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राजस्‍थान में जमीन का बड़ा घोटाला उजागर

भारतीय वायु सेना को उसके सबसे संवेदनशील हवाई अड्डों में से एक में करीब 20 करोड़ रु. कीमत वाली 3.8 एकड़ जमीन का चूना लगा दिया गया है.

अपडेटेड 14 जून , 2013

भारतीय वायु सेना को उसके सबसे संवेदनशील हवाई अड्डों में से एक में करीब 20 करोड़ रु. कीमत वाली 3.8 एकड़ जमीन का चूना लगा दिया गया है. जोधपुर एयरबेस, 32 विंग भारतीय वायु सेना का सबसे बड़ा एयरबेस है. यहां से पाकिस्तान की हवाई दूरी महज 15 मिनट की है. यह इस बात की मिसाल है कि किस तरह जमीन के कारोबारी रक्षा विभाग के भूखंड को भी हड़पने लगे हैं. देश की सुरक्षा को खतरे में डालते हुए प्रतिबंधित इलाके में उन्होंने किस तरह भवन निर्माण किया है.

असल में वायु सेना ने 1987 में ही दक्षिण-पश्चिम एयर कमान के विस्तार के लिए इस जमीन का अधिग्रहण किया था. इस कमान की स्थापना यहां 1980 में की गई थी, बाद में इसे 1998 में गांधीनगर शिफ्ट कर दिया गया. भारतीय वायु सेना ने इस जमीन का मुआवजा दे दिया था. मुआवजा फर्जी पॉवर ऑफ अटार्नी के जरिए ले लिया गया लेकिन स्थानीय प्रशासन के रिकॉर्ड में यह जमीन वायु सेना के नाम कभी हस्तांतरित नहीं की गई. उलटे 2005 में दूसरी फर्जी पॉवर ऑफ अटार्नी बनाकर धोखाधड़ी से इस जमीन की रजिस्ट्री एक स्थानीय डीलर सोहनराज सुराणा के नाम कर दी गई. इसलिए कि सुराणा एयरबेस से सटी 160 एकड़ जमीन पर 800 करोड़ रु. की कीमत वाला पैराडाइज विला नाम का टाउनशिप बना सके. यह प्रस्तावित कॉलोनी बनाने के लिए प्रदेश सरकार के और रक्षा संपत्ति से जुड़े अफसरों ने भी ढेरों गलत मंजूरियां दीं, जबकि ऐसे संवेदनशील इलाके में इस तरह का निर्माण पूरी तरह वर्जित है.

यह साजिश इस वजह से भी खासी गंभीर मालूम होती है क्योंकि इस प्रोजेक्ट में मुंबई का एक डेवलपर एस.जी. ग्रुप शामिल है, जिसके खिलाफ सीबीआइ ने एक अन्य मामले में? साल की लंबी जांच के बाद इसी मई में मुकदमा दर्ज किया है. यह मामला भी जोधपुर में अचल संपत्ति के एक प्रोजेक्ट से जुड़ा है. उस पर आरोप है कि उसने उम्मेद हेरिटेज नाम के प्रोजेक्ट के लिए जोधपुर राजपरिवार के महाराजा हरि सिंह ट्रस्ट की मिलीभगत से रक्षा विभाग की जमीन हथियाई थी. ग्रुप के संस्थापक सुरेश गांधी का संबंध राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दोस्त मफतराज मुणोत के स्वामित्व वाले कल्पतरू ग्रुप के साथ तीन दशकों का रहा है. कल्पतरू के दो अचल संपत्ति के प्रोजेक्ट्स के खिलाफ भी पुणे और मुंबई में सीबीआइ की जांच चल रही है. उस पर भी गलत तरीके से रक्षा विभाग की जमीन हथियाने का आरोप है. लेकिन मुणोत इंडिया टुडे से कहते हैं, ‘‘पैराडाइज विला या गांधी के साथ मेरा कोई संबंध नहीं.’’ गांधी की अपनी सफाई है, ‘‘कल्पतरू की उन योजनाओं में मैं कभी शामिल नहीं रहा, जिनके खिलाफ सीबीआइ की जांच चल रही है.’’

