एक अगस्त को जूनियर महिला हॉकी वर्ल्ड कप में जब भारतीय टीम ने रोमांचक मुकाबले में स्पेन को हराकर सेमीफाइनल का टिकट पक्का किया तो सबकी निगाहें इस महिला टीम पर टिक गई. भारत ने इस टूर्नामेंट में पहली बार कोई पदक जीता था. इसके साथ ही सबका ध्यान मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित महिला हॉकी अकादमी की ओर भी मुड़ गया क्योंकि टीम की कप्तान सुशीला चानू और गोलकीपर सनारिक चानू समेत आठ खिलाड़ी इसी अकादमी की देन हैं.
इसी अकादमी के मैदान पर स्टिक लेकर गेंद के पीछे हिरनी जैसी भागती 15 वर्षीय करिश्मा यादव की गति को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि एक साल पहले वह एक गांव से आई थी जिसे सही से हॉकी पकडऩा भी नहीं आता था. अब वह बढिय़ा खिलाड़ी बन रही है. केवल करिश्मा ही नहीं, उसकी जैसी 50 लड़कियां ग्वालियर की महिला हॉकी अकादमी में प्रशिक्षण ले रही हैं. इन सभी लड़कियों का एक ही लक्ष्य है देश के लिए हॉकी खेलकर जीतना. इसी जज्बे का नतीजा है कि सिर्फ सात साल की अवधि में इस हॉकी अकादमी ने भारतीय टीम को 17 अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं. इस पदक विजेता टीम की ङ्क्षपकी देवी, लिली चानू, मोनिका, वंदना कटारिया और रितुशा आर्या के अलावा मनोरमा देवी, रोजलीन राल्टे, सौंदर्या येंडला जैसी प्लेयर्स इसी अकादमी में प्रशिक्षित हैं.
जर्मनी गई टीम की खिलाड़ी लिली चानू ने जैसे ही अपनी जीत की खबर अकादमी में पहुंचाई, हर लड़की खुशी से उछल पड़ी. अभी तक ग्वालियर की महिला हॉकी अकादमी में जश्न का माहौल है. साथ ही अन्य लड़कियां अब आगे की चुनौतियों के लिए तैयार हो रही हैं. अकादमी की स्थापना से ही जुड़े कोच परमजीत सिंह कहते हैं, ''यह हमारे लिए काफी गर्व की बात है. इससे हमें प्रोत्साहन मिलेगा और लड़कियों को और मेहनत करने की प्रेरणा. '' वे बताते हैं कि जब 2006 में ग्वालियर की यह अकादमी शुरू हुई तो 24 सीटों पर सिर्फ मध्य प्रदेश की लड़कियां ही प्रवेश लेने नहीं आईं. देश के उत्तर-पूर्व के राज्यों की लड़कियों ने भी इसमें एडमिशन लिया. अब स्थिति यह है कि अकादमी में सीटों की संख्या बढ़कर 52 हो गई है. परमजीत कहते हैं, ''महिला हॉकी के लिए पहले दो ही नर्सरी होती थीं—एक हरियाणा में और एक झारखंड में, हमने तीसरा महत्वपूर्ण केंद्र तैयार किया. '' वे बताते हैं ''हमारी कोशिशों से मध्य प्रदेश में भी महिला हॉकी लोकप्रिय हुई है. हमने जब शुरुआत की थी तो सिर्फ दो स्थानीय लड़कियां थीं, अब 12 हैं. ''
अकादमी विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस है. प्रदेश के छोटे से जिले सिवनी से आई श्यामा कहती हैं, ''क्या नहीं है इस अकादमी में. विश्वस्तरीय एस्ट्रो टर्फ, कोच, अत्याधुनिक जिम और पढ़कर अपना करियर संवारने का पूरा मौका. '' यही सब मिलकर प्रशिक्षण का स्वस्थ वातावरण बनाते हैं. अकादमी में लड़कियां घास के मैदान में नहीं, बल्कि अत्याधुनिक अंतरराष्ट्रीय स्तर के सुपर एस्ट्रोटर्फ पर खेलती हैं.
अकादमी कोचिंग के अलावा रहने की सुविधा भी देती है. एक डाइटीशियन उन्हें खुराक की सलाह देती है. नेशनल इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा की हुई दो महिला कोच भी हैं. साथ ही पब्लिक स्कूल की पढ़ाई से लेकर अगर उन्हें ट्यूशन भी जाना है तो मध्य प्रदेश सरकार का खेल विभाग इसके लिए धनराशि देता है. पांच से सात साल तक के लिए लड़कियां यहां रखी जाती हैं. अकादमी के खेल अधिकारी जमील अहमद बताते हैं, ''यहां हर लड़की किसी भी तरह की चिंता से मुक्त है और उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात है कि वह देश के लिए खेले. '' सात साल की अवधि में ही यहां की खिलाडिय़ों ने देश में होने वाला हर स्तर का हॉकी टूर्नामेंट अपने नाम किया है.
परमजीत महिला हॉकी में भारत की प्रभावशाली उपस्थिति के लिए और बहुत कुछ करने पर जोर देते हैं. वे जोनल स्तर पर भी ऐसी अकादमी खोलने की जरूरत बताते हैं और कहते हैं, ''सुविधाओं में बढ़ोतरी, क्वालिफायड ट्रेनर के अलावा विदेशी टूर फायदेमंद होंगे. '' एक समय था, जब हॉकी के जादूगर ध्यानचंद और उनके भाई रूप सिंह के नाम से ग्वालियर की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर थी, अब वही पहचान दिलाने अकादमी की लड़कियां निकल पड़ी हैं.
