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देश की सबसे पुरानी बहुराष्ट्रीय कंपनियां

भारत में कारोबार करते हुए इन्हें 75 वर्ष से ज्यादा हो गए और आज भी वे मजबूती से टिकी हुई हैं. भारत की सबसे पुरानी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने देश में आए उतार-चढ़ाव के बीच खुद को न सिर्फ बचाए रखा बल्कि कठिन परिस्थितियों में भी तरक्की की है.

बहुराष्ट्रीय कंपनियां
बहुराष्ट्रीय कंपनियां
अपडेटेड 23 मई , 2013

भारत में कारोबार करते हुए इन्हें 75 वर्ष से ज्यादा हो गए और आज भी वे मजबूती से टिकी हुई हैं. भारत की सबसे पुरानी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने देश में आए उतार-चढ़ाव के बीच खुद को न सिर्फ बचाए रखा बल्कि कठिन परिस्थितियों में भी तरक्की की है. अंग्रेजों के राज में शुरू हुई इन कंपनियों का इतिहास आजादी से पहले और आजादी के बाद के भारत की आर्थिक किस्मत से बहुत गहरे जुड़ा रहा है. इन्होंने उद्योगीकरण और उदारीकरण के उत्कर्ष तक सब कुछ बहुत करीब से देखा-जाना है.

हमारा विशेष पैकेज ‘‘भारत की सबसे पुरानी बहुराष्ट्रीय कंपनियां’’ ऐसी ही कुछ शीर्ष भारतीय कंपनियों की एक दास्तान है. सवाल है कि इन कंपनियों को चुनने का पैमाना क्या था? बुनियादी कसौटी थी भारत में कारोबार को 75 साल हो जाना, इससे जो सूची बनी उसमें से हमने अलग-अलग क्षेत्रों की या तो इससे पुरानी या फिर बाजार का नेतृत्व करने वाली अग्रणी कंपनियों को छांटा. बैंकिंग जैसे क्षेत्रों के लिए, जहां नियामक बंदिशों के कारण कारोबारी आकार की सीमाएं होती हैं, हमने उसी क्षेत्र की दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ तुलना करते हुए या तो सबसे पुरानी या फिर सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनी को चुना. ये चुनी हुई कंपनियां भारत में ग्लोबल कारोबार के सर्वश्रेष्ठ का प्रतिनिधित्व करती हैं.

आज ये कंपनियां न सिर्फ भारत की सामूहिक चेतना में गहरे पैठी हुई हैं बल्कि अपनी मूल कंपनियों की किस्मत को तय करने में भी निर्णायक भूमिका अदा कर रही हैं. केपीएमजी इंडिया के सीईओ रिचर्ड रेखी के शब्दों में, ‘‘इतने लंबे समय तक एमएनसी का टिक जाना इस बात का सबूत है कि इन्होंने अपने उत्पादों, रणनीतियों और प्रक्रियाओं में स्थानीय संस्कृति, मांग और आर्थिक मांग के हिसाब से बदलाव किए हैं.’’

इनकी कहानियां इस बात का सबूत हैं कि जब वक्त इनके बिलकुल प्रतिकूल था, तब इन्होंने देश में टिके रहने का माद्दा और संकल्प दिखाया. मसलन, लुब्रिकेंट निर्माता कैस्ट्रॉल इंडिया को सत्तर के दशक में छह फीसदी से ज्यादा बाजार हिस्सेदारी की छूट नहीं थी क्योंकि उस वक्त का नियामक वातावरण उसके खिलाफ था. इसके बावजूद कंपनी ने खुद को टिकाए रखा और आज इस कारोबार की सबसे बड़ी खिलाड़ी है.

इसी तरह, यह बात कम लोगों को पता होगी कि स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की एक समय पर इलाहाबाद बैंक में बड़ी हिस्सेदारी थी जो बैंकों के राष्ट्रीयकरण अभियान के चलते खत्म हो गई. इसके बावजूद बैंक ने उदारीकरण की लहरों पर सवार होकर विलय और अधिग्रहणों के मामले में नेतृत्वकारी स्थिति हासिल कर ली.

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