अरसे से यहां के निवासी गड्ढों से भरी गलियों से बचकर निकलने के लिए बाध्य थे. लेकिन अंततः उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के धुर दक्षिण के गुमनाम से गांव कटरा सआदतगंज में एक हेलिपेड बन गया है. हर पार्टी के नेता 12 और 14 साल की दो चचेरी बहनों के दुखी परिजनों को दिलासा देने आ रहे हैं. ये वही लड़कियां हैं जो 27 मई की रात जब शौच के लिए खेत की ओर जा रही थीं तभी बलात्कार के बाद उनकी हत्या कर लाशें पेड़ पर लटका दी गईं.
उसी पेड़ से महज 50 फुट की दूरी पर आनन-फानन में तैयार किए हेलिपेड पर राहुल गांधी निजी चाटर्ड हेलिकॉप्टर से पीड़ित परिवार को सांत्वना देने, उनके साथ फोटो खिंचवाने आए. अवसर के अनुकूल चेहरे पर शोक के भाव लाते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष वहां कुल 20 मिनट रहे, इन्हीं 20 मिनटों में अखिलेश यादव सरकार की आलोचना की और लड़कियों के घर वालों को आश्वासन दे डाला, ‘‘मैं आप लोगों को न्याय दिलवाऊंगा.’’ अपराध स्थल का दौरा कर वे दिल्ली के लिए उड़ चले.
राहुल के दौरे के बाद राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती दलित और पिछड़ी जातियों में जनाधार फिर हासिल करने के इरादे से सआदतगंज के शोकाकुल परिजनों की मातमपुर्सी के लिए वहां पहुंचीं. बीएसपी प्रमुख जब 2007 से 2012 तक राज्य की मुख्यमंत्री रहीं तब भी उन्होंने किसी अपराध स्थल का दौरा नहीं किया होगा लेकिन जब मृतकों के पिता 35 वर्षीय सोहनलाल और उनके 30 वर्षीय भाई जीवनलाल ने यादवों द्वारा अपनी बेटियों की हत्या के बदले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की 5-5 लाख रु. अनुग्रह राशि ठुकरा दी तो मायावती को मौका हाथ लग गया. लड़कियों के माता-पिता को सांत्वना देते हुए वे बोलीं, ‘‘मुझे अच्छा लगा और इसी बात को सुनकर मैंने आपसे मिलने का इरादा किया.’’ लड़कियां शाक्य समुदाय से थीं. मायावती ने बीएसपी कोष से पैसे देने की पेशकश की और कहा कि यह पैसा मदद के रूप में है क्योंकि इस परिवार को न्याय के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ेगी.

मायावती शाक्य समुदाय को अपना पक्का वोट बैंक मानती हैं, लिहाजा उन्होंने अब कुख्यात हो चुके उस पेड़ की परिक्रमा की और उसकी छांह में एक संवाददाता सम्मेलन भी आयोजित कर डाला. हर स्थानीय और राष्ट्रीय चैनलों की ओबी वैन और हेलिकॉप्टरों को ताकते उत्सुक-से ग्रामीणों के दृश्य से मायावती को अपने सत्ता के दिन जरूर याद आ रहे होंगे.