- साथ में तुषार भादुड़ी
इसी अकादमी के मैदान पर स्टिक लेकर गेंद के पीछे हिरनी जैसी भागती 15 वर्षीय करिश्मा यादव की गति को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि एक साल पहले वह एक गांव से आई थी जिसे सही से हॉकी पकडऩा भी नहीं आता था. अब वह बढिय़ा खिलाड़ी बन रही है. केवल करिश्मा ही नहीं, उसकी जैसी 50 लड़कियां ग्वालियर की महिला हॉकी अकादमी में प्रशिक्षण ले रही हैं. इन सभी लड़कियों का एक ही लक्ष्य है देश के लिए हॉकी खेलकर जीतना. इसी जज्बे का नतीजा है कि सिर्फ सात साल की अवधि में इस हॉकी अकादमी ने भारतीय टीम को 17 अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं. इस पदक विजेता टीम की ङ्क्षपकी देवी, लिली चानू, मोनिका, वंदना कटारिया और रितुशा आर्या के अलावा मनोरमा देवी, रोजलीन राल्टे, सौंदर्या येंडला जैसी प्लेयर्स इसी अकादमी में प्रशिक्षित हैं.
जर्मनी गई टीम की खिलाड़ी लिली चानू ने जैसे ही अपनी जीत की खबर अकादमी में पहुंचाई, हर लड़की खुशी से उछल पड़ी. अभी तक ग्वालियर की महिला हॉकी अकादमी में जश्न का माहौल है. साथ ही अन्य लड़कियां अब आगे की चुनौतियों के लिए तैयार हो रही हैं. अकादमी की स्थापना से ही जुड़े कोच परमजीत सिंह कहते हैं, ''यह हमारे लिए काफी गर्व की बात है. इससे हमें प्रोत्साहन मिलेगा और लड़कियों को और मेहनत करने की प्रेरणा. '' वे बताते हैं कि जब 2006 में ग्वालियर की यह अकादमी शुरू हुई तो 24 सीटों पर सिर्फ मध्य प्रदेश की लड़कियां ही प्रवेश लेने नहीं आईं. देश के उत्तर-पूर्व के राज्यों की लड़कियों ने भी इसमें एडमिशन लिया. अब स्थिति यह है कि अकादमी में सीटों की संख्या बढ़कर 52 हो गई है. परमजीत कहते हैं, ''महिला हॉकी के लिए पहले दो ही नर्सरी होती थीं—एक हरियाणा में और एक झारखंड में, हमने तीसरा महत्वपूर्ण केंद्र तैयार किया. '' वे बताते हैं ''हमारी कोशिशों से मध्य प्रदेश में भी महिला हॉकी लोकप्रिय हुई है. हमने जब शुरुआत की थी तो सिर्फ दो स्थानीय लड़कियां थीं, अब 12 हैं. ''
अकादमी विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस है. प्रदेश के छोटे से जिले सिवनी से आई श्यामा कहती हैं, ''क्या नहीं है इस अकादमी में. विश्वस्तरीय एस्ट्रो टर्फ, कोच, अत्याधुनिक जिम और पढ़कर अपना करियर संवारने का पूरा मौका. '' यही सब मिलकर प्रशिक्षण का स्वस्थ वातावरण बनाते हैं. अकादमी में लड़कियां घास के मैदान में नहीं, बल्कि अत्याधुनिक अंतरराष्ट्रीय स्तर के सुपर एस्ट्रोटर्फ पर खेलती हैं.
अकादमी कोचिंग के अलावा रहने की सुविधा भी देती है. एक डाइटीशियन उन्हें खुराक की सलाह देती है. नेशनल इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा की हुई दो महिला कोच भी हैं. साथ ही पब्लिक स्कूल की पढ़ाई से लेकर अगर उन्हें ट्यूशन भी जाना है तो मध्य प्रदेश सरकार का खेल विभाग इसके लिए धनराशि देता है. पांच से सात साल तक के लिए लड़कियां यहां रखी जाती हैं. अकादमी के खेल अधिकारी जमील अहमद बताते हैं, ''यहां हर लड़की किसी भी तरह की चिंता से मुक्त है और उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात है कि वह देश के लिए खेले. '' सात साल की अवधि में ही यहां की खिलाडिय़ों ने देश में होने वाला हर स्तर का हॉकी टूर्नामेंट अपने नाम किया है.
परमजीत महिला हॉकी में भारत की प्रभावशाली उपस्थिति के लिए और बहुत कुछ करने पर जोर देते हैं. वे जोनल स्तर पर भी ऐसी अकादमी खोलने की जरूरत बताते हैं और कहते हैं, ''सुविधाओं में बढ़ोतरी, क्वालिफायड ट्रेनर के अलावा विदेशी टूर फायदेमंद होंगे. '' एक समय था, जब हॉकी के जादूगर ध्यानचंद और उनके भाई रूप सिंह के नाम से ग्वालियर की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर थी, अब वही पहचान दिलाने अकादमी की लड़कियां निकल पड़ी हैं.
- साथ में तुषार भादुड़ी