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"लंच तो दूर, नटवर से बात किए मुझे सात साल हो गए"

रिश्ते में अमरिंदर सिंह के जीजा लगने वाले नटवर सिंह की किताब ने उन्हें शर्मशार कर दिया है. अमरिंदर का कहना है कि वे नटवर की बातों से सहमत नहीं हैं.

अपडेटेड 18 अगस्त , 2014
अमरिंदर सिंह का खुश होना अब बनता है. बीते आम चुनाव में मौजूदा वित्त मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को अमृतसर से हराने वाले वहां के 72 वर्षीय सांसद अमरिंदर अब लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता हैं और सदन के सर्वाधिक कुशल वक्ताओं में से एक. शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के सत्ताधारी गठबंधन को सात साल से झेल रहे पंजाब में कांग्रेस के लिए संभावनाएं प्रबल हैं. अमरिंदर का मानना है कि 2017 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी बारी आएगी. दिल्ली आकर भी उनका मन वहीं रमा हुआ है, लेकिन रिश्ते में उनके जीजा लगने वाले नटवर सिंह की ओर से लिखी आत्मकथा वन लाइफ इज़ नॉट इनफ में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर किए गए हमले ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री को शर्मसार कर दिया है. दिल्ली के सुंदरनगर स्थित अपने घर पर इंडिया टुडे की एडिटर कावेरी बामजई से बात करते हुए उन्होंने बताया कि वे नटवर सिंह से क्यों असहमत हैं.

नटवर सिंह का कहना है कि कुछ हफ्ते पहले वे आपके साथ ओबेरॉय होटल में लंच कर रहे थे कि वहां कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह पहुंच गए, जिन्होंने उनकी आत्मकथा के बारे में पूछ डाला. इस पर आपको ऐतराज है?
जी बिलकुल. मैंने तो पिछले सात साल से उनसे बात तक नहीं की. मैं तो सिर्फ अपनी बहन (नटवर की पत्नी) से बात करता हूं. उसने मुझे उस दिन साथ में लंच करने के लिए फोन कर के बुलाया था. हम खाना खा चुके थे और निकलने ही वाले थे कि दिग्गी (दिग्विजय) अपने बच्चों के साथ वहां आ गए और मजाकिया लहजे में उन्होंने पूछा, “रानी साहिबा, किताब कब आ रही है?” उसने जवाब दिया कि यह तो प्रकाशक के हाथ में है
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तो फिर इसमें ऐतराज जैसी क्या बात है?

बात ये है कि किसी भी किताब की अपनी विश्वसनीयता होनी चाहिए. इस पुस्तक में सामान्य-सी बात को अगर इस तरह तोड़-मरोड़ कर रखा गया है तो मेरे जैसा आदमी यह जरूर सोचेगा कि इसका कितना हिस्सा तथ्यात्मक है. मैंने सरसरी तौर पर किताब को देखा है और कुछ चीजें इसमें हैं जिनमें मेरी दिलचस्पी जगी, जैसे कि ऑपरेशन ब्रासटैक्स (1986 में भारत-पाकिस्तान सीमा पर सघन सैन्य अभ्यास). इसके बारे में यह कहना कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इसकी जानकारी नहीं थी, बेहद बचकाना बयान है. आखिर प्रधानमंत्री या कैबिनेट या सेना की जानकारी के बगैर कोई राज्यमंत्री और सेना प्रमुख कैसे किसी देश पर हमले की घोषणा कर सकता हैं?

आइपीकेएफ के मामले में भी नटवर सिंह ने लिखा है कि राजीव ने कैबिनेट की मंजूरी लिए बगैर श्रीलंका में सेना भेज दी थी.
ऐसा कोई तरीका ही नहीं था कि प्रधानमंत्री प्रक्रिया का पालन किए बगैर खुद पर इसकी जिम्मेदारी अकेले ले लेते.

आपके लिए तो यह दोहरी शर्मिंदगी की बात होगी क्योंकि आप नटवर के साले हैं.
हम दोनों के बीच अपने मतभेद हैं. हमने सात साल से आपस में बात नहीं की है.

आपकी बातचीत कब और क्यों बंद हुई?
वोल्कर रिपोर्ट आने के बाद जब नटवर ने उनको (सोनिया को) गैर-भारतीय कहा, जो बात उन्होंने किताब में भी दोहराई है. मैं उस वक्त मुख्यमंत्री था. मैंने उनसे कहा, “आपने उनके साथ 30 साल काम किया है, फिर इस मसले को उठाने का क्या मतलब बनता है?” इसके अलावा उन्होंने प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) के लिए जो अपमानजनक टिप्पणियां की थीं—उसी दिन से हम अलग हो गए. सोनिया अपनी जिंदगी का दो-तिहाई समय भारत में बिता चुकी हैं. वे अपनी किताब में दावा करते हैं कि वे पहले शख्स थे जिन्हें इंदिरा गांधी ने बताया था कि उनका बेटा इटली की एक लड़की से शादी करने जा रहा है. आपको 30 साल पहले नहीं पता था कि वे इटली की हैं? ये सब बेकार की टुच्ची बातें हैं.