इस धोखाधड़ी का खुलासा 32 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता रामसिंह चरकारा ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए किया. उनकी कोशिशों के चलते जोधपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) को गलती स्वीकार करनी पड़ी और उसे इसी 2 मई को 3.8 एकड़ जमीन वायु सेना के नाम करने का आदेश देना पड़ा. इससे पहले पिछली 12 दिसंबर को जोधपुर डिफेंस एस्टेट ऑफिस ने पैराडाइज विला को दिया अपना अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) रद्द कर दिया था. उसी महीने सीबीआइ ने भी खुफिया जांच शुरू कर दी. चरकारा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी से इस बारे में शिकायत की थी. सीबीआइ की टीम ने दस्तावेज जुटाने को जोधपुर का दौरा किया. रक्षा मंत्रालय को अभी तक सीबीआइ की ओर से कोई रिपोर्ट नहीं मिली है. वह जनवरी में मिली जोधपुर डिफेंस एस्टेट ऑफिस की उस सिफारिश को अपने पास रखे हुए है. उसमें एफआइआर दर्ज करने और जमीन अपने नाम कराने की प्रक्रिया की बात कही गई थी.

कभी जोधपुर राजपरिवार की मिल्कियत वाला 3.8 एकड़ का यह टुकड़ा 197.5 एकड़ की उस जमीन का हिस्सा था, जिसे 1965 में युवा महाराजा गज सिंह ने जोधपुर कैवेलरी के कमांडर कर्नल मोहन सिंह के नाम कर दिया था. मोहन सिंह ने तुरंत ही इसमें से 160 एकड़ जमीन अपने बेटे नरेंद्र सिंह भाटी को दे दी थी, जो आगे चलकर प्रदेश के महत्वाकांक्षी नेता बन गए. वे चार बार विधायक रहे. भाटी की बहन जतन कंवर का विवाह पूर्व रक्षा मंत्री और बीजेपी नेता जसवंत सिंह से हुआ था. भाटी 1980 से 2003 के बीच तीन बार मंत्री भी रह चुके थे. इस दौरान खुद को राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करने के कारण उन्हें दो बार बर्खास्त भी किया गया था. वे खुद को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और विख्यात नृत्यांगना सोनल मानसिंह का करीबी दिखाने की कोशिश करते थे. दिसंबर, 2003 में विधानसभा चुनाव में हार के बाद उनका करियर खत्म होने लगा. सितंबर, 2010 में लीवर खराब हो जाने से उनकी मौत हो गई.

सन् 2011 में वायु सेना के साथ धोखाधड़ी का मामला उस वक्त सामने आने लगा जब भाटी के बच्चों ने पिता की उस अचल संपत्ति को हासिल करने की कोशिश शुरू की, जिनकी वसीयत नहीं हुई थी. तभी चरकारा को भी पता चला कि वायु सेना के अड्डे के पास सुरक्षा नियमों में ढील देकर पैराडाइज विला को गलत तरीके से मदद पहुंचाई जा रही है. बाद में पता चला कि यह धोखाधड़ी 1965 से ही शुरू हो गई थी, जब भाटी ने खुद को जमीन की हदबंदी कानून से बचाने के लिए 53.8 एकड़ जमीन कृष्ण काक नाम के व्यक्ति को उपहार में दे दी. काक सेंट स्टीफंस में उनके सहपाठी थे. 3.8 एकड़ का यह टुकड़ा उस जमीन का हिस्सा था, जो औपचारिक तौर पर काक के नाम थी. कश्मीर के आखिरी प्रधानमंत्री रामचंद्र काक के पोते काक 1968 में गुजरात कैडर के आइएएस बने. उस जमाने में जमींदारों के बीच प्रचलित रिवाज के अनुसार, भाटी ने भी जमीन पर पूरा अधिकार रखने के लिए काक से पावर ऑफ अटॉर्नी ले ली. 1987 में स्थानीय प्रशासन ने वायु सेना की ओर से 3.8 एकड़ जमीन के मुआवजे के रूप में जोधपुर की सुमन परिहार को 59,000 रु. नगद भुगतान कर दिया. उसे यह मुआवजा काक से मिले एक कथित फर्जी पावर ऑफ  अटार्नी के आधार पर दिया गया था, जो अब रिकॉर्ड से गायब है. जाहिर है, एक और धोखाधड़ी की नींव रखी जा रही थी क्योंकि स्थानीय प्रशासन ने यह जमीन कभी भी इसके असली स्वामी भारतीय वायु सेना के नाम नहीं की.

