भारतीय समाज की मूल भावना अहिंसा, करुणा, अपरिगृह और आपस में भाईचारे की है. इन्हीं गुणों का जिक्र जब धार्मिक संदर्भ में होता है तो महान जैन धर्म इनका सबसे बड़ा आश्रय दिखाई देता है.
लेकिन पिछले साल 1 जनवरी को जब गुजरात के जूनागढ़ जिले में जैनों के परम पवित्र तीर्थस्थल गिरनार में मुनि प्रबल सागर पर प्राणघातक हमला हुआ तो पूरे देश के अन्य सहिष्णु लोगों की तरह ही जैन धर्म के लोग भी सकते में आ गए.
यह हमला उस गुजरात राज्य में हुआ जहां के मुख्यमंत्री पहले ही अपनी धार्मिक कट्टरता और अल्पसंख्यकों के प्रति कटुतापूर्ण रुख के लिए जाने जाते हैं. और देश के इस राज्य में तो जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा भी हासिल नहीं था.
ऐसे में केंद्र सरकार भी उनकी बहुत ज्यादा मदद करने की हैसियत में नहीं थी. इसी तरह लखनऊ में सरेआम हमारे आराध्य तीर्थंकर की मूर्ति का भंजन कि या गया. इधर, मंदिरों से मूर्ति चोरी और जैन संतों पर हमले भी निरंतर बढ़ते रहे.
जैन समाज के चारों अंग दिगंबर, श्वेतांबर, स्थानकवासी और तेरापंथी के धार्मिक रहनुमा इन परिस्थितियों से विकल हो गए और उन्हें लगा कि धर्म की रक्षा, आस्था का निर्वाह और मुनियों की सुरक्षा के लिए जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाना जरूरी है.
इस दर्द को जितनी गंभीरता से जैन समाज महसूस कर रहा था, उतनी ही शिद्दत से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी समझा. गांधी परिवार हमेशा से ही जैन धर्म को लेकर अनुरागी रहा है चाहे वे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जी हों या देश की लौह महिला इंदिरा गांधी.
वर्तमान नेतृत्व की मंशा को तो खुद मेरे उदाहरण से समझा जा सकता है. जैन समाज को केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व देने के लिए मेरे जैसा अदना-सा कार्यकर्ता, जो पहली बार सांसद बना हो, को केंद्र सरकार में मंत्री की हैसियत से जगह दी गई. राहुल गांधी से समय-समय पर जैन समाज के शीर्षस्थ लोग मिलते रहे और उन्हें यह बात प्रेषित की कि जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का सही वक्त आ गया है.
राहुल गांधी की सहमति के बाद अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन मंत्री सलमान खुर्शीद और वर्तमान मंत्री के. रहमान खान के साथ ही कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कैबिनेट में इस प्रस्ताव को सटीक ढंग से रखने के लिए बहुत मेहनत की. इसके लिए मैं व्यक्तिगत रूप से उनका बहुत आभारी हूं. मैं और जैन समाज यह जानता है कि सिर्फ कानूनी दर्जा मिलने से जैन समाज की स्थिति रातोरात नहीं बदल जाएगी.
लेकिन अब समाज के पास कम-से-कम अपनी बात रखने के कानूनी विकल्प होंगे. अगर नरेंद्र मोदी जैसे अल्पसंख्यक विरोधी नेता के शासन में उत्पाती लोग गिरनार जैसा कांड दोबारा करने की जुर्रत करेंगे तो कम-से-कम उन्हें अल्पसंख्यक आयोग के कठघरे में खड़ा किया जा सकेगा.
जहां तक कैनिबेट के इस नतीजे के व्यावहारिक असर की बात है तो जैन समाज न तो नौकरियों में आरक्षण मांग रहा है और न अल्पसंख्यक दर्जा जैसी कोई बात करता है. यानी किसी भी धार्मिक समाज का हक मारने की रत्ती भर गुंजाइश भी जैन समाज नहीं चाहता.
