एक कोचिंग नगरीके रूप में देशभर में अपनी पहचान बना चुका कोटा कश्मीर में सोच के स्तर पर हुए बड़े बदलाव का साक्षी बन रहा है. अलगाववाद और आतंकवाद से प्रभावित कश्मीर की वादी से बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं कोटा आकर यहां के मशîर कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में कोचिंग ले रहे हैं.
कश्मीर से क रीब 300 से ज्यादा छात्र-छात्राएं मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए कश्मीर से सैकड़ों मील दूर राजस्थान के शहर कोटा तक का फासला तय कर चुके हैं. कश्मीरी अंदाज में सिर ढके इन छात्राओं के समूह कोटा के कुछ कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में आपको नजर आ जाएंगे, जिनकी बोली से यह अंदाज लगाना मुश्कि ल नहीं होता कि वह किस राज्य से आती हैं.
कोटा के एलन करियर कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में पढ़ रही छात्रा, अनंतनाग की 17 वर्षीय साबरा परवीन बताती हैं, ''मेरे भाई और बहन भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं. मैं कोटा इसलिए आई ताकि मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में पढ़ाई करूं और फिर मेडिकल कालेज में दाखिला लेकर डॉक्टर बन सकूं. '' साबरा के साथ ही उन्हीं की हमउम्र साबिया शरीफ ने भी चार महीने पहले दाखिला लिया है. वे श्रीनगर की हैं. वादी में बालिका शिक्षा को लेकर तंग नजरिए संबंधी बातों को साबिया खारिज करती हैं. उन्हीं के शब्दों में, ''दरअसल कश्मीर में मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोटा की तरह शैक्षणिक कंपिटीशन का प्रोफेशनल माहौल नहीं है. यही वजह थी, जिसके चलते मैंने कोटा आने की ठानी. लेकिन वादी में लड़कियों की तालीम को लेकर किसी तरह का विरोध हो, ऐसी कोई बात नहीं. '' कोटा के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स की जानकारी इन्हें यहां से पढ़कर गए लोगों के रिश्तेदारों या परिचितों से मिली.
कोटा आकर कोचिंग कर रही इन छात्राओं में अपनी पढ़ाई और मकसद को लेकर कोई ऊहापोह या झिझक नहीं है. कुलगाम की रहने वाली रुकैया अमीन की ही सुनिए, ''मैं जम्मू-कश्मीर से बाहर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे किसी नामी-गिरामी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हूं और मेरा यह ख्वाब कोटा में कोचिंग से ही पूरा हो सकता है. इसीलिए मैं यहां आई हूं. '' रुकैया के पिता डॉ. मोहम्मद अमीन डेंटल सर्जन हैं. वे खुद हृदय रोग विशेषज्ञ बनना चाहती हैं.
ऐसा नहीं कि ऊंची पढ़ाई पढ़कर कश्मीर की सारी छात्राएं राज्य से बाहर ही निकल जाना चाहती हैं. कुपवाड़ा की उल्फत ऐजाज को ही लीजिए. उनके भी पिता डॉक्टर हैं और वे गाइनोकॉलजिस्ट यानी प्रसूति रोग विशेषज्ञ बनकर कश्मीर की महिलाओं की सेवा करना चाहती हैं. कोई खास वजह? ''असल में वादी में गाइनोकॉलजिस्ट्स की बेहद कमी है. '' नेक इरादों वाली उल्फत तो यहां तक कहती हैं कि वे डॉक्टर बनने के बाद कश्मीरी लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराएंगी. बकौल उल्फत, ''मैं जम्मू-कश्मीर के मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए जम्मू कश्मीर के कॉमन एंट्रेंस टेस्ट(सीईटी) में बैठूंगी. ''
छात्राओं के अलावा कश्मीर से बड़ी संख्या में छात्र भी कोटा आ रहे हैं. अनंतनाग से आए रजा रियाज बताते हैं कि वादी में राज्य स्तर की प्रतियोगी परीह्नाओं की तैयारी के लिए तो कोचिंग की सुविधाएं हैं लेकिन उन्हें चूंकि राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं के लिए कोचिंग लेनी थी, इसलिए उन्होंने कोटा आने का मन बनाया. घाटी में आतंकवाद को लेकर तमाम तरह की बातों के संदर्भ में रियाज कहते हैं, ''पूरी घाटी को आतंकवाद के नजरिए से देखना ठीक नहीं. यह अमूमन दूरदराज के ह्नेत्रों तक ही सीमित है. शहरों में इसका उतना असर नहीं है. ''
