जम्मू-कश्मीर के दूरदराज के पहाड़ी सीमावर्ती जिले पुंछ में सीमा पार करने वाले 20 लोगों के उस गिरोह में हथियारों से लैस सैनिक और उग्रवादी दोनों थे. 6 अगस्त को यह हत्यारा दस्ता नियंत्रण रेखा के पार करीब 400 मीटर तक घुस आया. उसका निशाना 6 भारतीय सैनिकों का गश्ती दल था. उनके इस कायरतापूर्ण हमले में पांच भारतीय जवान शहीद हो गए और छठा घायल हो गया. हत्यारे रात के अंधेरे में भाग निकले. इस घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तीखे शब्द बाण चलना लाजमी था और ऐसा लगा कि दोनों फिर आमने-सामने आ डटे हैं.
पांच सैनिकों की हत्या 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष विराम समझौते का सीधा उल्लंघन है. यह घटना उस जगह से सिर्फ 40 किमी दूर हुई जहां 8 जनवरी को पुंछ जिले में ही दो भारतीय सैनिकों के सिर धड़ से अलग कर दिए गए थे. खुफिया अधिकारियों का कहना है कि सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि इन घटनाओं ने पाकिस्तानी सेना के आक्रामक रुख का संकेत दे दिया है. एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी के अनुसार पाकिस्तानी सेना ने बता दिया है कि इस साल कश्मीर में फिर हिंसा भड़केगी. उसने सैनिकों और आतंकवादी की मिली-जुली बॉर्डर एक्शन टीमों को सक्रिय कर दिया है और घाटी के भीतर आतंकी गतिविधियां बढ़ा दी हैं.
740 किमी लंबी नियंत्रण रेखा पर दबाव बढ़ा है और 2012 की तुलना में इस साल संघर्ष विराम 80 फीसदी ज्यादा बार तोड़ा गया. पिछले साल 28 बार उल्लंघन हुआ था. इस साल अब तक 42 बार हो चुका है. सीमा पर गोलीबारी जम्मू-कश्मीर में घुस रहे आतंकियों को आड़ देने के लिए की जाती है और उसके साथ ही घाटी के भीतर हिंसा बढ़ा दी जाती है. पिछले 8 महीने में घाटी में 40 सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं, जबकि पिछले साल इनकी संख्या सिर्फ 17 थी. खुफिया एंजेसियों का मानना है कि हमले की यह साजिश रावलपिंडी में पाकिस्तानी सेना के जनरल हेडक्वार्टर्स में सोच-समझकर रची गई थी.
भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि कश्मीर में सोच-समझकर की जा रही हिंसा का मकसद भारत का भय दिखाकर पाकिस्तानी सेना और आतंकियों को एकजुट करना और भारत के साथ शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारना है. सेना के अधिकारियों का कहना है कि 300 आतंकी घुसपैठ के लिए तैयार खड़े हैं और पाकिस्तानी सेना उन्हें भारत में दाखिल कराना चाहती है, ताकि वह अगले साल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव और इस साल नवंबर में राज्य विधानसभा चुनावों में बाधा डाल सकें.
इस साजिश के कर्ता-धर्ता जनरल अशफाक परवेज कयानी हैं जो 28 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. भारत के खुफिया अधिकारियों को लगता है कि वे इस्लामाबाद और नई दिल्ली में असैनिक सत्ता प्रतिष्ठान पर निशाना साध रहे हैं और अगले सेनाध्यक्ष के लिए एजेंडा तय कर रहे हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सेना और खुफिया एजेंसी आइएसआइ पर संदेह रहा है. शरीफ के प्रधानमंत्री बनने से पाकिस्तानी सेना खुश नहीं थी.
अब उसे लगता है कि शरीफ भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा सकते हैं. इसे लेकर सेना की बेचैनी बढ़ गई है. 5 जुलाई को पूर्व राजनयिक और शांति समर्थक शहरयार खान को भारत के साथ बातचीत के लिए दूत बनाए जाने और अगले महीने दोनों देशों के बीच समग्र शांति प्रक्रिया फिर शुरू करने की घोषणा हुई. यह बातचीत 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए हमले के बाद रद्द कर दी गई थी. अगले महीने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की संभावित मुलाकात से इस प्रक्रिया को पहली बार गति मिलने वाली है.
