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हम धर्म के समर्थन में हैं: राजकुमार हीरानी

राजकुमार हीरानी कहते हैं कि पीके के धर्म-विरोधी होने के आरोपों से उन्हें हैरानी हुई. वे धर्म के समर्थन में हैं और केवल उसके दुरुपयोग की आलोचना कर रहे हैं.

अपडेटेड 13 जनवरी , 2015
राजकुमार हीरानी (52) और उनके सह-लेखक (46) अभिजात जोशी ने कई शांत जगहें खोज रखी हैं. चाहे अमेरिका में ओहायो के वेस्टरविले में अमीश फर्नीचर शॉप के बाहर रात 2 बजे तक डोलती हुई कुर्सियों हों, या मुंबई के मढ आइलैंड में किराए पर ली गई कॉटेज, यहां बैठकर वे ऐसी दुनिया रचते हैं, जो दो घंटे तक दुनियाभर के सिनेप्रेमियों का दिल बहलाती है. लगे रहो मुन्नाभाई, 3 इडियट्स और पीके की इस जोड़ी ने पिछले दस साल में लंबा रास्ता तय कर लिया है.
पीके 300 करोड़ रु. कमाई करने वाली भारत की पहली फिल्म बन गई है. इस जोड़ी ने फिल्म पर 2010 में काम शुरू किया था. हिंदी सिनेमा की वजनदार जोड़ी हीरानी और जोशी ने एसोसिएट एडिटर सुहानी सिंह के साथ बातचीत की.

पीके को लेकर आपको ऐसी प्रतिक्रिया मिलने की उम्मीद थी?
राजकुमार हीरानीः नहीं. पीके के धर्म-विरोधी होने के आरोपों से हमें हैरानी हुई. हम धर्म के समर्थन में हैं और केवल उसके दुरुपयोग की आलोचना कर रहे हैं. कहने को इतना कुछ है. चुनौती यह है कि हम उपदेशक न लगने लगें. हमने अच्छे से अच्छा करने की कोशिश की, लेकिन कभी-कभी अच्छे से अच्छा भी काफी नहीं होता.

आप दोनों ने साथ-साथ लिखना कैसे शुरू किया?

हीरानीः
लंदन में (विधु) विनोद (चोपड़ा) ने एक नाटक देखा था, अ शैफ्ट ऑफ सनलाइट, जिसे अभिजात ने लिखा था. उन्हें पसंद आया और वे अपना विजिटिंग कार्ड उन्हें दे आए. बाद में दोनों ने साथ काम करना शुरू किया (अभिजात ने चोपड़ा की फिल्म करीब के संवाद लिखे थे). दिसंबर 2004 में मैं लगे रहो मुन्नाभाई का रफ ड्राफ्ट सुनाने के लिए विनोद के पास गया. अभिजात भी वहां था. उसने कहा कि फिल्म की सोच उसके दिल के करीब है, क्योंकि यह महात्मा गांधी के बारे में है और वह अहमदाबाद में पला-बढ़ा था. उसने पूछा कि क्या वह भी इस पर काम कर सकता है? मुझे हैरानी हुई कि यह कैसे मुमकिन होगा, क्योंकि उस वक्त वह अमेरिका में रह रहा था. फिर उसने मुझे एक दृश्य लिखकर भेजा. बुरा सीन था वह. उसी रात उसने एक और दृश्य लिखकर भेजा, जो कमाल का था.

अभिजात जोशीः विनोद ने मुझे मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस. की डीवीडी भेजी थी. फिल्म पूरी होने के बाद मैं ताली बजा रहा था. मैंने विनोद के साथ एक अंग्रेजी पटकथा लिखी थी, 64 स्क्वायर्स (जिस पर अभिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की भूमिका वाली वजीर बन रही है), जो राजू ने पढ़ ली थी. उन्हें एक किरदार और एक मुहावरा ‘इन माइ विलेज’ (मेरे गांव में) पसंद आ गया. उस वक्तमुझे पता नहीं था कि हमारे विचार इस तरह मिल जाएंगे. लेकिन जो आइडिया उन्होंने सुनाया वह इतना शानदार था कि मैं उनके साथ काम करने के लिए बेचैन हो उठा.

साथ मिलकर पटकथाएं लिखने के लिए किन खूबियों की जरूरत होती है?