इस साल घाटी के करीब 185 छात्र-छात्राएं तो अकेले एलन करियर कोचिंग इंस्टीट्यूट में ही दाखिला ले चुके हैं. इंस्टीट्यूट के निदेशक नवीन माहेश्वरी इसे एक अहम घटनाक्रम बताते हैं. उन्हीं के शब्दों में, ''यूं तो कश्मीर के छात्र-छात्राओं के कोटा आकर कोचिंग करने का सिलसिला 5-6 साल पहले शुरू हुआ था लेकिन तब इक्का-दुक्का छात्र ही आया करते थे. 2011-12 के शैक्षणिक सत्र में पहली दफा वहां से 121 छात्र-छात्राएं आए. हमारे यहां पिछले साल भी क रीब 195 छात्र-छात्राओं ने दाखिला लिया था. इस साल यह आंकड़ा पिछली बार की संख्या को पार कर जाएगा क्योंकि अभी तो एडमिशन चल ही रहे हैं. कश्मीरी छात्र-छात्राओं में उच्च शिक्षा के प्रति ललक पैदा हुई है. ''
दूसरे इंस्टीट्यूट्स भी माहेश्वरी की बातों की कमोबेश पुष्टि कर रहे हैं. रेज़ोनेंस इंस्टीट्यूट इंस्टीट्यूट्स के उपाध्यक्ष (बिजनेस डेवलपमेंट और आपरेशंस) मनोज शर्मा की राय में, घाटी के छात्र-छात्राएं जम्मू-कश्मीर से आगे निकलकर अवसरों की तलाश कर रहे हैं. '' शर्मा यहां एक और बड़े पहलू की ओर इशारा करते हैं. उनका मानना है कि शिक्षा के प्रति वादी में बदले इस नजरिए का बड़ा श्रेय कोटा आकर कोचिंग करने वाले इन छात्र-छात्राओं के अभिभावकों को जाता है. यह उन्हीं का फैसला था. उन्हें पता था कि इस एक फैसले से उनके बच्चों की जिंदगी बदल सकती है.
इन छात्र-छात्राओं के लिए समस्याएं भी हैं. वे वादी के बेहद ठंडे और अलग भौगोलिक परिवेश से आते हैं. अमूमन बर्फ से घिरी वादियों में रहने वाले इन युवाओं को कोटा में मई-जून में 45 डिग्री से भी ज्यादा का तापमान बरदाश्त करना पड़ा. ऐसे में हॉस्टल से कोचिंग इंस्टीट्यूट्स तक की चंद कदमों की दूरी भी उन्हें बेहद नागवार लगती है. लेकिन फिर भी इन लोगों ने विपरीत हालात में भी खुद को ढाल लिया है. साबिया बताती हैं कि ज्यादातर छात्राएं हॉस्टल में अमूमन एअरकंडीशंड या कूलर वाले कमरों में रहती हैं. हॉस्टल से इंस्टीट्यूट्स तक की दूरी वे अपने चेहरों को कपड़े से ढक कर तय करती हैं.
मांसाहारी भोजन के आदी इन छात्रों को राजस्थान के शाकाहारी भोजन से काम चलाना पड़ रहा है. हॉस्टल के मेस में मांसाहारी खाना नहीं परोसा जाता. रुकैया बताती हैं, ''कोटा में आकर गट्टे की सब्जी, कढ़ी, टिंडा और लौकी और इसके अलावा पोहा एकदम नया भोजन है. इससे तालमेल बिठाने में हमें मुश्किलें आ रही हैं लेकिन धीरे-धीरे हम इसके अभ्यस्त हो जाएंगे. ''
ज्यादातर, छात्र-छात्राएं अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं, जो पढ़ाई के साथ इबादत भी करते हैं. अभी खत्म हुए रमजान के महीने में छात्र-छात्राएं कोचिंग में जाकर पढ़ाई तो कर ही रहे हैं, साथ-साथ रोजे भी रख रहे हैं और तिलावत भी कर रहे हैं. उल्फत की पीड़ा है कि उन लोगों के घर बहुत दूर होने से वे लोग जल्दी-जल्दी घर भी नहीं जा सकते. रमजान के महीने में इस तरह से घर-परिवार से दूर रहने का दर्द और भी बढ़ जाता है. वैसे, खाने-पीछे और दूसरी भौगोलिक परेशानियों की बातें छोड़ दें तो ये कश्मीरी छात्र-छात्राएं कोटा के लोगों से मिले अपनेपन के भाव से भी खासे प्रभावित हैं. साबरा तो कहती भी हैं, ''कोचिंग इंस्टीट्यूट्स, हॉस्टल और मेस में मिलने वाले कोटा के और दूसरी जगहों के सहपाठियों से काफी अपनापन मिला है. हर कोई मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है. ''
गौरतलब है कि कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल एक लाख से भी ज्यादा छात्र-छात्राएं देश के अलग-अलग हिस्सों और विदेशों से भी यहां आते हैं. इस बड़ी संख्या की तुलना में कश्मीर से आने वालों की तादाद भले ही महज तीन अंकों वाली हो लेकिन कोई भी जानकार इसे वादी के लोगों की ओर से एक बड़ी पहल मान रहे हैं. यह कश्मीर घाटी के बदलते माहौल का संकेत भी हो सकता है.
