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पत्रकारिता के सितारे तरुण तेजपाल का पतन

बलात्कार के आरोपों ने भंडाफोड़ पत्रकारिता के नायक को एक झटके में धूल में मिला दिया. वे उन्हीं आदर्शों को रौंदने वाले शख्स बने, जिनके लिए वे जाने जाते थे.

अपडेटेड 17 दिसंबर , 2013
तहलका के एक पुराने टीवी विज्ञापन में किसी गांव के नुक्कड़ पर एक नेता अनाप-शनाप भाषण दिए जा रहा है और बीच-बीच में ‘‘शिक्षा’’ और ‘‘बेरोजगारी’’ जैसे कुछ शब्द बोल देता है. अचानक कौवों की कांव-कांव से लोग बेचैन हो उठते हैं. कौवे पेड़ों पर, बिजली के तारों पर, हैंडपंप पर चारों ओर छा गए हैं. उधर, भाषण जारी था, तभी एक कौवा माइक्रोफोन पर आ बैठता है और नेता की बोलती बंद हो जाती है.

इसके साथ ही परदे पर लिखा आता है, ‘‘झूठ बोले कौवा काटे’’ और फिर उभरता है, तहलका के मास्टहेड (पत्रिका का नाम) के साथ तरुण तेजपाल का भरी-पूरी दाढ़ी वाला चेहरा. बात तब की है जब तहलका साप्ताहिक टेबलॉयड हुआ करता था. संदेश सीधा-सादा था. अंग्रेजी के ‘‘टी’’ से बने तीन अक्षर एक-दूसरे के पर्यायवाची बन गए थे. यानी टी से तेजपाल, टी से तहलका, और टी से ट्रुथ यानी सचाई.

आजकल तेजपाल का चेहरा फिर अखबारों के मुख पृष्ठ और टीवी चैनलों के प्राइम टाइम में छाया हुआ है लेकिन इस बार सचाई के पहरुए के रूप में नहीं, बल्कि उन्हीं आदर्शों को रौंदने वाले शख्स के नाते, जिनके लिए वे जाने जाते थे. उनका पिछला करियर आदर्शवादी विचारों और विद्रोही तेवर के साथ कलम के जादूगर, मूर्तिभंजक, विवादास्पद, झूठ को तार-तार करने वाले खोजी, उद्यमी, सरोकारी, नैतिकता के पहरुए वगैरह का रहा है.

इस तरह जिस शख्स ने अपने लिए मिथक खुद गढ़े हों, उसे कथित तौर पर यौन-उत्पीड़क के रूप में देखना अलग तरह का अनुभव है.

इसकी शुरुआत भी उन्हीं स्थितियों में हुई जो उनकी शख्सियत से मेल खाती है. गोवा के धूप से खिले समुद्र तट पर विचारों के उस महोत्सव में अमेरिकी फिल्म अभिनेता और निर्देशक रॉबर्ट डी नीरो और शतरंज खिलाड़ी गैरी कास्पारोव जैसी विश्व की जानी-मानी हस्तियां भी मौजूद थीं. उसी दौरान दो मौकों पर 7 और 8 नवंबर को कथित रूप से यौन उत्पीडऩ का यह काला कारनामा  घटित होता है.

दो साल पहले, इसी महोत्सव के उद्घाटन के दौरान तेजपाल ने शिरकत करने वालों से कहा था कि खाओ, पीओ, मौज करो और जो पसंद हो, उसके साथ हमबिस्तर हो जाओ.’’ तेजपाल पर आरोप है कि उन्होंने अपनी जूनियर सहयोगी से लिफ्ट में जोर-जबरदस्ती की. इस जूनियर सहयोगी को डी नीरो के स्वागत-सत्कार का जिम्मा सौंपा गया था. यह भी गजब का संयोग है कि महोत्सव में पहले दिन का विषय बलात्कार  और ‘‘हमारे बीच बैठा दानव’’ था.

