यश बिरला जब सिर्फ 22 साल के थे तो बंगलुरू में हुए विमान हादसे में उन्हें अपने परिवार को खोना पड़ा था. यह 1990 की बात है जब अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की शुरुआत हुई थी और बिरला परिवार के वारिस के कंधे पर अचानक विशाल साम्राज्य संभालने की जिम्मेदारी आ गई. उन्हें यह जिम्मेदारी उठानी पड़ी, अपने उन रिश्तेदारों पर सख्त नजर रखते हुए जिनका अपना-अपना एजेंडा था.
इन रिश्तेदारों में कई अनोखे व्यक्तित्व भी थे, जैसे एम.पी. बिरला की दंभी बीवी प्रियंवदा. ऑन अ प्रेयर में इस बात की आंतरिक झलक मिलती है कि एक बड़े मारवाड़ी संयुक्त परिवार के जटिल नेटवर्क में पलना-बढऩा कैसा होता है, और वह भी उस घराने में जिसे भारत का सबसे पुराना कारोबारी समूह भी चलाना पड़ता है.
यश बिरला अपने मां-बाप की शादी की वर्षगांठ पर परवीन बॉबी के डांस जैसे जबरदस्त आयोजन देखते और अपने रॉक-एन-रोल दोस्तों जैसे रेमंड के चेयरमैन और एमडी गौतम सिंघानिया तथा आइपीएल के पूर्व आयुक्त ललित मोदी के साथ पार्टियां करते हुए बड़े हुए. वे अपनी आलीशान मर्सिडीज को कॉलेज से कुछ पहले खड़ा कर देते थे और फिर बेझिझक कॉलेज का रुख करते. वे उन औरतों से भी पूरी तरह चौकन्ने रहते जो उनकी बजाए उनकी पृष्ठभूमि में ज्यादा दिलचस्पी रखना पसंद करती थीं.
इन पन्नों में जो शख्स उभरकर आता है वह कोई चमक-दमक वाला कारोबारी वारिस और पेज 3 का पसंदीदा व्यक्ति नहीं है, जिसका पहनावा इतना खास है कि आमिर खान के गजनी में लुक की प्रेरणा बताया जाता है. इसकी जगह इसमें ऐसा शख्स नजर आता है जो शराब को हाथ तक नहीं लगाता और अध्यात्म तथा खूबसूरत बॉडी के प्रति गहरी प्रतिबद्धता रखता है. इस पुस्तक के अंत तक पहुंचने पर इस विरोधाभास की वजह समझ में आ जाती है. जब हर तरफ अव्यवस्था हो तब नियंत्रण ही सब कुछ होता है.
गौतम (सिंघानिया) ने सोनिया (गरवारे) और ललित (मोदी) से ऐसी स्पोर्ट्स कार के बारे में बात करना शुरू किया जिसे वे खरीदना चाहते थे. उन्होंने कहा, ''ऑरेंज कलर में यह इतनी जबरदस्त लगती है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते.” वहां इतने सारे लोगों, अपने दोस्तों, के साथ बैठे हुए मुझे अपने अंदर ऐसा महसूस हो रहा था कि मैं यहां कोई बाहरी इनसान हूं...यह हम लोगों का नया ग्रुप था और अभी हम सबको एक-दूसरे के बारे में काफी कुछ जानना था. जयदीप (गरवारे) बालकनी में गए और उन्होंने एक लड़की को ड्रिंक ऑफर किया...
हम पंद्रहवीं मंजिल पर थे और वहां से जबरदस्त नजारा दिख रहा था. जमकर शराब पी जा रही थी, अपार्टमेंट के भीतर (मुंबई में) की भीड़ मदहोशी के सागर में गोते लगा रही थी. कुछ लोगों के हाथ में छोटे पैकेट थे और वे बाथरूम में दो या कभी-कभी तीन के ग्रुप में अंदर जाते थे, कोकेन तब इतनी आम नहीं थी, लेकिन चरस का धुआं खूब उड़ता था.
ऐसे ग्रुप में अकसर कोई एक लड़का होता था जो दो या तीन लड़कियों को पटाकर अपने साथ 'कश’ लगाने को ले जाता था...साथ मिलकर चरस का रोल तैयार किया जाता था और लड़कियां कश लगाती थीं. मैं उनको लडख़ड़ाते देखता, उनकी आंखें भावशून्य हो जाती थीं...