कश्मीर से क रीब 300 से ज्यादा छात्र-छात्राएं मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए कश्मीर से सैकड़ों मील दूर राजस्थान के शहर कोटा तक का फासला तय कर चुके हैं. कश्मीरी अंदाज में सिर ढके इन छात्राओं के समूह कोटा के कुछ कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में आपको नजर आ जाएंगे, जिनकी बोली से यह अंदाज लगाना मुश्कि ल नहीं होता कि वह किस राज्य से आती हैं.
कोटा के एलन करियर कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में पढ़ रही छात्रा, अनंतनाग की 17 वर्षीय साबरा परवीन बताती हैं, ''मेरे भाई और बहन भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं. मैं कोटा इसलिए आई ताकि मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में पढ़ाई करूं और फिर मेडिकल कालेज में दाखिला लेकर डॉक्टर बन सकूं. '' साबरा के साथ ही उन्हीं की हमउम्र साबिया शरीफ ने भी चार महीने पहले दाखिला लिया है. वे श्रीनगर की हैं. वादी में बालिका शिक्षा को लेकर तंग नजरिए संबंधी बातों को साबिया खारिज करती हैं. उन्हीं के शब्दों में, ''दरअसल कश्मीर में मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोटा की तरह शैक्षणिक कंपिटीशन का प्रोफेशनल माहौल नहीं है. यही वजह थी, जिसके चलते मैंने कोटा आने की ठानी. लेकिन वादी में लड़कियों की तालीम को लेकर किसी तरह का विरोध हो, ऐसी कोई बात नहीं. '' कोटा के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स की जानकारी इन्हें यहां से पढ़कर गए लोगों के रिश्तेदारों या परिचितों से मिली.
कोटा आकर कोचिंग कर रही इन छात्राओं में अपनी पढ़ाई और मकसद को लेकर कोई ऊहापोह या झिझक नहीं है. कुलगाम की रहने वाली रुकैया अमीन की ही सुनिए, ''मैं जम्मू-कश्मीर से बाहर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे किसी नामी-गिरामी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हूं और मेरा यह ख्वाब कोटा में कोचिंग से ही पूरा हो सकता है. इसीलिए मैं यहां आई हूं. '' रुकैया के पिता डॉ. मोहम्मद अमीन डेंटल सर्जन हैं. वे खुद हृदय रोग विशेषज्ञ बनना चाहती हैं.
ऐसा नहीं कि ऊंची पढ़ाई पढ़कर कश्मीर की सारी छात्राएं राज्य से बाहर ही निकल जाना चाहती हैं. कुपवाड़ा की उल्फत ऐजाज को ही लीजिए. उनके भी पिता डॉक्टर हैं और वे गाइनोकॉलजिस्ट यानी प्रसूति रोग विशेषज्ञ बनकर कश्मीर की महिलाओं की सेवा करना चाहती हैं. कोई खास वजह? ''असल में वादी में गाइनोकॉलजिस्ट्स की बेहद कमी है. '' नेक इरादों वाली उल्फत तो यहां तक कहती हैं कि वे डॉक्टर बनने के बाद कश्मीरी लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराएंगी. बकौल उल्फत, ''मैं जम्मू-कश्मीर के मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए जम्मू कश्मीर के कॉमन एंट्रेंस टेस्ट(सीईटी) में बैठूंगी. ''
छात्राओं के अलावा कश्मीर से बड़ी संख्या में छात्र भी कोटा आ रहे हैं. अनंतनाग से आए रजा रियाज बताते हैं कि वादी में राज्य स्तर की प्रतियोगी परीह्नाओं की तैयारी के लिए तो कोचिंग की सुविधाएं हैं लेकिन उन्हें चूंकि राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं के लिए कोचिंग लेनी थी, इसलिए उन्होंने कोटा आने का मन बनाया. घाटी में आतंकवाद को लेकर तमाम तरह की बातों के संदर्भ में रियाज कहते हैं, ''पूरी घाटी को आतंकवाद के नजरिए से देखना ठीक नहीं. यह अमूमन दूरदराज के ह्नेत्रों तक ही सीमित है. शहरों में इसका उतना असर नहीं है. ''