उस जूनियर सहयोगी के तहलका की मैनेजिंग एडिटर शोमा चौधरी के पास लिखित शिकायत भेजने के एक दिन बाद 19 नवंबर को तेजपाल ने उसे सीधे ईमेल किया कि ‘‘तुम्हें याद होगा कि उस अभागी शाम की हमारी बातचीत खासी रसीली थी. हम हंसी-मजाक में वासना की बात कर रहे थे... इसी हल्के-फुल्के मूड में वह घटना हो गई. मुझे यह अंदाजा नहीं था कि तुम परेशान हो या मुझे एक पल को भी यह नहीं लगा कि असहमति है.’’ शोमा चौधरी अब मैनेजिंग एडिटर पद से इस्तीफा दे चुकी हैं.

अगले दिन 20 नवंबर को उस 27 वर्षीया युवती ने आरोप सार्वजनिक होने के बाद पहली दफा तेजपाल को जवाब दिया और उनकी एक-एक बात का खंडन किया. उसने तेजपाल को लिखा कि 7 नवंबर की रात बातचीत कतई रसीली या हल्की-फुल्की नहीं थी-‘‘आप सेक्स या वासना की बातें इसलिए कर रहे थे क्योंकि आप मुझसे अमूमन वैसी बातें करते रहे हैं और दुर्भाग्य से कभी आपने मेरे काम के बारे में बातचीत नहीं की.’’

उसने आगे लिखा, ‘‘असहमति और क्या होती है. जैसे ही आपने मुझे छुआ, मैं आपसे दूर हटने की मिन्नत करने लगी. मैंने हर उस आदर्श और नाम की दुहाई दी जो हमारे लिए अहमियत रखते थे, टिया (तेजपाल की बेटी), गीतन (बत्रा, उनकी पत्नी), शोमा (चौधरी), मेरे पिता (और आपके पुराने साथी पत्रकार). हकीकत यह है कि मेरी नौकरी आपके हाथ में है इसलिए मुझे इतने नामों की दुहाई देनी पड़ी.

आपको कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि अगली रात भी मुझसे जबरदस्ती करने की कोशिश की. आप सुन नहीं रहे थे. तहलका की संपादकीय बैठकों में अक्सर हम विचार किया करते थे कि ‘‘क्यों पुरुष जानवर बन जाते हैं.’’ और जब होता था कि पुरुष में इनकार सुनने की क्षमता नहीं होती.

मामले का सार्वजनिक होना था कि पत्रिका से इस्तीफों की कतार लग गई. पुराने दोस्त सार्वजनिक रूप से निंदा करने लगे तो 50 वर्षीय तेजपाल अपने तेवर और बयान बार-बार बदलने लगे. 23 नवंबर को उन्होंने अपनी बिना शर्त माफी वापस ले ली और टेक्स्ट मैसेज में लिखा, ‘‘एक झूठ से मेरा जीवन और काम तबाह किया जा रहा है.’’

फिर उन्होंने कहा कि गोवा की बीजेपी सरकार उन्हें ‘‘फंसा’’ रही है. अंत में वे 26 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी लेकर पहुंचे. अर्जी में कहा कि ‘‘कथित आरोप पूरी तरह झूठ हैं और बुरी नीयत से बाद में गढ़े गए हैं.’’ बाद में उन्होंने अर्जी वापस ले ली.

एक वक्त में उनकी दोस्त रहीं अरुंधति राय के मुताबिक, तेजपाल के बयानों से ऐसा लगता है कि जिस पत्रकार को उन्होंने नौकरी पर रखा था, अब वह ‘‘न सिर्फ बदचलन औरत है, बल्कि फासीवादियों की एजेंट भी है.’’ मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वतः संज्ञान लेकर मामला दर्ज करने वाली गोवा पुलिस ने 28 नवंबर को उन्हें डोना पाउला थाने में पेश होने का समन भेजा. और 29 नवंबर को पुलिस जब उनसे पूछताछ करने पहुंची तो वे अपने दिल्ली वाले घर पर नहीं मिले.

