा ही नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मांझीः द माउंटेन मैन के साथ भी हुआ और फिल्म विश्लेषकों ने माना कि फिल्म की कमाई पर इसके लीक होने का असर पड़ा है. फिल्म विश्लेषक सरिता सिंह मानती हैं कि टोरेंट्स और पाइरेसी की वजह से बॉलीवुड नुक्सान उठा रहा है. वे कहती हैं, ''जब फिल्म टोरेंट पर आती है तो यह फिल्म की दुनिया भर में वैल्यू को कमतर कर देती है.''कैसे होती हैं फिल्में लीक
पिछले दिनों टोरेंट पर लीक हुई फिल्मों को लेकर सवाल उठा कि आखिर ये हिंदी फिल्में लीक कैसे हुईं? इस सवाल का जवाब उस समय टोरेंट पर देखने को मिला जब बजरंगी भाईजान का सेंसर प्रिंट इस पर लीक हुआ. उंगली सेंसर बोर्ड पर उठी लेकर नतीजा कुछ नहीं निकला जबकि मलयालम फिल्म प्रेमम के ऑनलाइन लीक होने पर क्षेत्रीय सेंसर बोर्ड के तीन लोगों को धरा गया था. प्रेमम का जो प्रिंट लीक हुआ था, उसमें सेंसर बोर्ड का वाटरमार्क था, जिसके बाद यह कार्रवाई हुई थी. हालांकि हर मामले में स्रोत का पता नहीं चल पाता. जैसा कि विनय कहते हैं, ''फिल्म बनने के बाद उसकी प्रोसेसिंग कई चरण में जाती है, और कई जगहों पर वह फाइनल होती है. इसलिए कहा नहीं जा सकता कि किसने यह किया लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि लोग फिल्म से जुड़े ही होते हैं.''
यही नहीं, दिसंबर 2014 में सोनी पिक्चर्स हैकिंग का शिकार हुआ था, नतीजतन उसकी जरूरी सूचना के साथ ही कुछ फिल्मों को भी चुरा लिया गया. फ्यूरी, एनी, मिस्टर टर्नर, स्टिल एलिस और द इंटरव्यू को रिलीज होने से पहले टोरेंट पर डाल दिया गया था, जिसने फिल्म जगत में सनसनी फैला दी थी.
फिल्म विशेषज्ञ अतुल मोहन तो पाइरेसी से जुड़ा हैरान कर देने वाला मामला पेश करते हैं. वे बताते हैं, ''अब फिल्में रिलीज होने से पहले ही लीक हो रही हैं क्योंकि तनु वेड्स मनु रिटन्र्स और वेलकम टु कराची में जो सेंसर सर्टिफिकेट लगे थे, वे उन फिल्मों के नहीं थे. तनु वेड्स मनु रिटन्र्स का सर्टिफिकेट तो मराठी फिल्म का था. इसे सेंसर सर्टिफिकेट 16 मई, 2015 को मिला था, जबकि टोरेंट वाली फिल्म में यह 11 मई, 2015 का था.'' यही नहीं, अब तो कई फिल्में टोरेंट पर ऐसी डाली जाती हैं जिनमें विज्ञापन भी होते हैं. बजरंगी भाईजान के एक प्रिंट में ऐसा ही खेल किया गया था.
हालांकि कई लोग माहौल को भांपने के लिए भी अपनी चीजें लीक कर देते हैं. संगीत से जुड़े कई सितारे तो अपने वीडियो खुद ऑनलाइन डालकर सफलता आंकना चाहते हैं. हॉलीवुड फिल्म द एक्सपेंडेबल-3 लीक होने के बावजूद जबरदस्त हिट रही थी. गेम्स ऑफ थॉन्र्स दुनिया में सबसे ज्यादा पाइरेसी का शिकार होने वाला शो है और यह इसे लोकप्रिय बना रहा है.
क्या कहता है कानून
अक्सर यह सवाल उठता है कि टोरेंट साइट्स गैर-कानूनी हैं या कानूनी? विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में यह साइट्स पूरी तरह से कानूनी हैं. एमिटी यूनिवर्सिटी में लॉ स्कूल के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. आदित्य तोमर कहते हैं, ''भारत में टोरेंट का इस्तेमाल गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन उसके जरिए पाइरेटेड कन्टेंट डाउनलोड करना गैर-कानूनी काम के दायरे में आता है. इसमें फिल्में, गाने, गेम या तस्वीरें कुछ भी हो सकता है.'' अक्सर टोरेंट साइट्स पर मिलने वाली सारी सामग्री पाइरेटेड नहीं होती. कॉर्पोरेट वकील सैयद तमीम कादरी बताते हैं, ''अगर कोई पाइरेटेड कंटेंट इन साइट्स से डाउनलोड किया जाता है, और उससे संबंधित शख्स उसकी इंटरनेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी लॉ के तहत शिकायत करता है तो गिरफ्तारी भी हो सकती है.'' यह अंदेशा डाउनलोड की गई सामग्री के आर्थिक फायदे के इस्तेमाल के मामले में ज्यादा रहता है. इंडियन कॉपीराइट ऐक्ट-1957 के तहत इसका उल्लंघन करने वाले को छह महीने से तीन साल तक की सजा हो सकती है और 50,000 से दो लाख रु. तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है.
आज 12 साल का बच्चा भी यह जानता है कि टोरेंट से फिल्म कैसे डाउनलोड की जाती है. जब आलम ऐसा हो तो पाइरेसी से होने वाले नुक्सान का अनुमान लगाया जा सकता है और इनसे निबटने का समाधान भी चाहिए. सरिता सिंह बताती हैं, ''पाइरेसी पर लगाम कसने के लिए नए बिजनेस मॉडल अपनाने होंगे, कुछ-कुछ नेटफिलक्स जैसे.'' नेटफिलक्स पर कुछ पैसा चुकाकर फिल्म देखी जा सकती है.
तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. बॉलीवुड से जुड़े अंदरूनी सूत्रों की मानें तो कई प्रोड्यूसर और डिस्ट्रिद्ब्रयूटर्स को हार्ड डिस्क आपस में बदलते देखा जा सकता है. ऐसे में फिल्मवालों का टोरेंट पर सवाल उठाने का क्या कोई नैतिक आधार बनता है?
टोरेंट: मुफ्त का मनोरंजन
टोरेंट ने पाइरेसी की दुनिया को ही बदलकर रख दिया है और फिल्म निर्माता इससे हलकान हैं.

अपडेटेड 12 अक्टूबर , 2015
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