 दिसंबर, 2003 में काक के नाम एक और फर्जी पॉवर ऑफ अटार्नी बनाई गई. इसका इस्तेमाल 53.8 एकड़ की उस पूरी जमीन को बेचने के लिए किया गया, जिसे भाटी ने काक के नाम कर दिया था. यह जमीन जोधपुर जिले के एक छोटे-से कस्बे मथानिया के रहने वाले जमीन के छोटे-से दलाल ओम सिंह चारण को बेची गई थी. इस जमीन में वायु सेना की 3.8 एकड़ जमीन भी शामिल थी. हफ्तेभर बाद ही चारण ने 53.8 एकड़ की पूरी जमीन जोधपुर के डीलर सोहनराज सुराणा को बेच दी. 2005 में सुराणा ने भाटी और दो अन्य लोगों के साथ 3.8 एकड़ की जमीन का इस्तेमाल करते हुए पैराडाइज विला की स्थापना की. भाटी ने 2007 में इसे छोड़ दिया. सुराणा और गांधी कहते हैं कि पैराडाइज विला के लिए इस जमीन को लेने में गलती इसलिए हुई कि यह जमीन रजिस्ट्रार के रिकॉर्ड में वायु सेना के नाम नहीं थी. वे कहते हैं, ‘‘काक ने वायु सेना की जमीन पर गलत अधिकार दिखाया, जो सरकारी रिकॉर्ड में उनके नाम थी. हमें गुमराह किया गया.’’

काक कहते हैं कि उन्हें किसी पावर ऑफ अटार्नी या जमीन के हस्तांतरण के बारे में कोई जानकारी नहीं थी क्योंकि जमीन उनकी नहीं थी. उन्हें फर्जी पावर ऑफ अटार्नी के जरिए धोखाधड़ी का पता भाटी की मृत्यु के कुछ दिन बाद चला जब उनके परिवार के एक सदस्य ने चारण की इस्तेमाल की गई पावर ऑफ अटार्नी के बारे में उनसे पूछताछ की. काक कहते हैं, ‘‘मैं हैरान रह गया क्योंकि मैंने 1960 के दशक में इस जमीन के लिए भाटी को पावर ऑफ अटार्नी दी थी और बाद में ’80 के दशक में एक बार तब दी थी, जब भाटी ने कहा कि उसकी मूल प्रति कहीं खो गई थी.’’ ’80 के मध्य के बाद वे भाटी से दूर हो गए.

काक को जब अपने नाम फर्जी पावर ऑफ अटार्नी का पता चला तो उन्होंने जेडीए को लिखकर बताया कि उन्होंने 2011 में किसी को भी पावर ऑफ अटार्नी नहीं दी है. जेडीए ने शिकायत पर ध्यान ही नहीं दिया. चरकारा का आरोप है, ‘‘सरकार ने इस खुल्लमखुल्ला धोखाधड़ी के लिए कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की क्योंकि जोधपुर में स्थानीय प्रशासन और डेवलपरों के बीच मिलीभगत रहती है.’’ रजिस्ट्री रद्द करने के लिए कदम उठाया होता तो पैराडाइज विला के हाथ से 250 करोड़ रु. की जमीन निकल जाती और कुछ लोग जेल पहुंच जाते. बहरहाल, सीबीआइ जांच के डर और चरकारा की कोशिशों के कारण जेडीए ने दो साल बाद 3.8 एकड़ जमीन अब वायु सेना के नाम कर दी है. अब चरकारा कहते हैं, ‘‘यह गलत फैसला है. रजिस्ट्री रद्द नहीं की गई है और न ही फर्जी पावर ऑफ अटार्नी के मामले में कोई आपराधिक जांच शुरू की गई है.’’