यह दर्जा मिलने से जो खास सहूलियतें जैन समाज को मिलेंगी-मसलन, इससे जैन समुदाय की सुरक्षा बढ़ेगी. जिस तरह बाकी अल्पसंख्यक धर्म अपनी धार्मिक शिक्षा अपने स्कूलों के जरिए देते हैं, अब वह काम जैन समाज भी कर सकेगा. इस समुदाय के ज्यादातर लोग निजी व्यवसाय से जुड़े हैं, ऐसे में कम ब्याज पर लोन और सस्ती तकनीक और व्यावसायिक शिक्षा की सुविधा उन्हें भी मुहैया हो जाएगी.
सबसे बड़ी बात यह कि जैन कॉलेजों में जैन बच्चों के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित होंगी. जैन धर्मावलंबियों के धार्मिक स्थल, संस्थाओं, मंदिरों, तीर्थ क्षेत्रों और ट्रस्ट का सरकारीकरण या अधिग्रहण आदि नहीं किया जा सकेगा, बल्कि धार्मिक स्थलों का समुचित विकास और सुरक्षा के व्यापक प्रबंध शासन द्वारा भी किए जाएंगे.
उपासना स्थल अधिनियम 1991 ( 42अ क- 18-9-91) के तहत किसी धार्मिक उपासना स्थल को बनाए रखने के लिए स्पष्ट निर्देश होंगे, जिसका उल्लघंन धारा 6(3) के अधीन दंडनीय अपराध है. समुदाय द्वारा संचालित ट्रस्टों की संपत्ति को किराया नियंत्रण अधिनियम से भी मुक्त रखा जाएगा.
जैन मंदिरों, तीर्थ स्थलों, शैक्षणिक संस्थाओं इत्यादि के प्रबंध की जिम्मेदारी समुदाय के हाथ में दी जाएगी. सरकार जैन समुदाय को स्कूल, कॉलेज, छात्रावास, शोध या प्रशिक्षण संस्थान खोलने के लिए सभी सुविधाएं और रियायती दर पर जमीन उपलब्ध करवाएगी.
इससे भी बड़ी बात यह कि जैन समुदाय की ओर से संचालित जिन संस्थाओं पर कानून की आड़ में बहुसंख्यकों ने कब्जा जमा रखा है उनसे मुक्ति मिलेगी. जैन धर्मावलंबी द्वारा पुण्यार्थ, प्राणी सेवा, शिक्षा इत्यादि के लिए दान धन कर मुक्त होगा.
यह सब इसलिए भी जरूरी था क्योंकि जैन समुदाय के सदस्य लक्षद्वीप को छोड़कर देश के हर राज्य में निवास करते हैं. जैनों की संख्या देश की कुल संख्या का मात्र 0.4 फीसदी है. सरकारी मान्यता से कहीं पहले देश की अदालतें जैन समुदाय की इस भावना पर मुहर लगाती रही हैं. दरअसल, सारी दिक्कत 1992 से शुरू हुई.
केंद्र सरकार द्वारा निर्मित राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 के अंतर्गत 23 अक्तूबर, 1993 को एक नोटिफिकेशन जारी कर मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं पारसी समाज को धार्मिक अल्पसंख्यक समाज घोषित किया गया. लेकिन जैन समाज को इस सूची से बाहर रखा गया, जबकि 1973 से 1992 तक जैन समाज को यह दर्जा प्राप्त था.
केंद्र सरकार के वर्तमान फैसले से पहले भी छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और झारखंड में जैनों को राज्यस्तरीय धार्मिक अल्पसंख्यक समाज का दर्जा हासिल था.
वैसे भी देश में जिस तरह सांप्रदायिक शक्तियां सिर उठा रही हैं, उससे हमें इतिहास के उस दौर को नहीं भूलना चाहिए जब सभी धर्मों ने राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभाई थी. जैन समाज ने हमेशा से पूरे देश में धर्मशालाएं और विशाल मंदिरों का निर्माण कराया.