कश्मीर में लंबी गर्मियों का पहला चेतावनी संकेत 13 मार्च को मिला. दो आतंकवादियों ने श्रीनगर के पास सीआरपीएफ के पांच लोगों को मार डाला. यह तीन साल में कश्मीर घाटी में पहला फिदायीन हमला था और उसके बाद एक के बाद एक हिंसा की घटनाएं होती रही हैं. 24 जून को आतंकियों ने श्रीनगर के बाहर घात लगाकर भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी. इसके एक दिन बाद ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को श्रीनगर जाना था और तीन हफ्ते पहले शरीफ ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. हमले का संदेश साफ थाः इस्लामाबाद में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार बनने से जनरल हेडक्वार्टर के मनसूबों पर कोई असर नहीं पड़ेगा और यही भारत की उलझन है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने 9 साल के कार्यकाल में पाकिस्तान के साथ शांति की उम्मीद पाले हुए हैं. पाकिस्तान में पहली बार असैनिक तरीके से सरकार बदले जाने से यह भावना और मजबूत हुई. शरीफ ने भारत के साथ शांति की दुहाई देकर चुनाव लड़ा था और माना जाता है कि वे संबंध सुधारने की बात कर सकते हैं.
रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने इस हमले के बारे में जो अजीबोगरीब बयान दिया उसके पीछे किसी भी कीमत पर अमन की चाहत साफ दिखाई दी. पुंछ में सैनिकों की हत्या के एक दिन बाद संसद के दोनों सदनों में अपनी ओर से बयान देते हुए एंटनी ने कहा, “पाकिस्तानी फौज की वर्दी में हथियारों से लैस होकर आए 20 लोगों ने आतंकवादियों के साथ घात लगाकर यह हमला किया.” भारतीय सेना के एक प्रवक्ता ने इस हमले के लिए सीधे पाकिस्तानी सेना को जिम्मेदार ठहराया था लेकिन उसे झटपट वापस ले लिया गया. बीजेपी की नेता सुषमा स्वराज ने आरोप लगाया कि एंटनी ने इस बयान से पाकिस्तान को पल्ला झाडऩे का मौका दे दिया है. प्रदर्शनकारियों ने एंटनी के सरकारी निवास 9, कृष्णा मेनन मार्ग पर धरना दे दिया. यह अलग बात है कि विपक्षी पार्टियों के पुरजोर विरोध के बाद एंटनी ने हमले के लिए पाकिस्तानी सेना को दोषी मान लिया.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने साफ तौर पर इनकार कर दिया कि पांच भारतीय सैनिकों की मौत से पाकिस्तान का कुछ लेना-देना है. पाकिस्तानी सेना की अंतर सेना जनसंपर्क इकाई ने बताया कि हालात पर बात करने के लिए दोनों सेनाओं के सैन्य संचालन महानिदेशकों के बीच एक विशेष हॉट लाइन शुरू की गई है. सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज के एडिशनल डायरेक्टर एयर वाइस मार्शल कपिल काक का कहना है, “भारत को ऐसी रणनीति बनानी होगी जिसमें जमीन पर सैनिक कार्रवाई के साथ मनोवैज्ञानिक और राजनयिक स्तर पर भी कार्रवाई की जाए तभी हम इस मकडज़ाल से बाहर निकल सकते हैं.”
शरीफ की नवगठित सरकार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि दोनों देशों के बीच तनाव का असर समग्र संवाद फिर से शुरू होने पर नहीं पड़ऩे वाला. शरीफ के एक करीबी सहायक ने इंडिया टुडे को बताया कि प्रधानमंत्री शरीफ मौजूदा हालात से परेशान नहीं है. वे जानते है कि सरकार से बाहर के तत्व भारत के साथ अच्छे रिश्ते कायम करने की उनकी कोशिशों में पलीता लगाना चाहते हैं.
शरीफ ने 14 साल का राजनैतिक वनवास काटने के बाद गद्दी संभाली है. इस दौरान वे लगातार महसूस करते रहे हैं कि सेना किस कदर शक्तिशाली है. वे यह भी बखूबी जानते हैं कि पाकिस्तान में दक्षिणपंथ का उभार किस तरह हो रहा है. हालात को झटके में सुधारने की कोशिश आत्मघाती हो सकती है. इसीलिए वे अब तक चुप रहे, क्योंकि उनके इरादे कुछ बड़े हैं. इस साल मई में चुने जाने के तुरंत बाद उन्होंने खुले आम ऐलान किया था कि वे योग्यता के आधार पर जनरल कयानी का उत्तराधिकारी चुनेंगे. इस बीच, उन्होंने पूरी कोशिश की है कि वे सेनाध्यक्ष को न छेड़ें. वे 1998 की भूल दोहराना नहीं चाहते जब उन्हीं के नियुक्त किए जनरल परवेज मुशर्रफ ने उन्हें गद्दी से हटाया था.
