scorecardresearch

एमपी में 'सुषमा स्वराज-शिवराज सिंह चौहान' के मोर्चे से आरएसएस के माथे पर शिकन

विदिशा में लगे होर्डिंग्स बीजेपी के राष्ट्रीय चुनाव प्रचार अभियान के मुताबिक नहीं हैं. कहीं इसकी वजह ताकतवर होता ‘मध्य प्रदेश मोर्चा’ तो नहीं जो संघ की चिंता की वजह है.

अपडेटेड 23 अप्रैल , 2014
अप्रैल की 4 तारीख की तपती  दोपहर. 15वीं लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की सफेद रंग की एसयूवी गाड़ी मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के रिटर्निंग अधिकारी के परिसर में पहुंचती है. क्षण भर बाद ही सीएम शिवराज सिंह चौहान का काफिला यहां पहुंचता है, चौहान की पत्नी साधना सिंह भी उनके साथ हैं.

चौहान दंपती की मौजूदगी में, कड़क सूती साड़ी और काली नेहरू जैकट पहने सुषमा स्वराज को नामांकन भरने में 15 मिनट भी नहीं लगे. इसके तुरंत बाद वे विदिशा के निकट दुर्गा मंदिर पहुंची. यहां पुजारी ने उन्हें आशीर्वाद दिया, ‘‘प्रधानमंत्री भव:,’’ इसे  सुनकर सुषमा के मन में लड्डू जरूर फूटे होंगे. शिवसेना के दिवंगत सुप्रीमो बाल ठाकरे ने भी कभी कहा था कि प्रधानमंत्री पद के लिए सुषमा उनकी पहली पसंद हैं.

तो क्या विदिशा से एक और उम्मीदवार संभावित प्रधानमंत्री हो सकता है? गौर तलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी यहीं से चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने थे. विदिशा जिले के बीजेपी अध्यक्ष तोरण सिंह डांगी का जवाब है, ‘‘यहां हमें किसी व्यक्ति का प्रचार करने की जरूरत नहीं है. पार्टी और उसका चिन्ह ही काफी है.’’

सुषमा स्वराज के चुनाव अभियान के संयोजक डांगी यह समझाने की कोशिश करते हैं कि जमीनी स्तर पर सुषमा की अध्यक्षता में हुई चुनाव अभियान बैठकों में पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का नाम क्यों नहीं आया. हैरत की बात नहीं कि विदिशा की तंग और धूल भरी गलियां जिन पोस्टरों से अटी हैं वे पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के उस अभियान से भिन्न हैं, जहां मोदी ही छाए हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय पोस्टरों में जहां  ‘‘अबकी बार मोदी सरकार’’ का नारा छाया है, वहीं इस शहर में इन पोस्टरों के साथ ही स्थानीय कार्यकर्ताओं ने सुषमा के पोस्टर लगा रखे हैं, जिन पर लिखा है, ‘‘देश का नेता कैसा हो, सुषमा स्वराज जैसा हो.’’

पिछले माह सुषमा ने पार्टी कार्यकर्ताओं को कई बार संबोधित किया लेकिन मोदी के नाम का उल्लेख सिर्फ एक बार-24 मार्च को रायसेन में किया. अपने भाषणों में वे चौहान का ही गुणगान करती हैं, ‘‘बीजेपी के पास नरेंद्र मोदी के रूप में प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य नेता है, और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के रूप में एक महान नेता.

चौहान का कुशल नेतृत्व, जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता, जन-कल्याण योजनाएं और केंद्र में यूपीए सरकार के कुशासन के प्रति नाराजगी हमें प्रदेश में भारी सफलता दिलवाएंगी.’’ 4 अप्रैल को रायसेन में पहली चुनावी रैली में उन्होंने मोदी का नाम तक नहीं लिया. हालांकि चौहान ने जरूर कहा, ‘‘हमने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को चुन लिया है.’’

एक स्थानीय नेता का कहना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व में ‘‘मध्य प्रदेश मोर्चा’’ के ताकतवर होने की चर्चा हो रही है, खासकर लालकृष्ण आडवाणी के भोपाल से चुनाव लडऩे का प्रयास करने के बाद. बाड़ी और ओबेदुल्लागंज में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक के बाद पर्यटन राज्यमंत्री सुरेंद्र पटवा ने अगली सरकार में सुषमा स्वराज के उप-प्रधानमंत्री बनने की दो बार भविष्यवाणी की.

सुषमा ने तो इस पर आपत्ति नहीं की लेकिन यह  राष्ट्रीय नेतृत्व को अखरा. पटवा ने तुरंत इंडिया टुडे को सफाई दी, ‘‘कहने का मतलब था कि विदिशा ने पहले भी कई नेताओं को जिताया है, जिन्होंने बाद में नाम कमाया. इनमें अटल बिहारी वाजपेयी और शिवराज सिंह चौहान हैं.’’
विदिशा में लगा एक पोस्टर
(विदिशा में लगे बीजेपी के हार्डिंग्स से नरेंद्र मोदी का गायब होना संदेहास्पद है)
 स्वराज प्रदेश की 29 लोकसभा सीटें जीतने के लिए ‘‘मिशन 29’’ का नारा दे रही हैं. प्रदेश बीजेपी नेतृत्व का दावा है कि यह मोदी के ‘‘मिशन 272’’ के अनुकूल ही है. फिर भी संघ इससे सहज नहीं है. भोपाल में संघ के एक नेता का कहना है, ‘‘बीजेपी ने अभियान के लिए एक राष्ट्रीय एजेंडा तैयार किया है. स्थानीय स्तर पर उसमें बदलाव नहीं होना चाहिए. हम मामले की जांच कर रहे हैं.’’

