काले धन के मुद्दे पर एनडीए सरकार का अब तक का रवैया इस बात का साफ संकेत है कि नई दिल्ली की नई सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती सरकार के अनुभवों से कोई सबक नहीं लिया है. यूपीए सरकार 2009 से पांच साल तक उन 18 लोगों के पीछे पड़ी रही जिनके खाते मध्य यूरोप के नन्हे-से देश लिशटेंस्टाइन के एलजीटी बैंक में थे. लेकिन इस साल अप्रैल में सत्ता से हटने के कुछ हफ्ते पहले जब वह सुप्रीम कोर्ट के सामने खाताधारकों के नाम का खुलासा करने गई तो उसके हाथ पूरी तरह खाली थे.
महीनेभर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाने के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआइटी) के गठन की घोषणा की. सरकार ने अब उन 627 लोगों के नामों की सूची सुप्रीम कोर्ट में सौंपी है, जिनके खाते कथित रूप से जेनेवा के एचएसबीसी बैंक में हैं और एसआइटी—जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआइ) और सीबीआइ जैसी एजेंसियों के अधिकारी हैं—ने यह डर पैदा कर दिया है कि वह उन कठोर कानूनों को वापस ला सकती है जो पैसों की आवाजाही और निवेश पर अंकुश लगाते रहे हैं और व्यापार की राह में रोड़ा बनते रहे हैं.
गौर तलब है कि एसआइटी ने प्रवर्तन निदेशालय के उस प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिसमें 1999 के विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून (फेमा) में संशोधन की पेशकश की गई है, ताकि निदेशालय विदेश में काला धन रखने वाले व्यक्ति की उतनी ही कीमत की संपत्ति भारत में जब्त कर सके. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) इस प्रस्ताव के खिलाफ है, लेकिन प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि इससे काला धन जमा करने वाले संभावित लोगों में खौफ पैदा होगा, क्योंकि इस समय फेमा के प्रावधान लचीले हैं.
एसआइटी ने डीआरआइ से बिजली के उपकरणों के बढ़ा-चढ़ाकर बनाए गए या कम करके दिए गए संदिग्ध बिल पर ध्यान देने को कहा है. माना जाता है कि काले धन को सफेद बनाने के लिए महंगे उपकरणों के फर्जी बिलों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों को डर है कि इससे इस उद्योग की राह अवरूद्घ होगी, जिसका विकास नई सरकार की औद्योगिक वृद्धि की योजना में काफी अहम है.

एसआइटी के एक अन्य प्रस्ताव में उन देशों से आने वाले एफडीआइ के प्रावधानों को सख्त बनाने को कहा गया है, जो टैक्स चोरी के लिए सुरक्षित माने जाते हैं. जांचकर्ताओं का मानना है कि काला धन एफडीआइ के रूप में देश में आ रहा है. लेकिन इससे जायज निवेशकों के मन में डर हो सकता है और निवेश धीमा हो सकता है.
सीबीआइ चाहती है कि काले धन का गढ़ समझे जाने वाले देशों के भारतीय मिशनों में संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए. इस तरह के देशों में स्विट्जरलैंड, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं. एजेंसी यह भी चाहती है कि सरकार परस्पर कानूनी सहायता संधि पर दस्तखत करे ताकि आपराधिक मामलों में जानकारी का आदान-प्रदान किया जा सके.
एसआइटी का यह भी मानना है कि आयकर विभाग को स्विट्जरलैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों के साथ दोहरा कराधान निषेध संधि (डीटीएए) करनी चाहिए और ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे उनके बैंकों में काला धन जमा करने वालों के नाम मांगे जा सकें और उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सके. एसआइटी ने जर्मनी का अनुकरण करने का सुझाव भी दिया है. जर्मनी ने स्विट्जरलैंड से कहा है कि वह अपने बैंकों में जर्मनी के व्यक्तियों की जमा रकम की 20 फीसदी राशि काटकर जर्मन सरकार के खाते में जमा कर दे और इसके लिए खातेदारों के नामों का खुलासा करने की कोई जरूरत नहीं है.
इस बात का डर है कि लगभग ये सभी प्रस्ताव सरकारी एजेंसियों को जरूरत से ज्यादा अधिकार दे देंगे और इससे कॉर्पोरेट इंडिया और बाकी दुनिया के सामने मोदी सरकार की कारोबार को बढ़ावा देने वाली छवि को धक्का लगेगा. मसलन, विदेशी बैंकों में खाता रखने वालों के नामों का खुलासा करना उस देश के साथ डीटीएए के गोपनीय शर्त का उल्लंघन होगा. कुछ देशों ने नामों का खुलासा करने पर आपत्ति जताई है. सरकार को डर है कि डीटीएए की शर्तों के उल्लंघन से वे देश पीछे हट जाएंगे, जो भारत के साथ संधि करने जा रहे हैं. ऐसे देशों में अमेरिका शामिल है.