यह सब देखकर मैं काफी परेशान हो जाता था. हर कोई यह जान चुका था कि मुझे इन चीजों के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता—वे इसकी कोशिश कर चुके थे, मैं टस-से-मस नहीं हुआ. यह मेरे जीवन का एक ऐसा हिस्सा था जहां मेरे दोस्तों के दबाव का कोई असर नहीं होता था.
ड्रग्स, सिगरेट, शराब—मैं इनमें से किसी को हाथ तक नहीं लगाना चाहता था, लेकिन इससे कई बार 'तमाशा’ खड़ा हो जाता था. खास लोगों की यह टोली सब कुछ करती थी और मुझे देखते रहने की इजाजत थी. गौतम कहता था, 'यश के लिए और पानी लाओ’ और हर कोई हंसने लगता था. मुझे इन सबकी आदत पड़ गई थी.
***

मैं सोच रहा था, आज की रात मजेदार होगी. होटल (सिंगापुर) में ग्राउंड फ्लोर पर बना नाइटक्लब खचाखच भरा हुआ था. बंबई में भी हर कोई जमकर मस्ती करता था, लेकिन उन्हें हमेशा थोड़ा चौकन्ना भी रहना पड़ता था. उन्हें अपने परिवार के नामों को बचाना होता था; अपनी प्रतिष्ठा को बचाए रखना होता था. लेकिन यहां किसी को कोई परवाह नहीं थी.
हम बैठे ही थे कि जानी-पहचानी दिख रही महिला हमारी मेज के करीब आई. वह एयर इंडिया की एयर हॉस्टेस थी और हमने बंबई एयरपोर्ट पर उसे देखा था. गौतम को वह आकर्षक लगी और जयदीप ने तुरंत ही उसके करीब जाकर पूछा कि अब उसकी कहां की फ्लाइट है. उसे सिंगापुर जाना था और दोनों राजी हो गए कि वे अगले कुछ दिन वहां साथ बिताएंगे...मैंने हिम्मत जुटाकर उस एयर हॉस्टेस से पूछा कि क्या वह मेरे साथ डांस करेगी...
जब मैं एयर हॉस्टेस के साथ डांस करने लगा तो जय और सुजाता को देख रहा था जो एक कोने में डांस कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि उन दोनों में गहरा प्यार है. दूसरी ओर, मेरी डांस पार्टनर थोड़ी ही देर में बहकने लगी. वह मेरे कंधों को छू रही थी और मेरे सिर के पीछे बालों को धीरे-धीरे सहलाने लगी. वह आकर्षक थी, लेकिन मैं सतर्क था. मेरे ऐसे कई अनुभव रहे थे जिनसे यह पता चला कि लड़कियां सिर्फ मेरे परिवार के नाम की वजह से मेरे करीब आई थीं.
ऐसे रिश्ते एक निश्चित ऊंचाई तक आगे बढ़ते थे, लेकिन आखिर में हमेशा यह मेरे लिए विफल साबित होते थे. वे मेरी वजह से नहीं बल्कि मेरे परिवार की वजह से मेरे साथ रहना चाहती थीं. बिरला सरनेम उनके लिए कुछ मायने रखता था जिसे मैं कभी भी पूरी तरह समझ नहीं पाया...
मैंने थोड़ी देर आराम करने का मन बनाया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया...मैं बाथरूम से निकला ही था कि घंटी बजने की आवाज सुनी...मैं दरवाजे तक गया और पीपहोल से बाहर झंकने की कोशिश की. यह कोई एशियाई औरत थी...'मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?’ मैंने उससे पूछा. उसने जवाब दिया, 'मैं आपसे मिलने आई हूं’ और वह एक तरह से मुझे परे धकेलते हुए कमरे में घुस गई.
फिशनेट स्टॉकिंग और मिनीस्कर्ट पहनी हुई इस महिला के बाल काफी लंबे थे और उसकी पीठ के नीचे तक आ रहे थे. उसने काफी मेकअप किया हुआ था और गाल तो ऐसे थे जैसे लाल रंग से पेंट कर दिए गए हों. उसका टॉप लाल रंग के झीने कपड़े का था जो उसके बदन से कसकर चिपका हुआ था और उसके नाखून काफी लंबे और नुकीले थे. वह बड़े आराम से मेरे बिस्तर पर एक किनारे बैठ गई.
