जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता... राष्ट्र्रगान के ये सुर हैदराबाद के गचीबावली इलाके में पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी के अहाते से बहती सुबह की तेज हवा को चीर रहे हैं. राष्ट्रगान गाने वालों में भारत के बेहतरीन बैडमिंटन खिलाड़ीः साइना नेहवाल, पारुपल्ली कश्यप, पी.वी. सिंधु, आरएमवी गुरुसाईं दत्त और कम से कम 20 दूसरे खिलाड़ी शामिल हैं. सप्ताह में दो बार वे राष्ट्रगान से प्रेरणा लेते हैं.
अकादमी के भीतर कदम रखने से पहले बहुत-से खिलाड़ी शीश नवा कर फर्श को पहले हाथ से और फिर माथे से स्पर्श करते हैं. इस एक भाव से आप समझ सकते हैं कि इनमें से हरेक के लिए इस गुरुकुल की कितनी अहमियत है. अगर वे 10 साल पहले के भारत में बैडमिंटन खिलाड़ी रहे होते तो इस तरह की अकादमी की कल्पना भी नहीं कर सकते थे. आज यह सपना सच हो गया है और इसका सारा श्रेय सिर्फ एक व्यक्ति को जाता है और वे हैं राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद.
आज इस अकादमी में 150 युवा बैडमिंटन खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहे हैं, जिनमें से 40 रहते भी वहीं हैं. प्रशिक्षण देने के लिए आठ कोच और छह सहायक कर्मचारी हैं. आठ योनेक्स कोट्र्स के साथ एक स्वीमिंग पूल, हेल्थ क्लब, रिहैब और वेलनेस सेंटर, एक फुटबॉल का मैदान, दौडऩे के लिए ट्रैक, बर्फ और भाप में नहाने की सुविधा, जाकुजी और एक कैफेटेरिया है. गोपीचंद बताते हैं, “जब मैं खेला करता था तो ट्रेनिंग की बेहतर जगह की तलाश में विदेश गया था. कभी-कभी मुझे दाखिला देने से ही इनकार कर दिया जाता था. इसकी वजहः वहां के कोच नहीं चाहते थे कि बाहर वाले ये जानें कि उनका सिस्टम कैसे काम करता है. मैं सोचा करता था कि काश! हमारे यहां कोई ऐसी जगह होती तो हमें उनके सामने हाथ नहीं फैलाने पड़ते.”
गोपीचंद ने 2001 में ऑल इंग्लैंड खिताब जीता था. उसके बाद आंध्र प्रदेश सरकार ने 2003 में यह अकादमी बनाने के लिए गोपीचंद को पांच एकड़ जमीन दी. लेकिन इसे बनाने के लिए जरूरी 13 करोड़ रु. जुटाना उनके लिए सचमुच टेढ़ी खीर थी. गोपीचंद को वह बात आज भी याद है, जब बड़ी कंपनियों के पास जाकर वे कहते थे कि हमारे पास विश्वस्तर के खिलाड़ी हैं तो वे हंसा करते थे और कहते थे कि कल आना. और वह कल कभी नहीं आता था. गोपीचंद ने तीन करोड़ रु. जुटाने के लिए अपना मकान गिरवी रख दिया. पांच करोड़ रु. का चंदा उद्योगपति और मीडिया मालिक निम्मागड्डा प्रसाद ने दिया. इसके लिए उन्होंने एक तरह से शर्त भी रखी थी? एक ओलंपिक पदक. गोपीचंद ने अपना वादा पूरा किया और पिछले साल साइना नेहवाल ने लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर दिखाया.