आपको क्या लगता है कि ऐसी बातें लिखने की वजह क्या हो सकती है?
कुंठा.

आपको नहीं लगता कि यह इज्जत की लड़ाई है, जैसा कि वे कहते हैं?
कैसी इज्जत? वोल्कर रिपोर्ट से नाम हटवाने के लिए? उसके लिए अदालत जाइए. सोनिया को किताब में दोषी ठहराने का क्या मतलब? सोनिया से उन्हें मिलने से कौन रोक रहा था? सीधी-सी बात है कि अगर आपका किसी व्यक्ति से रिश्ता है तो फोन कीजिए और मिलने चले जाइए.

उनका कहना है कि वे मिलने नहीं जाना चाहते थे क्योंकि अंबिका सोनी ने कथित तौर पर एक बयान जारी कर के कांग्रेस को उनसे दूर कर दिया था.
मैं नहीं मानता. आपको मैं अपना किस्सा सुनाता हूं—ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद मैं इंदिरा और राजीव से असहमत था. मैंने (पटियाला के सांसद पद से) इस्तीफा दे दिया. महीने भर बाद मैं गया और राजीव के साथ चाय पर मैंने बात की. हमारे बीच मतभेद थे लेकिन हमने अपने रिश्ते बनाए रखे. नटवर का तो सोनिया के साथ गर्मजोशी भरा रिश्ता रहा है.

आप मानते हैं कि वे निर्दोष हैं?
पता नहीं, लेकिन आरोप साबित करने के लिए तो कुछ नहीं है.

चलिए, उन बातों पर आते हैं जो उन्होंने सोनिया के बारे में लिखी हैं, जैसे हर प्रमुख मंत्रालय में अपने जासूस छोडऩे वाली बात.
मैंने उनके साथ राज्य इकाई के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और प्रचार प्रमुख की हैसियत से 16 साल काम किया है. अब उन्होंने मुझे संसद में अपना उपनेता बनाया है. जब आप किसी के साथ काम करते हैं तो उसे जानते भी होते हैं. मैं सोनिया को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता हूं जो प्रबंधन के आधुनिक तरीकों में विश्वास करती हैं. वे ऐसी शख्स हैं जो आपको एक जिम्मेदारी देती हैं और उसके पूरा होने की उम्मीद करती हैं. अगर आप नाकाम रहे, तो वे बड़ी सहजता से कह सकती हैं कि मैं आपको अब हटाने जा रही हूं. चीजें ऐसे ही चलनी भी चाहिए. फिर उन्हें यहां-वहां जासूस तैनात करने की क्या जरूरत है?

क्या वे चीजों पर नजर नहीं रखती हैं?
बेशक. मैं जब मुख्यमंत्री था तो उन्हें हर तिमाही रिपोर्ट देता था कि कांग्रेस का घोषणापत्र हमारे राज्य में कैसे लागू किया जा रहा है. अध्यक्ष का यही काम होता है कि वह इस बात पर निगरानी रखे कि उसके मुख्यमंत्री ने जो वादा किया है, वह पूरा हो रहा है या नहीं.

इसके बावजूद जब आपसे उन्होंने लोकसभा चुनाव लडऩे को कहा तो आप चौंक गए थे.
मैंने उनसे कहा कि “आपने मुझे 16 साल से पंजाब में रखा है और मेरे ऊपर मेहनत की है. मुझे लगता है कि मैं आपकी ओर से राज्य में प्रचार करने में ज्यादा उपयोगी रहूंगा.” उन्होंने जवाब दिया, “मुझे सोचने दीजिए.” फिर कुछ दिनों बाद हमारी दोबारा मुलाकात हुई और उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या आप बठिंडा से लडऩा चाहेंगे?” मैंने मना कर दिया क्योंकि हमारा मानना था कि परिसीमन में वह सीट बादल परिवार के पास चली गई थी. वैसे, हम लोग वास्तव में बठिंडा से ही हैं. हम यहां 1305 ई. में जैसलमेर से आए थे. फिर उन्होंने पूछा, “अमृतसर के बारे में क्या खयाल है?” मैंने फिर इनकार किया. उन्होंने कहा, “लेकिन आप मुख्यमंत्री रह चुके हैं?” मैंने कहा कि एक मुख्यमंत्री के तौर पर आप कई जगहों पर बोलते हैं लेकिन एक प्रत्याशी के बतौर आपको 700 गांवों और 1,200 मुहल्लों में जाना होता है. उन्होंने कहा, “ठीक है, मुझे सोचने दीजिए.” फिर एक दिन मैं पटियाला जा रहा था कि उनका फोन आया. उन्होंने पूछा, “क्या आप मेरे लिए लड़ेंगे?” मैंने कहा, “बिलकुल, लेकिन कहां से?” उन्होंने कहा, ‘अमृतसर’. मैंने सोचा कि अगर पार्टी का अध्यक्ष मुझसे ऐसा करने को कह रहा है, तो मुझे तैयार हो जाना चाहिए.

