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राजीव गांधी के हत्यारे की डायरी

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश के मास्टरमाइंड शिवरासन की डायरी हैरतअंगेज खुलासे करती है. डायरियों में परत-दर-परत साजिश का जिक्र है.

अपडेटेड 12 मार्च , 2014
बात जुलाई 1991 की है. एलटीटीई के भेदिए जयकुमार ने सीबीआइ के विशेष जांच दल (एसआइटी) को राज की बात बताई. 21 मई, 1991 को राजीव गांधी हत्याकांड के संदिग्ध श्रीलंकाई तमिल ने सीबीआइ के मुख्य जांचकर्ता के. रघोत्तमन को चेन्नै के कोडुंगैयूर इलाके में 158 मुतमिल नगर के एलटीटीई की महफूज पनाहगाह में किचन के फर्श के नीचे एक गड्ढे की जानकारी दी.

एलटीटीई की खुफिया शाखा ने तमिलनाडु की इस पनाहगाह में सितंबर, 1990 में कई लोगों को रखा था. जयकुमार उनमें से एक था. उनमें किसी को नहीं पता था कि उस गड्ढे में क्या है. लेकिन गड्ढा कुछ खास था, इसका अंदाजा जयकुमार को था क्योंकि मुख्य संदिग्ध 33 वर्षीय शिवरासन को जब भी उसमें कुछ काम होता, वह जयकुमार को वहां से बाहर भेज देता. हत्याकांड के एक दिन बाद गठित एसआइटी ने चेन्नै के उपनगर में इस घर पर धावा बोला और फर्श उखाड़ डाली.

बड़ी सफाई से किचन में 2 फुट लंबी और 2 फुट चौड़ी टाइल के नीचे बनाए गए तीन फुट गहरे अंधेरे गड्ढे में मोटी तमिल-अंग्रेजी डिक्शनरी थी जिसके भीतरी पन्नों को काटकर 9 एमएम की पिस्तौल छिपाई गई थी. इसके अलावा उसमें दो छोटी पॉकेट डायरियां, एक नोटबुक और शीशे की एक नकली आंख भी मिली.

पहली नजर में डायरियों और नोटबुक के पन्नों में तमिल और अंग्रेजी में शिवरासन की घसीटू हैंडराइटिंग में लिखी बातों से कुछ खास पता नहीं चला. इसमें टेलीफोन नंबर, पते, संपर्क करने वालों के कूट नाम और लेन-देन की बेतरतीब जानकारियां थीं.

लेकिन, शुरू में अबूझ पहेली-सी लग रही हर प्रविष्टि का जब सावधानी से विश्लेषण किया गया और एक-दूसरे से जोड़ा गया, तो यह छोटी-सी नोटबुक 20वीं सदी के शायद सबसे उलझऊ हत्याकांड की गुत्थियां खोलने की कुंजी लगने लगी. रघोत्तमन कहते हैं, ‘‘यह नोटबुक हमारे लिए सबसे अहम जब्ती साबित हुई. उससे हमें पता चला कि शिवरासन का दूसरे सह-अभियुक्तों से क्या संबंध रहा है.’’

इन डायरियों में शिवरासन नौ सदस्यीय हत्यारे दस्ते के साथ तमिलनाडु में 1 मई, 1991 को पैर रखने से लेकर हत्याकांड के दो दिन बाद 23 मई तक की प्रविष्टियां दर्ज करता रहा था. उसके बाद वह अपनी टीम के साथ बंगलुरू भाग गया था और पकड़े जाने के डर से उसने खुदकुशी कर ली थी.

डायरियों के ये पन्ने अदालत में अभियुक्तों के खिलाफ पुख्ता सबूत बने लेकिन इससे पहले कभी इन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया. ये डायरियां ही राजीव हत्याकांड के सभी आरोपियों मुरुगन, संतान, पेरारिवलन, नलिनी, जयकुमार, रविचंद्रन और रॉबर्ट पायस का दोष सिद्ध करने में अहम साक्ष्य साबित हुईं. आज उन्हीं के मामलों को लेकर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता और केंद्र सरकार में ठनी हुई है.

उन्हें रिहा कर देने के जयललिता के 18 फरवरी के फैसले के खिलाफ केंद्र ने 24 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी. रिहाई रोकने की केंद्र की पहल पर जयललिता ने कहा, ‘‘जो भी कानूनी तौर पर संभव होगा, हम वह सब करेंगे.’’ इस छोटे-से जवाब में यह निहित है कि यह टकराव कम-से-कम मई में लोकसभा चुनावों के संपन्न होने तक तो बना रहेगा.