दरवाजा खुला ही रखते हुए मैंने उससे कहा, 'मुझे लगता है कि आप गलत रूम नंबर में आ गई है.’ उसने कहा, 'तुम यश हो?’ मैंने कहा, 'जी हां, यह मेरा ही नाम है.’ उसने जोर देकर कहा, 'फिर तो सही रूम नंबर है! तुम बैठो!’ मैंने सोचा यह कोई मजाक है. क्या यह औरत कोई वेश्या है?
मैं अब भी यह पचा नहीं पा रहा था कि मेरे कमरे में औरत बैठी हुई है जिसका कहना है कि उसे 'मेरे लिए’ भेजा गया है. मैंने उससे पूछा, 'मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?’ उसने बिस्तर की ओर संकेत करके कहा, 'हम, तुम बूम-बूम यानी मजे करेंगे...’
मैंने उस महिला को समझते हुए कहा, 'सुनो, मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है.’ वह फिलिपींस मूल की वेश्या थी और निश्चित रूप से मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी. साथ ही, मेरे दोस्तों में यह कोई गुप्त बात नहीं रह गई थी कि मैं अभी तक वर्जिन था. मेरे लिए यह बात और भी असहज थी कि मैं पहली बार किसी इस तरह की औरत के साथ जिस्मानी संबंध कायम करूं. अपने कंधे के स्ट्रैप खोलते हुए उसने कहा, 'मैं अपने कपड़े उतारूं?’ मैंने तुरंत ही अटकते हुए कहा, 'नहीं, नहीं रुको. हम बात करते हैं...’
मैंने उस औरत को समझने की कोशिश की, 'मैं जानता हूं कि तुम्हारे लिए परिवार की जिम्मेदारी उठाना बहुत अहम है, लेकिन यह धंधा बहुत बुरा है. तुम्हे यह नहीं करना चाहिए...’ उसने कहा, 'मैं जानती हूं! लेकिन पैसा कहां से आएगा?’ मैंने कहा, 'तुम किसी स्टोर में नौकरी क्यों नहीं करती? तुम हसीन हो, तुम चाहो तो कोई भी दूसरा कर सकती हो.’
उसने तुरंत जवाब दिया, 'अगर मैं हसीन हूं तो मेरे साथ मजे क्यों नहीं करते हो?’ मैं फंस गया था...मैंने कमजोर-सा बहाना बनाया: 'मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’ उसने मेरे माथे पर हाथ रखा जो बर्फ जैसा ठंडा था. उसने कहा, 'तुम्हें बुखार तो नहीं है!’ उसका हाथ दूर झटकते हुए मैंने उसे लगातार समझने की कोशिश की कि उसे कोई और काम करना चाहिए. मेरा यह उपदेश करीब 20 मिनट तक चलता रहा, अंत में महिला ने तिरस्कार से यह जताया कि वह तो उस पैसे के एवज में कुछ करना चाहती थी, जो उसे किसी ने दिया है और कमरे से बाहर हो गई..
मैंने बाहर जाकर देखा तो सुजाता और जय एक कमरे से बाहर झांकते हुए दिखे. वे मुझे देख रहे थे. मैंने उनसे पूछा, 'यह सब क्या था?’ उन्होंने एकदम दरवाजा बंद कर दिया और जोर-जोर से हंसने लगे. जब मैंने दरवाजे को जोर-जोर से पीटना शुरू किया तो सुजाता ने उसे खोला और मेरे चेहरे को सहानुभूति से देखने लगी. अंदर जयदीप और जय फर्श पर बैठे अपने हाथ उठा-उठाकर जोरों से हंस रहे थे. मैंने पूछा, 'यह सब किसने किया है?’ जयदीप ने कहा, 'गुड्डू, हम तुम्हारे दरवाजे पर कान लगाए सब कुछ सुन रहे थे.’
मैं शर्म से लाल हो गया. अब भी हंसते हुए जय चिल्लाकर बोला, 'गुड्डू ने तो उसको भाषण देकर विदा कर दिया!’ मैं अब भी नहीं समझ पा रहा था कि इसमें कौन-सी ऐसी चुटकुले वाली बात थी जो मेरी समझ से बाहर थी. जयदीप ने कहा, 'यश! हमें लगता था कि आज तुम्हारा कौमार्य भंग हो जाएगा.’ निश्चित तौर पर उसने मेरी दुखती रग छेड़ दी थी.