हीरानीः अपना अहं एक ओर ताक पर रख दो.

जोशीः यह सब मुझे करना होता है. यकीन जानिए. इसमें तो अहं नाम की चीज ही नहीं है. चाहे जहां से आए, वे हरेक विचार को सुनते हैं.

हीरानीः शुरू में मुझे लगता था लेखन अकेले में किया जाने वाला काम है. लेकिन मढ आइलैंड के वे 10 दिन याद हैं, जब हमने साथ लेखन किया था. इसकी मध्यवर्गीय परवरिश और कॉलेज के अनुभव मुझसे मिलते-जुलते हैं.

जोशीः अक्सर लगता है कि हमारे आइडिया को मूर्खतापूर्ण माना जा सकता है. लेकिन उन्होंने मुझ्में यह आत्मविश्वास जगाया कि कोई भी आइडिया मूर्खतापूर्ण नहीं होता. बेतुकी बात पर वे हंस देंगे या उसे सलीके से दरकिनार कर देंगे.

हीरानीः मुझे कुछ पसंद नहीं आया, तो यह उसे जबरन गले उतारने की कोशिश नहीं करता. पहले मैं सोचा करता था कि मैं थक नहीं सकता लेकिन यह मुझे थका देता है. सुबह 4 बजे ये कहेगा, चलो, पांच मिनट और कोशिश करके देखते हैं.

आपको कब पता चलता है कि पटकथा अब पूरी तरह से तैयार है?

हीरानीः
आप अपनी पटकथा से कभी खुश नहीं हो सकते. हमेशा लगता है कि इसे और बेहतर किया जा सकता था. पीके और काम करने की जरूरत की वजह से इतने दिनों तक खिंचती गई.

जोशीः मैं उस इंटीरियर डिजाइनर की तरह महसूस करने लगा था, जो घर में दाखिल होता है और फिर बाहर ही नहीं निकलता.

हीरानीः पीके पर काम करते हुए हमें सबसे ज्यादा परेशानी हुई. इस तजुर्बे के बाद लगा कि अगर छह से आठ महीने के भीतर हम पटकथा को सुलझ नहीं लेते तो इसे छोड़ हमें किसी और चीज पर काम करना चाहिए. कुछ दिन पहले अभिजात ने मुझे फोन करके कहा, “मुझे लगता है यार हमने गड़बड़ कर दी. हमें वह दृश्य इस तरह करना चाहिए था.” मैंने इससे कहा, “अब हो गया, अभिजात.” लेकिन यह आधे घंटे तक बोलता रहा. मुझे कहना पड़ा, “अब हम कुछ नहीं कर सकते.” तो इसने पूछा, ‘डीवीडी में कर सकते हैं?”

शूटिंग के दौरान भी आप दृश्य को बेहतर बनाने की जद्दोजहद में लगे रहते थे. अनुष्का (शर्मा) इस बात से खासी प्रभावित हुईं.

हीरानीः पहले कभी यह सेट पर साथ नहीं था क्योंकि तब यह अमेरिका में पढ़ा रहा था. इस दफे पहली बार यह सेट पर और एडिटिंग के दौरान साथ था. कम से कम कोई तो था, जो पटकथा को सेट पर किसी भी दूसरे शख्स से बेहतर जानता था.

जोशीः ईमानदारी से कहूं तो पक्के तौर पर इन्हें मेरी जरूरत नहीं थी. हमने कुछ खास बदलाव नहीं किया. मुझे इनसे बहुत-कुछ सीखने को मिला. मैंने पहली बार लगे रहो मुन्नाभाई देखी थी, तभी से इन्हें ई.टी. कहना शुरू कर दिया था. पीके की जड़ में शायद यही है. उस वक्त इनके लेखन और इनके विजन की तारीफ होती थी, लेकिन मुझे लगता था कि लोग इनके निर्देशन की महानता को समझते नहीं हैं. इनके पास ट्रिक्स का खजाना है, जिनसे ये कहानी को भरोसेमंद और कामयाब बना देते हैं.

अभिजात, पीके के सेट पर रह चुके होने के बाद क्या आप निर्देशन करना चाहते हैं?

जोशीः लोग निर्देशक की कुर्सी पर बैठने के लिए राजी होते हैं तो इसलिए कि उन्हें लगता है वे यह काम बेहतर ढंग से कर सकते हैं. लेकिन इस मामले में मेरा तो कोई चांस ही नहीं है.