शरीफ जब गद्दी से हटाए गए थे तब उनके पास प्रचंड बहुमत था, लेकिन इससे सेना के इरादों पर कोई असर नहीं पड़ा. प्रधानमंत्री शरीफ के सामने आर्थिक मंदी, सांप्रदायिक मार-काट और पाकिस्तानी तालिबान के बढ़ते हमलों से निबटने की तिहरी चुनौती भी है. तालिबान ने इस साल चार बड़े हमले किए हैं जिनमें सेना के गश्ती दल, सेना की चौकियों, आइएसआइ के एक क्षेत्रीय कार्यालय और एक जेल को निशाना बनाया है. यह हमले तब हुए हैं जब अमेरिका और नाटो की सेनाओं ने 2014 तक अफगानिस्तान से पूरी तरह हटने की तैयारी शुरू कर दी है. पाकिस्तानी फौज का मानना है कि अमेरिका के हटने के बाद अफगानिस्तान की बिसात पर तुरूप का इक्का उसके हाथ में रहेगा.
जानकार अब कहते हैं कि अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है उसका कश्मीर में हिंसा से सीधा संबंध है. किंग्स कॉलेज लंदन में रक्षा अध्ययन विभाग में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के रीडर हर्ष पंत के अनुसार, “कश्मीर में हाल में बढ़ती हिंसा और अफगानिस्तान की घटनाओं को एक-दूसरे से अलग करना बहुत मुश्किल है. उग्रवादी गुटों का हौसला बढ़ रहा है और वे भारत को अपना मुख्य निशाना मानने लगे हैं.” ऐसे में आने वाले दिन सीमा पर तैनात जवानों और उनका नेतृत्व करने वाले जनरलों के लिए चुनौती भरे होंगे. भारत का राजनैतिक नेतृत्व जिस तरह जरूरत से ज्यादा एहतियात बरत रहा है, उससे सेना की चुनौती और बढ़ेगी. अगर किसी तरह दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया एक बार फिर पटरी पर आ भी जाए तो भी पाक सेना के खामोशी से बैठ जाने की उम्मीद करना रणनीतिक भूल होगी.
पांच सैनिकों की हत्या 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष विराम समझौते का सीधा उल्लंघन है. यह घटना उस जगह से सिर्फ 40 किमी दूर हुई जहां 8 जनवरी को पुंछ जिले में ही दो भारतीय सैनिकों के सिर धड़ से अलग कर दिए गए थे. खुफिया अधिकारियों का कहना है कि सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि इन घटनाओं ने पाकिस्तानी सेना के आक्रामक रुख का संकेत दे दिया है. एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी के अनुसार पाकिस्तानी सेना ने बता दिया है कि इस साल कश्मीर में फिर हिंसा भड़केगी. उसने सैनिकों और आतंकवादी की मिली-जुली बॉर्डर एक्शन टीमों को सक्रिय कर दिया है और घाटी के भीतर आतंकी गतिविधियां बढ़ा दी हैं.
740 किमी लंबी नियंत्रण रेखा पर दबाव बढ़ा है और 2012 की तुलना में इस साल संघर्ष विराम 80 फीसदी ज्यादा बार तोड़ा गया. पिछले साल 28 बार उल्लंघन हुआ था. इस साल अब तक 42 बार हो चुका है. सीमा पर गोलीबारी जम्मू-कश्मीर में घुस रहे आतंकियों को आड़ देने के लिए की जाती है और उसके साथ ही घाटी के भीतर हिंसा बढ़ा दी जाती है. पिछले 8 महीने में घाटी में 40 सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं, जबकि पिछले साल इनकी संख्या सिर्फ 17 थी. खुफिया एंजेसियों का मानना है कि हमले की यह साजिश रावलपिंडी में पाकिस्तानी सेना के जनरल हेडक्वार्टर्स में सोच-समझकर रची गई थी.
भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि कश्मीर में सोच-समझकर की जा रही हिंसा का मकसद भारत का भय दिखाकर पाकिस्तानी सेना और आतंकियों को एकजुट करना और भारत के साथ शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारना है. सेना के अधिकारियों का कहना है कि 300 आतंकी घुसपैठ के लिए तैयार खड़े हैं और पाकिस्तानी सेना उन्हें भारत में दाखिल कराना चाहती है, ताकि वह अगले साल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव और इस साल नवंबर में राज्य विधानसभा चुनावों में बाधा डाल सकें.
इस साजिश के कर्ता-धर्ता जनरल अशफाक परवेज कयानी हैं जो 28 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. भारत के खुफिया अधिकारियों को लगता है कि वे इस्लामाबाद और नई दिल्ली में असैनिक सत्ता प्रतिष्ठान पर निशाना साध रहे हैं और अगले सेनाध्यक्ष के लिए एजेंडा तय कर रहे हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सेना और खुफिया एजेंसी आइएसआइ पर संदेह रहा है. शरीफ के प्रधानमंत्री बनने से पाकिस्तानी सेना खुश नहीं थी.
अब उसे लगता है कि शरीफ भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा सकते हैं. इसे लेकर सेना की बेचैनी बढ़ गई है. 5 जुलाई को पूर्व राजनयिक और शांति समर्थक शहरयार खान को भारत के साथ बातचीत के लिए दूत बनाए जाने और अगले महीने दोनों देशों के बीच समग्र शांति प्रक्रिया फिर शुरू करने की घोषणा हुई. यह बातचीत 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए हमले के बाद रद्द कर दी गई थी. अगले महीने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की संभावित मुलाकात से इस प्रक्रिया को पहली बार गति मिलने वाली है.
कश्मीर में लंबी गर्मियों का पहला चेतावनी संकेत 13 मार्च को मिला. दो आतंकवादियों ने श्रीनगर के पास सीआरपीएफ के पांच लोगों को मार डाला. यह तीन साल में कश्मीर घाटी में पहला फिदायीन हमला था और उसके बाद एक के बाद एक हिंसा की घटनाएं होती रही हैं. 24 जून को आतंकियों ने श्रीनगर के बाहर घात लगाकर भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी. इसके एक दिन बाद ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को श्रीनगर जाना था और तीन हफ्ते पहले शरीफ ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. हमले का संदेश साफ थाः इस्लामाबाद में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार बनने से जनरल हेडक्वार्टर के मनसूबों पर कोई असर नहीं पड़ेगा और यही भारत की उलझन है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने 9 साल के कार्यकाल में पाकिस्तान के साथ शांति की उम्मीद पाले हुए हैं. पाकिस्तान में पहली बार असैनिक तरीके से सरकार बदले जाने से यह भावना और मजबूत हुई. शरीफ ने भारत के साथ शांति की दुहाई देकर चुनाव लड़ा था और माना जाता है कि वे संबंध सुधारने की बात कर सकते हैं.
रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने इस हमले के बारे में जो अजीबोगरीब बयान दिया उसके पीछे किसी भी कीमत पर अमन की चाहत साफ दिखाई दी. पुंछ में सैनिकों की हत्या के एक दिन बाद संसद के दोनों सदनों में अपनी ओर से बयान देते हुए एंटनी ने कहा, “पाकिस्तानी फौज की वर्दी में हथियारों से लैस होकर आए 20 लोगों ने आतंकवादियों के साथ घात लगाकर यह हमला किया.” भारतीय सेना के एक प्रवक्ता ने इस हमले के लिए सीधे पाकिस्तानी सेना को जिम्मेदार ठहराया था लेकिन उसे झटपट वापस ले लिया गया. बीजेपी की नेता सुषमा स्वराज ने आरोप लगाया कि एंटनी ने इस बयान से पाकिस्तान को पल्ला झाडऩे का मौका दे दिया है. प्रदर्शनकारियों ने एंटनी के सरकारी निवास 9, कृष्णा मेनन मार्ग पर धरना दे दिया. यह अलग बात है कि विपक्षी पार्टियों के पुरजोर विरोध के बाद एंटनी ने हमले के लिए पाकिस्तानी सेना को दोषी मान लिया.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने साफ तौर पर इनकार कर दिया कि पांच भारतीय सैनिकों की मौत से पाकिस्तान का कुछ लेना-देना है. पाकिस्तानी सेना की अंतर सेना जनसंपर्क इकाई ने बताया कि हालात पर बात करने के लिए दोनों सेनाओं के सैन्य संचालन महानिदेशकों के बीच एक विशेष हॉट लाइन शुरू की गई है. सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज के एडिशनल डायरेक्टर एयर वाइस मार्शल कपिल काक का कहना है, “भारत को ऐसी रणनीति बनानी होगी जिसमें जमीन पर सैनिक कार्रवाई के साथ मनोवैज्ञानिक और राजनयिक स्तर पर भी कार्रवाई की जाए तभी हम इस मकडज़ाल से बाहर निकल सकते हैं.”