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार का 1 जून का दौरा अपेक्षाकृत कम चर्चा में रहा. बीजेपी के साथ चुनाव से पूर्व गठबंधन से मिली जीत, नरेंद्र मोदी कैबिनेट में जगह मिलने की खुशी से फूले, लोकजन शक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान एक दिन बाद वहां पहुंचे, साथ में थे पहली बार संसदीय चुनाव जीते उनके बेटे चिराग पासवान. पिता-पुत्र ने सोहनलाल और उसके छोटे भाई जीवनलाल को उनके ईंट के टूटे-फूटे घर में सांत्वना देने में पर्याप्त समय लगाया. बाद में साउंडबाइट लेने को बेताब टीवी क्रू के साथ उस आम के पेड़ का मुआयना भी किया. चिराग ने चुनाव रैलियों में मुलायम सिंह के कहे उन शब्दों पर भी व्यंग्य कसा, ‘‘लड़के आखिर लड़के होते हैं, गलती हो जाती है.’’ चिराग ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे में उनके बेटे की सरकार से न्याय मिलने की क्या उम्मीद की जा सकती है? बस मोदी ही यहां नहीं पहुंचे, जबकि हत्या के तुरंत बाद परिजनों ने कहा था कि जब तक मोदी नहीं आएंगे, वे बच्चियों के शव पेड़ से नहीं उतारेंगे.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सआदतगंज और राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में अचानक आई बाढ़ के बाद की स्थिति से ध्यान हटाने का प्रयास करने में लगे थे. 3 जून को उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘‘निहित स्वार्थों वाले नेता ही उत्तर प्रदेश पर सारा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. सिर्फ यहीं बलात्कार की घटनाएं नहीं होतीं.’’ साथ ही उन्हें पूरे देश की असली तस्वीर जानने के लिए गूगल सर्च की सलाह दे डाली. दरअसल मुख्यमंत्री एक ऐसे मीडिया ट्रायल में फंस गए हैं, जहां उनसे जवाब देते नहीं बन रहा है. कानून-व्यवस्था उनके दो साल के शासन की ऐसी कमजोर नस है जो हमेशा दबी ही रहती है. मुजफ्फरनगर दंगों से दबे-कुचलों के यौन उत्पीडऩ तक हर बार उनकी पुलिस नाकाम रही और उन्हें अपने शासन का बचाव करना पड़ा.
इसीलिए वे आंकड़ों की बात कर रहे हैं और घटना के मर्म को नहीं समझ रहे. मामला भले ही क्रूरता की हद पार करने वाला हो. 30 मई को बरेली के निकट एक गांव में 20 वर्षीया लड़की पर एसिड डाल कर आग लगा दी गई. 2 जून को अलीगढ़ में एक महिला न्यायाधीश के घर में घुसकर उसके साथ बलात्कार का प्रयास किया गया. यह देश में अपनी तरह का संभवतः पहला मामला होगा. 27 मई को बदायूं घटना के बाद एक हफ्ते में बलात्कार और हत्या के दर्जन भर मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ही तरह असहिष्णु अखिलेश यह मानने को ही तैयार नहीं हैं कि राज्य प्रशासन में कहीं कोई गड़बड़ी या खामी है.

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, देश में 2012 में महिलाओं और बच्चों के साथ हुए अपराधों में 8 फीसदी (24,157 में से 1,963) यहीं हुए. लेकिन बलात्कार के मामले सबसे ज्यादा 3,425 मध्य प्रदेश में रहे. इसी तरह महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध क्रमशः पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में दर्ज किए गए.
उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुख आशीष कुमार गुप्ता का कहना है, ‘‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को ठीक से रिकॉर्ड नहीं करता. राज्य में रोज बलात्कार के औसतन 10 मामले होते हैं. सआदतगंज के शोक-संतप्त परिवारों के लिए यह सप्ताह अचरज भरा रहा. उन्हें इतनी गुंजाइश भी नहीं मिल पा रही कि दो बेटियों की मौत पर गम भी मना सकें. गांव के बीचोबीच छोटे से तीन कमरों वाले घर में सुरक्षा गार्डों से घिरे नेताओं का आवागमन व्यवधान डालता रहता है. ‘‘बड़े्य ही नहीं, छोटे नेता भी मातमपुर्सी को आए, दादरगंज से विधायक सिनोद कुमार शाक्य से लेकर बीएसपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता स्वामी प्रसाद मौर्य और हाल ही में बीजेपी के टिकट पर जीते सांसद धर्मेंद्र कश्यप भी तशरीफ लाए.

बदायूं से सपा के लोकसभा सदस्य धर्मेंद्र यादव तो 1 जून को मायावती के वहां आने से घंटा भर पहले ही आए थे. वे अखिलेश यादव की ओर से मुआवजा स्वीकार करने पर फिर से गौर करने का अनुरोध कर रहे थे. सोहनलाल ने उनका ऑफर ठुकरा दिया, ‘‘हमें न्याय चाहिए, मुआवजा नहीं.’’ हताश पिता का कहना था कि न्याय तभी होगा जब हत्यारों को ‘‘उसी आम के पेड़ पर लटकाया जाएगा.’’ जब पत्रकारों ने यादव से पूछा कि वे घटना के इतने दिन बाद क्यों आए तो उन्होंने कहा कि वे अपना काम करके आए हैं. उनका कहना था कि पहली प्राथमिकता आरोपियों की गिरफ्तारी थी और उनके आने से पहले पांच में से तीन आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. उनके वहां पहुंचने तक चौकी का पूरा स्टाफ भी निलंबित किया जा चुका था.