उधर, मामले की जांच-पड़ताल पर नजर रख रहे मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने इस बात का खंडन किया है कि इस मामले में उनकी खास दिलचस्पी राजनीति से प्रेरित है. तेजपाल ने गोवा पुलिस से निवेदन किया कि उन्हें 30 नवंबर को पेश होने की इजाजत दी जाए लेकिन उनके आग्रह को ठुकरा कर गिरफ्तारी का गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया गया.

हर घोटाले की तरह इस मामले में भी राजनैतिक वाक्युद्ध छिड़ गया है. नरेंद्र मोदी पर महिला जासूसी कांड में कांग्रेस के हमलों को भोथरा करने के लिए बीजेपी नेता तहलका मामले को उछाल रहे हैं. तेजपाल को लेकर सियासी रेखाएं तहलका के 2001 में वेस्टएंड ऑपरेशन के पहले ही खिंच गई थीं. इसकी एक वजह यह रही कि गांधी परिवार ने उनकी भारी प्रशंसा की थी.

1997 में जब प्रियंका गांधी और उनके पति राबर्ट वाड्रा को सरकारी बंगले के आवंटन का विवाद उठा था तो तेजपाल ने आउटलुक में एक डायरी आइटम लिखा था, ‘‘वे (प्रियंका) बेहद खूबसूरत हैं और गरिमापूर्ण सहजता बनाए रखती हैं, वरना वे उस उम्र में हैं जब यौवन के हारमोन अपना असर दिखाते हैं. इसके अलावा इस करिश्मापसंद देश में जवाहर और इंदिरा के नाम से ही उनकी राजनैतिक संभावनाएं काफी हो सकती हैं.

इस नजदीकी को साबित करने के लिए बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 25 जून, 2004 को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम लिखी चिट्ठी जारी की. इसमें प्रधानमंत्री ने कहा है, ‘‘मुझे आपकी 18 जून, 2004 की चिट्ठी मिली जिसके साथ तहलका के संपादक तरुण तेजपाल का उनके खिलाफ लंबित जांच का प्रतिवेदन संलग्न है.

मैं संबंधित मंत्रालयों को मामले की जांच करने और उनकी समीक्षा के बाद आगे की जरूरी कार्रवाई करने के लिए लिख रहा हूं.’’ तब यूपीए को सत्ता में आए महीना भर ही हुआ था.

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने 27 नवंबर को यह ट्वीट करके नया शिगूफा छोड़ दिया कि एक केंद्रीय मंत्री, जो तहलका के ‘‘संरक्षक’’ भी हैं, तेजपाल को ‘‘बचा’’ रहे हैं. कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने फौरन स्वराज को चुनौती दी कि वे ‘‘इशारों’’ में बोलने के बदले सीधे उनका नाम लें. सिब्बल ने तहलका के शेयर रखने की बात का खंडन किया पर कहा कि उन्होंने 2003 में तहलका को 5 लाख रु. ‘‘चंदे’’ में दिए थे.

तेजपाल पर बलात्कार (आइपीसी की धारा 376), ऊंचे या प्रभावी पद पर बैठे शख्स के बलात्कार को अंजाम देने (आइपीसी की धारा 376-2-के), और महिला की गरिमा भंग करने (आइपीसी की धारा 354) के आरोप लगाए गए हैं. ऊंचे या प्रभावी पद पर बैठे शख्स के बलात्कार को अंजाम देने का आरोप सिद्ध होने पर कम से कम 10 साल की सजा हो सकती है.

वर्कप्लेस पर महिला यौन उत्पीडऩ (रोकथाम, निषेध और निवारण) कानून, 2013 संसद में पारित होने और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बावजूद अभी कागज पर ही है क्योंकि महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय अभी नियम ही नहीं बना पाया है.

एक फौजी अफसर के बेटे तेजपाल ने अपना करियर 1983 में अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के चंडीगढ़ संस्करण से सब एडिटर के रूप में शुरू किया. तब भारी-भरकम शब्दों के प्रति उनके मोह के चलते बाकी सहयोगियों को वहां उपलब्ध एकमात्र डिक्शनरी पर छीनाझपटी करनी पड़ती थी.

