scorecardresearch

जातिवाद की आग में झुलसती पेरियार की धरती

जातिवाद की आग हिंदी प्रदेशों से निकल अन्य प्रदेशों में भी फैलने लगी. पेरियार के जाति विरोधी आंदोलन का साक्षी तमिलनाडु भी इसमें झुलसने लगा.

मारे गए दलित युवक गोकुलराज की मां चित्रा और उसका भाई कलई
मारे गए दलित युवक गोकुलराज की मां चित्रा और उसका भाई कलई
अपडेटेड 28 जुलाई , 2015

पश्चिमी तमिलनाडु के नमक्कल जिले में छोटा-सा गांव है तिरुचेंगोड़. इसकी पहाड़ी पर अर्धनारीश्वर मंदिर स्थित है और इस अनजाने-से गांव की यही एक खास पहचान है. अर्धनारीश्वर यानी आधा नारी और आधा पुरुष-जिसमें दाईं ओर पार्वती और बाईं ओर शिव की जुड़ी हुई प्रतिमाएं हैं. ईश्वर का यह रूप स्त्री और पुरुष की समानता का प्रतीक है. लेकिन इस क्षेत्र में एक वर्ग आज भी असमानता का दंश भोगने को मजबूर है. इस साल यह मंदिर दो बार देशभर में सुर्खियों में रहा है और दोनों बार ही गलत वजहों से.

23 जून को इंजीनियरिंग का गोकुलराज 21 वर्षीय छात्र अपनी महिला दोस्त के साथ मंदिर आया था, जहां से उसे स्थानीय दबंग जाति के लोगों के एक समूह के नेता युवराज के नौकर ने अगवा कर लिया था. अगले दिन गोकुलराज का शव इरोड जिले के नजदीक पल्लीपलायम में रेल की पटरियों पर मिला था. स्थानीय लोगों का कहना है कि आरोपियों ने पहले तो गोकुलराज के सिर को काटकर अलग कर दिया और फिर शव को पटरियों पर फेंक दिया ताकि यह मामला आत्महत्या का लगे. इस घटना को एक माह हो चुका है लेकिन मामले का मुख्य आरोपी युवराज अब भी पुलिस की जद से बाहर है. वह गोंदर जाति से है और इस जाति का इस इलाके में खासा दबदबा है जबकि गोकुलराज दलित जाति से था. उसने केएसआर कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी से हाल ही में ग्रेजुएशन किया था और उसकी महिला दोस्त भी इसी कॉलेज की छात्रा थी. वह लड़की गोंदर जाति से थी.

यह पिछले साल के अंत की घटना है जब तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन को हिंदूवादी और जातिवादी स्थानीय संगठनों ने कई हक्रतों तक डराया-धमकाया था, जिसके बाद वे तिरुचेंगोड़ से भागने के लिए मजबूर हो गए थे. इन संगठनों का आरोप था कि मुरुगन के हालिया उपन्यास मतोरूबगान (अर्धनारी) में अर्धनारीश्वर और गोंदर जाति का अपमान किया गया है. इस घटना में भी समुदाय के अन्य नेताओं समेत युवराज का हाथ बताया जाता है.

गोकुलराज की हत्या की वारदात ने 2012 में एक अन्य दलित युवक इलावरासन की हत्या की घटना को ताजा कर दिया है. उसके शव को भी पटरियों पर फेंक दिया गया था. इलावरासन का गुनाह यह था कि उसने गोंदर के बराबर की वन्नियार जाति की महिला से शादी की थी. दरअसल, गोंदर की तरह वन्नियार जाति पिछड़ा वर्ग में ही आती है लेकिन जमींदार होने के नाते इनका इलाके में दबदबा है.

वैसे तो तमिलनाडु में ब्राह्मण और सवर्ण विरोधी अभियानों का इतिहास रहा है लेकिन दलितों के खिलाफ अपराध यहां हमेशा से होते आए हैं. राज्य के उत्तरी और दक्षिणी जिले इसके लिए कुख्यात हैं हालांकि 1980 के दशक तक ऐसे मामले प्रकाश में नहीं आए थे. कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो यहां के स्थानीय लोग तुलनात्मक रूप से शांतिपूर्ण माने जाने वाले पश्चिमी तमिलनाडु में जाकर बस गए हैं, हालांकि यहां भी गोंदर और वन्नियार बहुसंख्यक हैं. गोकुलराज के बड़े भाई और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट 24 वर्षीय कलई सेलवन ने इंडिया टुडे से कहा, “वे हमें और हमारे (दलित) समुदाय को डराना चाहते हैं. गोकुलराज की हत्या उन सभी पढ़े-लिखों लोगों को चेतावनी है जो जिंदगी में आगे बढऩा चाहते हैं और प्रभावशाली जातियों की महिलाओं के साथ संबंध में बंधना चाहते हैं.” कलई समेत तिरुचेंगोड़ के कुछ और दलित जातियों के लोग बताते हैं कि किस तरह गोकुलराज की हत्या के बाद सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर “दलितों को उनकी सही औकात बताओ” जैसे संदेशों की भरमार थी और इस तरह के संदेश कोंगू नाम से आए थे. इस नाम का इस्तेमाल आम तौर पर गोंदर जाति के लोग करते हैं.

