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आखिरी दम तक लड़ती रही सरिता

2008 में 25 वर्षीय सरिता ने रेप करने वाले पुलिसवालों पर कार्रवाई न होने से डीजीपी दफ्तर में आत्महत्या कर ली थी, आरोपी पुलिसवालों को पांच साल बाद मिली सजा

अपडेटेड 23 अगस्त , 2013
उसकी गहरी नीली आंखों में मासूमियत के साथ दृढ़ता भी है. तीसरी क्लास में पढ़ रही हिना वकील बनना चाहती हैं. उसकी मां की अंतिम इच्छा यही थी कि वह न्याय के लिए लडऩे वालों की मदद करे. हिना की मां ने भी आखिरी दम तक न्याय के लिए संघर्ष किया था. वह लड़ते-लड़ते मरी. हीना के 29 वर्षीय पिता सुभाष कहते हैं, “वह दिलेर महिला थी.” वह यानी सरिता.

सरिता की कहानी सुर्खियों में कभी नहीं आती, अगर उसने 9 जून, 2008 को हरियाणा के डीजीपी ऑफिस में आत्महत्या न की होती. सरिता आत्महत्या करने को इसलिए मजबूर हुई क्योंकि पुलिसवालों ने उसके साथ बलात्कार किया और पूरा पुलिस महकमा और बड़े अफसर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार करते रहे. जब सरिता ने जहर खाया था तब दोनों मासूम बेटियां उसके साथ डीजीपी ऑफिस में ही मौजूद थीं. उस समय हिना मात्र 6 साल की थी और मुस्कान 4 साल की. मुस्कान अब 9 साल की हो चुकी है. वह बड़ी मासूमियत से कहती है कि वह डॉक्टर बनना चाहती है ताकि कोई बीमार न पड़े. मुस्कान बताती है, “मां भी यही चाहती थी.” सुभाष सरिता की तस्वीर दिखाते हुए कहते हैं, “देखिए, यह बिल्कुल अपनी मां पर गई है.” वह स्कूल से आकर अपने घर के बरामदे पर चहलकदमी करते हुए धीरे-धीरे होमवर्क याद कर रही है, “हाउ मेनी सेंस ऑर्गन्स इन आवर बॉडी?”

20 जुलाई को अंबाला में सीबीआइ कोर्ट ने संबंधित मामले में बलात्कार करने वाले हेड कांस्टेबल बलराज और कांस्टेबल सिलक राम को 10-10 साल का कारावास और 40-40 हजार रु. जुर्माना और तीन अन्य पुलिसकर्मियों हेड कांस्टेबल रामफल, रणधीर सिंह, रामधारी को एक-एक साल कारावास के साथ 5-5 हजार रु. जुर्माने की सजा सुनाई है. जुर्माने की रकम में से 75 फीसदी सरिता के बच्चों को देने का आदेश कोर्ट ने दिया है. बलराज और सिलक राज पांच साल से जेल में हैं. सजा सुनाए जाने के बाद दोनों ने मीडिया से कहा है कि इस मामले में उच्चाधिकारियों की भी मिलीभगत थी, उन्हें बचाने के लिए उन्हें फंसाया जा रहा है. दोषी पुलिसवाले अब हाइकोर्ट में अपील करने की बात कर रहे हैं. जबकि इस फैसले से सरिता के पति सुभाष भी संतुष्ट नहीं हैं और हाइकोर्ट में अपील करने की योजना बना रहे हैं.

हालांकि इंडिया टुडे से बातचीत में रोहतक रेंज के आइजी अनिल कुमार राव कहते हैं, “इस मामले की जांच सीबीआइ ने की है. हम कोर्ट के मामले में दखल नहीं दे सकते, लेकिन हमें खुशी है कि दोषियों को सजा मिली. अगर पीड़ित पक्ष इससे संतुष्ट नहीं है तो उन्हें संबंधित जांच एजेंसी और न्यायालय के पास जाना चाहिए. इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है.” वे बताते हैं कि इस मामले में बलात्कार और आत्महत्या के दो केस दर्ज हैं, जिनमें से एक पर फैसला आया है.   

हरियाणा पुलिस भले इसे केंद्रीय जांच एजेंसी का मामला बताकर पल्ला झाड़ रही हो, लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि रोहतक में मिल रही धमकियों की वजह से सुभाष 7-8 महीने पहले ही यहां से झज्जर शिफ्ट होने को मजबूर हो गए. सुभाष कहते हैं, “पुलिसवाले और उनके रिश्तेदार अक्सर रोहतक में उनके घर पहुंचकर दबाव बनाते और पैसों का लालच देते. कभी-कभी तो 20-20 लाख रु. का लालच दिया करते और धमकी देते कि पैसे ले लो बेटियों की जिंदगी सुधर जाएगी वरना तुम्हें भी कुछ हो गया तो इनका क्या होगा.” इन्हीं धमकियों से डरकर ही एक बार तो सुभाष ने बलराज और सिलक को पहचानने तक से इनकार कर दिया था. लेकिन फिर बाद में कोर्ट में उन्होंने पूरी बात बताई.

