आईपीएल-6 के फाइनल मैच से एक दिन पहले 25 मई की रात 9.30 बजे बीसीसीआई अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन काली और सफेद धारियों वाली टी-शर्ट में छह बाउंसरों से घिरे कोलकाता के ताज बंगाल होटल में सबसे अंत में पहुंचे थे, जहां जगमोहन डालमिया की मेजबानी में रात्रिभोज दिया गया था. डालमिया और आईपीएल के चेयरमैन राजीव शुक्ला के साथ श्रीनिवासन रिसेप्शन एरिया में दाखिल हुए. पहले तो डालमिया बताते हैं कि कैसे 1997 और 2000 में जब पहली बार मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे, तब पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष राजसिंह डूंगरपुर और ए.सी. मुथैया ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था. फिर उन्होंने श्रीनिवासन से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की अपील की, क्योंकि उनका दामाद गुरुनाथ मयप्पन सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग के आरोप में खुद पुलिस हिरासत में है. श्रीनिवासन बोले, 'पीछे हटना मेरी फितरत में नहीं है.' इस पर शुक्ला ने कहा कि ठीक है, अब उनसे यह बात नहीं कही जाएगी.
अचानक 28 मई को संभवत: कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के इस मामले में दखल देने से कांग्रेसियों में अफरातफरी मच गई. सबसे पहले इस अभियान की शुरुआत मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने की, जिसे केंद्रीय खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाथोंहाथ लिया और इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी संसदीय कार्य राज्यमंत्री और उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ के मुखिया शुक्ला ने अपने हाथ में ले ली. इसके फौरन बाद एनसीपी के मुखिया, पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी उनके सुर में सुर मिला दिया.
देर से ही सही, लेकिन श्रीनिवासन से अचानक पल्ला झाड़ लेने की यह सामूहिक कोशिश सिर्फ यही दिखाती है कि बीसीसीआई ऐसा खुद को बचाने के लिए कर रहा है. महज 30 लोगों की बपौती बना यह संगठन, जिसमें हरेक के पास एक वोट है, खुद को बचाने के लिए जो कर सकता है, सब कर रहा है ताकि बाहरी दखल से उसका दामन बचा रहे. अब भी यह सवाल बना हुआ है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? जल्दबाजी में 28 मई को अपने कैलाश कॉलोनी आवास पर एक गुप्त बैठक बुलाने वाले अरुण जेटली और शुक्ला जैसे लोग एक लोकप्रिय बीसीसीआई अध्यक्ष को हटवाने के लिए जरूरी वोटों का इंतजाम कैसे कर पाएंगे?
अब तक हल्के में लिए जा रहे 4,050 करोड़ रुपये के कारोबार वाले इंडिया सीमेंट्स के वाइस-चेयरमैन और एमडी श्रीनिवासन ने बीसीसीआई से अपने सात साल के जुड़ाव के दौरान संरक्षण और रियायतों की कार्यशैली को एक कला में तब्दील करके अपने पक्ष में हवा बनाई हुई है. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि राज्य संघों से लेकर खिलाडिय़ों तक और कमेंटेटरों से लेकर पूर्व क्रिकेटरों तक सबकी भागीदारी से खेली गई चुप्पी की एक साजिश के वे सरगना हैं. अपने कार्यकाल में उन्होंने रेवड़ियां बांटकर ताकत हासिल की है.
टीम इंडिया के खिलाड़ियों का पारिश्रमिक प्रति टेस्ट मैच 2.5 लाख रुपये से 7 लाख रुपये करने का काम उन्होंने 2010 में किया था. पूर्व घरेलू और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को 25 लाख रुपये से 1.5 करोड़ रुपये तक का एकमुश्त बोनस उन्होंने 2012 में बांटा. लोगों में क्रिकेट को लेकर धारणा बनाने वाले कमेंटेटरों, सुनील गावसकर और रवि शास्त्री, के साथ उन्होंने सालाना 3.6 करोड़ रुपये का केंद्रीय अनुबंध किया. किनारे बैठकर तमाशा देखने वाले राज्य क्रिकेट संघों को लुभाने के लिए उन्होंने 2006 में उनके रहनुमा पूर्व अध्यक्ष डालमिया के खिलाफ लगे अनियमितता के आरोपों को खत्म करवाने का काम किया है.