अपने खेल के दिनों में गोपीचंद खुद अच्छे किस्म की शटल कॉक की कमी से जूझते रहे थे. उस जमाने में रिहैब या विश्वस्तर की ट्रेनिंग की कोई सोच ही नहीं थी, प्रायोजक भी ना के बराबर हुआ करते थे. ऐसे कोच भी ज्यादा नहीं थे, जिनमें चीनी खिलाडिय़ों के दबदबे को खत्म करवा पाने का माद्दा हो. खिलाड़ी के रूप में समय पूरा होने के बाद 2003 की गर्मियों में गोपीचंद ने कुछ बच्चों को सिखाना शुरू किया. तब 14 साल की साइना उन्हीं में से एक थीं. साइना में गोपीचंद को अपना अक्स नजर आया—उन्हीं के जैसा जुझारूपन और बैडमिंटन के बड़े-बड़े धुरंधरों से आतंकित होने से इनकार. गोपी पूरी तरह साइना को सिखाने में जुट गए.
इस लगन और मेहनत की परिणति पिछले साल अगस्त में उस वक्त खुशी के पल में बदल गई जब साइना की गर्दन में ओलंपिक कांस्य पदक पहनाया गया. गुरु और शिष्य ने नम आंखों से लंदन के वैम्बले अरेना में तिरंगा लहराए जाते देखा. हरियाणा में जन्मी साइना आज न सिर्फ भारतीय बैडमिंटन की ध्वजवाहक हैं बल्कि उनका कद इसलिए भी बड़ा है क्योंकि उन्होंने चीनी बैडमिंटन की ऊंची दीवार को सबसे गंभीर चुनौती पेश की है.
साइना का कहना है, “उन्हें (गोपीचंद को) मालूम है कि आपको कैसे ट्रेनिंग देनी है, आप कहां-कहां कमजोर हैं और टूर्नामेंट जीतने के लिए क्या-क्या करना है.” इसी में गुरु अपनी बात जोड़ते हैं, “पिछले नौ साल में मुझे हर मिनट की खबर रही है कि वह कब और क्या करती है. आप कह सकते हैं कि मैंने बड़ी शिद्दत से उसकी हर हरकत पर नजर रखी है.”
साइना की कामयाबी ने एक तरह की क्रांति का काम किया. बच्चों के माता-पिता अकादमी की तरफ उमड़ पड़े. गोपी का तो जैसे नाम ही बन गया गुरू पुलेला ‘फोकस’ गोपीचंद. इस फोकस की झलक उस वक्त मिलती है जब वे ऐसे किसी भी बच्चे को अपना शार्गिद बनाने से साफ इनकार कर देते हैं, जो पूरे समय पढ़ाई करने के साथ-साथ बैडमिंटन खेलेगा, वीकएंड में पार्टी में भी जाएगा, जो चाहे खाएगा और अमेरिका में छुट्टियां मनाएगा.
अपने मकसद के प्रति उनकी व्यक्तिगत निष्ठा में भी वही फोकस झलकता है. सुबह सवा चार बजे अकादमी में कदम रखने वाले गोपीचंद पहले व्यक्ति होते हैं और उनका दिन शाम सात बजे पूरा होता है. 39 साल की उम्र में वे पूरी तरह फिट हैं. वे जुझारू पार्टनर भी होते हैं और आठों कोट्र्स में से हरेक में मौजूद हर खिलाड़ी पर बाज की तरह नजर भी टिकाए रहते हैं. नेट स्मैश की प्रैक्टिस कर रहे 20 खिलाडिय़ों को सिखाते समय वे सख्ती से आदेश देते हैः “अपने घुटने मोड़ो.”
अब 23 साल की हो चुकीं साइना से लेकर अकादमी के सबसे जूनियर खिलाड़ी तक सब जानते हैं कि गोपीचंद के मुंह से निकला हर शब्द कानून है. 18 साल की सिंधु बताती हैं, ‘वे जो भी कहते हैं, हम आंख मूंदकर उसका पालन करते हैं.’ सिंधु ने इसी अगस्त में चीन में ग्वांगझू में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर बैडमिंटन की दुनिया में धमक दी है. अभी से साइना के साथ उनकी तुलना शुरू हो गई है. गोपीचंद यह स्पष्ट करते हैं कि साइना से सिंधु की तुलना करना अनुचित है. साइना 16 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है. “मैं नहीं चाहता कि साइना बनाम सिंधु या साइना और सिंधु में कोई एक जैसी स्थिति बने. मैं तो यही चाहूंगा कि साइना और सिंधु विश्व स्तर पर साथ-साथ मुकाबले करने के लिए उतरें.”