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट से कह चुके हैं, “जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है, उनके नामों को अगर उजागर कर दिया गया तो विदेशी सरकारों के सूत्र जानकारी देना बंद कर देंगे.” जाहिर है, सरकार काले धन पर चुनावी वादे को अमल में लाने की कोशिश में है, तो दूसरी ओर वह अर्थव्यवस्था में सुधारों और विकास के एजेंडे को भी आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है.
महीनेभर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाने के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआइटी) के गठन की घोषणा की. सरकार ने अब उन 627 लोगों के नामों की सूची सुप्रीम कोर्ट में सौंपी है, जिनके खाते कथित रूप से जेनेवा के एचएसबीसी बैंक में हैं और एसआइटी—जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआइ) और सीबीआइ जैसी एजेंसियों के अधिकारी हैं—ने यह डर पैदा कर दिया है कि वह उन कठोर कानूनों को वापस ला सकती है जो पैसों की आवाजाही और निवेश पर अंकुश लगाते रहे हैं और व्यापार की राह में रोड़ा बनते रहे हैं.
गौर तलब है कि एसआइटी ने प्रवर्तन निदेशालय के उस प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिसमें 1999 के विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून (फेमा) में संशोधन की पेशकश की गई है, ताकि निदेशालय विदेश में काला धन रखने वाले व्यक्ति की उतनी ही कीमत की संपत्ति भारत में जब्त कर सके. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) इस प्रस्ताव के खिलाफ है, लेकिन प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि इससे काला धन जमा करने वाले संभावित लोगों में खौफ पैदा होगा, क्योंकि इस समय फेमा के प्रावधान लचीले हैं.
एसआइटी ने डीआरआइ से बिजली के उपकरणों के बढ़ा-चढ़ाकर बनाए गए या कम करके दिए गए संदिग्ध बिल पर ध्यान देने को कहा है. माना जाता है कि काले धन को सफेद बनाने के लिए महंगे उपकरणों के फर्जी बिलों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों को डर है कि इससे इस उद्योग की राह अवरूद्घ होगी, जिसका विकास नई सरकार की औद्योगिक वृद्धि की योजना में काफी अहम है.

एसआइटी के एक अन्य प्रस्ताव में उन देशों से आने वाले एफडीआइ के प्रावधानों को सख्त बनाने को कहा गया है, जो टैक्स चोरी के लिए सुरक्षित माने जाते हैं. जांचकर्ताओं का मानना है कि काला धन एफडीआइ के रूप में देश में आ रहा है. लेकिन इससे जायज निवेशकों के मन में डर हो सकता है और निवेश धीमा हो सकता है.
सीबीआइ चाहती है कि काले धन का गढ़ समझे जाने वाले देशों के भारतीय मिशनों में संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए. इस तरह के देशों में स्विट्जरलैंड, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं. एजेंसी यह भी चाहती है कि सरकार परस्पर कानूनी सहायता संधि पर दस्तखत करे ताकि आपराधिक मामलों में जानकारी का आदान-प्रदान किया जा सके.
एसआइटी का यह भी मानना है कि आयकर विभाग को स्विट्जरलैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों के साथ दोहरा कराधान निषेध संधि (डीटीएए) करनी चाहिए और ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे उनके बैंकों में काला धन जमा करने वालों के नाम मांगे जा सकें और उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सके. एसआइटी ने जर्मनी का अनुकरण करने का सुझाव भी दिया है. जर्मनी ने स्विट्जरलैंड से कहा है कि वह अपने बैंकों में जर्मनी के व्यक्तियों की जमा रकम की 20 फीसदी राशि काटकर जर्मन सरकार के खाते में जमा कर दे और इसके लिए खातेदारों के नामों का खुलासा करने की कोई जरूरत नहीं है.
इस बात का डर है कि लगभग ये सभी प्रस्ताव सरकारी एजेंसियों को जरूरत से ज्यादा अधिकार दे देंगे और इससे कॉर्पोरेट इंडिया और बाकी दुनिया के सामने मोदी सरकार की कारोबार को बढ़ावा देने वाली छवि को धक्का लगेगा. मसलन, विदेशी बैंकों में खाता रखने वालों के नामों का खुलासा करना उस देश के साथ डीटीएए के गोपनीय शर्त का उल्लंघन होगा. कुछ देशों ने नामों का खुलासा करने पर आपत्ति जताई है. सरकार को डर है कि डीटीएए की शर्तों के उल्लंघन से वे देश पीछे हट जाएंगे, जो भारत के साथ संधि करने जा रहे हैं. ऐसे देशों में अमेरिका शामिल है.
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट से कह चुके हैं, “जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है, उनके नामों को अगर उजागर कर दिया गया तो विदेशी सरकारों के सूत्र जानकारी देना बंद कर देंगे.” जाहिर है, सरकार काले धन पर चुनावी वादे को अमल में लाने की कोशिश में है, तो दूसरी ओर वह अर्थव्यवस्था में सुधारों और विकास के एजेंडे को भी आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है.