डालमिया की तरह ही श्रीनिवासन ने लोगों को इतना फायदा पहुंचाया है कि 26 मई को आईपीएल का फाइनल होने तक जेटली और शुक्ला की जबान तक नहीं हिल सकी. बीसीसीआई के शीर्ष अधिकारियों में हरेक को किसी न किसी तरीके से श्रीनिवासन से लाभ मिला है. पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष पवार ने 29 मई को बयान दिया कि श्रीनिवासन 'कुकृत्यों से निबटने में गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं.'
दिलचस्प यह है कि सितंबर, 2008 में बीसीसीआई के संविधान के उपबंध 6.2.4 में विवादास्पद संशोधन का काम तत्कालीन अध्यक्ष पवार की लिखी एक चिट्ठी के आधार पर ही हुआ था, जिसके तहत बीसीसीआई के पदाधिकारी भी टीम के मालिक हो सकते हैं. इसी संशोधन के चलते श्रीनिवासन चेन्नई सुपर किंग्स के लिए बोली लगा सके थे. पवार ने 5 जनवरी, 2008 को श्रीनिवासन को लिखा था कि उन्हें 'बोली प्रक्रिया में इंडिया सीमेंट्स के हिस्सा लेने में कोई बाधा नजर नहीं आ रही है.' इसके बाद 15 सितंबर, 2012 को संविधान में किए गए एक और बदलाव ने दिल्ली ऐंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) के प्रमुख अरुण जेटली के 2014 में अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ कर दिया. इसमें रोटेशन प्रणाली को हटा दिया गया, जिसके मुताबिक बोर्ड का अगला प्रमुख पूर्वी जोन से आना था. इसके बाद नियम 15(6) में एक और बदलाव किया गया, जिसके तहत पूर्व बोर्ड अध्यक्ष दोबारा बोर्ड में चुने जा सकते थे. इससे न सिर्फ श्रीनिवासन बल्कि पवार, आई.एस. बिंद्रा, डालमिया और शशांक मनोहर के बोर्ड में बने रहने का रास्ता खुल गया.
क्रिकेट नहीं, कंट्रोल
बोर्ड के एक वरिष्ठ अफसर कहते हैं, 'जब आप बीसीसीआई की बात करते हैं, तो समझने वाली सबसे जरूरी चीज यह है कि इसका मूल क्रिकेट नहीं बल्कि कंट्रोल है. बीसीसीआई खेल और खिलाड़ियों के लिए नहीं, खुद के लिए अस्तित्व में है. यह ताकत, पैसे, अराजकता और इन सबसे हासिल होने वाली हरेक चीज के खत्म हो जाने की असुरक्षा के भय पर खड़ा एक किला है.'
बीसीसीआई आज एक कॉर्पोरेट संस्था बन चुका है, जिसकी कुल परिसंपत्तियां 3,308 करोड़ रुपये की हैं और जिसके पास सालाना 382 करोड़ रुपये का सरप्लस है. इसमें झांकना विरोधाभासों से दो-चार होना है. एक ओर, यह एक ऐसे आधुनिक खेल को चलाता है जिसके हर एक पहलू से इसका वास्ता होता है— सुपरस्टार खिलाड़ी, टीवी पर प्रसारण अधिकार, प्रायोजक, मर्चेंडाइज, मीडिया का ध्यानाकर्षण, लोगों और चाहने वालों का विशाल जनाधार. दूसरी ओर, यह अपने राजकाज में मानद सदस्यों वाले पुराने मॉडल पर टिका है, जिन्हें दो स्तरीय प्रणाली से चुना जाता है. उन्हें राज्य संघ वोट देते हैं और जहां कोई पेशेवर प्रबंधक नहीं होता.
पिछले एक दशक से ज्यादा वक्त से बोर्ड के करीब रहे खिलाड़ियों के एक एजेंट कहते हैं, 'यह लोकतंत्र के आवरण में चलाई जा रही पूंजीपतियों की राजशाही है. यह वन-मैन शो है, जहां हर साल बादशाह का तख्तापलट होता है लेकिन ढांचा जस का तस बना रहता है.'
