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जनता पर बोझ बने यूपी के मंत्री

अखिलेश मंत्रिमंडल में 59 मंत्रियों के अलावा 98 ऐसे लोग हैं जिन्हें मंत्री का दर्जा और रुतबा हासिल है. प्रदेश में मंत्री का दर्जा पाए नेताओं का काम समारोहों की शोभा बढ़ाना रह गया.

अपडेटेड 20 जनवरी , 2014

-संदीप बंसल अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष हैं. पहले बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) में थे लेकिन पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल हो गए. व्यापारियों के हितों के लिए पिछले दो दशक से संघर्ष कर रहे 46 वर्षीय बंसल की उपयोगिता सूबे की सपा सरकार को संस्कृति विभाग में ज्यादा नजर आई. इन्हें इस विभाग में सलाहकार बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है. बंसल कहते हैं, ''विभाग उतना मायने नहीं रखता जितना सरकार का अंग होना. अब मैं प्रभावी ढंग से व्यापारियों के लिए लड़ सकूंगा.”


-राजकिशोर मिश्र सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के गुरबत के साथी हैं. 82 वर्षीय मिश्र सूबे की एक बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक हैं. सपा की स्थापना के समय वे पार्टी के कोषाध्यक्ष भी थे. सूबे की परिवहन व्यवस्था भले ही खस्ताहाल हो लेकिन सपा सरकार ने उनके जिम्मे रंगमंच के उत्थान का काम सौंप रखा है. वे पिछले 10 माह से भारतेंदु नाट्य अकादमी के अध्यक्ष पद पर तैनात हैं. राज्यमंत्री का दर्जा पाए मिश्र कहते हैं, ''मैंने मुलायम सिंह से कोई पद नहीं मांगा था. उन्होंने मुझे जो जिम्मेदारी दी उसे ठुकराया तो नहीं जा सकता था.”

-कोलकाता के साल्ट लेक सिटी में रहने वाले 50 वर्षीय सुदीप सेन गायक हैं. अपनी पत्नी अदिति सेन के साथ मिलकर सुदीप कोलकाता में एक सांस्कृतिक संस्था चलाते हैं. उत्तर प्रदेश से ताल्लुक न रखने के बावजूद सपा सरकार ने सुदीप को उत्तर प्रदेश पर्यटन निगम का अध्यक्ष बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया है. महत्वपूर्ण बात यह है कि सुदीप और उनकी पत्नी सपा के सबसे बड़े दानदाता हैं. 2011-12 में सुदीप और उनकी पत्नी का कुल योगदान सर्वाधिक 1.56 करोड़ रु. था जो 2012-13 में बढ़कर 2.19 करोड़ रु. हो गया. वे कहते हैं, ''मैं सपा का कार्यकर्ता हूं. लखनऊ के मेट्रो सिटी में मेरा घर है. मुझे बाहरी कहना सरासर गलत है.”

          इतना ही नहीं, पसमांदा मुसलमानों की राजनीति कर अपनी अलग पहचान बनाने वाले अनीस मंसूरी अब होमगार्ड विभाग के सलाहकार का दायित्व संभालेंगे तो मेरठ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और राजनीति शास्त्र में पीएचडी करने वाले कुलदीप उज्ज्वल को रिमोट सेंसिंग सेंटर जैसे तकनीकी संस्थान का अध्यक्ष बनाया गया है. दोनों का दर्जा राज्यमंत्री का है.

ये महज बानगी भर हैं कि सपा सरकार ने अपने 'दुलारों’ को उपकृत करने के लिए किस तरह से मंत्री का दर्जा देकर लाल बत्ती की बंदरबांट की है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनने के बाद से उनके मंत्रियों और विधायकों ने लाल बत्ती वाली गाडिय़ों और सरकारी तामझाम को दूर रखकर एक मिसाल पेश की तो यूपी में मंत्रियों की बाढ़ और उनके तामझाम ने भी एक नई ऊंचाई छुई है.