हालांकि 27 फरवरी को तमिलनाडु सरकार के इन लोगों की रिहाई के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चार अन्य दोषियों नलिनी, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन की रिहाई पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट 6 मार्च को याचिका पर सुनवाई करेगा. अदालत 20 फरवरी को तीन अन्य की रिहाई पर रोक का आदेश पहले ही जारी कर चुकी थी.

दो दशक पूर्व, लोकसभा चुनावों के ठीक पहले 21 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्या देश का सबसे सनसनीखेज राजनैतिक हत्याकांड है. उस वक्त तमिलनाडु में कांग्रेस की चुनावी सहयोगी जयललिता ही थीं. इस हत्या की योजना युद्ध से तबाह एलटीटीई सरगना वेलुपिल्लै प्रभाकरन ने 1990 के शुरू में श्रीलंका के जंगलों में बनाई थी.

प्रभाकरन तब बदले की भावना से गुस्से में था. जुलाई, 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते को लागू करने के लिए भारतीय सेना का विवादास्पद अभियान तब खत्म ही हुआ था. भारतीय सेना को उस दौरान उसी एलटीटीई से लडऩा पड़ा जिसे देश की खुफिया एजेंसी रॉ ने खड़ा किया था. इसमें एलटीटीई के सैकड़ों लोग मारे गए थे और एक मौके पर प्रभाकरन भी मरते-मरते बचा था.
शिवरासन की डायरी
एलटीटीई का बदला
अब बदले का वक्त था. प्रभाकरन जिस प्रधानमंत्री से ठगा हुआ महसूस कर रहा था, वह सत्ता से बाहर था इसलिए उसे निशाना बनाना आसान था. सीबीआइ के जांचकर्ताओं के मुताबिक प्रभाकरन अपनी योजना पर अमल करने के लिए फौरन जुट गया. एलटीटीई से तब तक संपर्क बनाए रखने वाले रॉ को कतई एहसास नहीं हुआ कि एलएलटीई में बदले की कैसी भावना पसरी हुई है.

प्रभाकरन और उसके खुफिया प्रमुख 29 वर्षीय शणमुगलिंगम शिवशंकर उर्फ ‘‘पोट्टू अम्मान’’ ने अपने ‘‘ब्लैक टाइगर सुसाइड स्क्वाड’’ से तीन महिला आत्मघाती बम हमलावरों की तलाश की. उन लोगों ने इसे अंजाम देने के लिए महज पांच फुट चार इंच कद के तंदुरुस्त और गजब के फुर्तीले पाकियाचंद्रन उर्फ शिवरासन को चुना, जिसकी 1987 में श्रीलंकाई सेना के साथ झड़प में बाईं आंख चली गई थी.

वह सभी दक्षिण भारतीय भाषाओं को बोलने में पारंगत था. एलटीटीई चेन्नै में 1990 में अपने उस हमले के बाद औरों से ज्यादा प्रभावी हो गया था, जिसमें भारत समर्थक तमिल ईलम पीपल्स रेवोल्यूशनरी लिबरेशन फ्रंट के नेता पद्मनाभन और उनके 13 साथियों की हत्या कर दी थी.

यह पूरी तरह इंटेलिजेंस से जुड़ा अभियान था, जिसमें एलटीटीई के भेदिए चेन्नै आए और पद्मनाभन का पता लगा लिया. अब शिवरासन को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि राजीव की हत्या को अंजाम दिया जाए और यह भी पक्का करे कि इसका दोष एलटीटीई के माथे न आए. इसे खुफिया शब्दावली में  सुराग न छोडऩे वाला ऑपरेशन्य कहा जाता है.