2006 तक यह बोर्ड अध्यक्ष के घर से चला करता था. इसका मुख्यालय मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम के बाहरी इलाके में स्थित डेढ़ कमरे का एक दफ्तर होता था. हालत यह थी कि किसी आगंतुक को यदि शौचालय का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ती, तो उसे ऑफिस प्रबंधक दलपत वडोलिकर से पहली मंजिल पर स्थित बदबूबार शौचालय की चाबी मांगनी पड़ती थी, जिसे किराए पर किसी दूसरे दफ्तर से लिया गया था. आज बीसीसीआई का आलीशान दफ्तर वानखेड़े स्टेडियम में स्थित क्रिकेट सेंटर में है, जिसमें आधुनिक शौचालय बने हुए हैं. इसके अलावा बाकी सब कुछ पहले जैसा ही है.
बीसीसीआई की अहम उपसमितियों में सबसे महत्वपूर्ण हैं वित्त समिति, विपणन समिति, आईपीएल की प्रशासकीय परिषद और टुअर और फिक्सचर समिति जो मैचों के आयोजन स्थल तय करती है. इनमें 27 राज्य संघों के सदस्यों को लिया जाता है. बोर्ड के एक अधिकारी कहते हैं, 'इसमें न तो किसी एक व्यक्ति, न ही किसी समूह की जिम्मेदारी होती है. वे सिर्फ खाली जगह पर दस्तखत करते हैं. सारे फैसले अध्यक्ष या सचिव लेते हैं और यह इस पर निर्भर करता है कि दोनों में से किसका प्रभाव ज्यादा है.' आईसीसी के कई अध्यक्षों ने बीसीसीआई से कई बार अपील की है, खासकर 2003 से 2006 के बीच पाकिस्तान के एहसान मनी ने, कि बोर्ड पेशेवर लोगों को अपने यहां नियुक्त करे, लेकिन बोर्ड ने इस सलाह को मानने से इनकार कर दिया. अंदर के लोगों की राय में बोर्ड को डर है कि पेशेवर लोगों के आने से उनकी सत्ता में दखल होगा. तत्कालीन खेल मंत्री अजय माकन ने बीसीसीआई को 2012 में खेल विधेयक के अंतर्गत लाने की कोशिश की थी, ताकि वह सूचना के अधिकार के तहत आ सके, पर संसद में जाने से पहले ही इस प्रस्ताव को गिरवा दिया गया.
प्रत्येक राज्य संघ वोट देने वाले एक सदस्य के मातहत होता है और बीसीसीआई के मुनाफे से अपना पैसा लेता है. यह पैसा सालाना बांटा जाता है और भले ही यह तय करने का एक फॉर्मूला मौजूद है कि 'आईपीएल अनुदान' और 'टीवी सब्सिडी' से किसे कितना मिलेगा, लेकिन इन दिनों यह रकम हर संघ के लिए 25 से 30 करोड़ रुपये के बीच तो होती ही है. अधिकारी कहते हैं, 'कुछ छोटे संघ जिनका सालाना व्यय इस राशि का छोटा-सा हिस्सा होता है उन्हें उनके बैंक खातों में पैसा भेज दिया जाता है और वे इसे कैसे खर्च करते हैं, इस बारे में उनसे कोई सवाल नहीं किया जाता.'
इस आरामदेह स्थिति को बनाए रखने के लिए अध्यक्ष अपने बोर्ड के सदस्यों को यानी वोटों को खुश रखता है. ऐसा कई तरीकों से किया जाता है. ’90 के दशक में इन तरीकों को महीन बनाने का काम डालमिया ने किया था और उसे एक कला में तब्दील करने का काम श्रीनिवासन ने पिछले दो साल में किया है: ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड के खिलाफ महत्वपूर्ण मैच राज्य संघों के हाथ में दे देना, ताकि स्थानीय प्रायोजन से आने वाले पैसों और पास के वितरण में उसके सदस्यों का प्रभुत्व बना रहे; स्टेडियम निर्माण और अकादमियों के लिए अनुदान देना; राज्य संघों से अहम सदस्यों को विदेश दौरे पर प्रबंधक बनाकर भेजना भले ही उन्हें इसका पेशेवर अनुभव हो या नहीं; समिति की बैठक बड़े मैचों के आसपास रखना, ताकि इन मैचों को देखने के लिए स्टेडियम आने में सदस्यों को पूरे खर्च का भुगतान हो सके, जिसमें बिजनेस श्रेणी में यात्रा, पांच सितारा सुइट में ठहरने का प्रबंध और 4,000 रुपये से 7,000 रुपये का दैनिक भत्ता आदि शामिल होते हैं.