दोनों लड़कियां चचेरी बहनें थीं, उससे भी बढ़कर गहरी सहेलियां थीं. बड़ी लड़की की मां, 35 वर्षीया सुनीता कहती हैं, ‘‘बेटी डॉक्टर बनना चाहती थी.’’ स्थानीय मिडल स्कूल में वह अपनी कक्षा के लड़कों से भी होशियार थी. सोहनलाल और उनकी पत्नी भी बेटी के सपने पूरे करने के लिए उसे पास के उसहैत कस्बे में हाइस्कूल में दाखिल करवाना चाहते थे. गुस्से में भरी मां का कहना है, ‘‘यदि पुलिस समय पर आई होती तो बच्चियां अब भी जिंदा होतीं.’’ वे बताती हैं कि जब स्थानीय पुलिस चौकी में उन्होंने लड़कियों की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई तो उनका व्यवहार एकदम उपेक्षा भरा था.
दिवंगत लड़कियों के 27 वर्षीय रिश्तेदार राम बाबू उस मनहूस रात को अपने दो बीघा खेत में पानी देने जा रहे थे, तभी उन्होंने लड़कियों की चीख-पुकार सुनी.

वे दौड़कर वहां पहुंचे तो देखा कि एक किसान का बेटा पप्पू यादव लड़कियों के बाल खींचकर उन्हें ले जा रहा है. ‘‘मुझे देख देसी कट्टा दिखाया.’’ जब वे लड़कियों के माता-पिता के साथ चौकी पहुंचे तो वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने उनसे घर जाकर लड़कियों का इंतजार करने को कहा. आंखों में लाचारी के आंसू भरकर सोहनलाल कहते हैं, ‘‘पुलिस हमारी मदद ही नहीं करना चाहती थी.’’ वे बताते हैं कि चौकी पर उन्होंने कांस्टेबल सर्वेश यादव को मुख्य अभियुक्त पप्पू यादव को सलाह देते सुना कि लड़कियों को खत्म कर दो, ‘‘बलात्कारियों को जेल में कठिन जीवन बिताना पड़ता है लेकिन हत्यारों से सब डरते हैं.’’ इसके पांच घंटे बाद ही सोहनलाल के घर से महज 200 मीटर दूर एक आम के पेड़ पर लड़कियों के शव लटकते मिले.
यह भी विडंबना है कि लड़कियों के परिजनों को यह खबर कांस्टेबल सर्वेश यादव ने ही दी. 28 मई की सुबह उसने सोहनलाल और उसके परिवार से कहा, ‘‘आम के बाग में देख लो, कहीं तुम्हारी लड़कियां वहां तो नहीं लटक रहीं.’’
वहां के ग्रामीणों का मानना है कि सोहनलाल और जीवनलाल के परिवार के साथ हुए हादसे का सीधा संबंध यादवों के बढ़ते दबदबे से है. इस शाक्य बहुल गांव में 2007 में भारी संख्या में यादव आ बसे थे. उस समय गंगा पर एक नया बैराज बना था. उसमें एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक हिम्मत सिंह कहते हैं कि पहले से ही संपन्न यादव तब और समृद्ध हो गए जब उन्होंने यहां की बेहद उपजाऊ जमीन पर मेंथा, लहसुन और तंबाकू की खेती शुरू की. उन्होंने कुछ जमीन तो खरीदी और कुछ शाक्यों से छीन ली. दादरगंज सेबीएसपी विधायक सिनोद कुमार शाक्य कहते हैं, ‘‘मार्च, 2012 में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से यादवों का प्रभुत्व बढ़ गया, यहां तक कि वे आक्रामक हो गए.’’