जैसे 1988 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया-उल-हक की विमान विस्फोट में हत्या हुई और धमाके में अपराध या अपराधी का हर सुराग मिट गया. एलटीटीई नेतृत्व 1991 के चुनावों के लिए कांग्रेस घोषणा-पत्र में 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते पर प्रतिबद्धता से परेशान था. शिवरासन और उसका हत्यारा दस्ता 1 मई, 1991 को तमिलनाडु पहुंचा और फौरन काम में जुट गया. चुनाव की घोषणा हो चुकी थी और 20 मई से ये शुरू होने थे.
राजीव गांधी को मारने का प्लान बी
तमिलनाडु की एक 'शादी'
राजीव गांधी का तमिलनाडु में चुनाव प्रचार करना लगभग तय ही था जहां एलटीटीई को उन्हें निशाना बनाना था. शिवरासन के दस्ते में दो बेहद अहम सदस्य आत्मघाती मानव बम धनु और किसी भी तरह की विपरीत स्थिति के लिए विकल्प के तौर पर दूसरी मानव बम शुभा थे. ये ‘‘शादी’’ में हिस्सा लेने वाली थीं. एलटीटीई ने हत्या की योजना का यही कूट नाम रखा था.

शिवरासन श्रीलंका के जंगलों में एलटीटीई के ठिकाने से रेडियो सेट और कूट भाषा के जरिए लगातार संपर्क साधे हुआ था. जयकुमार और उसका रिश्तेदार रॉबर्ट पायस जैसे एलटीटीई के कार्यकर्ता पहले ही चेन्नै और उसके आस-पास किराए पर मकान ले चुके थे. शिवरासन पूर्व प्रधानमंत्री पर हमले के मौके की तलाश के दौरान भी पहचान में न आने के लिए लगातार मकान बदलता रहा था.

वह कूट भाषा में लगातार प्रभाकरन और पोट्टु अम्मान को ‘‘शादी की तैयारियों’’ की जानकारी देता जा रहा था. एलटीटीई ने तस्करी के जरिये तमिलनाडु में पांच किलो सोना पहुंचवाया था. इसे शिवरासन ने 19.36 लाख रु. में बेचा. इसी पैसे से पूरे अभियान का खर्च उठाया गया. मसलन, दो महीने तक होटल के किराए से लेकर, भेदियों को भुगतान और हमलावर दस्ते की यात्रा का खर्च वगैरह.

शिवरासन ने टेलीफोन नंबर, साजिशकर्ताओं से मेल-मिलाप और उन्हें दिए गए भुगतान को दर्ज किया. उसके भेदियों को पहली कामयाबी चेन्नै से 40 किमी दूर श्रीपेरंबुदूर से कांग्रेस सांसद मरगाथम चंद्रशेखर की अंदरूनी मंडली में प्रवेश के साथ मिली. चंद्रशेखर का नेहरू-गांधी परिवार से काफी नजदीकी रिश्ता था.

दिल्ली की साजिश
शिवरासन ने दूसरी साजिश के बारे में भी अपनी डायरियों में लिखा था. तमिलनाडु में राजीव के पास न पहुंच पाने की हालत में यह दूसरी योजना तैयार की गई थी. 28 अप्रैल को एक दुबली-पतली, घुंघराले बालों वाली 18 साल की अतिरै नाम की लड़की तमिलनाडु में एलटीटीई के गुप्त बंदरगाह पर जाफना से आकर उतरती है.

उसे चेन्नै की पनाहगाह में ले जाया जाता है. वहां उसे नई दिल्ली में राजीव को उनके ही घर के पिछवाड़े मारने के एलटीटीई के प्लान बी के लिए इंतजार करना था. अतिरै को सिर्फ इसलिए नहीं चुना गया कि एलटीटीई में उसे सोनिया नाम से जाना जाता था, बल्कि उसका रंग हल्का था और दिल्ली के लोगों में वह बड़ी आसानी से घुल-मिल सकती थी. शिवरासन इस काम में श्रीलंका सरकार के सेवानिवृत्त अधिकारी कनगासाबापति को पहले ही लगा चुका था. 70 साल की उम्र वाला यह बुजुर्ग मृत एलटीटीई कमांडर का पिता था.

हत्यारे दस्ते का यह सबसे उम्रदराज सदस्य दिल्ली आकर तमिलनाडु के एमडीएमके के नेता वायको से जुड़े एलटीटीई समर्थक से संपर्क साध चुका था. दोनों ने मिलकर अपने मिशन के लिए दिल्ली में पनाहगाह की तलाश की. यह नॉर्थ मोतीबाग में मकान नंबर ए-233 था.

इस मकान को पड़ोस के शांति निकेतन में प्रॉपर्टी डीलर के जरिए तलाशा गया था. केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए बना दो कमरे का यह का मकान एकदम सुरक्षित था. इसे गैर-कानूनी ढंग से किराए पर उठाया गया था. यह राजधानी के बीचोबीच सरकारी कर्मचारियों के सिंगल स्टोरी मोहल्ले में था और राजीव गांधी के घर 10 जनपथ से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर था.