भारतीय बैडमिंटन के मौजूदा सितारों और अगली पीढ़ी के बेहतरीन खिलाडिय़ों के एक ही छत के नीचे रहने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अकादमी में प्रेरणा का वातावरण हमेशा रहता है. उभरते खिलाडिय़ों को हर समय अपने आदर्शों को देखने और उनसे सीखने का मौका मिलता है. इन नए चेहरों में छत्तीसगढ़ से आया 17 साल का सय्यम भी शामिल है. गोपीचंद एक ही कोर्ट पर सिंधु और सय्यम दोनों को साथ-साथ सिखाते हैं.
गोपी के सामने अब चुनौती गुरुओं की ऐसी जमात खड़ी करने की है, जो हैदराबाद के बाहर भी प्रतिभाओं को खोजकर उन्हें तराश सकें. फिलहाल इस अकादमी में केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी हैं. यूरोप की अकादमियों में हर घंटे अभ्यास के लिए 65 यूरो देने पड़ते हैं लेकिन यहां भारत की सर्वश्रेष्ठ अकादमी में एक खिलाड़ी महीने में सिर्फ 2,000 रु. देता है. हॉस्टल में रहने वाले हर महीने 5,000 रु. देते हैं.
गोपीचंद अपने खिलाडिय़ों को सिर्फ तभी ऊंची छलांग की छूट देते हैं जब स्मैश हिट लगाना होता है. अन्यथा हर शिष्य को जमीन पर टिके रहने का गुर घुट्टी में पिलाया जाता है. इसलिए ग्वांगझू में कारनामा करने के बाद देर रात हैदराबाद लौटने के बावजूद सिंधु अगले दिन बड़े सवेरे कोर्ट में हाजिर थीं. गोपीचंद भी वहां मौजूद थे. मानो उन दोनों को अभी कोई अधूरा रह गया काम पूरा करना हो. जब ‘गोपी सर’ कोर्ट पर हों तो गेम जारी ही समझिए.
अकादमी के भीतर कदम रखने से पहले बहुत-से खिलाड़ी शीश नवा कर फर्श को पहले हाथ से और फिर माथे से स्पर्श करते हैं. इस एक भाव से आप समझ सकते हैं कि इनमें से हरेक के लिए इस गुरुकुल की कितनी अहमियत है. अगर वे 10 साल पहले के भारत में बैडमिंटन खिलाड़ी रहे होते तो इस तरह की अकादमी की कल्पना भी नहीं कर सकते थे. आज यह सपना सच हो गया है और इसका सारा श्रेय सिर्फ एक व्यक्ति को जाता है और वे हैं राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद.
आज इस अकादमी में 150 युवा बैडमिंटन खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहे हैं, जिनमें से 40 रहते भी वहीं हैं. प्रशिक्षण देने के लिए आठ कोच और छह सहायक कर्मचारी हैं. आठ योनेक्स कोट्र्स के साथ एक स्वीमिंग पूल, हेल्थ क्लब, रिहैब और वेलनेस सेंटर, एक फुटबॉल का मैदान, दौडऩे के लिए ट्रैक, बर्फ और भाप में नहाने की सुविधा, जाकुजी और एक कैफेटेरिया है. गोपीचंद बताते हैं, “जब मैं खेला करता था तो ट्रेनिंग की बेहतर जगह की तलाश में विदेश गया था. कभी-कभी मुझे दाखिला देने से ही इनकार कर दिया जाता था. इसकी वजहः वहां के कोच नहीं चाहते थे कि बाहर वाले ये जानें कि उनका सिस्टम कैसे काम करता है. मैं सोचा करता था कि काश! हमारे यहां कोई ऐसी जगह होती तो हमें उनके सामने हाथ नहीं फैलाने पड़ते.”