कहा जाता है कि वरिष्ठ संपादकों में एक वक्त यह बात भी चल रही थी कि क्या उन्हें रखना ठीक होगा क्योंकि वे बहुत घमंडी और ‘‘खुद को लेकर कुछ ज्यादा ही ऐंठ में रहने वाले शख्स हैं.’’ अकसर समाचार के संपादन के बीच तेजपाल एक कोने में बैठे मिलान कुंद्रा या टाइम तथा न्यूजवीक के ताजा अंक पढ़ते रहते थे.

इससे कुछ कम साहित्यिक रुचि वाले साथियों में उनका कद बड़ा हो गया था. उनके एक पूर्व सहयोगी कहते हैं, ‘‘उन दिनों वह सिर्फ गीतन को ही देखा करता था (जो बाद में उनकी पत्नी बनीं, वे भी उसी दौरान नौकरी करने लगी थीं).’’

बेशक, कॉपी डेस्क और चंडीगढ़ दोनों ही तेजपाल को लंबे समय तक बांधे रखने के लिए बेहद छोटे थे. वे उन्हीं दिनों अक्सर दिल्ली पहुंचकर साहित्य और तब कछुआ चाल से तरक्की कर रहे भारत पर लिखने की बातें करते थे. उन्हें इसका मौका कुछ समय के लिए इंडिया 2000 में मिला और फिर 1988 में इंडिया टुडे के कॉपी डेस्क पर उन्हें नौकरी मिल गई.

यहां तेजपाल का एक और रूप उभरा-वे हंसमुख और हमेशा हर काम के लिए तैयार रहते थे. पत्रकार के रूप में भी उनका विकास शुरू हुआ. वे पहले किताबों के पन्ने के संपादक बने. फिर वी.एस. नायपॉल जैसे मुश्किल से खुश होने वाले लेखक के पसंदीदा साहित्य संपादक बने.

पत्रिका ने उनकी महत्वाकांक्षाओं पर कुछ समय के लिए लगाम कसने का काम किया. 1994 में तेजपाल के दिमाग में कुछ बड़ी और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की योजना सुगबुगाने लगी. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की संडे मैगजीन में वे अपनी टीम बनाने लगे, जो उनकी शैली का नेतृत्व स्वीकार करती थी और ऐसा बॉस मानती थी जो उन्हें भरपूर आजादी देता है.

1995 में तेजपाल आउटलुक से मैनेजिंग एडिटर के रूप में जुड़े. वहां चार साल तक रहे. उसी दौरान अरुंधती राय अपने पहले उपन्यास के लिए प्रकाशक की तलाश में थीं. तेजपाल ने फोटोग्राफर संजीव सेठ के साथ मिलकर इंडिया इंक नाम से प्रकाशन शुरू किया जिसने बुकर पुरस्कार जीतने वाली पुस्तक द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स छापी. तरुण जो भी छू रहे थे, वह चीज सोना हो जा रही थी.

फिर वह समय आया जब तेजपाल को अपने भीतर मौजूद आदर्शवादी, गुस्सैल, सच बोलने वाले इंसान के लिए तहलका डॉटकॉम शुरू करना मुफीद लगा. वे इस वेबसाइट का संपादन करते थे और अनिरुद्ध बहल उसके परिश्रमी श्स्टिंग ऑपरेशन कार्य थे. वेबसाइट ने 14 मार्च, 2001 को बीजेपी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को रिश्वत लेते दिखाने वाला स्टिंग करके धूम मचा दी थी.

बंगारू तहलका के रिपोर्टर मैथ्यूज सैमुअल से रुपए लेते कैमरे में कैद हुए थे. फिर, ऑपरेशन वेस्टएंड के बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को इस्तीफा देना पड़ा था. यह ऑपरेशन अधिकारियों को लुभाने के लिए वेश्याओं के इस्तेमाल को लेकर विवादास्पद भी हुआ.