शरीफ की नवगठित सरकार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि दोनों देशों के बीच तनाव का असर समग्र संवाद फिर से शुरू होने पर नहीं पड़ऩे वाला. शरीफ के एक करीबी सहायक ने इंडिया टुडे को बताया कि प्रधानमंत्री शरीफ मौजूदा हालात से परेशान नहीं है. वे जानते है कि सरकार से बाहर के तत्व भारत के साथ अच्छे रिश्ते कायम करने की उनकी कोशिशों में पलीता लगाना चाहते हैं.
शरीफ ने 14 साल का राजनैतिक वनवास काटने के बाद गद्दी संभाली है. इस दौरान वे लगातार महसूस करते रहे हैं कि सेना किस कदर शक्तिशाली है. वे यह भी बखूबी जानते हैं कि पाकिस्तान में दक्षिणपंथ का उभार किस तरह हो रहा है. हालात को झटके में सुधारने की कोशिश आत्मघाती हो सकती है. इसीलिए वे अब तक चुप रहे, क्योंकि उनके इरादे कुछ बड़े हैं. इस साल मई में चुने जाने के तुरंत बाद उन्होंने खुले आम ऐलान किया था कि वे योग्यता के आधार पर जनरल कयानी का उत्तराधिकारी चुनेंगे. इस बीच, उन्होंने पूरी कोशिश की है कि वे सेनाध्यक्ष को न छेड़ें. वे 1998 की भूल दोहराना नहीं चाहते जब उन्हीं के नियुक्त किए जनरल परवेज मुशर्रफ ने उन्हें गद्दी से हटाया था.
शरीफ जब गद्दी से हटाए गए थे तब उनके पास प्रचंड बहुमत था, लेकिन इससे सेना के इरादों पर कोई असर नहीं पड़ा. प्रधानमंत्री शरीफ के सामने आर्थिक मंदी, सांप्रदायिक मार-काट और पाकिस्तानी तालिबान के बढ़ते हमलों से निबटने की तिहरी चुनौती भी है. तालिबान ने इस साल चार बड़े हमले किए हैं जिनमें सेना के गश्ती दल, सेना की चौकियों, आइएसआइ के एक क्षेत्रीय कार्यालय और एक जेल को निशाना बनाया है. यह हमले तब हुए हैं जब अमेरिका और नाटो की सेनाओं ने 2014 तक अफगानिस्तान से पूरी तरह हटने की तैयारी शुरू कर दी है. पाकिस्तानी फौज का मानना है कि अमेरिका के हटने के बाद अफगानिस्तान की बिसात पर तुरूप का इक्का उसके हाथ में रहेगा.
जानकार अब कहते हैं कि अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है उसका कश्मीर में हिंसा से सीधा संबंध है. किंग्स कॉलेज लंदन में रक्षा अध्ययन विभाग में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के रीडर हर्ष पंत के अनुसार, “कश्मीर में हाल में बढ़ती हिंसा और अफगानिस्तान की घटनाओं को एक-दूसरे से अलग करना बहुत मुश्किल है. उग्रवादी गुटों का हौसला बढ़ रहा है और वे भारत को अपना मुख्य निशाना मानने लगे हैं.” ऐसे में आने वाले दिन सीमा पर तैनात जवानों और उनका नेतृत्व करने वाले जनरलों के लिए चुनौती भरे होंगे. भारत का राजनैतिक नेतृत्व जिस तरह जरूरत से ज्यादा एहतियात बरत रहा है, उससे सेना की चुनौती और बढ़ेगी. अगर किसी तरह दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया एक बार फिर पटरी पर आ भी जाए तो भी पाक सेना के खामोशी से बैठ जाने की उम्मीद करना रणनीतिक भूल होगी.