पानीपत जिले में जीटी रोड के पश्चिम में ठेठ हरियाणवी इलाके में स्थित शांत-से डिडवारी गांव के नाम एक बड़ी अनूठी बात दर्ज है, जिसकी वजह से वह दूर-दूर के गांवों में मशहूर है. यही वह गांव है जहां चौदह साल पहले गोलू का जन्म हुआ था. जब वह महज तीन साल का था तो 2004 में झज्जर में पहला 'चैंपियन' बना था—सींगों की शक्ल, चमड़ी के रंग और मोटाई तथा सेहत के आधार पर. उसके बाद से पांच साल पहले तक वह मुकाबले की 26 ट्रॉफियों में से हरेक जीतता आ रहा था. आज भी उसके कंधे 5 फुट 8 इंच ऊंचे हैं और सिर से पूंछ तक उसकी लंबाई लगभग 11 फुट है.
गोलू उन मुर्रा भैंसों की शानदार परंपरा में पहला था जो हरियाणा से लेकर पड़ोसी पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल और सुदूर दक्षिण में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी फार्म अर्थव्यवस्था को नई शक्ल दे रहे हैं.
इस भैंसे के मालिक 42 वर्षीय नरिंदर सिंह बड़े गौरव के साथ कहते हैं, ''वह असली चैंपियन है.'' आखिरकार जानवरों के मुकाबलों में जीती गई तमाम ट्रॉफियों की वजह से मिली लोकप्रियता के अलावा गोलू की उच्च गुणवत्ता की प्रजनन क्षमता से उन्हें जबरदस्त कमाई भी हुई. गोलू से पैदा हुए तमाम कट्टे-कट्टियां आसपास के कई राज्यों में हैं और या तो खूब दूध देने वाली भैंस हो गई हैं या जवान तंदुरुस्त भैंसे.
डिडवारी से 70 किलोमीटर दूर कुरुक्षेत्र के संपन्न गांव सुनरिया में लोग मौजूदा चैंपियन भैंसे युवराज (उसका नाम वाकई क्रिकेटर युवराज के ऊपर ही रखा गया है) को उसके मालिक 47 वर्षीय करमवीर सिंह से ज्यादा जानते हैं. युवराज का (माफ कीजिए) करमवीर सिंह का घर तीन मंजिला एयर कंडीशंड कोठी है, कई एसयूवी हैं, कारें हैं और चमकते नए ट्रैक्टर. लेकिन स्वाभाविक रूप से सबसे नायाब चीज तो सात साल का यह भैंसा है—उस एयर-कूल्ड मवेशीखाने का केंद्रबिंदु जिसमें 24 भैंसें और एक अकेली गाय रहती है.
करमवीर उसकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखते और उनका जोर इस बात पर रहता है कि उसका आराम और खुराक टूटने न पाए. यकीन मानिए, युवराज को दिन में पांच बार ट्यूबवेल के ताजा पानी से नहलाया जाता है और हर बार कम से कम डेढ़ लीटर कच्ची घानी के सरसों के तेल से जमकर मालिश होती है. उसकी देखभाल करने वाले बिहारवासी जितेंदर और राम कुमार उसके चमकते घुमावदार सींगों और खुरों का खास ध्यान रखते हैं. 14 क्विंटल वजन के इस जवान भैंसे की अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए उसके भोजन में प्रोटीन और विटामिन युक्त चारे के अलावा बीस लीटर मलाईदार दूध और दस किलो सेब शामिल हैं. युवराज को भी खुद को मिल रही इस देखभाल में काफी मजा आता है, खास तौर पर जब लोग उसे देखने के लिए आते हैं. और ऐसा अक्सर ही होता है.
जाट बहुल हरियाणा में किसानों और उनके पशुओं के बीच गहरे रिश्ते की कहानियां पहले ही से काफी प्रचलित रही हैं, लेकिन गोलू और युवराज अब इन कहानियों को एकदम नई शक्ल देने की कोशिशों में जुटे हैं. एक दशक पहले जो संभवतया बहुत असामान्य-सी बात लगती थी, अब ज्यादा से ज्यादा किसान मुर्रा भैंसे पाल रहे हैं ताकि उनके वीर्य को बेचकर अच्छा-खासा मुनाफा कमा जा सके.