कनगासाबापति ने इसके लिए प्रॉपर्टी डीलर को 5,000 रु. एडवांस में दिए थे. उसने प्रॉपर्टी डीलर से कहा था, ‘‘मेरी पोती यहां कुछ दिन आकर रहेगी.’’ उसने बताया कि अतिरै राजधानी में हिंदी और कंप्यूटर सीखना चाहती है. हालांकि शिवरासन ने दिल्ली के लिए अलग हत्यारा दस्ता बनाया था लेकिन उसे पूरा यकीन था कि तमिलनाडु में राजीव की हत्या को अंजाम दे दिया जाएगा. पोट्टु अम्मान इसे दिल्ली में अंजाम देने का तगड़ा हिमायती था.

मई, 1991 में कूट संदेश में उसने शिवरासन से बाकायदा पूछा था, ‘‘दिल्ली में क्यों नहीं?’’ शिवरासन ने जवाब दिया, ‘‘मुझे यकीन है कि मैं यहीं (तमिलनाडु में) इसे अंजाम दे  सकता हूं.’’ लेकिन पोट्टु अम्मान दिल्ली में काम पूरा करने पर जोर दे रहा था.

दिल्ली की योजना छोड़ दी गई क्योंकि एलटीटीई अपनी योजना में श्रीपेरंबुदूर में कामयाब हो गई. कनगासाबापति और अतिरै को जून 1991 में पहाडग़ंज के होटल से पकड़ा गया. वे नेपाल जाने की योजना बना रहे थे. उन्हें आठ साल जेल काटने के बाद 1999 में रिहा कर दिया गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में श्रीपेरंबुदूर योजना से उनका कोई संबंध स्थापित नहीं किया जा सका. बाद में वे स्विट्जरलैंड चले गए.

यह योजना तो वैसे छोड़ दी गई लेकिन इससे राजीव गांधी की हत्या को लेकर एलटीटीई के दृढ़ इरादों का पता चलता है. रघोत्तमन कहते हैं, ‘‘प्रभाकरन ने राजीव की हत्या का आदेश दे दिया तो उनके लिए बचना आसान नहीं था.’’
राजीव गांधी के हत्यारे
श्रीपेरंबुदूर में हमला
एलटीटीई का हत्यारा दस्ता 21 मई को राज्य परिवहन निगम की बस में राजीव गांधी की चुनावी रैली वाली जगह पर पहुंचा और बेहद सख्त सुरक्षा वाले क्षेत्र में पहुंच गया. शिवरासन सफेद कुर्ते-पाजामे में कंधे पर झोला लटकाए और हाथ में नोटपैड लिए पत्रकार के वेश में था. धनु हरे और गुलाबी रंग की ढीली-ढाली सलवार-कमीज में थी.

श्रीपेरंबुदूर की घंटे भर की यात्रा के दौरान धनु ने नलिनी से कहा कि जरा छूकर देखो कि उसके कपड़ों के नीचे क्या बंधा है तो उसके पसीने छूटने लगे. तब रैली स्थल पर न मेटल डिटेक्टर थे, न जांच-पड़ताल की कोई व्यवस्था. नलिनी संयत और मजबूत थी. उसने अंग्रेजी में एमए किया था.

वह चेन्नै में प्राइवेट फर्म में एक अधिकारी की पर्सनल असिस्टेंट के रूप में काम कर रही थी और मुरुगन के साथ उसे प्यार हो गया था. वह और शुभा इस मानव बम धनु के साथ-साथ चल रही थीं.

रात 10.20 बजे राजीव गांधी श्रीपेरंबुदूर के मंदिर मैदान में बिछे कॉयर के गलीचे पर आगे बढ़ रहे थे. वे ओडिसा और आंध्र प्रदेश में अपने व्यस्त प्रचार अभियान की वजह से बुरी तरह थक चुके थे. वहां पहुंचने पर समर्थकों की उत्साही भीड़ ने उनका स्वागत किया. सफेद कपड़े पहने और गले में तिरंगा लपेटे संतान भी वहीं पर मौजूद था. धनु ने राजीव को चंदन की माला पहनाई और मानो पैर छूने के लिए उनके पैरों की ओर झुकी.