गोपीचंद ने 2001 में ऑल इंग्लैंड खिताब जीता था. उसके बाद आंध्र प्रदेश सरकार ने 2003 में यह अकादमी बनाने के लिए गोपीचंद को पांच एकड़ जमीन दी. लेकिन इसे बनाने के लिए जरूरी 13 करोड़ रु. जुटाना उनके लिए सचमुच टेढ़ी खीर थी. गोपीचंद को वह बात आज भी याद है, जब बड़ी कंपनियों के पास जाकर वे कहते थे कि हमारे पास विश्वस्तर के खिलाड़ी हैं तो वे हंसा करते थे और कहते थे कि कल आना. और वह कल कभी नहीं आता था. गोपीचंद ने तीन करोड़ रु. जुटाने के लिए अपना मकान गिरवी रख दिया. पांच करोड़ रु. का चंदा उद्योगपति और मीडिया मालिक निम्मागड्डा प्रसाद ने दिया. इसके लिए उन्होंने एक तरह से शर्त भी रखी थी? एक ओलंपिक पदक. गोपीचंद ने अपना वादा पूरा किया और पिछले साल साइना नेहवाल ने लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर दिखाया.
अपने खेल के दिनों में गोपीचंद खुद अच्छे किस्म की शटल कॉक की कमी से जूझते रहे थे. उस जमाने में रिहैब या विश्वस्तर की ट्रेनिंग की कोई सोच ही नहीं थी, प्रायोजक भी ना के बराबर हुआ करते थे. ऐसे कोच भी ज्यादा नहीं थे, जिनमें चीनी खिलाडिय़ों के दबदबे को खत्म करवा पाने का माद्दा हो. खिलाड़ी के रूप में समय पूरा होने के बाद 2003 की गर्मियों में गोपीचंद ने कुछ बच्चों को सिखाना शुरू किया. तब 14 साल की साइना उन्हीं में से एक थीं. साइना में गोपीचंद को अपना अक्स नजर आया—उन्हीं के जैसा जुझारूपन और बैडमिंटन के बड़े-बड़े धुरंधरों से आतंकित होने से इनकार. गोपी पूरी तरह साइना को सिखाने में जुट गए.
इस लगन और मेहनत की परिणति पिछले साल अगस्त में उस वक्त खुशी के पल में बदल गई जब साइना की गर्दन में ओलंपिक कांस्य पदक पहनाया गया. गुरु और शिष्य ने नम आंखों से लंदन के वैम्बले अरेना में तिरंगा लहराए जाते देखा. हरियाणा में जन्मी साइना आज न सिर्फ भारतीय बैडमिंटन की ध्वजवाहक हैं बल्कि उनका कद इसलिए भी बड़ा है क्योंकि उन्होंने चीनी बैडमिंटन की ऊंची दीवार को सबसे गंभीर चुनौती पेश की है.
साइना का कहना है, “उन्हें (गोपीचंद को) मालूम है कि आपको कैसे ट्रेनिंग देनी है, आप कहां-कहां कमजोर हैं और टूर्नामेंट जीतने के लिए क्या-क्या करना है.” इसी में गुरु अपनी बात जोड़ते हैं, “पिछले नौ साल में मुझे हर मिनट की खबर रही है कि वह कब और क्या करती है. आप कह सकते हैं कि मैंने बड़ी शिद्दत से उसकी हर हरकत पर नजर रखी है.”
साइना की कामयाबी ने एक तरह की क्रांति का काम किया. बच्चों के माता-पिता अकादमी की तरफ उमड़ पड़े. गोपी का तो जैसे नाम ही बन गया गुरू पुलेला ‘फोकस’ गोपीचंद. इस फोकस की झलक उस वक्त मिलती है जब वे ऐसे किसी भी बच्चे को अपना शार्गिद बनाने से साफ इनकार कर देते हैं, जो पूरे समय पढ़ाई करने के साथ-साथ बैडमिंटन खेलेगा, वीकएंड में पार्टी में भी जाएगा, जो चाहे खाएगा और अमेरिका में छुट्टियां मनाएगा.