भारत में भैंसों की 13 नस्लों में से मध्य हरियाणा की मुर्रा भैंसों की मांग सबसे ज्यादा है. उन्हें 'नस्ल सुधारने' वाला माना जाता है और उनका जीन पूल अब फैलकर दक्षिण एशिया, दक्षिण अमेरिका, मेक्सिको और पश्चिम एशियाई देशों में पांव पसार चुका है. यह नस्ल खास तौर पर अपनी ज्यादा दूध देने की क्षमता की वजह से मांग में है जो एक दिन में अधिकतम 32 लीटर तक रिकॉर्ड की जा चुकी है.
हिसार के करीब 1,200 एकड़ में फैला केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान (सीआइआरबी) देश के कृषि क्षेत्र को उबारने के एक उपाय के तौर पर मुर्रा पालन को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है. सिकुड़ती जोतों और कृषि से घटती आय की ओर इशारा करते हुए संस्थान के निदेशक इंदरजीत सिंह कहते हैं, ''शायद यही एक तरीका है. छोटे से छोटा किसान भी एक-दो एकड़ की जोत के साथ चारे की फसलें उगाकर और दो-तीन जानवर रखकर आसानी से अपना गुजारा कर सकता है.''
लेकिन हरियाणा के लगातार बढ़ते किसानों के लिए तो मुनाफे का सौदा चैंपियन भैंसे पालने का है. स्थापित प्रजनन क्षमता वाले किसी ऐसे चैंपियन भैंसे का एक स्खलन भी 1.80 लाख रु. से 6 लाख रु. के बीच बिकता है. मसलन, करमवीर हर साल युवराज का वीर्य बेचकर ही 40 से 60 लाख रु. के बीच कमा लेते हैं, कुछ-कुछ बॉलीवुड के काल्पनिक विकी डोनर की तरह. हर स्खलन को दो हफ्ते में एक बार कृत्रिम योनि में एकत्र किया जाता है और उससे विशेष जीवाणुरहित स्ट्रॉ में रखे जाने वाले लगभग 600 डोज तैयार हो जाते हैं. लगभग दो करोड़ शुक्राणु कोशिकाओं वाला प्रत्येक स्ट्रॉ 300 से 500 रु. की कीमत पर बिकता है.
हिसार में सीआइआरबी का वीर्य केंद्र 1990 के बाद के लगभग हर चैंपियन भैंसे का प्रॉजनी टेस्टेड (प्रजनन के लिए परीक्षण से गुजरा) मुर्रा वीर्य स्ट्रॉ स्टॉक में रखता है. सभी को बेहद सावधानीपूर्वक तरल नाइट्रोजन से भरे विशाल क्रायोजेनिक डिब्बों में रखा जाता है ताकि उनका तापमान हमेशा एक सरीखा यानी 196 डिग्री सेल्सियस बनाए रखा जा सके. केंद्र के प्रवेश द्वार पर दरों का चार्ट लगा हैः युवराज और उसके पिता योगराज का वीर्य 500 रु. प्रति स्ट्रॉ की दर पर बिकता है. वहीं पड़ोसी पंजाब के एक अन्य चैंपियन भैंसे खली का वीर्य 1,000 रु. की दर पर उपलब्ध है.
करमवीर कहते हैं कि जून से लेकर मार्च तक भैंसों के गर्भाधान के सीजन में उनके दरवाजे पर लंबी कतार लगी रहती है. वीर्य व्यापारी, पशु प्रजनक (ब्रीडर) और किसान, सभी अपनी भैंसों की नस्ल बेहतर करने के लिए युवराज के वीर्य का स्ट्रॉ लेने के लिए खड़े नजर आते हैं. करमवीर खींसे निपोरते हुए कहते हैं, ''वे अक्सर यहां 'करमवीर का वीर्य (सीमन)' खरीदने के लिए आ खड़े होते हैं.''
यह धंधा काफी फल-फूल रहा है. राजस्थान में गंगानगर के एक मवेशी चारा व्यापारी 30 वर्षीय कालू राम ने लगभग एक दशक पहले मुर्रा वीर्य बेचना शुरू किया था. वे कहते हैं कि 2010 के बाद से उनके इलाके में चैंपियन भैंसे के वीर्य की मांग हर साल दोगुनी होती जा रही है. उनके मुताबिक, ''किसानों में अब यह बात घर कर गई है कि अगर उनकी भैंसों का गर्भाधान किसी उच्च गुणवत्ता वाले भैंसे से कराया जाए तो दूध की पैदावार में जबरदस्त उछाल आ जाएगा.'' कालू राम ने 2014 में राजस्थान में 8,000 वीर्य स्ट्रॉ बेचे थे.
