कहते हैं जब दौलत आती है तो अपने साथ मुसीबत भी लाती है. और कहते ये भी हैं कि जब दौलत जल्दी और बेशुमार आती है तो मुसीबत के साथ कई बार मौत भी ले आती है. दिल्ली में बहुत से नए बने रईसों के साथ हाल के वक्त में जो कुछ हुआ है उसे देख कर सचमुच ये बातें सच लगने लगी हैं. शराब की दुकान के बाहर चखना का खोमचा लगाने वाला पोंटी चड्ढा हो या इलैक्ट्रॉनिक्स में दिल्ली के बड़े व्यापारियों में से एक अरुण गुप्ता. या फिर सबसे ताजा अरबपति बिल्डर दीपक भारद्वाज.
इन सारे रईसों की एक ही कहानी है. बेशुमार दौलत कमाई, मगर घर के रिश्तों को ही संभाल नहीं पाए. बल्कि उसी दौलत की वजह से अपने रिश्ते ही अपनी जान के दुश्मन बन गए. दौलत की खातिर पोंटी चड्ढा और उसके भाई हरदीप चड्ढा ने एक-दूसरे को ही गोली मार दी. अरुण गुप्ता की सुपारी खुद उसके साले ने दे डाली. और अब दीपक भारद्वाज के नाम की सुपारी निकली तो वह भी अपने ही घर के अंदर से. बेटे नितेश ने बाप को मरवा डाला.
यह सच है कि दीपक भारद्वाज के अपनी बीवी और दोनों बेटों से रिश्ते ठीक नहीं थे. पिछले 10 साल से वे अपने घरवालों से अलग रह रहे थे. बीवी-बेटों को खर्च भी नहीं देते थे. दिल्ली पुलिस के सूत्रों के मुताबिक रिश्ते खराब होने के बावजूद सालभर पहले तक दीपक अपनी बीवी और बेटों से अकसर मिला करता था. वे लोग फार्म हाउस में भी आते रहते थे. मगर पिछले साल भारद्वाज को यह भनक लग गई कि नितेश उनकी महबूबा के साथ दोस्ती की पींगें बढ़ा रहा है. और बस यहीं से भारद्वाज भड़क गए. उन्होंने नितेश के फार्म हाउस में घुसने पर ही रोक लगा दी. और इसी बात ने बेटे को अपने ही बाप का सबसे बड़ा दुश्मन बना दिया. और फिर एक बेटे ने वह फैसला किया, जिसके बारे में सोचकर ही किसी की रूह कांप जाए. यह फैसला था दीपक भारद्वाज के कत्ल का.
नितेश ने इस बारे में अपने फैमिली फ्रेंड और वकील बलजीत सिंह सहरावत से बात की. सहरावत चुनाव लडऩा चाहता था और उसे पैसों की जरूरत थी. उसी ने नितेश के इरादों को हवा दी और चुनाव स्पांसर करने को कहा. लेकिन बाद में उसने अपना इरादा बदल लिया और नितेश से उसके पिता के कत्ल के लिए पूरे पांच करोड़ रु. की मांग की. अपने पिता से बुरी तरह ऊब चुके नितेश ने इसकी हामी भर दी. अब सहरावत ने अपना दिमाग लगाना शुरू किया और हरिद्वार के एक ऐसे महंत से बात की, जिसके अरमान बड़े थे. यह था महंत प्रतिभानंद. वह एक बड़े आश्रम की शक्ल में अध्यात्म की बड़ी दुकान खोलना चाहता था और इसके लिए उसे रुपए कमाने का हर तरीका गवारा था. सहरावत ने उसे इस ‘बड़े काम’ का ऑफर दिया और वह राजी हो गया.
अब तक सहरावत को एडवांस में 50 लाख रु. मिल चुके थे. इसमें से उसने तकरीबन साढ़े तीन लाख रु. महंत को थमाए. उसने अपने ड्राइवर और पुराने चेले पुरुषोत्तम उर्फ मोनू को उसकी तकदीर बदल जाने का सब्जबाग दिखाया और वह दो लाख रु. लेकर भारद्वाज को ठिकाने लगाने निकल पड़ा. दिल्ली में भारद्वाज के फार्म हाउस के बाहर उसने दो बार उसे निशाना बनाने की कोशिश की, लेकिन वह अलग-अलग वजहों से बच निकला. पुरुषोत्तम ने 26 मार्च की सुबह अपने एक साथी सुनील उर्फ सोनू और अमित को इस काम के लिए चंद हजार रुपयों में राजी किया और दोनों ने भारद्वाज के फार्म हाउस में घुसकर उसका काम तमाम कर दिया. लेकिन सीसीटीवी कैमरों ने उनके राज को फाश कर दिया.
अब साजिश के बेनकाब होने की बारी थी. लेकिन चूंकि पुरुषोत्तम महंत से आगे किसी को जानता ही नहीं था, सो तफ्तीश आगे नहीं बढ़ पा रही थी. आखिरकार पुलिस ने जब शक के घेरे में आए भारद्वाज के घरवालों से पूछताछ करने के साथ उनके मोबाइल फोन की जांच शुरू की और छोटे बेटे नितेश ने ऐन वारदात के दिन अपना एक मोबाइल फोन टूट जाने की बात कही तो पुलिस का माथा ठनका. तफ्तीश के आगे बढऩे पर पता चला कि नितेश के पास एक ऐसा नंबर था, जिसके बारे में किसी को पता नहीं था. जब पुलिस ने इस नंबर की स्कैनिंग की तो उसकी और सहरावत की लंबी बातचीत का खुलासा हुआ और फिर दोनों के क्रॉस इंटेरोगेशन से सारा मामला खुल गया.
