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इंडिया टुडे-नीलसन सर्वे 2015 में ये हैं इंजीनियरिंग के बेस्ट कॉलेज

आइआइटी-कानपुर ने पहले स्थान पर अपनी जगह कायम रखी है, जिसमें बड़ा योगदान पहले मानवरहित अंतरिक्ष यान का है, जिसे इस संस्थान को भारत में पहली बार बनाने का मौका मिला है.

अपडेटेड 22 जून , 2015

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर की अनमैन्ड एरियल  वेहिकल (यूएवी) ऐंड फ्लाइट लैबोरेटरी में छात्रों का एक समूह किसी चीज के इर्द-गिर्द जुटा हुआ है. यह लैब समूचे एशिया के अकादमिक इंस्टीट्यूट के बीच अपने किस्म की इकलौती है. यहां सबकी जिज्ञासा का केंद्र एक “ऑटोनॉमस लैपिंग विंग अनमैन्ड एरियल वेहिकल” है, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं. छात्रों ने इसे असिस्टेंट प्रोफेसर दीपू फिलिप के निर्देशन में तैयार किया है. भारत के किसी भी संस्थान में तैयार किया गया यह पहला यूएवी है, जो पेट्रोल या गैस से चल सकता है और 150 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से आकाश में 5,000 फुट की ऊंचाई हासिल कर सकता है. कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में भारतीय फौज इसका इस्तेमाल करेगी. लेकिन ऐसा होने से पहले विभाग इसमें कुछ और चीजें जोडऩा चाहता है ताकि यह न सिर्फ  बेहतर निगरानी के लिए प्रभावशाली साबित हो (जिसके लिए फौज इसे लेना चाहती है) बल्कि प्रदूषण की जांच से लेकर फसलों की डस्टिंग जैसे विविध क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल किया जा सके. यह भी मुमकिन है कि इस यूवीए की मांग दूसरे क्षेत्रों से भी आने लगे. इसमें अचरज की बात नहीं है.

यही वह अत्याधुनिक प्रौद्योगिकीय पहल है, जिसके चलते आइआइटी-कानपुर भारत के इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट में छात्रों की पहली पसंद बना हुआ है. इंस्टीट्यूट के उपनिदेशक प्रो. ए.के. चतुर्वेदी कहते हैं, “हर आयाम में उत्कृष्टता को हासिल करना हमारा लक्ष्य है. यही चीज आइआइटी-कानपुर को दूसरे इंस्टीट्यूट से अलग करती है.” इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि लगातार दूसरे साल यह इंस्टीट्यूट इंडिया टुडे-नीलसन के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों के सर्वेक्षण में शिखर पर है और इसने कुछ दूसरे आइआइटी और एनआइटी को भी पीछे छोड़ दिया है.

इंजीनियरिंग के टॉप 20 कॉलेजहर अकादमिक वर्ष में यह इंस्टीट्यूट नित नए शोध और तकनीक के क्षेत्र में प्रवेश करता जा रहा है. संयोग से यह देश का इकलौता इंस्टीट्यूट है, जहां हेलिकॉप्टर लैब है. पिछले साल केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने एक “ऑटोनॉमस हेलिकॉप्टर” बनाने की एक महत्वाकांक्षी परियोजना को अनुदान दिया, जिसका वजन कुछ किलो होगा, लेकिन उसमें एक संपूर्ण हेलिकॉप्टर के सारे फीचर्स होंगे.

हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने भी आइआइटी-कानपुर के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए हैं, जिसके तहत 10 किलोग्राम की श्रेणी में एक ऑटोनॉमस रोटरी यूएवी बनाया जाना है. चतुर्वेदी कहते हैं, “हम अपने छात्रों को विश्वस्तरीय शोध सुविधाएं दे रहे हैं ताकि वे अंतरराष्ट्रीय बाजार से मिलने वाली किसी भी चुनौती से निबट सकें.”