वर्तमान में अखिलेश सरकार ने कुल 98 लोगों को विभिन्न निगमों, आयोगों का अध्यक्ष और विभागों का सलाहकार बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया है. इसके लिए सपा सरकार ने पिछली बीएसपी सरकार के कार्यकाल के दौरान 18 जुलाई, 2007 के उस शासनादेश को ढाल बनाया है जिसमें निगमों, आयोगों, संस्थाओं में तैनात होने वाले अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सलाहकार को मंत्री स्तर की सुविधाएं देने का रास्ता साफ किया गया था. बीएसपी सरकार ने 40 लोगों को मंत्री का दर्जा दिया था.

ताक पर कानून
मौजूदा सपा सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मिलाकर कुल 59 मंत्री शामिल हैं. इसमें 22 कैबिनेट मंत्री, 31 राज्यमंत्री और छह राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार शामिल हैं. इससे इतर कुल 98 लोग ऐसे हैं जो विधायक न होने के बावजूद मंत्री का दर्जा पाए हुए हैं. संविधान के मुताबिक किसी भी राज्य की कुल विधानसभा सीटों के 15 प्रतिशत को ही मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है.

अगर राज्य में दर्जा प्राप्त मंत्रियों की संख्या को मिला लिया जाए तो 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा के सापेक्ष 38 फीसदी की मंत्री के तौर पर तैनाती है. लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. रमेश दीक्षित कहते हैं, ''सियासत में रुतबे से ही सब कुछ हासिल होता है.

वोटरों को लुभाने में भी यही रुतबा काम आता है. इसी को ध्यान में रखते हुए सपा सरकार ने मंत्री का दर्जा देकर चुनावी बिसात बिछने से पहले अपने सियासी सिपहसालार तैयार किए हैं.”

प्रदेश में मंत्री का दर्जा पाने वाले लोगों की बाढ़ को थामने के लिए हाइकोर्ट को सामने आना पड़ा. हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आखिरकार 18 दिसंबर को एक याचिका पर आदेश देते हुए दर्जा प्राप्त मंत्रियों को मिलने वाली सुविधाओं पर रोक लगाकर प्रदेश सरकार के मंसूबों को कठघरे में खड़ा कर दिया. याचिकाकर्ता सच्चिदानंद गुप्ता कहते हैं, ''पद और गोपनीयता की शपथ दिलाए बगैर लोगों को मंत्री पद बांटने से प्रदेश में बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है.”
मेरठ के मोहम्मद अब्बास को राज्यमंत्री का दर्जा मिला
मंत्री बनाने का सियासी दांव
सियासी मंसूबों को पूरा करने के लिए मंत्री का दर्जा देकर लाल बत्ती बांटने का सिलसिला मार्च में शुरू हुआ जब सपा ने बरेलवी मुसलमानों पर पकड़ बनाने के लिए इत्तेहाद-मिल्लत कौंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकरी रजा को हथकरघा निगम के अध्यक्ष पद से नवाजा. मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जब सपा की नींव हिली तो पार्टी ने अपनी जमीन मजबूत करने के लिए लाल बत्ती बांटने का ही दांव खेला.

पिछले दो माह के दौरान पश्चिमी यूपी के करीब तीन दर्जन लोगों को मंत्री का दर्जा दिया जा चुका है. जाट-मुस्लिम संतुलन साधने की कोशिश में अखिलेश सरकार ने मेरठ जिले में मुस्लिम बिरादरी के रफीक अंसारी और मोहम्मद अब्बास और जाट बिरादरी से जुड़े बागपत निवासी कुलदीप उज्ज्वल को लाल बत्ती सौंप दी.

करहल, मैनपुरी के सुभाष चंद यादव को ग्रामीण अभियंत्रण विभाग और इटावा के विश्राम सिंह यादव को तकनीकी शिक्षा विभाग का सलाहकार बनाकर यादव जाति के बीच किसी प्रकार की उपेक्षा का संदेश फैलने से रोकने की कोशिश की गई.

मंत्री पद की रेवडिय़ां बांटने के कारण मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा में सपा सरकार में शामिल यादव कुनबे के अलावा के.पी. सिंह चौहान, राम सेवक यादव, रवींद्र श्रीवास्तव, राकेश यादव, विश्राम सिंह यादव, देवेंद्र मणि दुबे और श्रीकृष्ण यादव को मिलाकर कुल सात लोगों को मंत्री का दर्जा मिला है.