सभी वर्गों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए जैन समाज के धनी-मानी लोग हमेशा से प्रयास करते रहे हैं. अब उनके ट्रस्टों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से यह काम व्यापक स्तर पर होगा.
हमारे पास संख्या बल इतना नहीं है कि हम पर्याप्त संख्या में अपने समाज के विधायक या सांसद चुन सकें , जो समय आने पर समाज की परंपराओं, मर्यादाओं और इसके हितों के संरक्षण के लिए आवश्यक कानून बनवा सकें. आर्थिक संपन्नता के इस दौर में धनपति कौम का वह गौरव भी आज हमारे पास नहीं है, जो कभी हुआ क रता था.
देश के धनाढ्य लोगों की सूची में कितने जैन हैं और वे किस-किस नंबर पर हैं, यह सर्वज्ञात है. यदि आज भी जैन समाज सेवा, उद्योग, व्यापार, शिक्षा, संस्कार इत्यादि कार्य में सक्रिय है, तो वह अपने संस्कारों के कारण है. यह जैनियों के खून में है कि वह जितना प्रयास अपने जीने में करते हैं, उतनी ही प्रबल भावना दूसरों के जीने में सहायक होने की रखते हैं, क्योंकि हमारा आदर्श है-‘‘जियो और जीने दो.’’
आज राहुल गांधी की मंशा से जैन समाज को उसका कानूनी हक मिल गया है. लेकिन इस निर्णय के साथ ही जैन समुदाय की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है. हमें हमेशा ध्यान रखना होगा कि भारत सबका है औैर जब कोई समुदाय विशेष अपनी स्थिति को ज्यादा जोरदार ढंग से दूसरे समुदाय पर थोपता है तो सामाजिक ताने-बाने में असंतुलन पैदा होता है.
जैन समाज हमेशा अहिंसक रहा है और आगे भी उसे अपने अधिकारों की लड़ाई ऐसे ही लडऩी होगी.
(लेखक केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री हैं.)
लेकिन पिछले साल 1 जनवरी को जब गुजरात के जूनागढ़ जिले में जैनों के परम पवित्र तीर्थस्थल गिरनार में मुनि प्रबल सागर पर प्राणघातक हमला हुआ तो पूरे देश के अन्य सहिष्णु लोगों की तरह ही जैन धर्म के लोग भी सकते में आ गए.
यह हमला उस गुजरात राज्य में हुआ जहां के मुख्यमंत्री पहले ही अपनी धार्मिक कट्टरता और अल्पसंख्यकों के प्रति कटुतापूर्ण रुख के लिए जाने जाते हैं. और देश के इस राज्य में तो जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा भी हासिल नहीं था.
ऐसे में केंद्र सरकार भी उनकी बहुत ज्यादा मदद करने की हैसियत में नहीं थी. इसी तरह लखनऊ में सरेआम हमारे आराध्य तीर्थंकर की मूर्ति का भंजन कि या गया. इधर, मंदिरों से मूर्ति चोरी और जैन संतों पर हमले भी निरंतर बढ़ते रहे.
जैन समाज के चारों अंग दिगंबर, श्वेतांबर, स्थानकवासी और तेरापंथी के धार्मिक रहनुमा इन परिस्थितियों से विकल हो गए और उन्हें लगा कि धर्म की रक्षा, आस्था का निर्वाह और मुनियों की सुरक्षा के लिए जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाना जरूरी है.
इस दर्द को जितनी गंभीरता से जैन समाज महसूस कर रहा था, उतनी ही शिद्दत से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी समझा. गांधी परिवार हमेशा से ही जैन धर्म को लेकर अनुरागी रहा है चाहे वे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जी हों या देश की लौह महिला इंदिरा गांधी.
