बंगलुरू स्थित कॉग्निजेंट कंपनी में नौकरी करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर 24 साल के अर्जुन पी. किशोर बाहर से देखने में तो बहुत सौम्य लगते हैं, लेकिन उन्हें बस छेडऩे की देरी है कि उनका रौद्र रूप सामने आ जाता है. भारत में 'रुद्र’ हमेशा से भगवान शिव के लिए प्रयुक्त किया जाता रहा है. जाहिर है, किशोर भी शिव से दूर नहीं हैं. उनके शरीर पर शिव के दो टैटू यानी गोदने हैं और वे तीसरा बनवाने वाले हैं. आजकल वे रमेश मेनन की लिखी शिव पुराण रीटोल्ड पढ़ रहे हैं. उनके कुछ जानने वाले समझ नहीं पा रहे कि आखिर किशोर को हो क्या गया है.
दूसरी ओर किशोर के मुताबिक, उन्हीं में से तमाम लोग उनसे यह किताब उधार मांगने आते हैं. वे कहते हैं, ''मैंने आजीवन पूजा नहीं की, लेकिन शिव के मामले में कोई नियम नहीं हैं. यहां मनमौजीपन चलता है.’’ नटराज की कांसे की मूर्ति, जिसे कभी विदेशी शिष्टमंडलों को उपहार में देने का चलन था, आज फैशन बन चुकी है. भगवान शिव आज के महानायक हैं. यहां पूजा का मतलब होता है शिव का फैन होना और इस फैनडम यानी पसंदगी की सनक को हवा देने का काम टीवी से लेकर गल्प पुस्तकें और फिल्में सब एक साथ कर रहे हैं.
टीवी चैनल लाइफ ओके पर देवों के देव... महादेव नाम का धारावाहिक अच्छी खासी 2.1 की टीआरपी लेता है और इसकी प्रमुख कडिय़ां की टीआरपी 8.2 को छू चुकी है.
इस धारावाहिक में शिव की भूमिका निभाने वाले केंद्रीय पात्र 30 वर्षीय मोहित रैना इसकी लोकप्रियता का श्रेय शिव के 'महानायकत्व’ को देते हैं. शिव की महिमा ऐसी है कि बड़े-बुजुर्ग लोग भी हरिद्वार के मेलों में शिव के चरणों में दंडवत हो जाते हैं, औरतें अपनी बेटियों के लिए शिव जैसा दूल्हा चाहती हैं और अनब्याही लड़कियां को तो शिव से कमतर पति की कामना ही नहीं होती. मुंबई की 26 वर्षीया तूलिका दुबे, पुणे की 23 साल की अंजलि सिंह और ब्रिटेन में रहने वाली 31 साल की श्रुति त्रिवेदी की दोस्ती ट्विटर पर हुई, जिसके बाद उन्होंने मार्च 2012 में मोहित रैना फैन क्लब बनाया. वे रात-रात भर अपने समूह के तमाम फॉलोवर्स के साथ शिव के बारे में बातें करती हैं. रैना कहते हैं, ''लोग मुझे दैवीय नहीं मानते, सेक्सी मानते हैं. वे शिव के भक्त नहीं, फैन हैं.”
शिव को चाहने वालों की हालत माइकल जैकसन के दीवानों-सी हो गई है. लेखक अमीष त्रिपाठी की शिव पर लिखी तीन गल्प पुस्तकों की दस लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं, जिसका जश्न मनाने के लिए रखी गई पार्टी पर अमिताभ बच्चन तक ने टिप्पणी कर दी थी कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि फिल्मी दिखने वाली एक पार्टी में एक किताब का जश्न मनाया जा सकता है. उनकी किताब पर फिल्म बनाने का अधिकार धर्मा प्रोडक्शंस ने खरीदा है और 2014 के अंत तक इस पर काम शुरू हो जाएगा. दावा है कि इस पर हैरी पॉटर किस्म की फिल्मों की एक श्रृंखला बननी है.
महज तीन साल पहले 2010 में छपने को मोहताज अमीष त्रिपाठी को शिव का ऐसा वरदान मिला कि उन्हें भुनाकर आज वे भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखकों में शुमार किए जाने लगे हैं. उनके लेखन में शिव एक 'कूल’ भगवान की तरह आते हैं और पाठकों की धारणा में उन्होंने मिथकों को एक नए तरीके से स्वीकार्य बनाया है. टैटू कलाकारों से लेकर अपने बच्चों को उनकी किताबें पढ़ते देख खुश होते माता-पिता सब मानते हैं कि शिव की सनक का यह श्रेय अकेले त्रिपाठी के काम को जाता है.