अंत में मुझे पता चला कि ललित मोदी ने बंबई में बैठकर ही कुछ लोगों को फोन कर यह सब करने को कहा है. गौतम और जयदीप इस मजाक का हिस्सा थे और ललित ने तो न जाने कैसे मेरे डैड को भी इसमें शामिल होने के लिए मना लिया था...
बंबई में बैठकर ललित और मेरे डैड को पल-पल की खबर मिल रही थी...'अब वो कमरे में गई है, यश उसको कुछ बोल रहा है, ये अच्छा नहीं है...भाषण से डर के भाग गई वो.’ मैं सिर्फ कल्पना कर सकता हूं कि उन्होंने क्या बताया होगा.
इन रिश्तेदारों में कई अनोखे व्यक्तित्व भी थे, जैसे एम.पी. बिरला की दंभी बीवी प्रियंवदा. ऑन अ प्रेयर में इस बात की आंतरिक झलक मिलती है कि एक बड़े मारवाड़ी संयुक्त परिवार के जटिल नेटवर्क में पलना-बढऩा कैसा होता है, और वह भी उस घराने में जिसे भारत का सबसे पुराना कारोबारी समूह भी चलाना पड़ता है.

इन पन्नों में जो शख्स उभरकर आता है वह कोई चमक-दमक वाला कारोबारी वारिस और पेज 3 का पसंदीदा व्यक्ति नहीं है, जिसका पहनावा इतना खास है कि आमिर खान के गजनी में लुक की प्रेरणा बताया जाता है. इसकी जगह इसमें ऐसा शख्स नजर आता है जो शराब को हाथ तक नहीं लगाता और अध्यात्म तथा खूबसूरत बॉडी के प्रति गहरी प्रतिबद्धता रखता है. इस पुस्तक के अंत तक पहुंचने पर इस विरोधाभास की वजह समझ में आ जाती है. जब हर तरफ अव्यवस्था हो तब नियंत्रण ही सब कुछ होता है.
गौतम (सिंघानिया) ने सोनिया (गरवारे) और ललित (मोदी) से ऐसी स्पोर्ट्स कार के बारे में बात करना शुरू किया जिसे वे खरीदना चाहते थे. उन्होंने कहा, ''ऑरेंज कलर में यह इतनी जबरदस्त लगती है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते.” वहां इतने सारे लोगों, अपने दोस्तों, के साथ बैठे हुए मुझे अपने अंदर ऐसा महसूस हो रहा था कि मैं यहां कोई बाहरी इनसान हूं...यह हम लोगों का नया ग्रुप था और अभी हम सबको एक-दूसरे के बारे में काफी कुछ जानना था. जयदीप (गरवारे) बालकनी में गए और उन्होंने एक लड़की को ड्रिंक ऑफर किया...
हम पंद्रहवीं मंजिल पर थे और वहां से जबरदस्त नजारा दिख रहा था. जमकर शराब पी जा रही थी, अपार्टमेंट के भीतर (मुंबई में) की भीड़ मदहोशी के सागर में गोते लगा रही थी. कुछ लोगों के हाथ में छोटे पैकेट थे और वे बाथरूम में दो या कभी-कभी तीन के ग्रुप में अंदर जाते थे, कोकेन तब इतनी आम नहीं थी, लेकिन चरस का धुआं खूब उड़ता था.
ऐसे ग्रुप में अकसर कोई एक लड़का होता था जो दो या तीन लड़कियों को पटाकर अपने साथ 'कश’ लगाने को ले जाता था...साथ मिलकर चरस का रोल तैयार किया जाता था और लड़कियां कश लगाती थीं. मैं उनको लडख़ड़ाते देखता, उनकी आंखें भावशून्य हो जाती थीं...
यह सब देखकर मैं काफी परेशान हो जाता था. हर कोई यह जान चुका था कि मुझे इन चीजों के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता—वे इसकी कोशिश कर चुके थे, मैं टस-से-मस नहीं हुआ. यह मेरे जीवन का एक ऐसा हिस्सा था जहां मेरे दोस्तों के दबाव का कोई असर नहीं होता था.