इसी ऑपरेशन ने तेजपाल का कद काफी ऊंचा कर दिया. इसके बाद खासकर टीवी चौनलों ने तो कई तरह के स्टिंग ऑपरेशन किए और चीजों को देखने का मीडिया का नजरिया बदला. महज 17 साल में पंजाब विश्वविद्यालय के नए कोर्स के लिए कहानियों का संपादन करने वाले शांत, विनम्र संपादक से तेजपाल केंद्र की सरकार झुका देने वाले विराट संपादक बन गए. यहीं से विद्रोही तेजपाल का मिथक बनना शुरू हुआ.

लेकिन तेजपाल की सफलता विवादों से दूर नहीं रही. उनके सबसे अच्छे दिन शायद पत्रकार के रूप में बुलंदी हासिल करने के दौर के थे. बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार ने तहलका के रिपोर्टरों और पैसा लगाने वालों को निशाना बनाया. तहलका में 14.5 फीसदी शेयर रखने वाले शंकर शर्मा और देविना मेहरा की कंपनी फर्स्ट ग्लोबल को शेयर बाजार में जोड़-तोड़ करने के आरोप में निशाना बनाया गया.

पैसा लगाने वाले डर गए तो तेजपाल निहित स्वार्थ वाले इन्वेस्टर्स के चंगुल में फंस गए, इससे वे कांग्रेस के करीब आए. इस पर कई पत्रकारों ने उन पर इन स्टोरियों के जरिये अपने व्यावसायिक हित साधने के आरोप लगाए.

तेजपाल अकसर थोड़ा गर्व के साथ कहा करते हैं कि तहलका एक ‘‘विचार्य का प्रतिनिधित्व करती है. भले ही इस विचार से उनकी अपनी निजी सनक को बढ़ावा मिलता हो, लेकिन यह उदारवादी वामपंथी फलसफे की भी प्रतिनिधि है और तेजपाल इसके सबसे धाकड़ योद्धा हैं. यह विचार अराजक था और इसने बने रहने के लिए अलग-अलग दिशा में कई रूप लिए. तहलका 2004 में साप्ताहिक टैबलाएड बन गई.

2007 में यह साप्ताहिक पत्रिका बन गई. इस तहलका को 2009 में उस समय जबरदस्त बढ़ावा मिला जब तृणमूल कांग्रेस के विवादास्पद सांसद के.डी. सिंह ने पत्रिका की होल्डिंग कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड में 25 करोड़ रु. का निवेश किया. इस कंपनी में तेजपाल के परिवार के सदस्यों की हिस्सेदारी थी.

वे उन चंद पत्रकारों में शुमार हैं जिन्होंने बड़ी आसानी से फैक्ट से फिक्शन के क्षेत्र में कदम रख दिया. उनके उपन्यासों में ऐंद्रिकता और गंभीरता का अद्भुत संगम है. उनका पहला उपन्यास द अलकेमी ऑफ डिजायर फ्रांस में बेस्ट सेलर साबित हुआ. धवल दाढ़ी, चोटी वाले बाल, अलंकारों से लदी भाषा वाले तेजपाल के दोस्तों की कतार में फिल्म अभिनेता आमिर खान से लेकर टीना ब्राउन तक शामिल हैं.

ये सब उनके आकर्षक व्यक्तित्व के आशना लोग हैं. ये सब तब भी उनके दोस्त बने रहे जब तेजपाल ने तहलका के मूल विचार को ही दरकिनार कर दिया या इस हद तक चले गए कि तहलका में छपने वाली खबरों और इसमें लगने वाले पैसे का आपस में कोई रिश्ता ही नहीं रह गया.

तेजपाल के कथित उच्च विचारों पर सबसे तीखा तंज कथित यौन उत्पीडऩ का शिकार हुई महिला की तरफ से आया. दूसरी बार यौन उत्पीडऩ की घटना के दिन यानी 8 नवंबर के बाद तेजपाल ने पीड़ित लड़की को एक सख्त एसएमएस भेजा. इसमें वे लड़की को इस बात के लिए फटकार रहे थे कि उसने इस घटना के बारे में तेजपाल की बेटी टिया को क्यों बताया?