बीएसपी विधानमंडल के नेता और पार्टी प्रवक्ता स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं, ''सपा ने मंत्री का दर्जा बांटकर लोकसभा चुनाव जीतने की जुगत लगाई है लेकिन संवैधानिक नियमों को तोड़कर चला गया यह दांव उलटा ही पड़ेगा.”

खजाने पर बोझ, काम कुछ नहीं
राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त सलाहकारों, अध्यक्षों, उपाध्यक्षों को 40,000 रु. मासिक वेतन, भत्ते, स्टाफ, दफ्तर, लाल बत्ती लगी गाड़ी और सरकारी आवास मिलता है. कुल मिलाकर सरकार राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त एक व्यक्ति पर कम-से-कम तीन लाख रु. मासिक खर्च करती है. इस प्रकार मंत्री का दर्जा पाए सभी नेताओं पर तीन करोड़ रु. हर महीने खर्च हो रहे हैं.

हालत यह है कि मंत्री का दर्जा पाए नेताओं की अचानक खड़ी फौज को स्टाफ, गाड़ी मुहैया कराने में सरकार खुद परेशानी में है. सचिवालय प्रशासन विभाग के सचिव अरविंद नारायण मिश्र कहते हैं, ''विभाग कर्मचारियों की बेहद कमी से जूझ रहा है. ऐसे में दर्जा पाए मंत्रियों को स्टाफ देने से मना कर दिया गया है.” आलम यह है कि 70 फीसदी से ज्यादा नेता बगैर सरकारी गाड़ी और दफ्तर के अपने घरों से ही अपना कार्यालय चला रहे हैं.

सलाहकार के तौर पर काम कर रहे नेताओं के सामने दिक्कत यह है कि विभाग के कैबिनेट मंत्री और राज्यमंत्री के बाद उनकी सलाह का नंबर आता है. मसलन, खेल विभाग को ही लीजिए. नारद राय इस विभाग के कैबिनेट मंत्री और रामकरन आर्य राज्यमंत्री हैं.

इसी विभाग में सलाहकार के पद पर तैनात रामवृक्ष यादव ने अपनी तैनाती के बाद क्या महत्वपूर्ण सलाह दी? इस प्रश्न के जवाब में वे इतना कहते हैं, ''विभाग के तीनों मंत्री एक साथ मिलकर सूबे में खेल को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं.”

एक तरफ तो सरकार ने कुछ विभागों में तीन से चार मंत्रियों को तैनात कर रखा है तो कुछ विभाग ऐसे भी हैं जो खाली पड़े हैं. राज्य भंडारण निगम, प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन, जल निगम, राज्य निर्माण निगम वे कुछ विभाग हैं जहां राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त अध्यक्ष पद पर संबंधित विभाग के मंत्री तैनात हैं.
रंजना बाजपेयी पोस्टर में उन्हें बकायदा राज्यमंत्री बताया गया है
सपा सरकार मनमाने ढंग से मंत्री पद का दर्जा बांटने पर विपक्ष के निशाने पर है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी कहते हैं, ''मंत्री पद का दर्जा पाए नेता सरकार पर बोझ बन गए हैं. इनका काम केवल शादी-ब्याह समारोहों की शोभा बढ़ाना रह गया है.”

मंत्री पद बांटने के मुद्दे पर चौतरफा घिरी सपा सरकार का बचाव पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी करते हैं. वे कहते हैं, ''मुख्यमंत्री जिम्मेदारियां बांटने के लिए विभागों में सलाहकार और अध्यक्ष नियुक्त करते हैं. इसमें कुछ गलत नहीं है.”
उत्तराखंड में भी बंट रही अपनों को रेवड़ियां
उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष यशपाल आर्य ने दिसंबर, 2013 के पहले हफ्ते में अपना इस्तीफा अचानक पार्टी आलाकमान को भेज दिया तो पार्टी के भीतर-बाहर हलचल मची रही. कांग्रेस नेतृत्व ने फिलहाल तो दूसरी पारी पूरी कर चुके आर्य को प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए राजी कर लिया है, लेकिन उनके इस्तीफे का कारण यह है कि वे पार्टी के अपने सहयोगियों का दबाव झेल नहीं पाए.