और आप जीत भी गए.  क्या इस पर आपको हैरत हुई?
स्थानीय स्तर पर बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं ने हमारे लिए काम किया. एक किस्सा सुनाता हूं आपको—शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (बादल नियंत्रित संगठन) के सभी 1,400 परिवारों ने मुझे समर्थन दिया था. जेटली की बहन स्वर्णमंदिर गई थीं. वहां एक ग्रंथी ने उनसे कहा, “बीबी, पंजे नू हाथ पाईं (कांग्रेस को वोट दें).” उन्होंने कहा, “ये क्या कह रहे हैं? मैं जेटली की बहन हूं.” इस पर ग्रंथी ने कहा, “फिर अपने भाई को बता दो, हम तो पंजे को ही वोट डालेंगे.”

इसका मतलब ये है कि बीजेपी और अकालियों के गठबंधन के खिलाफ जमीनी स्तर पर रोष है?
हम क्यों हार गए और आम आदमी पार्टी को फायदा क्यों हुआ, इसकी एक वजह यह थी कि पंजाब के लोग मानते थे कि हम पूरी तरह भ्रष्ट हैं. यह हमारे साथ ज्यादती थी. जहां तक अकालियों का सवाल है तो उन्हें लोगों ने ड्रग्स की समस्या, भ्रष्टचार, निर्दोष लोगों पर लगाए गए मुकदमों और संपत्ति कर के चलते सबक सिखाया. लोगों के पास आम आदमी पार्टी के पास जाने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था.

चलिए, राहुल पर आते हैं. नटवर ने किताब में जो सबसे अहम बात कही वो ये कि राहुल ने सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से डराया और रोका था. यह बात खुद उनके द्वारा पार्टी को नेतृत्व देने की इच्छा पर सवालिया निशान लगाती है.
मुझे ऐसा नहीं लगता. वे 2004 में 34 साल के थे, अपनी दादी और पिता को खो चुके थे. उस समय तक वे सियासी दुनिया का हिस्सा नहीं बने थे. अब वे बदल चुके हैं क्योंकि वे इसके भीतर हैं.

लेकिन उन्होंने हाल ही में कहा था कि सत्ता जहर है. पार्टी का नेतृत्व करने के लिए क्या वे उपयुक्त हैं?
हार का दोष उनके सिर पर मढऩा पूरी तरह गलत है. पूरे देश को ही विश्वास दिला दिया गया था कि हम सब भ्रष्ट हैं.

क्या आप कहना चाह रहे हैं कि बीजेपी की जीत दुष्प्रचार से हुई है?
मीडिया ने हमें कठघरे में खड़ा कर दिया. हुआ यह कि राहुल ठीक इसी वक्त पार्टी की कमान संभालने को आए और लोग उन्हें दोष देने लगे. यह उनके लिए पहला मौका था. मैं पक्का कह सकता हूं कि आने वाले वक्त में वे अपनी क्षमता का परिचय देंगे. मैं उन्हें बहुत बचपन से जानता हूं. 12 साल की उम्र में वे बड़े जिज्ञासु हुआ करते थे. एक बात और बताना चाहूंगा. अभी से ही रुझान बदलते दिखने लगे हैं. हालिया उपचुनावों में उत्तराखंड की सभी तीन सीटें कांग्रेस को मिली हैं.

लेकिन महाराष्ट्र्र और हरियाणा में कांग्रेस का काम मुश्किल दिख रहा है, जहां जल्द ही असेंबली के चुनाव होने वाले हैं.
यह असल में सत्ता विरोधी हवा वाली बात है लेकिन मुझे नहीं लगता कि आप कांग्रेस की उपेक्षा कर सकते हैं. मार्च से पहले आठ राज्यों में चुनाव होने हैं. हमें कड़ी मेहनत करनी होगी.

नटवर तो यहां तक कहते हैं कि गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस का अस्तित्व नहीं है और इसके बगैर पार्टी दो फाड़ हो जाएगी.
तब वे किस बात का रोना मचाए हुए हैं!       
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