तमिलनाडु में जाति आधारित हिंसा2011 की जनगणना के मुताबिक, तमिलनाडु की 7.21 करोड़ की आबादी में दलित लगभग 20 फीसदी हैं. आंकड़ों को देखें तो यह संख्या इतनी भी कम नहीं है. पेरियार के जातिगत भेदभाव विरोधी आंदोलन के बावजूद सदियों से दबे-कुचले दलितों की आवाज उठाने वाला यहां कोई नहीं है.

दलितों के अधिकार के लिए आवाज उठाने वाले मदुरै स्थित संगठन एविडेंस के संस्थापक निदेशक ए. कातिर कहते हैं, “जातिगत भेदभाव की समस्या पश्चिमी तमिलनाडु में और भी जटिल है. यहां का दलित अरुणतातियर समुदाय हमेशा से खामोश रहा है और इसीलिए उसे और भी ज्यादा दबाया जाता है. यही वजह है कि यहां छुआछूत के खिलाफ कभी कोई आवाज नहीं उठी.” इरोड जिले के वेल्लाकोली में रहने वाले लेखक देवीभारती कहते हैं, “छुआछूत यहां लंबे समय से चली आ रही है लेकिन दलितों के साथ हिंसक वारदातें काफी बढ़ गई हैं. और इसे राजनैतिक शह भी मिल रही है.”

दलित विद्वान स्टालिन राजनगम कहते हैं, “ह्वॉट्सऐप पर एक ऑडियो मैसेज में युवराज को कहते सुना जा सकता है कि उसने जो कुछ भी किया है (कथित तौर पर गोकुलराज की हत्या) वह समुदाय की बेहतरी के लिए ही किया है.” दलितों पर हमले करके समुदाय का समर्थन जुटाने का चलन शुरू हो गया है. और इसकी शुरुआत की है पट्टालि मक्कल काच्चि (पीएमके) के एस. रामदास ने. अपने भड़काऊ भाषण में रामदास ने इलावरासन पर “सनग्लासेज और जींस पहनकर प्रभावशाली वर्ग की हिंदू महिलाओं को लुभाने” का आरोप लगाया था, इसके बाद इलावरासन की हत्या कर दी गई थी.

इलाके की प्रभावशाली दलित पार्टी विदुतलै चिरुतैगल काच्चि (वीसीके) के नेता थोल तिरुमावलवन के मुताबिक, कई जातिवादी संगठन रामदास की विचारधारा का अनुसरण कर रहे हैं. वे कहते हैं, “दलितों से घृणा की राजनीति ही पीएमके की रणनीति है. इस तरह वे अपनी जाति के लिए समर्थन जुटाते हैं.”

उनकी बात काफी हद तक सही है. 2012-13 में तत्कालीन कट्टरपंथी समूह कोंगू वेलाला गोंदरगल पेरावै (केवीजीपी) के पोंगालुर मणिकंदन ने राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में अंतरजातीय विवाहों के खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ा था. हालांकि मणिकंदन कहते हैं, “कई जवान लड़के महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर उनसे अलग होने के लिए उनके परिवारों से पैसा मांगते हैं. हमारा अभियान ऐसे लोगों के खिलाफ है. हम अंतरजातीय विवाहों के खिलाफ नहीं हैं.” बाद में केवीजीपी ने मणिकंदन को उनके पद से हटा दिया गया और अब वे राज्य में किसानों के एक अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं. उनका दावा है कि यह अभियान जातिगत बंधनों से ऊपर है और वे सभी समुदायों के किसानों के लिए काम करते हैं.

स्थानीय गोंदर नेता और एआइएडीएमके से जुड़े विधायक यू. तानियारासू अपने समुदाय पर लगे सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर देते हैं. उनके मुताबिक, गोकुलराज की हत्या, लेखक को डराने-धमकाने और हमले जैसी घटनाओं में दरअसल किन्हीं भीतरी लोगों का हाथ है जो प्रशासन को बदनाम करवाना चाहते हैं. वे कहते हैं, “हमारा समुदाय इस तरह की हर कोशिश का विरोध करेगा और पश्चिमी तमिलनाडु में सामाजिक सौहार्द्र बनाए रखने की कोशिश करेगा.”

उधर, नमक्कल का जिला प्रशासन इस सवाल पर चुप्पी साधे है कि जातिगत भेदभाव से जुड़ी हिंसात्मक घटनाएं जो लगातार बढ़ रही हैं, उन्हें रोकने के लिए प्रशासन ने क्या कदम उठाए हैं. उसका सिर्फ इतना ही कहना है कि अधिकारी दोनों समुदायों के बीच बैठकें आयोजित करवा रहे हैं ताकि उनके बीच व्याप्त तनाव को खत्म किया जा सके. दशक भर पहले अपने पति की मौत के बाद दो बेटों के पालन-पोषण के लिए दिन-रात संघर्ष करने वाली मृतक गोकुलराज की मां चित्रा को मेहनत का फल उस वक्त मिला था जब उसके दोनों बेटे इंजीनियर बन गए थे. लेकिन आज वे इस बात पर अफसोस कर रही हैं कि काश! प्रशासन ने ऐसी घटनाओं को रोकने के कदम पहले उठा लिए होते.

Advertisement
Advertisement