वर्तमान नेतृत्व की मंशा को तो खुद मेरे उदाहरण से समझा जा सकता है. जैन समाज को केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व देने के लिए मेरे जैसा अदना-सा कार्यकर्ता, जो पहली बार सांसद बना हो, को केंद्र सरकार में मंत्री की हैसियत से जगह दी गई. राहुल गांधी से समय-समय पर जैन समाज के शीर्षस्थ लोग मिलते रहे और उन्हें यह बात प्रेषित की कि जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का सही वक्त आ गया है.
राहुल गांधी की सहमति के बाद अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन मंत्री सलमान खुर्शीद और वर्तमान मंत्री के. रहमान खान के साथ ही कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कैबिनेट में इस प्रस्ताव को सटीक ढंग से रखने के लिए बहुत मेहनत की. इसके लिए मैं व्यक्तिगत रूप से उनका बहुत आभारी हूं. मैं और जैन समाज यह जानता है कि सिर्फ कानूनी दर्जा मिलने से जैन समाज की स्थिति रातोरात नहीं बदल जाएगी.
लेकिन अब समाज के पास कम-से-कम अपनी बात रखने के कानूनी विकल्प होंगे. अगर नरेंद्र मोदी जैसे अल्पसंख्यक विरोधी नेता के शासन में उत्पाती लोग गिरनार जैसा कांड दोबारा करने की जुर्रत करेंगे तो कम-से-कम उन्हें अल्पसंख्यक आयोग के कठघरे में खड़ा किया जा सकेगा.
जहां तक कैनिबेट के इस नतीजे के व्यावहारिक असर की बात है तो जैन समाज न तो नौकरियों में आरक्षण मांग रहा है और न अल्पसंख्यक दर्जा जैसी कोई बात करता है. यानी किसी भी धार्मिक समाज का हक मारने की रत्ती भर गुंजाइश भी जैन समाज नहीं चाहता.
यह दर्जा मिलने से जो खास सहूलियतें जैन समाज को मिलेंगी-मसलन, इससे जैन समुदाय की सुरक्षा बढ़ेगी. जिस तरह बाकी अल्पसंख्यक धर्म अपनी धार्मिक शिक्षा अपने स्कूलों के जरिए देते हैं, अब वह काम जैन समाज भी कर सकेगा. इस समुदाय के ज्यादातर लोग निजी व्यवसाय से जुड़े हैं, ऐसे में कम ब्याज पर लोन और सस्ती तकनीक और व्यावसायिक शिक्षा की सुविधा उन्हें भी मुहैया हो जाएगी.
सबसे बड़ी बात यह कि जैन कॉलेजों में जैन बच्चों के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित होंगी. जैन धर्मावलंबियों के धार्मिक स्थल, संस्थाओं, मंदिरों, तीर्थ क्षेत्रों और ट्रस्ट का सरकारीकरण या अधिग्रहण आदि नहीं किया जा सकेगा, बल्कि धार्मिक स्थलों का समुचित विकास और सुरक्षा के व्यापक प्रबंध शासन द्वारा भी किए जाएंगे.
उपासना स्थल अधिनियम 1991 ( 42अ क- 18-9-91) के तहत किसी धार्मिक उपासना स्थल को बनाए रखने के लिए स्पष्ट निर्देश होंगे, जिसका उल्लघंन धारा 6(3) के अधीन दंडनीय अपराध है. समुदाय द्वारा संचालित ट्रस्टों की संपत्ति को किराया नियंत्रण अधिनियम से भी मुक्त रखा जाएगा.
जैन मंदिरों, तीर्थ स्थलों, शैक्षणिक संस्थाओं इत्यादि के प्रबंध की जिम्मेदारी समुदाय के हाथ में दी जाएगी. सरकार जैन समुदाय को स्कूल, कॉलेज, छात्रावास, शोध या प्रशिक्षण संस्थान खोलने के लिए सभी सुविधाएं और रियायती दर पर जमीन उपलब्ध करवाएगी.