तेजपाल ने मैसेज में लिखा, ‘‘मुझे इस बात का बिलकुल भरोसा नहीं था कि तुम इतनी मामूली बात जाकर उसे (टिया को) बता दोगी. इससे पता चलता है कि तुम्हें बाप-बेटी के रिश्ते का रत्ती भर भी भान नहीं है.’’ महिला पत्रकार ने इसका करारा जवाब दिया, ‘‘मैं इस बात पर यकीन नहीं कर सकती कि एक तो अपनी बेटी की उम्र की कर्मचारी, दूसरे तुम्हारे दोस्त की बेटी का यौन उत्पीडऩ करने को आप ‘‘मामूली बात’’ समझते हैं. जिन विचारों के लिए तहलका जानी जाती है, उनका रत्तीभर भी असर आप में नहीं है.’’

यह गंदी कहानी सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि इसका केंद्रीय चरित्र चर्चित पत्रकार है जो समानता, भरोसा और पारदर्शिता के उन्हीं सिद्धांतों के लिए खड़े होने की बात करता रहा है जिसके उल्लंघन के उस पर आरोप लगे हैं. यह शहरी और कुलीन भारत में वर्कप्लेस में यौन दुर्व्यवहार और बलात्कार के लिए लिटमस टैस्ट साबित होगा.

तेजपाल के वकील अब लड़की के बयान में खामियों की तलाश कर रहे हैं जो घटना के उनके बताए वर्जन के विपरीत शुरू से अब तक बिल्कुल नहीं बदला है. वे यह सवाल कर रहे हैं कि घटना के बाद भी वह थिंक इवेंट में क्यों मौजूद रही और कथित यौन दुर्व्यवहार के बावजूद वह ‘‘पार्टी कैसे करती रही.’’ वे यह मुद्दा भी उठा रहे हैं कि तहलका मैनेजमेंट को इसकी जानकारी दस दिन के बाद 18 नवंबर को क्यों दी गई.

वरिष्ठ वकील विकास पाहवा के मुताबिक तेजपाल का मुख्य बचाव बस यह हो सकता है कि लड़की बालिग थी और यह उसकी सहमति से हुआ था. बचाव का एक और तर्क यह हो सकता है कि दोमंजिला इमारत की लिफ्ट में यौन दुर्व्यवहार कर पाना असंभव लगता है. वरिष्ठ वकील अमन लेखी के मुताबिक लड़की का पक्ष मजबूत है.

उसके तर्क में सबसे वजनदार बात तेजपाल का लिखा गया पत्र है, जिसमें तेजपाल ने यह मान लिया है कि उन्होंने उसकी मर्जी के बिना उससे अवैध संबंध बनाने की कोशिश की. लेखी ने कहा कि घटना के बाद पीड़िता के व्यवहार से मामला कमजोर नहीं हो सकता. उन्होंने कहा, ‘‘यह कहते हुए कि घटना से पहले उन दोनों के बीच बातचीत फ्लर्टिंग वाली थी, तेजपाल ने यह गलत धारणा बना ली कि पीड़िता अपने साथ किसी भी व्यवहार के लिए तैयार रहेगी. एक बार तो उन्होंने उसे यह भी बताने की कोशिश कि वे उसके बॉस हैं.’’

शुरुआत में जब लड़की का ई-मेल लीक हुआ तब शोमा चौधरी और तेजपाल टीवी और सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चीर-फाड़ के विषय बन गए. यह तो साफ  है कि तहलका टीम की प्रतिक्रिया पेशेवर कम भावनात्मक, यहां तक कि अनाड़ीपन वाली ज्यादा थी. इसके विपरीत लड़की के लेटर में जुटाए गए साक्ष्यों के साथ स्पष्टता थी. गोवा पुलिस ने जिस फुर्ती और मुस्तैदी के साथ कार्रवाई की उससे भारत के इस सबसे छोटे राज्य के लोग चकित रह गए हैं.