इन रेवड़ियों के बावजूद बीसीसीआई में अपने समर्थन में संख्याबल जुटाने का काम हमेशा से ही गोपनीय और षड्यंत्र भरा रहा है, जहां हर चुनावी साल में दोस्त अचानक दुश्मन बन जाते हैं, जहां समीकरण बहुत तेजी से बदलते हैं लेकिन चेहरे वही रहते हैं. इतने वर्षों के दौरान डालमिया और बिंद्रा साथ भी लड़े हैं और एक-दूसरे के खिलाफ भी; यही हाल डालमिया और मुथैया, मुथैया और श्रीनिवासन और श्रीनिवासन और ललित मोदी के बीच रहा है.
पैसे का खेल
बीसीसीआई की स्थापना दिसंबर, 1928 में तमिलनाडु सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत एक निजी क्लब के तौर पर हुई थी. इस पर नियंत्रण की लड़ाई तो हालांकि हमेशा से ही रही है, जहां पटियाला के महाराज, वाइसराय लॉर्ड विलिंगडन और विजयनगरम के महाराज कुमार का संघर्ष 1931 में ही सामने आ गया था. लेकिन भारत में उदारीकरण के बाद यह जंग गलाकाट हो गई, जब प्रसारण अधिकारों से पैसा आने लगा.
बीसीसीआई के इतिहास में आए मोड़ को पहचानना हो तो 1991 का नवंबर याद कीजिए, जब दक्षिण अफ्रीका की टीम 21 साल तक चली नस्ली बंदिश से मुक्त होकर अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने भारत के दौरे पर आई थी. तीन मैचों की इस एकदिवसीय सीरीज से एकाध सप्ताह पहले दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट बोर्ड के मुखिया अली बाकर ने बीसीसीआई के तत्कालीन सेक्रेटरी डालमिया को फोन कर के पूछा था कि दक्षिण अफ्रीका में मैचों के प्रसारण पर कितनी लागत आएगी? बीसीसीआई को पता ही नहीं था कि प्रसारण अधिकार किसके पास है, सरकार के पास या खुद उसके पास?
कई दौर की वार्ता के बाद बीसीसीआई ने आकलन किया कि इस सीरीज का प्रसारण अधिकार 10,000 डॉलर प्रति मैच के दाम पर बेचा जा सकता है, लेकिन बाकर ने जब पूरी सीरीज के लिए 60,000 डॉलर देने की पेशकश कर दी तो डालमिया ने बिना चूके छक्का मार दिया और सौदा 120,000 डॉलर पर जाकर रुका. दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 14 नवंबर को आखिरी मैच के दौरान बाकर ने दक्षिण अफ्रीका प्रसारण निगम का एक चेक बीसीसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष माधवराव सिंधिया को थमाया. यह पहली बार था जब किसी विदेशी प्रसारक ने भारत में हुई सीरीज के लिए बीसीसीआई को भुगतान किया था.
22 साल बाद स्टार समूह ने भारत की धरती पर होने वाले क्रिकेट मैचों के 2012 से 2018 के बीच प्रसारण अधिकार के बदले बीसीसीआई को 3,851 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. यह फीस 2012 से 2014 के बीच प्रति मैच 32 करोड़ रुपये बैठती है और 2014 से 2018 के बीच हर मैच पर बढ़कर 40 करोड़ रुपये हो जाती है..
बोर्ड बनाम बाहरी
अपनों को बचा ले जाने और बाहरी व्यक्तियों को निबटा देने की बीसीसीआई की नीति आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी के अर्श से फर्श पर आने के उदाहरण से समझी जा सकती है. लंदन में एकांतवास में जीवन बिता रहे, ट्वेंटी-20 क्रिकेट के इस 49 वर्षीय पूर्व बेताज बादशाह ने अपने सियासी संपर्कों के माध्यम से इस क्लब में जगह बनाई थी..