जरा इस पर गौर कीजिएः चौकी पर तैनात चारों पुलिस अधिकारी यादव हैं. 17 हिस्ट्रीशीटरों में से 11 इसी समुदाय के हैं. लखनऊ यूनिवर्सिटी की समाज विज्ञानी अर्चना शुक्ल को यह दौर उत्तर प्रदेश के जातिवाद में बहुत उथल-पुथल वाला नजर आ रहा है. वे कहती हैं, ‘‘कभी जिन लोगों पर अत्याचार होता था अब वे आर्थिक और राजनैतिक दृष्टि से दबंग हो गए हैं. गरीब-कमजोर तबके के लोग अब भी निशाना बनते हैं लेकिन अब पलटवार कर रहे हैं. यही वजह है कि सोहनलाल और उनके भाई सरकार की ‘खूनी आर्थिक मदद’ को नामंजूर कर न्याय की मांग कर रहे हैं.’’ विडंबना यह कि सआदतगंज के राजनैतिकों का ‘‘पर्यटन स्थल’’ बनने के बाद शायद न्याय प्रक्रिया जल्द शुरू हो और पांचों दोषियों जिनमें दो पुलिसकर्मी शामिल हैं, को सजा मिल जाए. यदि मुख्यमंत्री अपने वादे को पूरा करते हैं तो बलात्कार और हत्या का मामला सीबीआइ को सौंपा जाएगा.

27 मई से ही राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं सुर्खियों में हैं और अब तक 11 अपराधियों को पकड़ा जा चुका है. यह भी दिलचस्प है कि स्थानीय नेताओं समेत किसी भी नेता ने पीड़ित परिवार को पूरा सहयोग देने के सवाल पर एक शब्द भी नहीं कहा है.
कटरा सआदतगंज में एसडीएम ओपी तिवारी का वादा है, ‘‘हर घर में शौचालय होगा ताकि लड़कियों को बाहर न जाना पड़े.’’ इस बीच मृतक लड़कियों के घर के सामने की नाली को उन्होंने ढक दिया है ताकि वहां आने वाले नेताओं को असुविधा न हो. जहां तक ग्रामीणों का सवाल है तो उनके यहां नया हेलिपेड बन गया है, जो उनके किसी काम का नहीं है. उनके सबसे ज्यादा काम की चीज थी कानून-व्यवस्था पर पकड़. लेकिन यहां तो अपराधियों और पुलिसवालों के बीच रिश्ता इतना गहरा पनप चुका है जिसे तोडऩे में उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक कोशिश नाकाम ही होती चली आई है.
उसी पेड़ से महज 50 फुट की दूरी पर आनन-फानन में तैयार किए हेलिपेड पर राहुल गांधी निजी चाटर्ड हेलिकॉप्टर से पीड़ित परिवार को सांत्वना देने, उनके साथ फोटो खिंचवाने आए. अवसर के अनुकूल चेहरे पर शोक के भाव लाते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष वहां कुल 20 मिनट रहे, इन्हीं 20 मिनटों में अखिलेश यादव सरकार की आलोचना की और लड़कियों के घर वालों को आश्वासन दे डाला, ‘‘मैं आप लोगों को न्याय दिलवाऊंगा.’’ अपराध स्थल का दौरा कर वे दिल्ली के लिए उड़ चले.
राहुल के दौरे के बाद राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती दलित और पिछड़ी जातियों में जनाधार फिर हासिल करने के इरादे से सआदतगंज के शोकाकुल परिजनों की मातमपुर्सी के लिए वहां पहुंचीं. बीएसपी प्रमुख जब 2007 से 2012 तक राज्य की मुख्यमंत्री रहीं तब भी उन्होंने किसी अपराध स्थल का दौरा नहीं किया होगा लेकिन जब मृतकों के पिता 35 वर्षीय सोहनलाल और उनके 30 वर्षीय भाई जीवनलाल ने यादवों द्वारा अपनी बेटियों की हत्या के बदले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की 5-5 लाख रु. अनुग्रह राशि ठुकरा दी तो मायावती को मौका हाथ लग गया. लड़कियों के माता-पिता को सांत्वना देते हुए वे बोलीं, ‘‘मुझे अच्छा लगा और इसी बात को सुनकर मैंने आपसे मिलने का इरादा किया.’’ लड़कियां शाक्य समुदाय से थीं. मायावती ने बीएसपी कोष से पैसे देने की पेशकश की और कहा कि यह पैसा मदद के रूप में है क्योंकि इस परिवार को न्याय के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ेगी.

