एडमिरल आर.के. धोवन ने नौसेना प्रमुख की जिम्मेदारी ऐसे आड़े वक्त में संभाली जब कई दुर्घटनाओं की वजह से एडमिरल डी.के. जोशी को समय से पहले विदा होना पड़ा था. धोवन ने एसोसिएट एडिटर मनु पब्बी से नौसेना की छवि बदलने से लेकर अर्थव्यवस्था में जान फूंकने में लगे भारत के लिए समुद्र के बढ़ते महत्व और दिनो दिन ढीठ होते पड़ोसियों से निबटने की चुनौती जैसे सामने खड़े चुनौतीपूर्ण कार्यों पर बातचीत की.
प्रधानमंत्री के साथ-साथ रक्षा मंत्री ने भी अपने पहले मिलिट्री दौरे के लिए नौसेना को चुना. ऐसे कई संकेत हैं कि नई सरकार नौसेना के बढ़ते सामरिक महत्व को समझती है. आपको क्या लगता है कि इस नई अहमियत से नौसेना कैसे तालमेल बिठा पा रही है?
विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रमादित्य का प्रधानमंत्री के हाथों राष्ट्र को समर्पित होना और भारत में निर्मित सबसे बड़े युद्धपोत आइएनएस कोलकाता का नौसेना में शामिल होना सम्मान की बात है. इससे न सिर्फ नौसेना और देश के लिए इन दोनों प्लेटफॉर्मों के महत्व का पता चलता है बल्कि भारत के विशाल समुद्री हितों की रक्षा करने में नौसेना की अहम भूमिका की पहचान भी पुख्ता होती है. नौसेना बदलाव की दहलीज पर है. आने वाले पांच साल को मैं कार्य प्रणाली और संगठनात्मक दोनों ही दृष्टि से समेकन के दौर के रूप में देखता हूं. निकट भविष्य में पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत, सतह और सतह के नीचे चलने वाले कई जहाज और कई किस्म के विमानन प्लेटफॉर्म शामिल करने की योजना है.
भारतीय परिसंपत्तियों पर हमला करने के लिए किसी आतंकी समूह के एक युद्धपोत पर कब्जा करने की कोशिश समेत पाकिस्तानी नौसेना में कट्टरता हावी होने की खबरें बढ़ती जा रही हैं. आतंकियों के कब्जे वाला युद्धपोत कितनी चिंता का विषय है?
हम ऐसे खतरे के लिए तैयार हैं. 21वीं सदी में खतरे समुद्री डकैती से लेकर अनेक तरह के हैं, जिन्होंने लड़ाई का चेहरा ही बदल दिया है. समुद्र अब कोई सुगम मार्ग नहीं रह गया है. पाकिस्तान की घटना चिंता का विषय है और ऐसे खतरों के लिए हमें अपनी तैयारी बढ़ानी पड़ी है. अब जब हमारे युद्धपोत पाकिस्तानी नौसेना की मौजूदगी वाली अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा में विचरण करेंगे तो हमें जेहादी खतरे का भी ध्यान रखना होगा.
अमेरिका और जापान सहित तमाम देशों के साथ भारत की सुरक्षा संबंधी बातचीत क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ समुद्र की स्वतंत्रता को बनाए रखने पर जोर देती है. नौसेना इस काम में किस तरह हिस्सा लेने की सोच रही है?
विकासशील होने की वजह से समुद्र में बेहतर शांति व्यवस्था होना भारत की रणनीतिक जरूरत है. अपने हितों की रक्षा और उन्हें मजबूत करने के लिए सुरक्षित तथा स्थिर माहौल की जरूरत है. इसके सामने खड़े खतरों और चुनौतियों की प्रकृति को देखते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में सामूहिक और सहयोगी दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है. इसलिए समुद्री क्षेत्र में ‘‘बैश्विक सामूहिक’’ माने जाने वाले क्षेत्रों की रक्षा के लिए भारतीय नौसेना सक्रिय रूप से अन्य समुद्री बलों का साथ देती है. अमेरिका, जापान और हिंद महासागर के तटवर्ती देशों की अन्य समान विचारधारा वाली नौसेनाएं महत्वपूर्ण और सक्रिय जोड़ीदार हैं. ये देश इस इलाके में भारतीय नौसेना की स्थिरता कायम करने भूमिका को भी समझते हैं.
परमाणु पनडुब्बियों से लेकर एक के बाद एक सरफेस पोतों तक, दुनिया चीनी नौसेना का तेज विस्तार देख रही है. यह देखते हुए कि हमारा समुद्री कार्यक्षेत्र एक-दूसरे से सटा हुआ है, पीएलए नौसेना को लेकर, इरादे और क्षमताओं दोनों ही दृष्टिकोणों से आपकी चिंताएं क्या हैं?
हाल के दिनों में पीएलए (नौसेना) त्वरित विस्तार की साक्षी बनी है. इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में इसके विकास का ग्राफ और जहाज /पनडुब्बी उत्पादन क्षमता उल्लेखनीय रही है. बहरहाल, हमारा सरोकार हमारे अपने राष्ट्रीय हितों से है. हम गहरे समुद्र में नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और संचार के अपने समुद्री पथों की सुरक्षा तय करने की खातिर अपने पोतों की तैनाती में यकीन करते हैं. जहां जरूरी हो वहां रास्ता बदलने के लिए हम पड़ोस के बदलते माहौल का निरंतर मूल्यांकन करते रहते हैं.
माना जाता है कि हिंद महासागर क्षेत्र में प्रभावी मौजूदगी के लिए अंडमान और निकोबार द्वीपों को एक प्रमुख सामरिक संपत्ति के तौर पर और अधिक विकसित करने के प्रयास हो रहे हैं?
अंडमान और निकोबार द्वीप भारत को जबरदस्त सामरिक ताकत प्रदान करते हैं. लेकिन उनकी भौगोलिक स्थिति के अधिकतम दोहन के लिए हमें आने वाले वर्षों में बुनियादी ढांचे के उल्लेखनीय विकास की जरूरत है. नौसेना की दृष्टि यह सुनिश्चित करना है कि इन द्वीपों के पास भारत के सुरक्षा हितों की प्रभावी ढंग से रक्षा के लिए जरूरी सामर्थ्य और क्षमता हो.
अरिहंत परमाणु प्रक्षेपास्त्र पनडुब्बी का संचालन कर हम परमाणु त्रयी को पूरा करने के कितने निकट हैं? निर्धारित समय सीमा को कई बार बढ़ाया जा चुका है जबकि इसे दो साल पहले समुद्र में उतर जाना चाहिए था.
उम्मीद है कि हम जल्द ही अरिहंत को उसके पहले संक्षिप्त समुद्री सफर पर जाते देखेंगे. साज-सज्जा और उसमें लगी विभिन्न प्रणालियों के जांच के काम को भी पूरा कर लिया गया है. नया काम होने की वजह से यह एकदम अलग ढंग का प्रोजेक्ट है.
नए नौसेना प्रमुख ने कहा, "जेहादी खतरों के लिए हमें तैयार रहना है"
नए नौसेना प्रमुख एडमिरल आर.के. धोवन का कहना है कि जेहादी खतरों के लिए हमें तैयार रहना होगा. उनके इंडिया टुडे की बातचीत के प्रमुख अंश:

अपडेटेड 8 दिसंबर , 2014
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