कांग्रेस संगठन के उनके सहयोगियों का दबाव दायित्व और लाल बत्तियों को लेकर था. उत्तराखंड के गठन के बाद से राज्य में जिस पार्टी की सरकार रही है, उसने अपने कार्यकर्ताओं को बड़े पैमाने पर लाल बत्तियां देकर उपकृत करने का काम किया है. कांग्रेस की पूर्ववर्ती एन.डी. तिवारी सरकार तो इस मामले में खासी बदनाम रही. यहां तक कि 2007 में इस सरकार के बेदखल होने का एक प्रमुख कारण लाल बत्तियों की बंदरबांट रहा है.

तिवारी सरकार के समय प्रदेश में लगभग 300 लाल बत्तियां बांटी गई थी. कांग्रेस की वर्तमान सरकार भी इसी सिलसिले को आगे बढ़ा रही है. वर्तमान सरकार ने लगभग दर्जनभर विधायकों के साथ ही पार्टी के लगभग डेढ़ दर्जन कार्यकर्ताओं को विभिन्न निगमों, परिषदों, आयोगों, बोर्डों व विभागों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाकर लाल बत्ती के साथ ही गाड़ी, दफ्तर और बंगला देकर उपकृत किया है.

सरकार ने कांग्रेस के पांच और सहयोगी बीएसपी के एक विधायक को सभा सचिव बनाया है, लेकिन इस पद की वैधानिकता और इसकी जिम्मेदारी पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं. यहां तक कि सभा सचिव बनाए गए विधायक भी खुद सार्वजनिक रूप से अधिकार दिए जाने की मांग करते रहे हैं.

सरकार ने सभा सचिव बनाए गए विधायकों को कैबिनेट स्तर का दर्जा दिया है. उन्हें मंत्रियों के समान ही आवास, कार्यालय, गाड़ी व सुरक्षा दी गई है, लेकिन इन्हें काम के रूप में सरकार ने कोई जिम्मेदारी नहीं दी है. कोई लिखित कायदा-कानून न होने की वजह से इन मंत्रियों को विभागीय अधिकारी पूछते भी नहीं. सभा सचिवों के पीछे सरकार प्रति माह लाखों रु. का अतिरिक्त खर्च कर रही है, लेकिन इनकी कोई उपयोगिता नहीं है.

कैबिनेट स्तर का दर्जा पाए विधायकों की अराजकता भी सामने आती रही है. खानपुर से विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन को मौजूदा सरकार में उत्तराखंड वन निगम का उपाध्यक्ष बनाकर कैबिनेट स्तर का दर्जा दिया गया था, लेकिन चैंपियन ने अपनी गाड़ी और बंगले के सामने कैबिनेट मंत्री लिखकर सार्वजनिक रूप से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का मजाक बनाना शुरू कर दिया.

इतना ही नहीं, कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के आवास पर सितंबर के दूसरे हफ्ते में हुई गोलीबारी में नाम आने के बाद सरकार ने चैंपियन को उनके पद से हटाया.

लाल बत्तियों और दायित्वधारियों की उपयोगिता कितनी है, इसकी एक झलक इस बात से भी मिलती है कि पिथौरागढ़ से विधायक मयूख महर को कांग्रेस ने सरकार गठन के समय ही राज्य योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया था, लेकिन उन्होंने आज तक अपना पद ग्रहण नहीं किया. इसके अलावा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन भी कैबिनेट मंत्री का बोर्ड लगाकर खुलेआम घूमते हैं.

कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता शिल्पी अरोड़ा कहती हैं कि सरकार को जल्द से जल्द कार्यकर्ताओं को दायित्वों का वितरण करना चाहिए. उनके मुताबिक, ''जिन कार्यकर्ताओं ने मेहनत करके बीजेपी की सरकार को हटाया, उन्हें प्रोटोकॉल तो मिलना ही चाहिए. प्रोटोकॉल कार्यकर्ता के लिए पहचान पत्र है.” अरोड़ा यह भी कहती हैं कि प्रदेश में महिला आयोग और समाज कल्याण बोर्ड जैसे संवैधानिक पद भी खाली हैं, इन्हें कार्यकर्ताओं से भरा जाना चाहिए.

सरकार के लिए कार्यकर्ताओं को विभिन्न निगमों में बिठाकर संतुष्ट करना अपने वजूद को बचाने से ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन इससे पडऩे वाला आर्थिक बोझ तो जनता के कंधे पर ही है.

(-साथ में प्रवीण कुमार भट्ट)
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