मायावती शाक्य समुदाय को अपना पक्का वोट बैंक मानती हैं, लिहाजा उन्होंने अब कुख्यात हो चुके उस पेड़ की परिक्रमा की और उसकी छांह में एक संवाददाता सम्मेलन भी आयोजित कर डाला. हर स्थानीय और राष्ट्रीय चैनलों की ओबी वैन और हेलिकॉप्टरों को ताकते उत्सुक-से ग्रामीणों के दृश्य से मायावती को अपने सत्ता के दिन जरूर याद आ रहे होंगे.
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार का 1 जून का दौरा अपेक्षाकृत कम चर्चा में रहा. बीजेपी के साथ चुनाव से पूर्व गठबंधन से मिली जीत, नरेंद्र मोदी कैबिनेट में जगह मिलने की खुशी से फूले, लोकजन शक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान एक दिन बाद वहां पहुंचे, साथ में थे पहली बार संसदीय चुनाव जीते उनके बेटे चिराग पासवान. पिता-पुत्र ने सोहनलाल और उसके छोटे भाई जीवनलाल को उनके ईंट के टूटे-फूटे घर में सांत्वना देने में पर्याप्त समय लगाया. बाद में साउंडबाइट लेने को बेताब टीवी क्रू के साथ उस आम के पेड़ का मुआयना भी किया. चिराग ने चुनाव रैलियों में मुलायम सिंह के कहे उन शब्दों पर भी व्यंग्य कसा, ‘‘लड़के आखिर लड़के होते हैं, गलती हो जाती है.’’ चिराग ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे में उनके बेटे की सरकार से न्याय मिलने की क्या उम्मीद की जा सकती है? बस मोदी ही यहां नहीं पहुंचे, जबकि हत्या के तुरंत बाद परिजनों ने कहा था कि जब तक मोदी नहीं आएंगे, वे बच्चियों के शव पेड़ से नहीं उतारेंगे.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सआदतगंज और राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में अचानक आई बाढ़ के बाद की स्थिति से ध्यान हटाने का प्रयास करने में लगे थे. 3 जून को उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘‘निहित स्वार्थों वाले नेता ही उत्तर प्रदेश पर सारा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. सिर्फ यहीं बलात्कार की घटनाएं नहीं होतीं.’’ साथ ही उन्हें पूरे देश की असली तस्वीर जानने के लिए गूगल सर्च की सलाह दे डाली. दरअसल मुख्यमंत्री एक ऐसे मीडिया ट्रायल में फंस गए हैं, जहां उनसे जवाब देते नहीं बन रहा है. कानून-व्यवस्था उनके दो साल के शासन की ऐसी कमजोर नस है जो हमेशा दबी ही रहती है. मुजफ्फरनगर दंगों से दबे-कुचलों के यौन उत्पीडऩ तक हर बार उनकी पुलिस नाकाम रही और उन्हें अपने शासन का बचाव करना पड़ा.
इसीलिए वे आंकड़ों की बात कर रहे हैं और घटना के मर्म को नहीं समझ रहे. मामला भले ही क्रूरता की हद पार करने वाला हो. 30 मई को बरेली के निकट एक गांव में 20 वर्षीया लड़की पर एसिड डाल कर आग लगा दी गई. 2 जून को अलीगढ़ में एक महिला न्यायाधीश के घर में घुसकर उसके साथ बलात्कार का प्रयास किया गया. यह देश में अपनी तरह का संभवतः पहला मामला होगा. 27 मई को बदायूं घटना के बाद एक हफ्ते में बलात्कार और हत्या के दर्जन भर मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ही तरह असहिष्णु अखिलेश यह मानने को ही तैयार नहीं हैं कि राज्य प्रशासन में कहीं कोई गड़बड़ी या खामी है.

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, देश में 2012 में महिलाओं और बच्चों के साथ हुए अपराधों में 8 फीसदी (24,157 में से 1,963) यहीं हुए. लेकिन बलात्कार के मामले सबसे ज्यादा 3,425 मध्य प्रदेश में रहे. इसी तरह महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध क्रमशः पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में दर्ज किए गए.
उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुख आशीष कुमार गुप्ता का कहना है, ‘‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को ठीक से रिकॉर्ड नहीं करता. राज्य में रोज बलात्कार के औसतन 10 मामले होते हैं. सआदतगंज के शोक-संतप्त परिवारों के लिए यह सप्ताह अचरज भरा रहा. उन्हें इतनी गुंजाइश भी नहीं मिल पा रही कि दो बेटियों की मौत पर गम भी मना सकें. गांव के बीचोबीच छोटे से तीन कमरों वाले घर में सुरक्षा गार्डों से घिरे नेताओं का आवागमन व्यवधान डालता रहता है. ‘‘बड़े्य ही नहीं, छोटे नेता भी मातमपुर्सी को आए, दादरगंज से विधायक सिनोद कुमार शाक्य से लेकर बीएसपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता स्वामी प्रसाद मौर्य और हाल ही में बीजेपी के टिकट पर जीते सांसद धर्मेंद्र कश्यप भी तशरीफ लाए.

बदायूं से सपा के लोकसभा सदस्य धर्मेंद्र यादव तो 1 जून को मायावती के वहां आने से घंटा भर पहले ही आए थे. वे अखिलेश यादव की ओर से मुआवजा स्वीकार करने पर फिर से गौर करने का अनुरोध कर रहे थे. सोहनलाल ने उनका ऑफर ठुकरा दिया, ‘‘हमें न्याय चाहिए, मुआवजा नहीं.’’ हताश पिता का कहना था कि न्याय तभी होगा जब हत्यारों को ‘‘उसी आम के पेड़ पर लटकाया जाएगा.’’ जब पत्रकारों ने यादव से पूछा कि वे घटना के इतने दिन बाद क्यों आए तो उन्होंने कहा कि वे अपना काम करके आए हैं. उनका कहना था कि पहली प्राथमिकता आरोपियों की गिरफ्तारी थी और उनके आने से पहले पांच में से तीन आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. उनके वहां पहुंचने तक चौकी का पूरा स्टाफ भी निलंबित किया जा चुका था.
दोनों लड़कियां चचेरी बहनें थीं, उससे भी बढ़कर गहरी सहेलियां थीं. बड़ी लड़की की मां, 35 वर्षीया सुनीता कहती हैं, ‘‘बेटी डॉक्टर बनना चाहती थी.’’ स्थानीय मिडल स्कूल में वह अपनी कक्षा के लड़कों से भी होशियार थी. सोहनलाल और उनकी पत्नी भी बेटी के सपने पूरे करने के लिए उसे पास के उसहैत कस्बे में हाइस्कूल में दाखिल करवाना चाहते थे. गुस्से में भरी मां का कहना है, ‘‘यदि पुलिस समय पर आई होती तो बच्चियां अब भी जिंदा होतीं.’’ वे बताती हैं कि जब स्थानीय पुलिस चौकी में उन्होंने लड़कियों की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई तो उनका व्यवहार एकदम उपेक्षा भरा था.
दिवंगत लड़कियों के 27 वर्षीय रिश्तेदार राम बाबू उस मनहूस रात को अपने दो बीघा खेत में पानी देने जा रहे थे, तभी उन्होंने लड़कियों की चीख-पुकार सुनी.

वे दौड़कर वहां पहुंचे तो देखा कि एक किसान का बेटा पप्पू यादव लड़कियों के बाल खींचकर उन्हें ले जा रहा है. ‘‘मुझे देख देसी कट्टा दिखाया.’’ जब वे लड़कियों के माता-पिता के साथ चौकी पहुंचे तो वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने उनसे घर जाकर लड़कियों का इंतजार करने को कहा. आंखों में लाचारी के आंसू भरकर सोहनलाल कहते हैं, ‘‘पुलिस हमारी मदद ही नहीं करना चाहती थी.’’ वे बताते हैं कि चौकी पर उन्होंने कांस्टेबल सर्वेश यादव को मुख्य अभियुक्त पप्पू यादव को सलाह देते सुना कि लड़कियों को खत्म कर दो, ‘‘बलात्कारियों को जेल में कठिन जीवन बिताना पड़ता है लेकिन हत्यारों से सब डरते हैं.’’ इसके पांच घंटे बाद ही सोहनलाल के घर से महज 200 मीटर दूर एक आम के पेड़ पर लड़कियों के शव लटकते मिले.