पिछले साल शोध और विकास गतिविधियों में इंस्टीट्यूट ने लगातार प्रगति की दिशा में कदम बढ़ाया है. बाहर से अनुदानित मौजूदा परियोजनाओं की संख्या 455 तक पहुंच चुकी है, जिनके लिए कुल मंजूर राशि 368 करोड़ रु. है. यह इंस्टीट्यूट के 1959 में बनने के बाद से अब तक की सबसे बड़ी मंजूरशुदा राशि है.

केंद्रीय संचार एवं सूचना तकनीकी मंत्रालय ने आइआइटी-कानपुर को इस वर्ष अब तक का सबसे बड़ा 130 करोड़ रु. का रिसर्च प्रोजेक्ट दिया है. इसके जरिए आइआइटी-कानपुर फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में नई तकनीकों के इस्तेमाल पर रिसर्च करेगा ताकि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की क्षमता और उनके आकार में सुधार किया जा सके. लगातार नए शोध कार्यों को करते रहने के लिए आइआइटी कानपुर के विभागों में जगह की कमी होती जा रही है. इसी को ध्यान में रखते हुए प्रशासन आइआइटी परिसर में एक अत्याधुनिक रिसर्च कॉम्प्लेक्स का निर्माण करवा रहा है.

आइआइटी को बाहरी संस्थानों से रिसर्च के लिए काफी प्रोजेक्ट मिलते हैं. ये बड़े रिसर्च प्रोजेक्ट होते हैं और इनमें एक से अधिक विभागों की जरूरत पड़ती है. उपनिदेशक डॉ. ए.के. चतुर्वेदी बताते हैं, “रिसर्च कॉम्प्लेक्स में एकीकृत रूप से रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम करना आसान होगा. इससे प्रोजेक्ट कम समय में पूरा हो सकेगा.”
स्थापना के बाद से ही आइआइटी-कानपुर ने खुद को इंजीनियरिंग शिक्षण में अग्रणी बनाए रखा है. इसका पिछले एक दशक से ज्यादा वक्त से अमेरिकी विश्वविद्यालयों के एक समूह के साथ गठजोड़ कायम है, जिसे कानपुर इंडो-अमेरिकन प्रोग्राम कहते हैं. फरवरी में परिसर में एक खगोलीय वेधशाला की स्थापना की गई थी. इसमें “मिट-कैसाग्रेन टेलीस्कोप मौजूद है, जो भारत के किसी अन्य तकनीकी इंस्टीट्यूट में नहीं है. इसका इस्तेमाल खगोलीय निरीक्षण, शोध और छायांकन के लिए किया जाएगा. साथ ही यह सौर मंडल, नक्षत्र, धूमकेतु और खगोलीय पिंडों के स्पेक्ट्रम और चमक तथा ग्रहण जैसी असामान्य खगोलीय घटनाओं के बारे में सूचनाएं जुटाने के काम आएगा.

अच्छे अंक लाने वालों को जाहिर तौर पर यहां सम्मानित किया जाता है, लेकिन आइआइटी-कानपुर अकादमिक गतिविधियों और शिक्षेतर गतिविधियों के बीच एक संतुलन कायम रखने का प्रयास भी करता है.

यहां छात्रों के लिए खेल गतिविधियों में हिस्सा लेना अनिवार्य है. यही छात्र स्नातक के बाद वैज्ञानिक, इंजीनियर और तकनीकविद् बनते हैं. पिछले साल आइआइटी बॉक्वबे में आयोजित पचासवीं अंतर-आइआइटी खेलकूद प्रतियोगिता में कानपुर ने पुरुष श्रेणी में अपनी पहली जगह कायम रखी और महिला श्रेणी में दूसरे स्थान पर रहा. इंस्टीट्यूट विभिन्न छात्रावासों के बीच ऊर्जा बचत पर प्रतियोगिता का आयोजन करता है, जिसे श्ग्रीन ओपस्य कहते हैं. इसकी मदद से छात्रों ने औसत ऊर्जा उपभोग में बड़े पैमाने पर कटौती की है.

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