अमृतसर के पश्चिम में भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट महावा गांव में एक अन्य वीर्य व्यापारी 46 वर्षीय सकत्तर सिंह भी मुर्रा के वीर्य की बढ़ती मांग की पुष्टि करते हैं. दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम पंजाब में फैले ग्रामीण इलाके में मुर्रा वीर्य से गर्भाधान कराने के बाद भैंस का 20-25 लीटर दूध देना आम बात हो गई है. उसकी तुलना में (पंजाब की) स्थानीय नीली रवि भैंसों से अधिकतम 12-16 लीटर दूध ही मिल पाता है.
युवराज को जब अक्तूबर, 2014 में मेरठ में अखिल भारतीय मवेशी शो में 'ओवरऑल चैंपियन' घोषित किया गया तो एक सनसनी-सी फैल गई. भारत के सबसे बड़े वीर्य व्यापारियों में से एक मेरठ के चौधरी पशु प्रजनन केंद्र की निगाह तुरंत उस पर गई. अब इस फर्म के भंडार में युवराज के वीर्य की खासी हिस्सेदारी है. यह फर्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जिलों में हर साल 20,000 मुर्रा स्ट्रॉ बेचती है.
हालांकि कोई व्यापारी इसमें अपनी भूमिका को स्वीकार नहीं करना चाहता लेकिन हकीकत यही है कि अब भैंस पालने वाले कई देशों में हरियाणा के लोकप्रिय चैंपियन मुर्रा भैंसे का वीर्य स्टॉक उपलब्ध है. सीआइआरबी के इंदरजीत सिंह कहते हैं कि उन्हें उस समय खासी हैरानी हुई जब कोलंबिया की भैंस प्रजनक एसोसिएशन की अध्यक्ष क्लॉडिया रोल्डन काले ने उन्हें सूचना दी कि युवराज के वीर्य का एक स्ट्रॉ उनके देश में 90 से 150 डॉलर की कीमत पर उपलब्ध है.
हिसार के जुगलान गांव के 51 वर्षीय किसान भालेराम इन दिनों अपने बीस एकड़ के खेत की उपज से ज्यादा कहीं भैंसों के गर्भाधान से कमा लेते हैं. दो साल पहले उन्होंने पांच साल की एक भैंस आंध्र प्रदेश के डेयरी किसान विजय कुमार को 17 लाख रु. की हैरतअंगेज कीमत पर बेची. भालेराम की नौ भैंसों में से तीन इस समय दूध दे रही हैं और हरेक रोजाना बीस लीटर से ऊपर दूध देती है. लेकिन उनका गौरव तो साढ़े तीन साल की गिन्नी है जो युवराज के वीर्य से इस समय गर्भ से है.
इस साल 18 मार्च को सीआइआरबी, हिसार में सालाना मुर्रा भैंस मेले में 333 जानवर शामिल हुए. इनमें इस इलाके के सौ सर्वश्रेष्ठ भैंसे भी शामिल थे. इससे इस इलाके के किसानों में भैंसे पालने की बढ़ती दिलचस्पी का संकेत मिलता है. सीआइआरबी के निदेशक इंदरजीत सिंह कहते हैं, ''यह बेहद शानदार था. सबसे तगड़ा मुकाबला तो चैंपियन भैंसे के लिए था.''
उधर, सुनरिया में युवराज अपनी कई उपलद्ब्रिधयों पर आराम से विराजा हुआ है. करमवीर कहते हैं, ''यह मेरे लिए भगवान का तोहफा है.'' वे उसके गुणों और उपलब्धियों के किस्से सुनाते नहीं थकते और उनके पास उसकी खासियतें बताने के ढेरों बहाने और बातें हैं. वह कभी अपने स्टॉल के भीतर पेशाब या गोबर नहीं करता और अपना सिर कपड़े और पुआल से बने खास तकिए पर ही रखता है. इन जानवरों से जो मुनाफा आता है, वह अलग है, लेकिन किसी चैंपियन भैंसे का मालिक होने का जो गौरव है, उसके आनंद की अनुभूति एक अलग ही दुनिया की बात है.
ये हैं कमाल की भैंसें, देश-विदेश में इनका जलवा
ज्यादा दूध देने वाली मुर्रा भैंसें पंजाब, बिहार और पश्चिम बंगाल से लेकर दक्षिण तक कृषि संबंधित अर्थशास्त्र को पुनर्परिभाषित कर रही हैं. लेकिन इस कामयाबी की धुरी तो हरियाणा में है.

अपडेटेड 22 जून , 2015
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