सबसे संवाद करते शिव
नए दौर के भगवान गढऩे की चाबी है रूपांतरण. यह रूपांतरण एक से दूसरी भाषा में नहीं, बल्कि माध्यमों के बीच हो रहा है. फेसबुक, ट्विटर से लेकर ऑनलाइन हैकर नेटवर्क, प्लेस्टेशन, शिवा ऑफ द ईस्ट के नाम से मौजूद एक पात्र के रूप में डार्क सोल्स नाम के एक्सबॉक्स वीडियो गेम से लेकर फाइनल फैंटसी श्रृंखला तक शिव हर जगह उतनी ही खूबसूरती से समा जाते हैं.
मामला ऑनलाइन गेम के चरित्रों के दीवाने किशोरों तक सीमित नहीं है, बल्कि शिव का नाम उनके लिए ज्यादा कारगर है, जो धर्म के नियमों को उलट-पलट कर रख देने का दुस्साहस करने को बेचैन हैं. बच्चन जैसी शख्सियतों की निजी प्रशिक्षिका 39 वर्षीया वृंदा मेहता कहती हैं, ''मुझे उनसे इश्क है, आज से नहीं बल्कि पांच साल की थी, तभी से.” मेहता और आमिर खान और जॉन अब्राहम जैसे सितारों के निजी प्रशिक्षक दीपेश भट्ट ने मिलकर भट्ट के जुहू स्थित जिम क्रॉसफिट ओम में एक शिवलिंग की स्थापना करवाई है. मेहता, भट्ट और कॉस्ट्यूम डिजाइनर निहारिका खान हर सोमवार को जिम में रुद्राभिषेक करते हैं, ध्यान लगाते हैं, शिव के टैटू गोदवाते हैं और एक साथ मिलकर 'शिव से योग’ की कोशिश करते हैं.
मुंबई के टैटू कलाकार समीर पतंगे और अल स्टुडियो के अल अपने ग्राहकों में रोजाना औसतन एक शिव का टैटू बनाते हैं. बंगलुरू में ब्रह्मा टैटूज के मालिक 37 वर्षीय गिरीश ब्रह्मनेत्र कहते हैं कि इस शहर में शिव के गोदने की सबसे ज्यादा मांग टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करने वाले प्रोफेशनल्स के बीच से आती है.
लोकतांत्रिक हैं महादेव
समय का पहिया घूम चुका है और शिव का संपूर्ण लोकतांत्रीकरण हो चुका है. हर किस्म का शिव फैन या भक्त चाहे शौकीन हो या संकल्पित, बड़ी आसानी से अपने जीवन में शिव को अपनाए ले रहा है और शिव की उपस्थिति अब कुछ बेहद अनजानी जगहों पर भी ऐसे हो रही है जैसे वह इंसानों के बीच की कोई बात हो. घोषित तौर पर नास्तिक डिजाइनर तरुण तहिलयानी के कुंभक 2013 ऑटम विंटर लाइन में शिव मौजूद हैं तो हाल ही में छपकर आई बिजनेस सूत्र में मैनेजमेंट गुरु देवदत्त पटनायक शिव शंकर के बहाने संपदा निर्माण का प्रबंधकीय मुहावरा गढ़ रहे हैं. अजय देवगन और संजय दत्त जैसे सितारों की छाती और मुश्क पर शिव विराजे हैं तो शिवा ब्लैक मेटल बैंड एडी 1833 के संगीत और टी-शर्ट में शिव हैं. अजय देवगन कहते हैं, ''सारे मिथकों में वे महानायक हैं. वे कूल हैं, उनके भीतर सारी भावनाएं समाहित हैं, हर चलन मौजूद है. वे सब कुछ हैं, बुराई के विनाशक हैं, बावजूद इसके भोले हैं. उन्हें आसानी से छकाया जा सकता है, गुस्सा दिलाया जा सकता है और भावनाओं में बहाया जा सकता है. हर व्यक्ति को जो होना चाहिए और जैसा होने की कामना वह करता है, वही शिव हैं.”
