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पेशावर हमला: बच्चों के लिए किस तरह की ‘दुआ’?

पाकिस्तान  नेतृत्व से दरख्वास्त है कि वह बच्चों के लिए नहीं बल्कि अपनी मगफिरत (मोक्ष) के लिए दुआ मांगें और अपने हाथों को गौर से देखें कि उन पर खून के धब्बे तो नहीं.

अपडेटेड 22 दिसंबर , 2014

जब तक आप यह तहरीर (लेख) पढ़ेंगे, जनाज़े उठ चुके होंगे, प्राइमरी सेक्शन के बच्चों के लिए छोटे ताबूत, हाइस्कूल के लिए नॉर्मल साइज के.
कब्रों पर पानी छिड़कने के बाद फूल चढ़ाए जा चुके होंगे. माएं उन बच्चों की तस्वीरों को चूमकर बेहाल होंगी जिन्हें उन्होंने सब्ज (हरे) कोट में, या सब्ज जर्सी में और लड़कियों को सब्ज चादर पहनाकर भेजा था और अब उन्हें दफनाने के बाद मर्द कब्रिस्तान से वापस आ रहे हैं.
सर्द मौसम में माओं को वैसे भी बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा फिक्र इस बात की होती है कि उन्हें कहीं ठंड न लग जाए. उन बच्चों को शहीद कहा जा रहा होगा. शहीद सीधे जन्नत में जाते हैं तो यह कहकर दिलों को तसल्ली दे लेते हैं कि पेशावर की सर्दी उन बच्चों की कब्रों के अंदर नहीं पहुंचेगी.
पेशावर में एक इंतहाई अहम और हंगामाई इजलास (सभा) भी हो चुका होगा, जिसमें इंतहाई सख्त अल्फाज में इस कत्लेआम की मजम्मत (निंदा) जाएगी.

शायद तालिबान का नाम लिया जाए या उन्हें कौम (राष्ट्र) और मुल्क का दुश्मन जैसा तखल्लुस (उपाधि) अता किया जाए और उन्हें सफहे हस्ती (जीवन के पन्ने) से हटाने का प्रण दोहराया जाए. यकीनन इस इंतहाई इजलास में इंतहाई अहम फैसले किए जाएंगे लेकिन इजलास के आगाज (शुरू) में मरîमीन (मरने वालों) के लिए दुआ-ए-मगफिरत पढ़ी जाएगी. यानी मृत इनसान को उसके कर्मों के लिए माफ करने की दुआ.
मेरा खयाल है यह दुआ गैर जरूरी है. मैट्रिक करने वाले या मिड्ल स्कूल में पढऩे वाले या प्राइमरी क्लास के तालिबेइल्म (विद्यार्थी) ने आखिर क्या गुनाह किया होगा कि उसकी बख्शिश (मोक्ष) के लिए दुआ मांगी जाए.

हो सकता है किसी ने कैंटीन वाले के 20 रुपए उधार देने हों, हो सकता किसी ने अपने क्लासफेलो को इम्तिहान में चुपके से नकल कराई हो. हो सकता है किसी ने क्रिकेट के मैच में अंपायर बनकर अपने दोस्त को आउट न दिया हो. हो सकता है कि किसी ने क्लास में खड़े होकर उस्ताद (टीचर) की नकल उतारी हो, हो सकता है किसी शरारती बच्चे ने स्कूल के बाथरूम में घुसकर अपना पहला सिगरेट पिया हो.

खबरों में आया है कि जब सब्ज कोटों और सब्ज जर्सियों और सब्ज चादरों पर खून के छींटे पड़े तो स्कूल में मैट्रिक की अलविदाई (फेयरवेल) तकरीब (इवेंट) भी चल रही थी. उस तकरीब में हो सकता है कि किसी ने गैर मुनासिब गाना गा दिया हो.

अगले हफ्ते से सर्दियों की छुट्टियां आने वाली हैं. कई बच्चों ने अपने रिश्तेदारों के पास छुट्टियां बिताने का प्रोग्राम बनाया होगा, जहां पर सारी रात फिल्में देखने या इंटरनेट पर चैट करने के मंसूबे होंगे. आखिर सोलह साल तक की उम्र के बच्चे और बच्चियां क्या गुनाह कर सकते हैं जिसके लिए इस मुल्क की सियासी और अस्करी (सैन्य) कियादत (नेतृत्व) हाथ उठाकर दुआ-ए-मगफिरत (मोक्ष के लिए प्रार्थना) करे?

हो सकता है स्कूल में एक दोस्त ने दूसरे से वादा किया हो कि छुट्टियों के बाद मिलेंगे. अब उनमें से एक वापस नहीं क्योंकि वह पेशावर की मिट्टी में एक ऐसी सर्द (ठंडी) कब्र में दफन है जो एक ऐसा क्लासरूम है जहां कोई क्लासफेलो नहीं है और जहां कभी छुट्टी की घंटी नहीं बजती.
पाकिस्तान के सियासी और अस्करी कियादत (नेतृत्व) से दरख्वास्त है कि वह इन बच्चों की आखिरत (मरने के बाद की दुनिया) के बारे में परेशान न हों और जब कल दुआ के लिए हाथ उठाएं तो अपनी मगफिरत (मोक्ष) के लिए दुआ मांगें और दुआ के लिए उन हाथों को गौर से देखें कि उन पर खून के धब्बे तो नहीं.

(मोहम्मद हनीफ अ केस ऑफ एक्सप्लोडिंग मैंगोज और ऑर लेडी ऑफ एलिस भट्टी के लेखक हैं)

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