इससे तेजपाल खेमे के लोग चौकन्ने हो गए और इसमें उन्हें बीजेपी की साजिश की बू आने लगी. गोवा पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कभी-कभार ही इस्तेमाल होने वाली सीआरपीसी 154 के प्रावधान की याद दिला दी जिससे तेजपाल के इस आरोप को बल मिला कि इसके पीछे राजनैतिक एजेंडा है. अपनी अग्रिम जमानत की याचिका में तेजपाल ने कहा कि पार्टी ने ‘‘एफआइआर के छद्म रूप में उनसे अपना बदला लिया है.’’

लेकिन गोवा के मुख्यमंत्री इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हैं, ‘‘जब उन्होंने गोवा में समारोह आयोजित किए, पहले इसके लिए माफी मांगी या संन्यास पर चले गए (तेजपाल के शब्दों में, अपने को बचाने के लिए अपने ऊपर लगे आरोपों पर प्रायश्चित करने के लिए) तब उन्हें यह आभास नहीं हुआ कि वहां बीजेपी की सरकार है. जब वे अपने ही जाल में फंस गए तब उन्हें इसका आभास हुआ?’’

गोवा पुलिस ने लड़की से 26 नवंबर को मुंबई में एक ‘‘निष्पक्ष, अज्ञात’’ स्थान पर बात की और जांच अधिकारी सुनीता सावंत के साथ मुंबई की महिला पुलिस इंस्पेक्टर भी थीं. पुलिस सूत्रों का कहना है कि कथित पीड़िता ने घटनाक्रम को ‘‘साफ, बेबाक तरीके से और ध्यान से’’ बताया. उसने सावधानीपूर्वक उन्हें अपराध के पहले और बाद के ई-मेल भी दिखाए.

उससे यह सवाल किए गए कि वह आखिर दूसरी बार तेजपाल के साथ लिफ्ट में क्यों गई और उसने शिकायत दर्ज करने में इतनी देर क्यों की. एक अधिकारी ने बताया, ‘‘पीड़िता का मौखिक बयान उससे बिल्कुल मिलता है जो उसने अपने ई-मेल में लिखा है’’ इसके बाद लड़की 27 नवंबर को मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने के लिए फ्लाइट से गोवा गई. लड़की से बात करने वाले उसके दोस्तों ने बताया कि वह थकी थी, परेशान थी लेकिन इरादे की पक्की नजर आ रही थी.

तेजपाल ने अगर सोचा होगा कि प्रायश्चित कर लेने से मामला दब जाएगा तो यह दांव उलटा पड़ा है. उनके अपराध का मजमून कई गुना बढ़ गया क्योंकि अब संदर्भ बदल चुका है. दिल्ली गैंग रेप के बाद शहरी भारत एक अलग दुनिया बन चुका है जहां सड़कों और साइबरस्पेस का न्याय उतना ही प्रभावी हो चुका है, जितना अदालतों में सुनाए जाने वाले फैसले.

तहलका के लॉन्च के समय जारी प्रमोशन के एक मढ़े जा चुके पोस्टर में दाढ़ी के साथ गंभीर दिख रहे तेजपाल अनंत में एक तारे की तरह दिखते हैं और इसमें छपा वाक्य एक गलती की भविष्यवाणी करता लग रहा है, ‘‘आप सत्य को नहीं बदल सकते. लेकिन सत्य आपको बदल सकता है.’’

जन पत्रकारिता की उत्कृष्ट अवधारणा पर खड़े एक संगठन के लिए इससे बेहतर संदेश नहीं हो सकता और उस संगठन के संस्थापक, भारतीय मीडिया के सर्वश्रेष्ठ दिमाग में से एक तेजपाल अब जीवन को बदल देने वाले सच का सामना कर रहे हैं. झूठ बोले कौवा काटेः कौवे मंडराने भी लगे हैं.
-साथ में संदीप उन्नीथन, जयंत श्रीराम और भावना विज-अरोड़ा
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