हर कोई शिव को अपने-अपने तरीके से तलाश रहा है. मसलन, भारत के लोकप्रिय समकालीन कलाकार 38 वर्षीय जितीश कलाट, जो आजकल दोबारा ताओ ऑफ फिजिक्स पढ़ रहे हैं. फ्रित्जॉफ कापरा की 1975 में लिखी यह पुस्तक तांडव करने वाले शिव को गतिशील ब्रह्मांड का सबसे आदर्श मानवीकरण मानती है और इसमें पूरब के दर्शनों के रास्ते भौतिकी की खोज की गई है. कलाट ने एक दशक पहले पहली बार इसे पढ़ा था, जब इससे प्रेरित होकर एक सामान्य नागरिक को काल के डमरू पर नाचते हुए एक कलाकृति बनाई गई थी, जिसमें ब्रिंगी यानी अज्ञानता की एक तस्वीर भी थी. यह चित्र ग्रैंड हयात, मुंबई की लॉबी में आज भी टंगा है, जहां अपने किस्म का इकलौता गलियारा शैव कलाकृतियों को समर्पित है. इसमें राजीव सेठी, योगेश रावल, नलिनी मलानी, अतुल डोडिया, सुदर्शन शेट्टी और कलाट की बनाई तस्वीरें हैं. इसके पीछे होटल की मालिक नमिता सर्राफ की सोच है. कलाट ने सर्राफ के साथ मिलकर एक छोटा-सा परिचयात्मक आलेख भी इसके लिए तैयार किया था 'कॉसमॉस एंड कॉस्मोपोलिस’. इसमें हमारे दौर में शिव की प्रासंगिकता पर व्याख्या थी. कलाट का मानना है कि हाल ही में अचानक आई शिव भाई के उभार के पीछे दरअसल कालचक्र है जो पूरा घूम चुका है: ''चीजों को खत्म होना ही है, ताकि उनकी दोबारा शुरुआत हो सके और यह चक्र सनातन है.’’
चूंकि शिव की प्रकृति कालचक्र जैसी है, इसलिए वे बार-बार उभर आते हैं. ललित कला अकादमी में आजकल प्रदर्शित की जा रही अतुल डोडिया की कलाकृतियों में ओक्तावियो पाज की एक पंक्ति लगी है, ''शिव और पार्वती, हम तुम्हें ईश्वर मानकर नहीं पूजते, बल्कि इंसान के भीतर उपस्थित दैवी छवि तुममें देखते हैं.” मुंबई के ग्रैंड हयात होटल में लगी उनकी कलाकृति उमामहेश्वरमूर्ति में युवा सोनिया गांधी, ऋत्विक घटक और शिव की तस्वीरें एक-दूसरे के बरक्स लगी हैं जो दर्शाती हैं कि सार्वजनिक छवियों के निर्माण में नियति कितनी प्रबल होती है.
एलिफैंटा गुफाओं से लेकर 300 ईसा पूर्व की चोल वंश कलाकृतियों में शिव एक जिज्ञासा की तरह मौजूद हैं, और ये जिज्ञासाएं विज्ञान से लेकर कला और यहां तक कि सामाजिक विवाह आदि कर्मकांडों तक फैली हैं. अपने आदर्श पति की प्रतीक्षा करती औरतों से लेकर ऐतिहासिक खोज के इंतजार में काम करते वैज्ञानिकों तक शिव का करिश्मा बहुत सादगी से हर जगह मौजूद होता है. भारतीय विद्या भवन में संस्कृत अध्ययन और शोध के निदेशक सुनील उपाध्याय कहते हैं, ''शिव का रूप सनातन है. चूंकि उनके अवतार नहीं हैं, इसलिए लोग उन्हें बार-बार अपने तरीके से आविष्कृत कर लेते हैं.’’
दोबारा आविष्कार अपरिहार्य हो सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि हर अवतार को सराहना ही मिले हो. शिव का मिथकीय चरित्र कृष्ण जैसा आकर्षक नहीं है. उपाध्याय के मुताबिक श्लोकों में वे अशुभकारी दिखते हैं. लेकिन शिव जितने अनादर्श होंगे, शहरी भारत उनसे उतना ही ज्यादा जुड़ सकेगा. उनके भीतर राम और कृष्ण वाली महामानव की छवि का अभाव है. आज की युवा पीढ़ी आदर्शों से इतनी थक चुकी है कि शिव की स्वीकार्यता उसके भीतर सहजता से चली आती है.
सबको लुभाते शिव
देवयानी पवार बखूबी यह सब समझती है. अकसर उसके साथ के बच्चे 14 साल की इस छात्रा का मजाक बनाते हैं, लेकिन मुंबई के चेंबूर स्थित सेंट एंथनीज गर्ल्स स्कूल में पढऩे वाली देवयानी ने देवों के देव... महादेव की एक भी कड़ी नहीं छोड़ी है. उसने कुल 359 एपिसोड देखे हैं. वह कहती है, ''मैं मोहित रैना के लिए इसे देखती हूं. मुझे लगता है कि वे असली शिव के चरित्र को चरितार्थ करते हैं जो अपने भक्तों की हमेशा मदद करते हैं, जब-जब भक्त उनका आवाहन करते हैं.”