बीजेपी के वरिष्ठ नेता भी मानते हैं कि राज्य में पार्टी और संघ के बीच ‘‘विश्वास की कमी’’ रही है. खासकर आडवाणी को गांधीनगर से लड़ाने के फैसले के बाद. वे कहते हैं, ‘‘मोदी और आडवाणी के मतभेद सार्वजनिक करने से बचने के लिए ही आडवाणी को गांधीनगर से प्रत्याशी नहीं बनाया गया बल्कि संघ का मानना था कि आडवाणी को भोपाल से चुनाव लडऩे दिया जाता तो आडवाणी-स्वराज-चौहान की तिकड़ी एक ताकतवर गुट बन जाती, जो ठीक नहीं होता.’’ हालांकि प्रदेश पार्टी प्रवक्ता हितेश वाजपेयी कहते हैं, ‘‘ताकतवर गुट की बात कोरी कल्पना है.’’

राज्य में जनसंघ के संस्थापकों में एक और लंबे समय तक विधायक और सांसद रह चुके बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि सुषमा के मन में देश का सर्वोच्च पद पाने की लालसा है. उनका यह भी कहना है कि राष्ट्रीय राजनीति में स्थान पाने के लिए शिवराज भी सुषमा पर निर्भर करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘सुषमा राज’’ सरकार के कामकाज में दखल नहीं देतीं. लेकिन राज्य में पार्टी में उनका काफी दबदबा है.’’

जब आडवाणी ने भोपाल से चुनाव लडऩे का फैसला किया था तो यहां जश्न शुरू हो गया था. भोपाल आडवाणी के पोस्टरों से पट गया था. सूत्रों के मुताबिक संघ ने हस्तक्षेप कर पोस्टर जल्द से जल्द हटाने को कहा था. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में संघ के प्रचार प्रमुख नरेंद्र जैन कहते हैं, ‘‘मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता.’’ भोपाल में बीजेपी के जिला अध्यक्ष आलोक शर्मा के मुताबिक वे पोस्टर और होर्डिंग किसने लगाए थे  यह जानने के लिए पार्टी ने दो सदस्यीय टीम तैनात की है. हालांकि वे यह नहीं मानते कि ऐसा संघ के के निर्देश पर किया गया.

सूत्रों के मुताबिक पिछले जून में जब आडवाणी ने पहली बार चौहान को मोदी की तुलना में ‘‘बड़ा नेता’’ कहा था, तब से ही आरएसएस मध्य प्रदेश पर कड़ी नजर रखे हुए था. आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत 19 फरवरी से शुरू चार दिवसीय राज्य दौरे पर आए तो उन्होंने चौहान समेत राज्य बीजेपी नेताओं के साथ बैठकर चुनाव प्रचार योजना और रणनीति तैयार की थी. हालांकि राष्ट्र स्तर पर आरएसएस चुनाव अभियान में शामिल नहीं होता लेकिन भागवत ने मध्य प्रदेश में अपने संगठन को सक्रिय होने के निर्देश दिए और राज्य भर में पोलिंग बूथों पर भी प्रचारक तैनात करने को कहा.

बीजेपी सूत्रों का कहना है कि आडवाणी को भोपाल के लिए ‘‘निमंत्रण’’ देने की योजना भी उनके वहां से चुनाव लडऩे की इच्छा जताने से कई माह पहले से अटकी थी. यहां से सांसद और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री 85 वर्षीय कैलाश जोशी को फजीहत से बचने के लिए सूची में नहीं रखा गया. 2009 में जोशी ने स्वराज के लिए सीट खाली करने से इनकार कर दिया था. मार्च के शुरू में जब प्रदेश बीजेपी ने पार्टी उम्मीदवारों की सूची मंजूरी के लिए अशोक रोड स्थित मुख्यालय भेजी तो भोपाल की सीट खाली रखी गई.

चौहान और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष नरेंद्र तोमर ने जोशी को मिलने के लिए बुलाया था. अगले ही दिन 9 मार्च को जोशी ने चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा की. जोशी के मुताबिक यह उनका निजी फैसला था, ‘‘इस घोषणा के बाद मैंने आडवाणी जी को फोन किया और भोपाल से लडऩे का आमंत्रण दिया. उन्होंने कहा कि वे इस पर गौर करेंगे.’’

संघ के सूत्रों का कहना है कि प्रदेश की उथल-पुथल मोदी ब्रांड पर हावी न होने पाए, इसलिए चौहान और स्वराज खेमे को ‘‘विनम्र सुझाव’’ दिया गया था कि वे राष्ट्रीय मीडिया से दूर रहें ताकि प्रचार मोदी केंद्रित ही रहे. लेकिन मोदी राज्य में प्रचार में सबसे आगे हैं. अब तक वे छह रैलियां कर चुके हैं और संभवतः 10 और रैलियां करेंगे.

चौहान के करीबियों के मुताबिक वे चुनाव होने तक राष्ट्रीय मीडिया से बात नहीं करेंगे. राज्य के जन संपर्क आयुक्त राकेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘यह नीतिगत फैसला’’ चौहान ने लिया है. स्वराज के अतिरिक्त निजी सचिव राजेंद्र सिन्हा भी बताते हैं कि स्वराज ने राष्ट्रीय मीडिया से बात न करने का फैसला किया है. वे दो मीडिया ब्रीफिंग्स रद्द कर चुकी हैं. क्या यह चुप्पी वह औषधि बन पाएगी, जिसकी प्रदेश में जरूरत है? 
Advertisement
Advertisement