ड्रग्स, सिगरेट, शराब—मैं इनमें से किसी को हाथ तक नहीं लगाना चाहता था, लेकिन इससे कई बार 'तमाशा’ खड़ा हो जाता था. खास लोगों की यह टोली सब कुछ करती थी और मुझे देखते रहने की इजाजत थी. गौतम कहता था, 'यश के लिए और पानी लाओ’ और हर कोई हंसने लगता था. मुझे इन सबकी आदत पड़ गई थी.
***

मैं सोच रहा था, आज की रात मजेदार होगी. होटल (सिंगापुर) में ग्राउंड फ्लोर पर बना नाइटक्लब खचाखच भरा हुआ था. बंबई में भी हर कोई जमकर मस्ती करता था, लेकिन उन्हें हमेशा थोड़ा चौकन्ना भी रहना पड़ता था. उन्हें अपने परिवार के नामों को बचाना होता था; अपनी प्रतिष्ठा को बचाए रखना होता था. लेकिन यहां किसी को कोई परवाह नहीं थी.
हम बैठे ही थे कि जानी-पहचानी दिख रही महिला हमारी मेज के करीब आई. वह एयर इंडिया की एयर हॉस्टेस थी और हमने बंबई एयरपोर्ट पर उसे देखा था. गौतम को वह आकर्षक लगी और जयदीप ने तुरंत ही उसके करीब जाकर पूछा कि अब उसकी कहां की फ्लाइट है. उसे सिंगापुर जाना था और दोनों राजी हो गए कि वे अगले कुछ दिन वहां साथ बिताएंगे...मैंने हिम्मत जुटाकर उस एयर हॉस्टेस से पूछा कि क्या वह मेरे साथ डांस करेगी...
जब मैं एयर हॉस्टेस के साथ डांस करने लगा तो जय और सुजाता को देख रहा था जो एक कोने में डांस कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि उन दोनों में गहरा प्यार है. दूसरी ओर, मेरी डांस पार्टनर थोड़ी ही देर में बहकने लगी. वह मेरे कंधों को छू रही थी और मेरे सिर के पीछे बालों को धीरे-धीरे सहलाने लगी. वह आकर्षक थी, लेकिन मैं सतर्क था. मेरे ऐसे कई अनुभव रहे थे जिनसे यह पता चला कि लड़कियां सिर्फ मेरे परिवार के नाम की वजह से मेरे करीब आई थीं.
ऐसे रिश्ते एक निश्चित ऊंचाई तक आगे बढ़ते थे, लेकिन आखिर में हमेशा यह मेरे लिए विफल साबित होते थे. वे मेरी वजह से नहीं बल्कि मेरे परिवार की वजह से मेरे साथ रहना चाहती थीं. बिरला सरनेम उनके लिए कुछ मायने रखता था जिसे मैं कभी भी पूरी तरह समझ नहीं पाया...
मैंने थोड़ी देर आराम करने का मन बनाया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया...मैं बाथरूम से निकला ही था कि घंटी बजने की आवाज सुनी...मैं दरवाजे तक गया और पीपहोल से बाहर झंकने की कोशिश की. यह कोई एशियाई औरत थी...'मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?’ मैंने उससे पूछा. उसने जवाब दिया, 'मैं आपसे मिलने आई हूं’ और वह एक तरह से मुझे परे धकेलते हुए कमरे में घुस गई.
फिशनेट स्टॉकिंग और मिनीस्कर्ट पहनी हुई इस महिला के बाल काफी लंबे थे और उसकी पीठ के नीचे तक आ रहे थे. उसने काफी मेकअप किया हुआ था और गाल तो ऐसे थे जैसे लाल रंग से पेंट कर दिए गए हों. उसका टॉप लाल रंग के झीने कपड़े का था जो उसके बदन से कसकर चिपका हुआ था और उसके नाखून काफी लंबे और नुकीले थे. वह बड़े आराम से मेरे बिस्तर पर एक किनारे बैठ गई.

मैं अब भी यह पचा नहीं पा रहा था कि मेरे कमरे में औरत बैठी हुई है जिसका कहना है कि उसे 'मेरे लिए’ भेजा गया है. मैंने उससे पूछा, 'मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?’ उसने बिस्तर की ओर संकेत करके कहा, 'हम, तुम बूम-बूम यानी मजे करेंगे...’