जोधपुर में रक्षा विभाग के प्रवक्ता कर्नल एस.डी. गोस्वामी कहते हैं, ‘‘भारतीय वायु सेना को पता चल गया था कि 1987 में अधिग्रहीत जमीन पर अधिकार का कोई मसला है. 2005 में यहां कॉलोनी को मंजूरी दिए जाने पर हमने स्थानीय प्रशासन के सामने मामला रखा भी था.’’ मार्च, 2005 में जब पैराडाइज विला बनने वाला था, तो वायु सेना ने अपनी जमीन की पहचान के लिए एक सर्वे और निर्माण रोकने की मांग की थी.

वायु सेना की आपत्तियों की अनदेखी की गई. उलटे मार्च और अप्रैल, 2005 में जोधपुर प्रशासन ने खेती की जमीन को आवासीय जमीन में बदलने की इजाजत दे दी. वसुंधरा राजे की बीजेपी सरकार को इस बारे में कुछ गंध मिली तो पैराडाइज विला प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी गई. गहलोत के दिसंबर, 2008 में सत्ता में आने पर स्थानीय प्रशासन ने पैराडाइज विला की मदद में सरकार को भी शामिल कर लिया. 16 फरवरी, 2010 को सरकार ने विधानसभा को भरोसा दिलाया कि वह 100 मी. और 900 मी. के दायरे में निर्माण की इजाजत नहीं देगी. पर शहरी विकास और आवास के प्रमुख सचिव जी.एस. संधू ने योजना की रूपरेखा में 100 मी. के क्षेत्र को शामिल करने का आदेश दे दिया और मार्च में पैराडाइज विला को सीधे 80 करोड़ रु. का फायदा पहुंचाया गया. आदेश लागू होने का इंतजार किए बिना ही जेडीए के तत्कालीन आयुक्त गौरव गोयल ने 211 पट्टे और फिर 16 अप्रैल, 2013 को अपने तबादले के दिन 203 पट्टे जारी कर दिए. उन्हें बाद में जोधपुर का कलेक्टर बनाकर लाया गया. इस बारे में इंडिया टुडे के फोन और एसएमएस का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

पैराडाइज विला को बचाने की सरकार की कोशिशों के बावजूद उसका भविष्य अंधकारमय है. 53.8 एकड़ की पूरी जमीन की सेल डीड रद्द करनी होगी, 50 एकड़ जमीन काक को और 3.8 एकड़ वायु सेना को देनी होगी. आवंटियों को भूखंडों से हाथ धोना पड़ा. 1,175 वर्ग गज के छह भूखंड काक के बैचमेट आंध्र प्रदेश कैडर के आइएएस रहे और भाटी के मित्र सी.डी. आरा ने खरीदे थे, वे भी निर्माण वर्जित क्षेत्र में आते हैं.

करीब 50 साल पहले मोहन सिंह को मिली 800 करोड़ रु. कीमत वाली जमीन का झगड़ा अब राजस्थान हाइकोर्ट में है, जिसने नवंबर, 2012 से यथास्थिति का आदेश दे रखा है. भाटी के बेटे मृगेंद्र सिंह ने उस जमीन पर अपना दावा पेश किया है. उनकी बहन राधिका को 2011 में पैराडाइज विला में पांच करोड़ रु. की कीमत के प्लाट मिले थे. वे मृगेंद्र के खिलाफ और सुराणा के साथ हैं. 2011 में मृगेंद्र और मां सर्जनी देवी के बीच विवाद में गोलियां भी चल चुकी हैं. राधिका ने नवंबर, 2012 में गहलोत को चिट्ठी लिखकर भाई पर आरोप लगाया था कि वे अपनी सास सुनीता कोहली की सोनिया गांधी से करीबी का फायदा उठाकर उन्हें पिता की जमीन और घरों से बेदखल करने की कोशिश कर रहे हैं. सुनीता दिल्ली में हेरिटेज की संरक्षक हैं. इन सबके बीच, काक 1965 में बतौर उपहार जमीन को स्वीकारने पर पछता रहे हैं. वे पहले ही कह चुके हैं कि जांच के बाद जमीन वापस मिल गई तो उसे वे बेझिझक जमीन के असली वारिस भाटी को दे देंगे.

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