इससे भी बड़ी बात यह कि जैन समुदाय की ओर से संचालित जिन संस्थाओं पर कानून की आड़ में बहुसंख्यकों ने कब्जा जमा रखा है उनसे मुक्ति मिलेगी. जैन धर्मावलंबी द्वारा पुण्यार्थ, प्राणी सेवा, शिक्षा इत्यादि के लिए दान धन कर मुक्त होगा.
यह सब इसलिए भी जरूरी था क्योंकि जैन समुदाय के सदस्य लक्षद्वीप को छोड़कर देश के हर राज्य में निवास करते हैं. जैनों की संख्या देश की कुल संख्या का मात्र 0.4 फीसदी है. सरकारी मान्यता से कहीं पहले देश की अदालतें जैन समुदाय की इस भावना पर मुहर लगाती रही हैं. दरअसल, सारी दिक्कत 1992 से शुरू हुई.
केंद्र सरकार द्वारा निर्मित राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 के अंतर्गत 23 अक्तूबर, 1993 को एक नोटिफिकेशन जारी कर मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं पारसी समाज को धार्मिक अल्पसंख्यक समाज घोषित किया गया. लेकिन जैन समाज को इस सूची से बाहर रखा गया, जबकि 1973 से 1992 तक जैन समाज को यह दर्जा प्राप्त था.
केंद्र सरकार के वर्तमान फैसले से पहले भी छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और झारखंड में जैनों को राज्यस्तरीय धार्मिक अल्पसंख्यक समाज का दर्जा हासिल था.
वैसे भी देश में जिस तरह सांप्रदायिक शक्तियां सिर उठा रही हैं, उससे हमें इतिहास के उस दौर को नहीं भूलना चाहिए जब सभी धर्मों ने राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभाई थी. जैन समाज ने हमेशा से पूरे देश में धर्मशालाएं और विशाल मंदिरों का निर्माण कराया.
सभी वर्गों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए जैन समाज के धनी-मानी लोग हमेशा से प्रयास करते रहे हैं. अब उनके ट्रस्टों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से यह काम व्यापक स्तर पर होगा.
हमारे पास संख्या बल इतना नहीं है कि हम पर्याप्त संख्या में अपने समाज के विधायक या सांसद चुन सकें , जो समय आने पर समाज की परंपराओं, मर्यादाओं और इसके हितों के संरक्षण के लिए आवश्यक कानून बनवा सकें. आर्थिक संपन्नता के इस दौर में धनपति कौम का वह गौरव भी आज हमारे पास नहीं है, जो कभी हुआ क रता था.
देश के धनाढ्य लोगों की सूची में कितने जैन हैं और वे किस-किस नंबर पर हैं, यह सर्वज्ञात है. यदि आज भी जैन समाज सेवा, उद्योग, व्यापार, शिक्षा, संस्कार इत्यादि कार्य में सक्रिय है, तो वह अपने संस्कारों के कारण है. यह जैनियों के खून में है कि वह जितना प्रयास अपने जीने में करते हैं, उतनी ही प्रबल भावना दूसरों के जीने में सहायक होने की रखते हैं, क्योंकि हमारा आदर्श है-‘‘जियो और जीने दो.’’
आज राहुल गांधी की मंशा से जैन समाज को उसका कानूनी हक मिल गया है. लेकिन इस निर्णय के साथ ही जैन समुदाय की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है. हमें हमेशा ध्यान रखना होगा कि भारत सबका है औैर जब कोई समुदाय विशेष अपनी स्थिति को ज्यादा जोरदार ढंग से दूसरे समुदाय पर थोपता है तो सामाजिक ताने-बाने में असंतुलन पैदा होता है.
जैन समाज हमेशा अहिंसक रहा है और आगे भी उसे अपने अधिकारों की लड़ाई ऐसे ही लडऩी होगी.
(लेखक केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री हैं.)