लाइफ ओके की टीम ने जब इस धारावाहिक के लिए 2011 में मार्केट रिसर्च शुरू किया था, तो उन्हें कोई भगवान नहीं बल्कि एक हीरो चाहिए था. चैनल प्रमुख 41 वर्षीय अजित ठाकुर कहते हैं कि शिव की लोकप्रियता को देखकर वे तो दंग रह गए. इस दौर की अव्यवस्थाओं में शिव अचानक प्रासंगिक हो उठते हैं: एक खूबसूरत व्यक्तित्व, इमेज केंद्रित इस दौर में अपने दिखने को लेकर लापरवाह, तलाक के दौर में प्रेमी और सहजीवी को ताकत देता एक पति, लगातार अलगाव पैदा करते शहरी ताने-बाने में आत्म की खोज के लिए श्मशान में जाने वाला एक साधु, पिशाचों और विजातीयों से उसकी बराबर की दोस्ती, समानता का सिपाही, और किसी भी महानायक की महान कहानी का आदर्श अंत—इस दुनिया का दिया जहर अकेले पी जाने वाला त्यागी पुरुष.
यही वजह है कि उनका आभामंडल बहुत ठोस है. इसे देखना हो तो मुंबई से 156 किमी दूर 200 घरों वाली एक बस्ती वादेश्वर में चले जाएं, जहां भीमाशंकर संप्रदाय के एक स्थानीय मंदिर को 2010 में 38 वर्षीय आर्किटेक्ट समीर पडोरा ने दोबारा डिजाइन किया है. स्थानीय काले पत्थर से बना यह ढांचा बिल्कुल सादा है. घास का फर्श है, पेड़ ही उसकी दीवारें हैं और छत के नाम पर सिर्फ आसमान. इस सादे मुक्ताकाशी मंदिर में आज दुनिया भर से 2,000 लोग रोज आते हैं. पिछले साल क्रिकेटर जहीर खान अपने परिवार के साथ यहां आए थे. अनुपम खेर और अमिताभ बच्चन भी यहां दर्शन के लिए आ चुके हैं. पडोरा कश्मीरी पंडित और शैव हैं. वे कहते हैं, ''दूसरे भगवानों के साथ ऐसा दुस्साहसी प्रयोग मुमकिन नहीं है.” विष्णु के अवतारों को कुछ हद तक सजाना-संवारना पड़ता है. शिव अपने अनगढ़पन में ही श्रेष्ठ हैं. अब इस क्षेत्र में ऐसा 11वां मंदिर बनने जा रहा है.
अर्द्धनारीश्वर की छवि
होटल मालकिन नमिता सर्राफ ने ग्रैंड हयात की लॉबी को सजाने के लिए शिव को ही चुना, हालांकि वे इस बात को लेकर सतर्क थीं कि कहीं धार्मिकता के चलते धंधे में खोट न आ जाए. सर्राफ कहती हैं, ''सिर्फ शिव में ही पुरुष और स्त्री का सामंजस्य संभव है. अपने समाज में हम जहां स्त्रियों के लिए जगह को लेकर संघर्ष देख रहे हैं, वहां शिव इस संदर्भ में प्रतीक बनकर उभरते हैं.”
शिव की ऊर्जा बेजोड़ है, समकालीन है, संतुलित है और उनके भीतर के स्त्रीत्व के साथ आती है. यह संतुलन सर्वाधिक फैशन क्षेत्र में दिखाई देता है. तरुण तहिलयानी के कुंभक ऑटम-विंटर 2013 लाइन में उन्होंने 2012 के कुंभ मेले में आए औघड़ों, शैव साधुओं से प्रेरणा लेकर परिधान तैयार किए हैं. इन कपड़ों में स्त्रियों के भीतर पौरुष और पुरुषों के भीतर स्त्रीत्व की झलक आती है. इसीलिए आजकल शिव की अवधारणा पर बन रहे अधिकतर परिधान पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए उपयुक्त हैं. उद्यमी प्रिया चटवाल की भारत के खुदरा बाजार में उतारी गई रेंज गंगा चू शिव अवधारणा पर बनी टी-शर्ट की है, जिसमें स्वारोव्सकी के क्रिस्टल जड़े हैं और इसकी कीमत 9,000 रु. है. रोजाना स्वाहा, डू यू स्पीक ग्रीन, मंत्रा ऑन नेट जैसे ब्रांड अपने ई-पोर्टल के माध्यम से शिवा यूनीसेक्स कपड़े धड़ल्ले से बेच रहे हैं.
घर-बाहर भले ही स्त्री/पुरुष अपनी जगह के लिए झगड़ते हों, लेकिन गले में, बांह पर और कलाई में टैटू, रुद्राक्ष और तुलसी की मालाएं पहन रहे हैं. कैसी विडंबना है कि असंतुलन के मर्ज से निपटने की कोशिश करता एक समाज अपना कुल संतुलन एक माला के मनके में खोज निकालता है.