शादी के 25 साल बाद तक दीपक भारद्वाज के अपनी पत्नी और दोनों बेटों से अच्छे रिश्ते थे. यहां तक कि दीपक ने नितेश को बीटेक की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा. चार साल कनाडा में रहने का उसका सारा खर्च भी दीपक ने ही उठाया था. यहां तक कि शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान की कजिन से बेटे की शादी भी बाप ने ही बड़ी धूमधाम से कराई थी. मगर करीब 10 साल पहले दौलत आते ही भारद्वाज की सोच बदल गई.
दिल्ली से सटे हरियाणा के सोनीपत जिले के एक छोटे-से गांव का रहने वाला भारद्वाज पहले सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट में स्टेनोग्राफर था. लेकिन उसके अरमान शुरू से ऊंचे थे. उसने 1979 में अपनी नौकरी छोड़कर दिल्ली में आटोमोबाइल पाट्र्स का कारोबार शुरू किया और फिर कुछ अरसे बाद दुकान का शटर गिराकर प्रॉपर्टी के काम में लग गया. भारद्वाज ने दिल्ली के अलावा नोएडा, फरीदाबाद और गुडग़ांव जैसी जगहों पर जमीन का सौदा शुरू कर दिया. इसके बाद उसने कई विवादित जमीन के टुकड़ों का सौदा किया.
अब भारद्वाज का ज्यादातर वक्त बड़े लोगों और नेताओं के साथ उठने-बैठने और लड़कियों के साथ मौज-मस्ती करने में गुजरने लगा. हाइ सोसाइटी में उठना-बैठना, नई-नई महिलाओं से मिलना उसका शगल बनने लगा और फिर देखते-ही-देखते परिवार कहीं पीछे छूटता चला गया. दीपक के इस नए शगल के बारे में पत्नी और बच्चों को पता चला तो घर में झगड़ा शुरू हो गया.
तीन साल पहले दीपक की मुलाकात कानपुर की एक लड़की से हुई, जो दिल्ली में रहती थी. दीपक ने उसे अपने फार्म हाउस के रिसॉर्ट और मैरिज हॉल में होने वाली पार्टियों और समारोहों का इंचार्ज बना दिया. भारद्वाज और वह लड़की एक-दूसरे के बेहद करीब आ गए. हालांकि वह उम्र में भारद्वाज से करीब 35 साल छोटी थी.
उस दौरान नितेश का भी अपने पिता के फार्म हाउस में लगातार आना-जाना रहता था. कुछ मुलाकातों के बाद नितेश की भी उस लड़की से दोस्ती हो गई. इसके बाद रिश्ते इतने बढ़े कि दीपक की महबूबा उसके बिजनेस के बारे में नितेश को रिपोर्ट देने लगी. वह उसके जरिए अपने बाप के सारे कारोबार और दौलत के बारे में जानकारी इकट्ठा करता था. मगर दोनों की दोस्ती ज्यादा दिन तक छुपी नहीं रह सकी. दीपक अपने बेटे नितेश और उस लड़की के बीच के रिश्तों की खबर लग गई. उसने एक रोज नितेश को जलील कर उसने फार्म हाउस से निकाल दिया और साथ ही यह धमकी दी कि वह उसकी मां को तलाक देकर उस लड़की से शादी करेगा और मां-बेटों को अपनी जायदाद में से एक फूटी कौड़ी नहीं देगा.
पुलिस सूत्रों के मुताबिक बस इसी के बाद नितेश ने अपने बाप को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया ताकि उसे दूसरी शादी करने का मौका ही न मिले. उसे डर था कि उसे सचमुच प्रॉपर्टी में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा. गिरफ्तारी के बाद नितेश ने पुलिस के सामने जो बयान दिया, उसमें उसने कहा, “मेरा बाप इसी मौत के काबिल था. उसने कभी हमें अपना बेटा नहीं समझा. कोई दुश्मन भी ऐसा नहीं करता, जो मेरे बाप ने हम लोगों के साथ किया. वह लाखों रुपए गैरों पर उड़ा देता, पर हम लोगों को एक-एक पैसे के लिए तरसाता था. यहां तक कि हमें उसके फार्म हाउस में भी जाने की इजाजत नहीं थी. उसने मेरी मां, मेरे बड़े भाई और मेरे साथ हमेशा बुरा सुलूक किया. वह पराई औरतों और लड़की के लिए उन्हीं के सामने हमारी बेइज्जती करता था. दोस्त, पड़ोसी, रिश्तेदार हम लोगों का मजाक उड़ाते थे कि देखो, अरबपति के बेटे किस हाल में रह रहे हैं? उसके लिए ऐसी ही मौत ठीक थी. मुझे अपने किए पर कोई अफसोस नहीं है.”
मसला सिर्फ नफरत का नहीं, बल्कि उस दौलत का है जिसे पाने के लिए बेटे ने नफरत का मुखौटा पहन कर अपने लालची चेहरे को छुपाने की कोशिश की. दौलत किसी को अंधा बना सकता है. इतना अंधा कि फिर उसे कोई रिश्ता नजर नहीं आता. महानगरों में बड़ी कोठियों के ऊंचे दरवाजों के पीछे का एक सच यह भी है.