राजस्थान में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ओर से लाया गया एक नया खेल विधेयक 2005 में राजस्थान क्रिकेट संघ (आरसीए) के चुनाव में मोदी की फतह का माध्यम बना. इसमें जिला संघों तक मतदान को सीमित कर दिया गया था और कथित तौर पर एक फतवा जारी कर दिया गया था कि उन्हें मोदी को समर्थन देना है. इसके चलते मोदी बीसीसीआई का हिस्सा बन गए और बोर्ड ने उन्हें वैसे ही गले लगा लिया जैसे हर नवागंतुक को लगाता रहा है.
सामान्य धारणा यह है कि मोदी की दिक्कतें उस वक्त शुरू हुईं जब 2010 में उनके खिलाफ अनियमिता और वित्तीय हेरफेर के आरोप लगे, लेकिन असल में उनके संकट की शुरुआत उस वक्त हुई जब वे आरसीए के एक विवादास्पद चुनाव में आईएएस अफसर संजय दीक्षित के हाथों अध्यक्ष का पद हार गए. दीक्षित के सिर पर नए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का हाथ था.
अब मोदी बीसीसीआई के अंदरूनी मामलों का हिस्सा तो बन चुके थे, लेकिन उनके पास मताधिकार नहीं था इसलिए वहां तक उनकी पहुंच बाधित हो गई. दूसरे, आईपीएल अब तक अपने पैरों पर खड़ा हो ही चुका था. मोदी की जरूरत अब नहीं रह गई थी. दूसरी बार 2010 में जैसे ही वे आरसीए का चुनाव हारे, उनका खेल खत्म हो चुका था. बोर्ड के एक सदस्य कहते हैं, 'जिनके पास वोट नहीं हैं, बीसीसीआई में उनके लिए कोई जगह नहीं.'
श्रीनिवासन का असली प्रभाव दरअसल बोर्ड के भीतर का आदमी होने और तमिलनाडु क्रिकेट संघ पर मजबूत शिकंजा होने से आता है. जैकेट और टाई या फिर सफारी सूट में लकदक और करीने से बाल झाड़ कर हमेशा तैयार रहने वाले 68 वर्षीय श्रीनिवासन पेशे से केमिकल इंजीनियर हैं, जिनका पहली बार वेल्लोर से 2001 में टीएनसीए में प्रवेश हुआ. अपने मित्र मुथैया के कहने पर सिर्फ एक साल के लिए 2005 में उन्होंने इसकी कमान संभाली, लेकिन फिर कभी मुथैया को इसके भीतर नहीं आने दिया. वे 2012 में आठवीं बार लगातार टीएनसीए के अध्यक्ष चुने गए. आज मुथैया कह रहे हैं कि श्रीनिवासन को क्रिकेट में लाना उनकी 'सबसे बड़ी गलती थी.'
इन बरसों के दौरान श्रीनिवासन ने बड़े खिलाड़ियों को अनुग्रहीत करने का काफी काम किया है. महेंद्र सिंह धोनी के साथ उनका विशेष रिश्ता टीम इंडिया से लेकर सीएसके और इंडिया सीमेंट्स तक फैला हुआ है, जिसमें धोनी वाइस-प्रेसिडेंट हैं. चैंपियंस ट्रॉफी के लिए 28 मई को इंग्लैंड निकलने से पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब स्पॉट फिक्सिंग के बारे में धोनी से पूछा गया तो वे बिलकुल पथरीली चुप्पी ओढ़े रहे.
अब भी कुल 30 सदस्यों में से 17 पसोपेश में हैं इसलिए श्रीनिवासन का भविष्य तय नहीं है. सत्ता में चाहे जो भी रहे, लेकिन बीसीसीआई को इतना भरोसा है कि वह पाले के दोनों तरफ मौजूद उन वजनी सियासी शख्सियतों के संरक्षण में बिना किसी दिक्कत के अपना कारोबार जारी रखेगा जो वैसे तो आम तौर पर प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्षों से इस्तीफा मांगते फिरते हैं, लेकिन तंत्र के भीतर खुद इतने गहरे धंसे हुए हैं कि बदलाव की पहल कभी नहीं कर सकते.