झुककर उसने अपनी दाईं तरफ स्विच दबाया और आधा किलो प्लास्टिक विस्फोटक में जबरदस्त धमाका हुआ. राजीव गांधी और 17 लोग वहीं मौके पर ही मारे गए. उसके बाद मची भगदड़ में शिवरासन और उसके साथी गायब हो गए. बाद में एसआइटी की अगुआई करने वाले डी.आर. कार्तिकेयन इसे ‘‘बेहिसाब चतुराई, अचूक योजना और ठोस अमल की मिसाल’’ बताते हैं. उन्हीं की अगुआई में एसआइटी ने अंततः इस मामले की गुत्थी सुलझाई.

एक कैमरा और डायरियां
इस हत्याकांड की साजिश का शायद इसकी योजना के मुताबिक, कभी खुलासा नहीं हो पाता, अगर हरिबाबू का 35 एमएम का कैनन कैमरा न मिला होता. फोटोग्राफर हरिबाबू धमाके में मारा गया था. उसे शिवरासन ने किराए पर बुलाया था. पुलिस के हाथ लगे उसके आखिरी फोटोग्राफ में शिवरासन और पूरा हत्यारा दस्ता था.

जुलाई 1991 तक कार्तिकेयन की एसआइटी ने ज्यादातर प्रमुख संदिग्धों को पकड़ लिया था. उनकी टीम सुराग तलाशते बंगलुरू के बाहरी इलाके कोनानकुंटे के एकमंजिला मकान तक पहुंची. उसे घेर लिया गया लेकिन 19 अगस्त को पूरे एलटीटीई दस्ते ने खुदकुशी कर ली.

हत्याकांड के दो दिन बाद शिवरासन चेन्नै की पनाहगाह से 7 एमएम की पिस्तौल लेकर निकल गया था और डायरियां वहीं छोड़ गया था. उसे शायद यकीन था कि वह लौटकर डायरियां ले लेगा. कमांडो का घेरा पुख्ता हो गया तो शिवरासन ने पिस्तौल से अपने सिर में गोली मार ली. एसआइटी को वहां जलाए गए दस्तावेजों, फिल्म की निगेटिव वगैरह की राख भी मिली.

इनमें कई में धनु के शरीर में विस्फोटक बांधने के हर कदम की तस्वीर थी. एसआइटी ने 1,044 गवाहों, 10,000 पन्नों के बयान और 10,477 दस्तावेज बतौर सबूत और 1,180 वस्तुएं कोर्ट में पेश कीं. इनमें शिवरासन की डायरियां भी थीं. मामले की सुनवाई जनवरी,1994 में शुरू हुई थी.

आखिर एलटीटीई के दस्ते ने दस्तावेजी सबूत अपने पीछे क्यों छोड़े? एसआइटी के जांचकर्ता इसकी वजह एलटीटीई की अपने संघर्ष के दस्तावेज तैयार करने की प्रवृत्ति बताते हैं. एलटीटीई के पास ‘‘नितारसनम’’ नामक अत्याधुनिक युद्ध के दौरान काम करने वाली कैमरा यूनिट थी.

रघोत्तमन कहते हैं, ‘‘एलटीटीई के लोग एक-एक पैसे का हिसाब-किताब रखते और सभी गतिविधियों की तस्वीरें उतारते थे ताकि कार्यकर्ताओं में जोश भरा जा सके.’’ दस्तावेज रखने की इसी प्रवृति ने हत्या की इस जघन्य साजिश का राज भी खोल दिया.

इस हत्याकांड ने प्रभाकरन का भाग्य भी तय कर दिया. इससे एलटीटीई के लिए तमिलनाडु का इस्तेमाल बंद हो गया. मई, 2009 में श्रीलंकाई सेना ने एलटीटीई के नेताओं प्रभाकरन और पोट्टु अम्मान और उसके काडर को घेर लिया और उनका ठिकाना नेस्तनाबूद कर दिया.

उस समय भारत लोकसभा चुनावों में मशगूल था. एलटीटीई के बचे हुए कार्यकर्ता आम लोगों के साथ मिलकर उत्तरी-पूर्वी श्रीलंका के युद्धविराम वाले क्षेत्र में पहुंच गए. लेकिन विडंबना देखिए कि फिर लोकसभा चुनावों में एलटीटीई के सामान्य कार्यकर्ता मुद्दा बन गए हैं.
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