जब अंबाला की विशेष सीबीआइ कोर्ट फैसला सुना रही थी, सुभाष वहां से करीब 225 किमी दूर झज्जर जिले की बेरी तहसील के अपने पैतृक गांव बाघपुर में थे. एक पत्रकार से सजा की खबर सुन उनके चेहरे पर थोड़ी राहत थी, लेकिन सुकून नहीं. उनके जख्म एक बार फिर ताजा हो गए हैं. इस परिवार का यातनादायक सफर उस समय शुरू हुआ जब 9 अप्रैल, 2008 को रोहतक पुलिस ने अंशकालिक ड्राइवर सुभाष को मोटरसाइकिल चोरी के इल्जाम में हिरासत में लिया. अगले दिन सरिता को कुछ कागजात पर दस्तखत करने सेंट्रल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के दफ्तर बुलाया गया और 6,000 रु. रिश्वत मांगी गई, लेकिन उसने मना कर दिया. इसके बाद बलराज सिंह और सिलक राम ने थाने में उसके साथ बलात्कार किया. 25 अप्रैल को सुभाष के रिहा होने के बाद सरिता ने उसे इसकी जानकारी दी. इसके बाद दोनों ने रोहतक एसपी को लिखित शिकायत दी, जिसे डीएसपी के पास भेज दिया गया. लेकिन कार्रवाई करने की बजाए डीएसपी ने शिकायत वापस लेने के लिए दबाव डाला.

हताश सरिता-सुभाष ने रोहतक के आइजी का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी निराशा हाथ लगी. जिसके बाद 29 मई को दोनों ने पंचकूला में एडीजीपी वी.बी सिंह से मुलाकात की जिस पर उन्होंने रोहतक पुलिस अधिकारियों को जांच करने और आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया. लेकिन रोहतक पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया. इसके बाद बलराज और सिलक राम के रिश्तेदारों ने उन्हें लालच और धमकियां दीं. एक बार जब सरिता अकेली थी तो पति को जान से मारने की धमकी दी गई. वह पति और बच्चों के लिए घबरा गई. आखिरकार सरिता ने सुसाइड नोट लिखकर जहर खा लिया और एडीजीपी दफ्तर में जान दे दी. सुभाष बताते हैं, “न्याय के लिए हम रोहतक से पंचकूला तक दो माह दर-दर भटकते रहे. बच्चे भूखे-प्यासे रहे. कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी.”

यह घटना सीधे मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह “हुड्डा के गृह जिले से जुड़ी थी, सो राजनैतिक हंगामा खड़ा हो गया. हुड्डा ने स्थिति संभालने के लिए फौरन रोहतक के तात्कालीन आइजी अनिल डावरा, एसपी हनीफ कुरैशी और डीएसपी धीरज सेतिया का तबादला कर दिया. रोहतक सीआइए दफ्तर में तैनात सारे 21 पुलिसकर्मियों को तबादला कर दिया गया. फरार पुलिसकर्मियों ने 13 जून को आत्मसमर्पण कर दिया. बाद में हाइकोर्ट के निर्देश पर इस मामले की सीबीआइ जांच शुरू हुई. लेकिन डावरा अब प्रोन्नति पाकर डीजीपी (प्रशासन) हो चुके हैं, तो कुरैशी को इसी साल फरवरी में डीआइजी रैंक पर पदोन्नति मिली है. हालांकि फिलहाल वे पोस्टिंग की इंतजार में हैं. जबकि सेतिया को जून, 2013 में हरियाणा के नए-नवेले मानवाधिकार आयोग में डीएसपी बनाया गया है.

बलात्कार के केस में फैसले के बाद अब इंतजार है आत्महत्या के लिए मजबूर करने के केस का. सुभाष पुराने अखबारों की कतरनें और सरिता के आवेदनों को एक फाइल से निकालकर दिखाते हैं, “वह बड़ी समझदार थी. हर दफ्तर से वह रिसीविंग लेना नहीं भूलती. जबकि मैं डरा रहता. काश! वह आज जिंदा होती.” इन्हीं आवेदनों में सरिता के हस्ताक्षर वाला आरटीआइ भी है जो उसने 12 मई, 2008 को रोहतक पुलिस से अपने केस की जांच के बारे में मांगा था. इन्हें दिखाते-दिखाते वे एक शून्य में खो जाते हैं लेकिन अगले ही पल उनका चेहरा सख्त हो जाता है. वे कहते हैं, “उनको कम-से-कम उम्र कैद की सजा होनी चाहिए. मैं हाइकोर्ट में अपील करूंगा.”

सरकार से नाउम्मीद सुभाष बताते हैं, “सरकार ने उनकी बेटियों की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाने और मुझे नौकरी देने का वादा किया था. लेकिन पांच लाख रु. दे कर भूल गई.” दोनों बेटियों को वे स्थानीय निजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं, उन्हें मां की तरह बहादुर और समझदार बनाने की उम्मीद के साथ.
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