यह भी विडंबना है कि लड़कियों के परिजनों को यह खबर कांस्टेबल सर्वेश यादव ने ही दी. 28 मई की सुबह उसने सोहनलाल और उसके परिवार से कहा, ‘‘आम के बाग में देख लो, कहीं तुम्हारी लड़कियां वहां तो नहीं लटक रहीं.’’
वहां के ग्रामीणों का मानना है कि सोहनलाल और जीवनलाल के परिवार के साथ हुए हादसे का सीधा संबंध यादवों के बढ़ते दबदबे से है. इस शाक्य बहुल गांव में 2007 में भारी संख्या में यादव आ बसे थे. उस समय गंगा पर एक नया बैराज बना था. उसमें एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक हिम्मत सिंह कहते हैं कि पहले से ही संपन्न यादव तब और समृद्ध हो गए जब उन्होंने यहां की बेहद उपजाऊ जमीन पर मेंथा, लहसुन और तंबाकू की खेती शुरू की. उन्होंने कुछ जमीन तो खरीदी और कुछ शाक्यों से छीन ली. दादरगंज सेबीएसपी विधायक सिनोद कुमार शाक्य कहते हैं, ‘‘मार्च, 2012 में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से यादवों का प्रभुत्व बढ़ गया, यहां तक कि वे आक्रामक हो गए.’’

जरा इस पर गौर कीजिएः चौकी पर तैनात चारों पुलिस अधिकारी यादव हैं. 17 हिस्ट्रीशीटरों में से 11 इसी समुदाय के हैं. लखनऊ यूनिवर्सिटी की समाज विज्ञानी अर्चना शुक्ल को यह दौर उत्तर प्रदेश के जातिवाद में बहुत उथल-पुथल वाला नजर आ रहा है. वे कहती हैं, ‘‘कभी जिन लोगों पर अत्याचार होता था अब वे आर्थिक और राजनैतिक दृष्टि से दबंग हो गए हैं. गरीब-कमजोर तबके के लोग अब भी निशाना बनते हैं लेकिन अब पलटवार कर रहे हैं. यही वजह है कि सोहनलाल और उनके भाई सरकार की ‘खूनी आर्थिक मदद’ को नामंजूर कर न्याय की मांग कर रहे हैं.’’ विडंबना यह कि सआदतगंज के राजनैतिकों का ‘‘पर्यटन स्थल’’ बनने के बाद शायद न्याय प्रक्रिया जल्द शुरू हो और पांचों दोषियों जिनमें दो पुलिसकर्मी शामिल हैं, को सजा मिल जाए. यदि मुख्यमंत्री अपने वादे को पूरा करते हैं तो बलात्कार और हत्या का मामला सीबीआइ को सौंपा जाएगा.

27 मई से ही राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं सुर्खियों में हैं और अब तक 11 अपराधियों को पकड़ा जा चुका है. यह भी दिलचस्प है कि स्थानीय नेताओं समेत किसी भी नेता ने पीड़ित परिवार को पूरा सहयोग देने के सवाल पर एक शब्द भी नहीं कहा है.
कटरा सआदतगंज में एसडीएम ओपी तिवारी का वादा है, ‘‘हर घर में शौचालय होगा ताकि लड़कियों को बाहर न जाना पड़े.’’ इस बीच मृतक लड़कियों के घर के सामने की नाली को उन्होंने ढक दिया है ताकि वहां आने वाले नेताओं को असुविधा न हो. जहां तक ग्रामीणों का सवाल है तो उनके यहां नया हेलिपेड बन गया है, जो उनके किसी काम का नहीं है. उनके सबसे ज्यादा काम की चीज थी कानून-व्यवस्था पर पकड़. लेकिन यहां तो अपराधियों और पुलिसवालों के बीच रिश्ता इतना गहरा पनप चुका है जिसे तोडऩे में उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक कोशिश नाकाम ही होती चली आई है.