इस साल घाटी के करीब 185 छात्र-छात्राएं तो अकेले एलन करियर कोचिंग इंस्टीट्यूट में ही दाखिला ले चुके हैं. इंस्टीट्यूट के निदेशक नवीन माहेश्वरी इसे एक अहम घटनाक्रम बताते हैं. उन्हीं के शब्दों में, ''यूं तो कश्मीर के छात्र-छात्राओं के कोटा आकर कोचिंग करने का सिलसिला 5-6 साल पहले शुरू हुआ था लेकिन तब इक्का-दुक्का छात्र ही आया करते थे. 2011-12 के शैक्षणिक सत्र में पहली दफा वहां से 121 छात्र-छात्राएं आए. हमारे यहां पिछले साल भी क रीब 195 छात्र-छात्राओं ने दाखिला लिया था. इस साल यह आंकड़ा पिछली बार की संख्या को पार कर जाएगा क्योंकि अभी तो एडमिशन चल ही रहे हैं. कश्मीरी छात्र-छात्राओं में उच्च शिक्षा के प्रति ललक पैदा हुई है. ''
दूसरे इंस्टीट्यूट्स भी माहेश्वरी की बातों की कमोबेश पुष्टि कर रहे हैं. रेज़ोनेंस इंस्टीट्यूट इंस्टीट्यूट्स के उपाध्यक्ष (बिजनेस डेवलपमेंट और आपरेशंस) मनोज शर्मा की राय में, घाटी के छात्र-छात्राएं जम्मू-कश्मीर से आगे निकलकर अवसरों की तलाश कर रहे हैं. '' शर्मा यहां एक और बड़े पहलू की ओर इशारा करते हैं. उनका मानना है कि शिक्षा के प्रति वादी में बदले इस नजरिए का बड़ा श्रेय कोटा आकर कोचिंग करने वाले इन छात्र-छात्राओं के अभिभावकों को जाता है. यह उन्हीं का फैसला था. उन्हें पता था कि इस एक फैसले से उनके बच्चों की जिंदगी बदल सकती है.
इन छात्र-छात्राओं के लिए समस्याएं भी हैं. वे वादी के बेहद ठंडे और अलग भौगोलिक परिवेश से आते हैं. अमूमन बर्फ से घिरी वादियों में रहने वाले इन युवाओं को कोटा में मई-जून में 45 डिग्री से भी ज्यादा का तापमान बरदाश्त करना पड़ा. ऐसे में हॉस्टल से कोचिंग इंस्टीट्यूट्स तक की चंद कदमों की दूरी भी उन्हें बेहद नागवार लगती है. लेकिन फिर भी इन लोगों ने विपरीत हालात में भी खुद को ढाल लिया है. साबिया बताती हैं कि ज्यादातर छात्राएं हॉस्टल में अमूमन एअरकंडीशंड या कूलर वाले कमरों में रहती हैं. हॉस्टल से इंस्टीट्यूट्स तक की दूरी वे अपने चेहरों को कपड़े से ढक कर तय करती हैं.
मांसाहारी भोजन के आदी इन छात्रों को राजस्थान के शाकाहारी भोजन से काम चलाना पड़ रहा है. हॉस्टल के मेस में मांसाहारी खाना नहीं परोसा जाता. रुकैया बताती हैं, ''कोटा में आकर गट्टे की सब्जी, कढ़ी, टिंडा और लौकी और इसके अलावा पोहा एकदम नया भोजन है. इससे तालमेल बिठाने में हमें मुश्किलें आ रही हैं लेकिन धीरे-धीरे हम इसके अभ्यस्त हो जाएंगे. ''
ज्यादातर, छात्र-छात्राएं अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं, जो पढ़ाई के साथ इबादत भी करते हैं. अभी खत्म हुए रमजान के महीने में छात्र-छात्राएं कोचिंग में जाकर पढ़ाई तो कर ही रहे हैं, साथ-साथ रोजे भी रख रहे हैं और तिलावत भी कर रहे हैं. उल्फत की पीड़ा है कि उन लोगों के घर बहुत दूर होने से वे लोग जल्दी-जल्दी घर भी नहीं जा सकते. रमजान के महीने में इस तरह से घर-परिवार से दूर रहने का दर्द और भी बढ़ जाता है. वैसे, खाने-पीछे और दूसरी भौगोलिक परेशानियों की बातें छोड़ दें तो ये कश्मीरी छात्र-छात्राएं कोटा के लोगों से मिले अपनेपन के भाव से भी खासे प्रभावित हैं. साबरा तो कहती भी हैं, ''कोचिंग इंस्टीट्यूट्स, हॉस्टल और मेस में मिलने वाले कोटा के और दूसरी जगहों के सहपाठियों से काफी अपनापन मिला है. हर कोई मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है. ''
गौरतलब है कि कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल एक लाख से भी ज्यादा छात्र-छात्राएं देश के अलग-अलग हिस्सों और विदेशों से भी यहां आते हैं. इस बड़ी संख्या की तुलना में कश्मीर से आने वालों की तादाद भले ही महज तीन अंकों वाली हो लेकिन कोई भी जानकार इसे वादी के लोगों की ओर से एक बड़ी पहल मान रहे हैं. यह कश्मीर घाटी के बदलते माहौल का संकेत भी हो सकता है.