हीरानीः मैं इससे कहता रहता हूं.

जोशीः ये मुझसे कहते हैं कि तुम्हें अपना फोन तक साथ रखना याद नहीं रहता. तो सोच भी कैसे सकते हैं कि मैं निर्देशन कर सकता हूं?

हीरानीः तुम्हारे लिए यह काम करने को बहुत-से लोग तैयार हो जाएंगे.

जोशी मुझे याद है, जब मैं लगे रहो मुन्ना भाई लिखने के लिए आया था, दफ्तर में हर कोई मुझसे मिलना चाहता था क्योंकि इन्होंने मेरी इतनी तारीफ जो कर रखी थी. बड़ा मजेदार अनुभव था वह. ज्यादातर मौकों पर लेखकों को इतनी इज्जत नहीं दी जाती. इस पूरे दशक के दौरान मुझे कभी नहीं लगा कि एक लेखक के तौर पर मेरे साथ कभी कोई छल-कपट किया गया हो. इन फिल्मों पर मुझे भी अपना उतना ही हक महसूस होने लगा है, जितना इन्हें होता होगा.

लिखते वक्ड्ढत क्या आप कोई तयशुदा नियमों का पालन करते हैं?

जोशीः लिखते वक्त हम एक दूसरे के अगल-बगल बैठते हैं. आमने-सामने बैठने पर बातचीत करने का दबाव बना रहता है. हम टहलने जाते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता, दिमाग चलते रहते हैं और अचानक किसी को एक आइडिया कौंधता है, और यही वह वक्त होता है, जब हम बात करते हैं. पीके  लिखते समय हम सुबह 6 बजे काला घोड़ा और गेटवे ऑफ इंडिया जाया करते थे.

हीरानीः कई लोग मुझसे पूछते हैं कि तुमने इसे बनाने में पांच साल लगाए यानी तुम जिंदगी को सस्ते में ले रहे हो. लेकिन ऐसा नहीं है. कितने जमाने से मैंने एक भी छुट्टी नहीं ली है. केवल 3 ईडियट्स के बाद मैंने काम से छुट्टी ली थी.

विनोद के साथ लिखने में अभिजात आपको कोई फर्क लगता है क्या?

जोशीः विनोद मेरे गुरु रहे हैं. उनके साथ मेरा समीकरण अलग तरह का है. उनके अपने कायदे हैं. विनोद के साथ मैं टहलने नहीं जाता, उनके लिए केवल चाय बनाता हूं.

राजकुमार, अभिजात के बगैर फिल्म लिखने की अब कभी सोचते हैं?

जोशीः
हां, बिल्कुल.

हीरानीः मैं तो इनका आदी हो चुका हूं. मैं इनसे पूछता तक नहीं. इन्हें तो साथ मानकर ही चलता हूं. डायरेक्टर मुझे फोन करते हैं और इनका नंबर मांगते हैं, जो मैं उन्हें खुशी-खुशी दे देता हूं.

जोशीः आप यह मानकर नहीं चल सकते कि वे केवल मेरे साथ ही काम करेंगे. (अगर वे करना चाहेंगे तो) यह मेरी खुशकिस्मती होगी. कभी-कभी मुझे डर लगता है कि शायद वे मुझसे कह न सकें कि जिस तरह तुमने लगे रहो मुन्ना भाई लिखी थी, उस तरह तुम अब नहीं लिख पा रहे हो. ऐसा हो सकता है. किसी दिन हमारी शैलियां अलग-अलग हो सकती हैं. उस दिन के बारे में मैं सोचकर ही सिहर जाता हूं.

हीरानीः मैं अभिजात को कह रहा था, कभी-कभी मुझे ताज्जुब होता है कि जिस दिन हम फिल्में बनाना बंद कर देंगे, हमें सचमुच नहीं पता कि हम एक दूसरे से आखिर बात क्या करेंगे?

अगली किस फिल्म पर काम कर रहे हैं?

हीरानीः ये मुझे छुट्टी नहीं दे रहे हैं. हमने संजू (अभिनेता संजय दत्त) की कहानी जानने के लिए उनके साथ वक्त बिताया. उनके बायोपिक पर काम शुरू कर दिया है.
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