(कुणाल प्रधान, जी.एस. विवेक के साथ कुमार अंशुमन, कौशिक डेका और जयंत श्रीराम)
बोर्ड ऑफ क्रिकेट करेंसी इन इंडिया
दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट संस्था भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) क्रिकेट से होने वाली अपनी आय का आधा हिस्सा भी क्रिकेट पर खर्च नहीं करती-
बीसीसीआई की आय 1,168 करोड़ रुपये
दूसरी मदों से आय 17%
टुअर अकाउंट सरप्लस 18%
न्यूनतम स्पॉन्सर गारंटी 1%
आईपीएल सरप्लस 23%
मीडिया राइट्स से आय 37%
सीएल टी20 सरप्लस 4%
बीसीसीआई का खर्च 783 करोड़ रुपये
कोचिंग का खर्च 1%
बोर्ड के बुनियादी खर्च 7%
दूसरे खर्च 2%
टीवी प्रोडक्शन और दूसरी मदों में खर्च 6%
क्रिकेट आयोजनों पर होने वाला खर्च 43%
खिलाडिय़ों को दिया जाने वाला हिस्सा 6%
राज्य खेल संघों को दिया जाने वाला हिस्सा 35%
(स्रोत: बीसीसीआई वार्षिक रिपोर्ट 2011-12)
लाभार्थी पक्ष
राज्य बोर्ड: बीसीसीआई ने राज्य बोर्डों को 276 करोड़ रुपये दिए.
खिलाड़ी: 2011-12 में खिलाड़ियों को दिए गए 47.49 रुपये में से 19.25 करोड़ रुपये वार्षिक कॉन्ट्रैक्ट वाले 36 खिलाड़ियों को रिटेनरशिप फीस के रूप में चुकाए गए.
अंपायर: घरेलू मैचों में अंतरराष्ट्रीय अनुभव वाले अंपायरों को रोज 20,000 रुपये दिए जाते हैं. आईपीएल में हर मैच के लिए अंपायर को 3,600 डॉलर दिए जाते हैं.
पूर्व खिलाड़ी: सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन को 70 लाख रुपये मिलते हैं. बोर्ड की नई योजना के तहत 31 दिसंबर,1993 से पहले 25 टेस्ट या एकदिवसीय खेल चुके खिलाडिय़ों को हर महीने 35,000 रुपये पेंशन मिलती है.
कमेंटेटर: बीसीसीआई ने सेंट्रली कॉन्ट्रैक्टेड कमेंटेटर नियुक्त किए, जिन्हें सभी घरेलू मैचों में शामिल किया जाता है. शास्त्री और गावसकर दोनों को सालाना 3.6 करोड़ रुपये मिलते हैं.
खाओ और खामोश रहो
बीसीसीआई ने रेवड़ियां बांटकर असंतोष के हर संभावित स्वर को खामोश कर दिया है-
कपिल देव को 1.5 करोड़ रुपये. 131 टेस्ट मैच खेले.
नवजोत सिद्धू को 1 करोड़ रुपये. टेस्ट मैच खेले 51.
सुनील गावसकर को 1.5 करोड़ रुपये. टेस्ट मैच खेले 125.
संजय मांजरेकर को 75 लाख रुपये. टेस्ट मैच खेले 37.
एम. अमरनाथ को 1 करोड़ रुपये. टेस्ट मैच खेले 69.
80 टेस्ट मैचों के लिए रवि शास्त्री को 1.5 करोड़ रुपये.
मदन लाल को 75 लाख रुपये. टेस्ट मैच खेले 39.
1.5 करोड़ रुपये जी.आर. विश्वनाथ को. उन्होंने 91 टेस्ट मैच खेले हैं.
डी. वेंगसरकर को 1.5 करोड़ रुपये. टेस्ट मैच खेले हैं 116.
चेतन चौहान को 60 लाख रुपये. उन्होंने 131 टेस्ट मैच खेले हैं.
एस. किरमानी को 1.5 करोड़ रुपये. टेस्ट मैच खेले 88.