मैंने उस महिला को समझते हुए कहा, 'सुनो, मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है.’ वह फिलिपींस मूल की वेश्या थी और निश्चित रूप से मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी. साथ ही, मेरे दोस्तों में यह कोई गुप्त बात नहीं रह गई थी कि मैं अभी तक वर्जिन था. मेरे लिए यह बात और भी असहज थी कि मैं पहली बार किसी इस तरह की औरत के साथ जिस्मानी संबंध कायम करूं. अपने कंधे के स्ट्रैप खोलते हुए उसने कहा, 'मैं अपने कपड़े उतारूं?’ मैंने तुरंत ही अटकते हुए कहा, 'नहीं, नहीं रुको. हम बात करते हैं...’
मैंने उस औरत को समझने की कोशिश की, 'मैं जानता हूं कि तुम्हारे लिए परिवार की जिम्मेदारी उठाना बहुत अहम है, लेकिन यह धंधा बहुत बुरा है. तुम्हे यह नहीं करना चाहिए...’ उसने कहा, 'मैं जानती हूं! लेकिन पैसा कहां से आएगा?’ मैंने कहा, 'तुम किसी स्टोर में नौकरी क्यों नहीं करती? तुम हसीन हो, तुम चाहो तो कोई भी दूसरा कर सकती हो.’
उसने तुरंत जवाब दिया, 'अगर मैं हसीन हूं तो मेरे साथ मजे क्यों नहीं करते हो?’ मैं फंस गया था...मैंने कमजोर-सा बहाना बनाया: 'मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’ उसने मेरे माथे पर हाथ रखा जो बर्फ जैसा ठंडा था. उसने कहा, 'तुम्हें बुखार तो नहीं है!’ उसका हाथ दूर झटकते हुए मैंने उसे लगातार समझने की कोशिश की कि उसे कोई और काम करना चाहिए. मेरा यह उपदेश करीब 20 मिनट तक चलता रहा, अंत में महिला ने तिरस्कार से यह जताया कि वह तो उस पैसे के एवज में कुछ करना चाहती थी, जो उसे किसी ने दिया है और कमरे से बाहर हो गई..
मैंने बाहर जाकर देखा तो सुजाता और जय एक कमरे से बाहर झांकते हुए दिखे. वे मुझे देख रहे थे. मैंने उनसे पूछा, 'यह सब क्या था?’ उन्होंने एकदम दरवाजा बंद कर दिया और जोर-जोर से हंसने लगे. जब मैंने दरवाजे को जोर-जोर से पीटना शुरू किया तो सुजाता ने उसे खोला और मेरे चेहरे को सहानुभूति से देखने लगी. अंदर जयदीप और जय फर्श पर बैठे अपने हाथ उठा-उठाकर जोरों से हंस रहे थे. मैंने पूछा, 'यह सब किसने किया है?’ जयदीप ने कहा, 'गुड्डू, हम तुम्हारे दरवाजे पर कान लगाए सब कुछ सुन रहे थे.’
मैं शर्म से लाल हो गया. अब भी हंसते हुए जय चिल्लाकर बोला, 'गुड्डू ने तो उसको भाषण देकर विदा कर दिया!’ मैं अब भी नहीं समझ पा रहा था कि इसमें कौन-सी ऐसी चुटकुले वाली बात थी जो मेरी समझ से बाहर थी. जयदीप ने कहा, 'यश! हमें लगता था कि आज तुम्हारा कौमार्य भंग हो जाएगा.’ निश्चित तौर पर उसने मेरी दुखती रग छेड़ दी थी.
अंत में मुझे पता चला कि ललित मोदी ने बंबई में बैठकर ही कुछ लोगों को फोन कर यह सब करने को कहा है. गौतम और जयदीप इस मजाक का हिस्सा थे और ललित ने तो न जाने कैसे मेरे डैड को भी इसमें शामिल होने के लिए मना लिया था...
बंबई में बैठकर ललित और मेरे डैड को पल-पल की खबर मिल रही थी...'अब वो कमरे में गई है, यश उसको कुछ बोल रहा है, ये अच्छा नहीं है...भाषण से डर के भाग गई वो.’ मैं सिर्फ कल्पना कर सकता हूं कि उन्होंने क्या बताया होगा.