अपने मकसद के प्रति उनकी व्यक्तिगत निष्ठा में भी वही फोकस झलकता है. सुबह सवा चार बजे अकादमी में कदम रखने वाले गोपीचंद पहले व्यक्ति होते हैं और उनका दिन शाम सात बजे पूरा होता है. 39 साल की उम्र में वे पूरी तरह फिट हैं. वे जुझारू पार्टनर भी होते हैं और आठों कोट्र्स में से हरेक में मौजूद हर खिलाड़ी पर बाज की तरह नजर भी टिकाए रहते हैं. नेट स्मैश की प्रैक्टिस कर रहे 20 खिलाडिय़ों को सिखाते समय वे सख्ती से आदेश देते हैः “अपने घुटने मोड़ो.”
अब 23 साल की हो चुकीं साइना से लेकर अकादमी के सबसे जूनियर खिलाड़ी तक सब जानते हैं कि गोपीचंद के मुंह से निकला हर शब्द कानून है. 18 साल की सिंधु बताती हैं, ‘वे जो भी कहते हैं, हम आंख मूंदकर उसका पालन करते हैं.’ सिंधु ने इसी अगस्त में चीन में ग्वांगझू में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर बैडमिंटन की दुनिया में धमक दी है. अभी से साइना के साथ उनकी तुलना शुरू हो गई है. गोपीचंद यह स्पष्ट करते हैं कि साइना से सिंधु की तुलना करना अनुचित है. साइना 16 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है. “मैं नहीं चाहता कि साइना बनाम सिंधु या साइना और सिंधु में कोई एक जैसी स्थिति बने. मैं तो यही चाहूंगा कि साइना और सिंधु विश्व स्तर पर साथ-साथ मुकाबले करने के लिए उतरें.”
भारतीय बैडमिंटन के मौजूदा सितारों और अगली पीढ़ी के बेहतरीन खिलाडिय़ों के एक ही छत के नीचे रहने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अकादमी में प्रेरणा का वातावरण हमेशा रहता है. उभरते खिलाडिय़ों को हर समय अपने आदर्शों को देखने और उनसे सीखने का मौका मिलता है. इन नए चेहरों में छत्तीसगढ़ से आया 17 साल का सय्यम भी शामिल है. गोपीचंद एक ही कोर्ट पर सिंधु और सय्यम दोनों को साथ-साथ सिखाते हैं.
गोपी के सामने अब चुनौती गुरुओं की ऐसी जमात खड़ी करने की है, जो हैदराबाद के बाहर भी प्रतिभाओं को खोजकर उन्हें तराश सकें. फिलहाल इस अकादमी में केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी हैं. यूरोप की अकादमियों में हर घंटे अभ्यास के लिए 65 यूरो देने पड़ते हैं लेकिन यहां भारत की सर्वश्रेष्ठ अकादमी में एक खिलाड़ी महीने में सिर्फ 2,000 रु. देता है. हॉस्टल में रहने वाले हर महीने 5,000 रु. देते हैं.
गोपीचंद अपने खिलाडिय़ों को सिर्फ तभी ऊंची छलांग की छूट देते हैं जब स्मैश हिट लगाना होता है. अन्यथा हर शिष्य को जमीन पर टिके रहने का गुर घुट्टी में पिलाया जाता है. इसलिए ग्वांगझू में कारनामा करने के बाद देर रात हैदराबाद लौटने के बावजूद सिंधु अगले दिन बड़े सवेरे कोर्ट में हाजिर थीं. गोपीचंद भी वहां मौजूद थे. मानो उन दोनों को अभी कोई अधूरा रह गया काम पूरा करना हो. जब ‘गोपी सर’ कोर्ट पर हों तो गेम जारी ही समझिए.